ब्रह्मास्त्र : फिल्मी कथाकारों का मानसिक दिवालियापन

पं. सतीश शर्मा

धार्मिक आस्थाओं या भारतीय दर्शनों में सांस्कृतिक अपदूषण का श्रेष्ठ उदाहरण है फिल्म ब्रह्मास्त्र। हिन्दू धर्म पर आधारित शास्त्रों  एवं दार्शनिक मान्यताओं के साथ छेड़छाड़ की हिम्मत केवल बॉलीवुड वाले ही कर सकते हैं। न तो इनमें अन्य धर्मों की आस्थाओं पर सांस्कृतिक आक्रमण करने की हिम्मत है और ना ही भारत का सेंसर बोर्ड इन्हें रोक पाता है। सेक्युलरिज्म के नाम पर अप्रत्यक्ष व अनधिकृत चेष्टाएँ कर रहे हैं ये लोग। पता नहीं इनके प्रेरणा स्रोत कौन हैं?

ब्रह्मास्त्र फिल्म की कहानी का केन्द्र बिन्दु ब्रह्मा से उत्पन्न तीन टुकड़े अस्त्र हैं जो अलग-अलग हो गये हैं। इन टुकड़ों या अस्त्रों को प्राप्त करने की कोशिश में एक असुर या शैतान गिरोह है, जिसे यदि तीनों टुकड़े मिल जाएं तो वह प्रकृति में सर्वाधिक शक्तिशाली हो जाएंगे। परन्तु प्रलय जैसी कोई स्थिति आ जाएगी। ब्रह्मा से उद्भूत विभिन्न अस्त्रों के रक्षक के रूप में एक गुरुजी हैं जिसकी भूमिका अमिताभ बच्चन निभा रहे हैं। फिल्म के प्रारम्भ में ब्रह्मा के एक अस्त्र के रूप में ब्रह्मांश से युक्त भूमिका शाहरुख खान ने निभाई है जिसकी अन्त में मृत्यु हो जाती है। कथानक के अनुसार पृथ्वी पर कुछ लोगों में ब्राह्मांश है। उन सब के रक्षक गुरुजी हैं जिसकी भूमिका में अमिताभ बच्चन हैं।

कथानक में एक ड्रामेटिक मोड़ आता है जब रणबीर कपूर को शाहरुख खान रूपी ब्रह्मांश के साथ हो रही दुर्घटनाओं या ज्यादती दिवास्वप्न के रूप में ही होने लगती है और वह तब भी भयानक रूप से अशांत हो जाता है जब हीरोइन के साथ होता है और अपनी प्रेमिका की उपस्थिति में भी अपने - आप को विचलित होते हुए नहीं रोक पाता।

भारतीय षड्दर्शनों में, विशेष रूप से ब्रह्मसूत्र या वेदान्त में यह वर्णन है कि ब्रह्म ही सत्य हैं और जीव तथा ब्रह्म में कोई अन्तर नहीं है।

‘‘ब्रह्म सत्यं जगन्मिथ्या, जीवो ब्रह्मैव नापरः।’’

शंकराचार्य ने जब यह सूत्र दिया तो इसका अर्थ यह है कि प्रत्येक जीव में ब्रह्म का ही अंश है और वह उस एक महत्आत्मा का ही छोटा स्वरूप है। उस सूक्ष्म अंश में और ब्रह्मा में कोई अन्तर नहीं है। वेदान्त का कहना है कि यह सूक्ष्म अंश भी मुक्त होकर अन्त में ब्रह्मा में ही लीन हो जाते हैं। द्वैत और अद्वैत पर आधारित समस्त दर्शनों की यही मान्यताएँ हैं। यही वह सर्वोच्च दर्शन है जिन्होंने भारतीय चिंतन को संसार में सर्वश्रेष्ठ मान्यता दिलाई हुई है।

अंग्रेजों ने हमारे धर्म और संस्कृति पर प्रहार इसीलिए शुरु किया था कि भारतीयों को अगर जीतना है तो उन्हें मानसिक दासता स्वीकार करानी होगी। लॉर्ड मैकाले ने यही सब लिख कर ब्रिटिश सरकार को भेजा था। अब बॉलीवुड प्रच्छन्न रूप से यही सब कर रहा है। अगर भारतीय जनमानस बॉयकॉट की भूमिका में आ जाता है तो उसे भी चुनौती पेश की जा रही है।

भव्यता की आड़ में धर्म, आस्थाओं, दर्शन या इतिहास के साथ छेड़छाड़ की आज्ञाएँ नहीं दी जानी चाहिए। ब्रह्मास्त्र की पटकथा लिखने वाले घटिया मानसिकता के लोग हैं, अध्ययन पूरा करते हैं परन्तु पेश वही करते हैं जो कन्ट्रोवर्सी उत्पन्न करे और फिल्म को सफल बनाने में मदद करें। इन पर बहुत सारे आरोप पहले भी आए हैं। इतिहास से छेड़छाड़ के तो बहुत सारे उदाहरण हैं। पेशवा बाजीराव को एक प्रेमी के रूप में अधिक प्रस्तुत किया गया बजाय उनकी वीर छवि के। इतिहासकारों ने भी बड़ी गलतियाँ की हैं। जहाँगीर के हरम में हजारों स्ति्रयाँ थी, उस पर तुर्रा यह कि महल के बाहर न्याय का घण्टा लगा रखा था, जिसे कोई भी बजा सकता था। जो अपने हरम में ही न्याय नहीं कर सकता था वह बाहर क्या न्याय करता? किसी-किसी स्त्री का मुख देखे तो पूरा जन्म बीत जाता था। अकबर के दरबारी इतिहासकार अबुल फजल ने आईने अकबरी में तानसेन की तो तारीफ लिखी कि उस जैसा कलाकार हजार वर्ष में भी नहीं हुआ, परन्तु समकालीन कवि तुलसीदास को उसने स्थान नहीं दिया, जो कि तानसेन से कहीं बड़ा व्यक्तित्व था और आज जिसके कारण रामचरित मानस घर-घर में पहुँच गई। खैर, इतिहास तो विजेताओं के पक्ष में ही लिखे गये हैं। परन्तु इन बॉलीवुड के भाण्डों का क्या करें, जो पैसे के लालच में धर्म और इतिहास विरुद्ध पटकथाओं को स्वीकार कर लेते हैं, जिसके कारण आने वाली पीढ़ी इन फिल्मों को ही इतिहास मानकर उसमें भरोसा करने लगेगी।

अस्तु, ब्रह्मास्त्र फिल्म में एक कमाल और करके दिखाया गया है। फिल्म के मुख्य हीरो रणबीर कपूर को अग्नि अंश से युक्त बताया गया है। उसे स्वयं को भी यह बात नहीं पता होती। ईश्वर का किसी में विशेष अंश हो तो वह व्यक्ति वैसे ही साधारण नहीं रहता। परन्तु फिल्म का हीरो अनजान या नासमझ बना रहता है। यह सब पात्र अपनी रक्षा के लिए किसी आश्रम में रहने वाले गुरुजी को ढूँढते हैं जो हिमालय जैसे किसी स्थान पर हैं। पीछा करते-करते असुर या शैतान या अंधेरा चाहने वाले लोग उनका पीछा करते हैं और फिल्म के क्लाइमेक्स में वही होता है कि हीरो और विलेन में लड़ाई होती है। अंधेरा चाहने वाले या शैतानी ताकतों वालों को आखिर में सारे ही ब्रह्मास्त्र मिल जाते हैं और वे आपस में जुड़ भी जाते हैं। फिर एक आश्चर्य होता है। प्रेमिका के प्रेम डूबे हुए प्रेमी को प्रेम की ताकत के बल पर अपने अग्नि अंश को यानि कि अग्नि अस्त्र को और भी शक्तिशाली कर देने की अनुभूति होती है और वह अग्निअस्त्र अपने से कहीं बहुत अधिक ब्रह्मास्त्र को भी छुड़ा लेता है या मुक्त करा लेता है। वह अग्नि अस्त्र ब्रह्मास्त्र से भी अधिक शक्तिशाली सिद्ध होता है।

इससे बड़ी बकवास कोई हो ही नहीं सकती। भारतीय वेदान्त दर्शन पर इससे बड़ी कोई चोट हो ही नहीं सकती। जब सभी जीवों में ब्रह्मा का ही अंश है तो फिल्म के कुछ पात्रों में ही उस अंश को सिद्ध करने की जबरन कोशिश की गई है। फैन्टेसी को प्रस्तुत करने की कोशिश में यह प्रत्यक्ष सांस्कृतिक आक्रमण है। ऐसा लगता है कि फिल्मी कथानक लिखने वाले बहुत शातिर हैं और बहुत अनुसंधान के बाद भी भारतीय वेदान्त दर्शन पर आक्रमण करने का दुस्साहस कर रहे हैं। पैसे के लोभ में फिल्म के पात्र महापाप कर बैठे हैं। इस पाप से मुक्ति फिल्म सेंसर बोर्ड को भी नहीं मिलेगी। कथाकारों को भी नहीं मिलेगी और ना ही उस सोच को जो भारतीय संस्कृति को नष्ट करने पर तुली है।

फिल्म का बॉयकॉट करने वालों के अपने तर्क हैं। बॉयकॉट करने वालों को गैंग बताया जा रहा है, जबकि गैंग तो बॉलीवुड में ही है। सम्भवतः फिल्म के माध्यम से भारतीय दर्शन पर आक्रमण करने का तर्क उन्हें मालूम ही ना हो परन्तु यह सत्य है कि सारी बातें बॉलीवुड से ही क्यों चलती हैं? बॉलीवुड के कलाकारों के विरुद्ध फतवे जारी क्यों नहीं होते? फिल्म में छद्म नाम क्यों रखते हैं? नायक-नायिकाएँ अश्लील प्रदर्शन करके ही क्यों कमाना चाहते हैं? फिल्म का हीरो 10 लोगों को मार दे तो एफ.आई.आर. तक दर्ज कराना नहीं दिखाया जाता। वह फिर भी हीरो बना रहता है। हमारे मोहल्ले में कोई किसी को थप्पड़ भी मार दे तो एक घण्टे में पुलिस उसे ढूंढ लेती है, फिर देश, धर्म और संस्कृति के विरुद्ध यह बड़े अपराध कर देने वाले फिल्मकारों के विरुद्ध कार्यवाही क्यों नहीं होती? फिल्म सेंसर बोर्ड को ऐसी सभी फिल्मों को सेंसर कर देना चाहिए जो धार्मिक आस्थाओं या दार्शनिक आस्थाओं पर चोट करने वाली होती हैं। फिल्म केवल एक साधारण से डिसक्लेमर कहकर बच जाते हैं कि फिल्म के सभी पात्र काल्पनिक हैं। परन्तु यह कानून में सुराख है। देश के जनमानस को व्यापक रूप से प्रभावित करने वाले बॉलीवुड पर फिल्म सेंसर बोर्ड का शिकंजा और कठोर हो जाना चाहिए।

 

गायत्री मंत्र का प्रयोग सबसे अधिक क्यों?

ज्योति शर्मा

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यम् भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

गायत्री मंत्र से हम सभी भारतीय परिचित हैं। गायत्री मंत्र हमारे भारतीय संस्कृति का सनातन एवं अनादि मंत्र है। शास्त्रकार इस मंत्र को वेदों का सार कहते हैं। शास्त्रों में गायत्री मंत्र की महिमा बताते हुए कहा गया है कि 18 विद्याओं में मीमांसा सबसे श्रेष्ठ है। मीमांसा से श्रेष्ठ तर्क शास्त्र, तर्क शास्त्र से पुराण, पुराण से श्रेष्ठ धर्म शास्त्र, धर्म शास्त्र से श्रेष्ठ वेद हैं और वेदों से भी श्रेष्ठ उपनिषद हैं, किन्तु गायत्री मंत्र इन सबसे श्रेष्ठ है। गायत्री मंत्र को वेदों में बड़ा चमत्कारी बताया गया है। यह मंत्र सर्वव्यापक भ्रम है, क्योंकि यह अपौरुषेय और अनादि तथा देवमाता कहलाने वाली गायत्री भी अज, अनादि और निर्लेप ब्रह्म का रूप हैं। गायत्री मंत्र की श्रेष्ठता बताते हुए कहा गया है कि यह मंत्र बिना पुरश्चरण के भी सिद्धिप्रदा है, किन्तु इसके जप से पूर्व गायत्री शापोद्वार-पाठ तथा अंत में गायत्री कवच का पाठ करना आवश्यक है। यह मंत्र ब्रह्मा, वशिष्ठ व विश्वामित्र द्वारा शापित व कीलित है, इसलिए शापोद्धार पाठ जरूरी है। इस परम पावन मंत्र की उपासना करने वाले द्विज यदि अन्य शेष पूजा-उपासना न करें तब भी आत्मोन्नति कर सकते हैं। व्यक्ति प्रतिदिन अनेक प्रकार के आत्मिक, वाचिक व कायिक पाप करता है, किन्तु गायत्री मंत्र के जप-अनुष्ठान से ये सभी पाप नष्ट हो जाते हैं, इसलिए गायत्री मंत्र की सबसे अधिक मान्यता वेदों में बतायी गयी है।

कहा जाता है कि गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं, कृष्ण के समान कोई देव नहीं, गायत्री मंत्र से श्रेष्ठ कोई जप करने योग्य  मंत्र नहीं है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं कहा है - गायत्री छन्दसामहम्। अर्थात् मंत्रों में मैं गायत्री मंत्र हूं। इस मंत्र के 24 अक्षरों में 24 ऋषियों और 24 देवताओं की शक्ति समाहित मानी गयी है।

गायत्री मंत्र की श्रेष्ठता शायद शब्दों में बयां नहीं की जा सकती परंतु इस मंत्र के उच्चारण से कई चमत्कार और फायदे होते हैं।  यह मंत्र व्यक्ति की नकारात्मक शक्ति का नाश व मानसिक चिंताओं को नष्ट करता है। अतः मंत्र उच्चारण से उन देवताओं से संबंधित शरीरस्थ नाड़ियों व प्राणशक्ति का स्पंदन तथा सम्पूर्ण शरीर में एक सकारात्मक ऊर्जा संचालित होती है। जिससे शरीर के समस्त विकार नष्ट हो जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि गायत्री मंत्र का श्रद्धा से विधानानुसार जप करने से शारीरिक, भौतिक तथा आध्यात्मिक बाधाओं से मुक्ति मिलती है, सद्विचार व सद्धर्म जागृत होते हैं, विवेकशीलता, आत्मबल, नम्रता, संयम, प्रेम, शांति, संतोष आदि सद्गुणों की वृद्धि होती है और दुर्भाग्य व दुःख आदि नष्ट हो जाते हैं। लगातार अपने जीवन में इस मंत्र का जप करने से आयु, संतान, विद्या, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज की वृद्धि होकर आत्मा शुद्ध होती है व अकाल मृत्यु व सभी प्रकार के क्लेश से जीवन मुक्त हो जाता है।

देवी भागवत पुराण में (11/21/5) के अनुसार नृसिंह, सूर्य, वराह, तांत्रिक और वैदिक मंत्रों का अनुष्ठान गायत्री मंत्र के जप के बिना निष्फल हो जाता है। सावित्री उपाख्यान के श£ोक 14-17 में वर्णन मिलता है कि यदि व्यक्ति दिनभर में केवल एक बार ही गायत्री मंत्र का जप करें तो सम्पूर्ण दिन के पाप नष्ट हो जाते हैं। गायत्री मंत्र का जप सूर्योदय से 2 घंटे पहले से लेकर सूर्यास्त के एक घंटे पहले तक किया जा सकता है। इस मंत्र का जप रात्रि में नहीं करना चाहिए। लगातार इस जप को करने के लिए एक ही आसन और एक ही समय निर्धारित करना चाहिए व पूर्व दिशा की ओर मुख करके ही करना चाहिए। जप करते समय तांबे के बर्तन में गंगा जल भरकर अवश्य रखें। जप सम्पूर्ण होने पर इस घर में छिड़कना चाहिए जिससे घर की नकारात्मक ऊर्जा खत्म होती है।

एक व्यक्ति को अपने जीवन में एक करोड़ जप करने से समस्त जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं एवं वह व्यक्ति इस लोक से मुक्ति पा लेता है।

सर्ववेदानां गायत्री सारमुच्यते।।

 

वास्तु अब आम आदमी के लिए भी

डॉ सुमित्रा अग्रवाल

वास्तु तो राजाओं- महाराजाओं की विद्या थी, फिर हम क्यों वास्तु कराएं, जैसे नियमों के बिना सृष्टि नहीं चल सकती। छोटे से छोटे घर, गांव, शहर, देश, स्कूल, ऑफिस, फैक्ट्री को चलाने के नियम होते हैं। ठीक उसी प्रकार प्रकृति की कुछ नियमावली है आवास, निवास को लेकर है। वास्तु प्राकृतिक नियम है जो हमें अपने जीवन को सुचारु रूप से जीने में सहायक है। सृष्टि में पंच महाभूत हैं जल, अग्नि, वायु, आकाश व पृथ्वी। इन पाँचों तत्वों को बिना नुकसान पहुचाए या पीड़ा दिए जो निर्माण कार्य होता है वही सफल वास्तु निर्माण है। प्राकृतिक उर्जाओं के आवाजाही में विघ्न न होने के कारण ही हम सब भौतिक सुखों को भोग पाते हैं और शांति एवं सम्पन्नता से रह पाते हैं। जीवन को सुचारु रूप से चलाने का अधिकार हर आदमी को है, चाहे वह राजा हो या आम प्रजा। राजाओं के पास अथाह सम्पत्ति थी और उनको शासन करना था इसलिए वह वास्तु सम्मत ही निर्माण करना चाहते थे परन्तु इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि अगर हमारे पास 2 बेडरूम फ्लैट है तो उसे वास्तु सम्मत बनाने की आवश्यकता नहीं है। जीवन में उत्थान के लिए और साधारण आदमी से ऊंचा घराना बनाने के लिए वास्तु एक सफल टूल है। एक साधारण सी बात है कि आपके ऑफिस में अगर 4 स्टाफ हैं और कल को आपको अपने कंपनी का सर्वोच्च पद किसी एक को देना पड़ता है तो आप किसको देंगे? जो सबसे ज्यादा विश्वास पात्र होगा और आपके बनाये नियमावली को मानता होगा। प्रकृति हमारी माँ है, वह हमें हमेशा ही देना चाहती है। अब सोचें  कि वह किसे देगी? जो माता के बनाये नियमों का उल्लंघन कर रहे हैं उनको या जो नियम को मानकर माता के कार्य में विघ्न खड़ा नहीं कर रहे हैं, उनको देगी। अपात्र को कभी कुछ नहीं मिलता और प्रकृति के विरुद्ध काम करके सम्पन्नता की अपेक्षा करना मात्र एक कल्पना है और सार्थक नहीं होती।  वास्तु के नियमों का सम्मान करें और अध्ययन भी करें। जितना जरूरी वास्तु एक शासक के लिए है, उतना ही जरूरी हर मनुष्य के लिए भी है।

 

 

जन्म कुण्डली में चतुर्ग्रह युति का फल

                प्रायः यह देखने में आता है कि जातक के जन्माग में चार ग्रह एक साथ होते हैं। इन ग्रहों की युति का फलादेश निम्न प्रकार से दिया जा रहा है-

1. सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध की युति : जिसके जन्मकाल में सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध की युति एक भाव में होती है वह मनुष्य लेखक, मुख का रोगी, चोर तथा भाषा में निपुण होता है।

2. सूर्य चन्द्र, मंगल, गुरु की युति : जिस मनुष्य के जन्मकाल में एक भाव में सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु का योग हो तो वह मनुष्य शिल्पशास्त्र का जानने वाला, बडे नेत्रों वाला, सुवर्ण की सी काँतिवाला तथा बलवान होता है।

3. सूर्य, चन्द्र, मंगल, शुक्र की युति : जिस मनुष्य  के जन्मकाल में सूर्य, चन्द्र, मंगल, शुक्र का योग होता है वह मनुष्य शास्त्र के अर्थ को जानने वाला, पुत्र व स्त्री करके सुखी तथा बहुत बोलने वाला होता है।

4. सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र की युति : जिसके जन्मांग चक्र में सूर्य, चन्द्र, बुध, शुक्र का योग हो तो मनुष्य कांति करके सहित, छोटा शवीर, राजा करके मान्य बोलने वाला तथा विकल होता है।

5. सूर्य, चन्द्र, गुरु, शुक्र की युति : जिसके जन्मकाल में सूर्य, चन्द्र, गुरु, शुक्र का योग होता है वह मनुष्य राजाओं करके पूजनीय, जल, मृग और वन में प्रीति करने वाला गुण करके रहित तथा सुखी होता है।

6. सूर्य, चन्द्र, शुक्र, शनि का योग : जिस मनुष्य के जन्मकाल में सूर्य, चन्द्र, शुक्र, शनि का योग हो तो मनुष्य अतिदुर्बल शरीरवाला, स्ति्रयों के तुल आचार जिसका तथा भयभीत होता है।

7. सूर्य, बुध, मंगल, शुक्र का योग : जिसके जन्मकाल में सूर्य, बुध, मंगल, शुक्र का योग होता है सो मनुष्य खोटे चितवाला, चोर, स्ति्रयों से प्रीति करने वाला तथा लज्जा और धन करके रहित होता है।

8. सूर्य, मंगल, बुध, शनि का योग : जिसके जन्मकाल में सूर्य, मंगल, बुध, शनि का योग होता है सो मनुष्य नीच मनुष्यों करके युक्त, मंत्री, सेना का मालिक, वीर, काव्य और शस्त्र अस्त्रों को जानने वाला होता है।

9. सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र का योग : जिसके जन्मकाल में सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र का योग हो तो मनुष्य शोभायमान, राजा करके मान्य, धन करके विख्यात, नीति का जानने वाला तथा मनुष्यों का पालन करने वाला होता है।

10. सूर्य, मंगल, गुरु, शनि का योग : जिसके जन्मकाल में सूर्य, मंगल, गुरु शनि का योग हो तो मनुष्य फौज का अफसर, मंत्र का जानने वाला, राजा करके मान्य धन, अन्न और दयाकरके सहित होता है।

11. सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र का योग : जिसके जन्मकाल में सूर्य, बुध, गुरु, शुक्र का योग होता है तो मनुष्य विनय करके सहित, धनवान, मानी, राजा के समान, पुत्र और स्त्री के सुख सहित होता है।

12. सूर्य, बुध, गुरु, शनि का योग : सूर्य, बुध, गुरु, शनि के योग में जो मनुष्य पैदा होता है तो नपुंसक, मानी, खोटे कर्म करने वाला तथा उद्यम रहित होता है।

13. सूर्य, बुध, शुक्र, शनि का योग : सूर्य, बुध, शुक्र, शनि के योग में जो मनुष्य पैदा होता है तो श्रेष्ठ भाग्यवाला, पवित्र, भाइयों करके, पूज्य, बडा पण्डित, पुत्र और स्त्री के सुख सहित होता है।

14. सूर्य, गुरु, शुक्र, शनि का योग : सूर्य, गुरु, शुक्र, शनि के योग में जो मनुष्य पैदा होता है तो महाकृपण, काव्य का करने वाला तथा करुणा से युक्त होता है।

15. चन्द्र मंगल, बुध, गुरु की युति : जिस मनुष्य के जन्मकाल में चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु का योग हो वह राजा की दया करके सहित सम्पूर्ण शास्त्र में कुशल, सच बोलने वाला तथा सुखी होता है।

16. चन्द्र, मंगल, शनि, शुक्र की युति : जिस जातक के जन्मांग में चन्द्र, मंगल, शनि, शुक्र के योग हो वह कुल में वंचक, संसार का वैरी, दरिद्री, शूरों के कुल में उत्पन्न होता है किन्तु शूर नहीं होता।

17. चन्द्र, मंगल, गुरु, शुक्र की युति : जिस जातक के जन्मकाल में चन्द्र, मंगल, गुरु, शुक्र का योग हो वह मनुष्य विकल, धन, पुत्र  सहित मानी, नीति को जानने वाला तथा साहसी होता है।

18. चन्द्र, मंगल, गुरु, शनि की युति : जिसके जन्मकाल में चन्द्र, मंगल, गुरु, शनि का योग होता है वह पुरुष राजपूजित, सच बोलने वाला, सदा आनन्द युक्त, नीचों की सेवी तथा दया सहित होता है।                            

19. चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र की युति : जिसके जन्म काल में चन्द्र, बुध, गुरु, शुक्र का योग हो वह दाता, दया सहित, बुद्घिमान, धनयुक्त, विद्या का वाद करने वाला तथा चतुर होता है।

20. चन्द्र, बुध, गुरु, शनि की युति : जिसके जन्म काल में चन्द्र, बुध, गुरु, शनि का योग हो वह संसार को प्यारा, यशवान, ज्ञानसहित, तेजस्वी तथा इन्दि्रयों को जीतने वाला होता है।

21. चन्द्र, गुरु, शनि, शुक्र की युति : जिसके जन्म काल में चन्द्र, गुरु, शनि, शुक्र का योग हो वह स्त्री को प्यारा, धर्म का जानने वाला, धनरहित, पण्डित, स्थूल शरीर वाला तथा चतुर होता है।

22. मंगल, गुरु, बुध, शुक्र की युति : जिसके जन्मकाल में मंगल, गुरु, बुध, शुक्र का योग हो वह कलह करने वाला, सुशील, धनी, राजमान्य तथा दयावान होता है।

23. मंगल, बुध, गुरु, शनि की युति : जिसके जन्मकाल में मंगल, बुध, गुरु, शनि की युति हो वह मनुष्य धन सहित, पवित्र हमेशा सच बोलने वाला, शूर तथा नम्रता सहित होता है।

24. मंगल, गुरु, शुक्र, शनि की युति : जिसके जन्मकाल में मंगल, गुरु, शुक्र, शनि का योग होता है वह पुरुष सुन्दरमुख वाला, धनवान, विद्या, नम्रता सहित, साहसी तथा अच्छे मनुष्यों का प्यारा होता है।

25. बुध, शुक्र, शनि, मंगल की युति : जिसके जन्मकाल में बुध, शुक्र, शनि, मंगल की युति हो वह मनुष्य धन रहित, पुष्टशरीर वाला, मीठा बोलने वाला तथा मल्लविद्या में विशारद होता है।