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मकर राशि है भारत की भाग्य विधाता पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया
पुराने ज्योतिषियों ने भारत की प्रभाव राशि मकर बताई है। नये भारत की 15 अगस्त 1947 की जन्म पत्रिका है, जो कि वृषभ लग्न की है, में मकर राशि भारत की जन्म पत्रिका के भाग्य भाव में स्थित है। इस समय भारत चन्द्रमा की महादशा और शनि अन्तर्दशा के अन्तर्गत चल रहा है यह अन्तर्दशा जुलाई 2021 तक रहेगी। मकर राशि के स्वामी शनि ही माने गये हैं। जब-जब भाग्य स्थान के स्वामी की महादशा या अन्तर्दशा आती है, भााग्यवृद्धि होती है। निश्चित ही भारत की ख्याति बढ़ रही है। भारत अन्तर्राष्ट्रीय महाशक्तियों के बीच में अपना स्थान बना पाया है तथा अब इसे दीन-हीन या वंचित देश ना माना जाकर उत्पादक व शक्ति सम्पन्न देश मानने की मानसिकता प्रबल हुई है।
इन दिनों मकर राशि में शनि चल रहे हैं जो कि वर्ष 2021 के अप्रैल मास तक रहेंगे, फिर एक बार कुम्भ राशि में जाकर जुलाई में वापिस मकर राशि में आएंगे। इधर बृहस्पति धनु राशि में तेज गति से चलते हुए मार्च आखिरी सप्ताह में मकर राशि में आ गये, फिर वक्री हुए और जून के अंतिम सप्ताह में पुन: मकर राशि में आ गये। अर्थात् बृहस्पति अपनी गति के कारण 2 बार मकर राशि में प्रवेश किये हैं तो दूसरी तरफ शनिदेव भी ऐसा ही करेंगे परन्तु बाद में मकर से कुम्भ में जाकर 2022 के पूर्वाद्र्ध में पुन: मकर राशि में आएंगे और 18.3.2023 को अगली राशि कुम्भ में चले जाएंगे। भारत की प्रभाव राशि मकर के लिए यह खगोलीय घटनाक्रम बड़ी उत्सुकता पैदा करता है। न केवल यह बल्कि वर्तमान समय में भी जैसे अन्य ग्रहों को भी मकर राशि का आकर्षण सता रहा हो, ऐसा लगता है। अब बृहस्पति और शनि मकर राशि में हैं तो पहले तो चन्द्रमा 17 दिसम्बर को मकर राशि में प्रवेश करेंगे, एक दो दिन के लिए। फिर पुन: बुध 5 जनवरी को मकर राशि में प्रवेश करेंगे जहाँ वे 25 जनवरी तक रूकेंगे। इससे पूर्व मकर संक्रांति के दिन मकर राशि में ही सूर्य प्रवेश कर चुके होंगे। 28 जनवरी को शुक्र ग्रह मकर राशि में प्रवेश करेंगे, तब यह अद्भुत खगोलीय स्थिति हो जाएगी। हम अगर 28 जनवरी की ग्रह स्थिति देखें, जो कि इस प्रकार रहेगी।
28 और 29 जनवरी को चन्द्रमा कर्क में रहेंगे और विशेष ग्रह स्थितियों को जन्म दे रहे हैं। सूर्य, शनि, बुध और शुक्र भारत की प्रभाव राशि में स्थित हैं और सामान्य ज्योतिष के दृष्टिकोण से भारत की जन्म पत्रिका के त्रिकोण में स्थित राहु से दृष्ट हैं और मेदिनी ज्योतिष के हिसाब से यह दृष्टि घड़ा पटक योग बना रही है, जो कि विशेष घटनाओं को जन्म देती है। मेदिनी ज्योतिष में तो 4 ग्रहों का भारत की प्रभाव राशि मकर में होना तथा उससे केन्द्र स्थान में मेष में शक्तिशाली मंगल का होना व राहु के साथ घड़ापटक योग बनाना विशेष घटनाओं की सूचना दे रहा है।
किसान आन्दोलन इन ग्रहों के प्रभाव से ही हो रहा है। शनिग्रह यद्यपि निम्न जातियों व गरीबों के प्रतिनिधि हैं और राहु जो कि शनि पर दृष्टिपात कर रहे हैं, अंत्यज जातियों के स्वामी हैं, यह आभास देते हैं कि निम्न वर्ग पीडि़त हो सकते हैं, परन्तु शनि जब अपनी ही राशि मकर में हैं तो यह तो निम्न या निम्रतर जातियों के लिए शुभ संकेत है। मकर राशि के शनि के प्रभाव में ही भारत के सर्वहारा वर्ग को केन्द्र सरकार की ओर से आर्थिक मदद मिली। परन्तु बृहस्पति का मकर राशि में प्रवेश यह संकेत देता है कि उच्च वर्ण या सम्पन्न वर्ग का प्रवेश किसान आन्दोलन में हुआ है या राजनैतिक दलों ने इसमें रूचि दिखाई है। शनिदेव अगर मकर राशि में नहीं होते तो यह मानने के ज्योतिष कारण हो सकते हैं कि निम्र वर्ग पीडि़त चल रहा है, परन्तु शनि के अपनी ही राशि मकर में होने से व बाद में बृहस्पति के मकर राशि में प्रवेश से तथा मकर राशि की ओर गतिमान सूर्य और शुक्र के प्रवेश से यह ज्योतिष धारणा बलवती होती है कि भारत में चल रही अशांति की कुछ घटनाओं के पीछे या आंदोलनों के पीछे निम्न वर्ग या सर्वाहारा वर्ग तो बिल्कुल भी नहीं है, बल्कि उच्च वर्णों के, सम्पन्न वर्गों के या राजनैतिक चतुराई वाले वर्गों का प्रवेश हुआ है।
पुनश्च: मंगल मीन राशि से मेष राशि में गये फिर पुन: मीन राशि में आकर थोड़े दिन वहाँ रहकर मेष राशि में आ गये हैं, जहाँ वे फरवरी तक रहेंगे। बृहस्पति, शनि व मंगल का यह विचित्र आचरण एक ही सम्वत् में देखने को मिल रहा है जिसे एक विशेष खगोलीय घटना माना जा सकता है। भारत में कुछ वर्ग अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हैं, इस बात का सम्बन्ध इस खगोलीय घटना से स्थापित किया जा सकता है। चाहे अस्तित्व की लड़ाई में कोई राज्य चल रहो, या संस्थाएँ चल रही हों, या कोई राजनैतिक दल चल रहे हों, ग्रह प्रदत्त घटनाओं का स्वरूप एक जैसा ही है, चाहे कम या चाहे ज्यादा। जनवरी 2021 और फरवरी, 2021 के लिए मेदिनी ज्योतिष के आधार पर व भारत की जन्म पत्रिका के आधार पर कुछ भविष्यवाणियाँ की जा सकती है।
दक्षिणमुखी भूखण्ड भी शुभ हो सकते हैं
यह आम धारणा है कि दक्षिणमुखी भूखंड अच्छे नहीं होते एवं आम जनता इससे कतराती है। वास्तु नियमों के प्रकाश में इस तथ्य को समझने का प्रयास करते हैं। वास्तु नियमों के अनुसार उत्तर दिशा हल्की होनी चाहिए एïवं दक्षिण भारी।
भूखंड निर्माण करने पर सामान्यत: आगे सेट बैक अधिक छोड़ा जाता है। दक्षिण के हल्के रहने से गृहस्वामी के व्यक्तित्व में तेज नहीं रहता। यह दोष गंभीर बीमारियों, झगड़ों, कोर्ट कचहरी को भी जन्म देता है।
भूमिगत जल टैंक अथवा बोरिंग का निर्माण सामान्यत: आगे ही कराया जाता है। दक्षिणमुखी भूखंड में इस निर्माण से जल दक्षिण, दक्षिण पश्चिम आदि दिशाओं में पड़ता है। दक्षिण में जल गृह स्वामिनी के स्वास्थ्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।
दक्षिण के द्वारों के देवताओं एïवं प्रकृति के अनुरूप प्राप्त फलों का विश्लेषण निम्न है :-
पितृ : दक्षिण-पश्चिम में स्थित इस द्वार को पितृगण भी कहते हैं। वास्तु ग्रंथों के अनुसार इस दिशा में सुई की नोक के बराबर भी छेद नहीं होना चाहिए। यहां किया गया द्वार पुत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।
मृग : दक्षिण-पश्चिम से दक्षिण की ओर चलने पर यह दूसरा द्वार है। यहां यदि द्वार हो तो पुत्र की कार्यक्षमता प्रभावित होती है। संपूर्ण श्रम के पश्चात भी कार्य नहीं सधते एवं घोर मानसिक द्वेष रहता है।
भृंगराज : यह द्वार धीरे-धीरे धनहीनता की ओर ले जाता है। व्यक्ति व्यवसाय आदि प्रारंभ कर देता है परंतु संसाधन की कमी से जूझना पड़ता है। उसे अपने निकटतम व्यक्ति से भी मदद नहीं मिल पाती। अंतत: स्थितियां भयावह हो जाती हैं।
गंधर्व : वास्तु ग्रंथों में इस द्वार का परिणाम कृतघ्रता बताया गया है। इस द्वार के गृहस्वामी को कृतघ्रता का शिकार होना पड़ता है। सबके लिए अपना सर्वस्व लुटाकर भी ठगा जाता है।
यम : यम पर आधिपत्य प्रेताधिप का है। जिस घर में यह द्वार होता है वहां सदस्यों के स्वभाव में गुस्सा एïवं जिद होता हैं। वे दुस्साहसी हो जाते हैं तथा सीमाओं का उल्लंघन कर अंतत: पतन को प्राप्त होते हैं।
गृहत्क्षत : दक्षिण के आठ द्वारों में से यही एकमात्र द्वार है जिससे शुभ का संकेत है। यह द्वार भोजन, पान एïवं पुत्र की वृद्धि करता है। इस द्वार के होने से वंशानुगत व्यवसाय पनपते हैं। पिता को पुत्र की योग्यताओं पर भरोसा होता है एवं पुत्र पिता की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है।
वितथ : वितथ के पर्यायवाची के रूप में ग्रंथों में अधर्म, अप्रिय आदि शब्द मिलते हैं। यहां द्वार धोखा, फरेब की प्रवृत्ति देता है। षड्यंत्रों का ताना-बाना रचवाता है। आपराधिक तत्त्व की वृद्धि अंतत: सर्वनाश का कारण बनती है।
पूषा : यह द्वार दासत्व देता है। कुछ बड़े घरानों के पतन में यह द्वार पाया गया है कुछ गलत निर्णय आत्मघाती सिद्ध होते हैं और धनधान्य से परिपूर्ण परिवार अचानक दरिद्रता के अंधकार में घिर जाते हैं। इस द्वार के प्रकोप से मालिकों को साधारण नौकरी करते हुए देखा गया है।
अनल : दक्षिण पूर्व के इस द्वार का परिणाम अल्प पुत्रता है। यह परिणाम पुत्र के घर छोडऩे, पारिवारिक विभाजन अथवा पुत्र की मृत्यु के रूप मेंं भी आ सकता है।
दक्षिण के नौ द्वारों में से सिर्फ एक (गृहत्क्षत) शुभ है। यदि हम इन तथ्यों को ध्यान में रखकर निर्माण कराएं एवं उचित द्वार बनाएं तो दक्षिणमुखी भूखंड भी अच्छे परिणाम देगा।
मन और चंद्रमा
व्यक्ति का मन ही उसकी समस्त चिंताओं का और चिंताओं से मुक्ति का कारण होता है। व्यक्ति की विचारधारा पर उसकी मनोस्थिति का बहुत गहरा होता है। तनावयुक्त व्यक्ति की कार्यप्रणाली और उसके स्वभाव व बोलचाल में बहुत चिड़चिड़ापन दिखाई देने लगता है जबकि प्रसन्नचित्त और खुश व्यक्ति का तात्कालिक व्यवहार बहुत सकारात्मक दिखाई देता है। संसार का हर प्राणी अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति में संलग्न और पल-पल प्रयासरत रहता है। कोई भी व्यक्ति यदि अपनी वास्तविक सक्षमता के आधार पर इच्छाएँ रखें तो वे अवश्य पूरी होती हैं अन्यथा असफलता के कारण मन व्यथित हो जाता है।
मन और चंद्रमा : जैसा ब्रह्माण्ड है वैसा ही हमारा शरीर है। वेदान्त के इस सूत्र के अनुसार आकाश में स्थित चंद्रमा का ही प्रतिरूप हमारा मन है। चंद्रमा जितने चंचल और सौम्य हैं, हमारा मन भी उतना ही चंचल और सौम्य है। संसार में सर्वाधिक तीव्र गति मन की ही होती है और जन्मकुण्डली में चंद्रमा की।
जन्मकुण्डली में यदि चंद्रमा अच्छे हैं (वृषभ या कर्क राशि में है या पूर्ण हैं) तो उस व्यक्ति का मन बहुत सक्रिय, योजनाशील और रचनात्मक होता है। प्रतिदिन नई-नई योजनाएं बनती हैं और व्यक्ति सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हुए, उनकी पूर्ति करने के प्रयास करते हैं लेकिन जिनके चंद्रमा अच्छे नहीं होते वे कल्पनाएं अधिक करते हैं तथा परिस्थितियों के भ्रम जाल में उलझ जाते हैं और अनिर्णय के शिकार हो जाते हैं।
मनोरोग और चंद्रमा : सभी ग्रहों में चंद्रमा अतिसंवेदनशील हैं। व्यक्ति जो सोचता है या अनुभव करता है वह सब समय के अनुसार उसकी मनोस्थिति पर निर्भर करता है। जन्मकुण्डली में यदि चंद्रमा कमजोर होते हैं तो ऐसे व्यक्तियों में मनोरोग के न्यूनाधिक लक्षण पाये जाते हैं। नींद अधिक आना या कम आना भी चंद्रमा की शुभ-अशुभ स्थिति पर ही निर्भर करता है। अक्सर ऐसा देखा गया है कि जिन जातकों का जन्म अमावस्या के आसपास होता है उनमें अधिक सोने की समस्या पाई जाती है और जिनका जन्म पूर्णिमा के आसपास का होता है उन्हें नींद कम आती है। अष्टम भाव में चंद्रमा अधिक देर तक सोने की इच्छा देते हैं। इसी तरह राहु के साथ स्थित चंद्रमा न केवल अधिक निद्रा अपितु व्यर्थ के तनाव के कारण भी बनते हैं। मनोरोग या तनावग्रस्त लोगों के लिए चंद्रमा की शांति के उपाय बहुत लाभकारी सिद्ध होते हैं।
मन की उदारता : कुछ लोग स्वभाव से बहुत उदार, दयालु और भावुक होते हैं। यह अतिविशिष्ट गुण है क्योंकि यही परोपकारिता का लक्षण है और परोपकार संसार का सबसे बड़ा धर्म है। जब कुण्डली में चंद्रमा पर बृहस्पति का प्रभाव पड़ता है तो चंद्रमा बहुत उदार और परोपकारी हो जाते हैं। जिनकी कुण्डलियों में चंद्रमा जब अपनी राशि कर्क या बृहस्पति की राशि धनु या मीन में होते हैं और बृहस्पति से युत या दृष्ट होते हैं ऐसे जातकों का मन बहुत उदार और दयालु होता है। निस्वार्थ भाव से लोगों की सेवा और सहयोग करते हैं। मनुष्य ही नहीं प्रत्येक जीव के प्रति इनके मन मेें बहुत हमदर्दी और अपनापन होता है। कोई इनका करें या न करें, परंतु ये सबको सहयोग देने के लिए तत्पर रहते हैं। यद्यपि इस व्यवहार से इनके निजी जीवन में कभी-कभी असंतोष और अशांति उत्पन्न होती है, कभी शोषण सा भी होता है परंतु अपने सरल स्वभाव के कारण ये सबको क्षमा कर देते हैं।
मन की संकीर्णता : विचारों की संकीर्णता आदमी को छोटा बना देती है। मन की संकीर्णता दो तरह की होती है। एक तो वह कि दुर्योधन की तरह अपने अधिकार में से जरा सी भी किसी को देना मंजूर नहीं करें और दूसरी वह कि सामने वाले को सुखी देखकर, अपने दु:ख की अपेक्षा दूसरे के सुख से ईष्र्या उत्पन्न हो जाए। इसमें पहली प्रवृत्ति के कारक ग्रह तो मंगल होते हैं और दूसरी प्रवृत्ति के कारक ग्रह शनि हैं।
चंद्रमा पर जब मंगल का प्रभाव होता है तो व्यक्ति थोड़ा उद्वेगी, जिद्दी, थोड़ी एकाकी प्रवृत्ति का हो जाता है। स्वप्रेरणा से किसी का सहयोग करने की भावना नहीं होती, मांगने पर भी सीमित सहयोग करने की मानसिकता होती है लेकिन जब चंद्रमा पर शनि का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति बहुत साधारण विचारधारा वाला होता है। स्वभाव में संकीर्णता होती है। किसी की सहायता तभी करते हैं जबकि सामने वाले से भरपूर यश मिलने की संभावना हो। जिस विषय के बारे में ये जितना जानते हैं उसी को इतिश्री (संपूर्ण) मान बैठते हैं और उपेक्षा का पात्र बनते हैं। मन और विचारों की संकीर्णता हर किसी के लिए कष्टदायक होती है, इससे बचना चाहिए।
शक करने का स्वभाव : जब चंद्रमा कुण्डली के 6, 8या 12वें भाव में राहु द्वारा पीडि़त होते हैं तो व्यक्ति के मन में शक का बीज पनपने लगता है। यदि इस स्थिति में चंद्रमा को मजबूत नहीं किया जाए तो आगे चलकर यह प्रवृति रोग बनने लग जाती है इसलिए जब चंद्रमा पर राहु या शनि का प्रभाव हो तो चंद्रमा के उपाय मंत्र जाप व भगवान शिव की आराधना कभी नहीं छोडऩी चाहिए।
प्रसन्न मन : जन्मपत्रिका में चंद्रमा यदि बुध और शुक्र से संबंध बनाते हैं तो व्यक्ति हँसमुख होता है। यदि बुध और शुक्र चौथे भाव में हों तो जातक बहुत प्रसन्नता से रहने वाला होता है। जीवन के हर उतार-चढ़ाव पर जातक प्रसन्न रहता है। बड़ी समस्या को भी अपने चेहरे से प्रकट नहीं होने देता। जन्मकुण्डली का चौथा भाव मनुष्य के हृदय का प्रतिनिधि है। इस भाव में शुभ ग्रह होते हैं तो व्यक्ति संतुष्ट और प्रसन्न होता है। व्यक्ति जितना सुखी होता है उतना ही प्रसन्न रहता है।
ग्रहों में पिता-पुत्र संबंध
पिता का पुत्र से स्वाभाविक स्नेह का संबंध होता है तो पुत्र का संबंध पिता के प्रति आदर भाव एवं पिता के सम्मान से होता है। ऐसा नहीं है कि यह संबंध मानव के बनाए हैं कि अमुक का पुत्र अमुक है अपितु यह संबंध अनादिकाल से बने हैं जो धरती पर देखने में आते हैं। हमारे नवग्रह मंडल में भी कुछ ग्रहों में आपस में पिता-पुत्र संबंध हैं जो कि व्यक्ति की जन्मपत्रिका को भी प्रभावित करते हैं। यह पिता-पुत्र सूर्य एवं शनि तथा चंद्रमा एवं बुध हैं।
सूर्य एवं शनि:— पौराणिक कथाओं के अनुसार त्वष्टा की पुत्री संज्ञा का विवाह सूर्यदेव के साथ हुआ था। वैवस्वत मनु, यम और यमी के जन्म के बाद भी वे सूर्य के तेज को सहन नहीं कर सकीं और अपनी छाया को सूर्य देव के पास छोड़कर चली गईं। सूर्य ने छाया को अपनी पत्नी समझा और उनसे सावण्र्य, मनु, शनि, तपती तथा भद्रा का जन्म हुआ। जन्म के पश्चात जब शनि ने सूर्य को देखा तो सूर्य को कोढ़ हो गया। सूर्य को जब संज्ञा एवं छाया के भेद का पता चला तो वे संज्ञा के पास चले गए। सूर्य पुत्र शनि का अपने पिता से वैर है। ज्योतिष शास्त्र में फलादेश करते समय भी इस तथ्य का ध्यान रखा जाता है। इनके वैर को इस प्रकार समझा जा सकता है कि सूर्य जहां मेष राशि में उच्च के होते हैं वहीं शनि मेष में नीच के होते हैं। सूर्य तुला में नीच के होते हैं तो शनि तुला में उच्च के होते हैं। यदि दोनों एक साथ किसी एक ही राशि में बैठ जाएं तो पिता-पुत्र का परस्पर विरोध रहता है या एक साथ टिकना मुश्किल हो जाता है। सूर्य के परम मित्र चन्द्रमा से शनि का वैर है और शनि की राशि में सूर्य जीवन में कुछ कष्ट अवश्य देते हैं परन्तु जैसे सोना तपकर निखरता है वैसे ही सूर्य-शनि की यह स्थिति भी कष्टों के बाद जीवन में सफलता लाती है।
सूर्य आध्यात्मिक प्रवृत्ति के हैं तथा शनिदेव आध्यात्म के कारक हैं, अत: जन्मपत्रिका में सूर्य एवं शनि की युति व्यक्ति को धर्म एवं आध्यात्म की ओर उन्मुख करती है। कुछ संतों की जन्मपत्रिका में सूर्य-शनि की युति देखी जा सकती है, जिनमें सत्य साँई बाबा एवं मीरा बाई के नाम हैं।
चन्द्र-बुध:— पौराणिक कथाओं के अनुसार चन्द्रमा ने अपने गुरु बृहस्पति की पत्नी तारा का अपहरण किया। तारा और चन्द्रमा के सम्बन्ध से बुध उत्पन्न हुए। बालक बुध अत्यन्त सुन्दर और कांतिवान थे। अत: चन्द्रमा ने उन्हें अपना पुत्र घोषित किया और उनका जातकर्म संस्कार करना चाहा। तब बृहस्पति ने इसका प्रतिवाद किया। बृहस्पति बुध की कांति से प्रभावित थे और उन्हें अपना पुत्र मानने को तैयार थे। जब चन्द्रमा और बृहस्पति का विवाद बढ़ गया तब ब्रह्माजी के पूछने पर तारा ने उसे चन्द्रमा का पुत्र होना स्वीकार किया। अत: चन्द्रमा ने बालक का नामकरण संस्कार किया और उसे बुध नाम दिया गया। चन्द्रमा का पुत्र माने जाने के कारण बुध को क्षत्रिय माना जाता है। यदि उन्हें बृहस्पति का पुत्र माना जाता तो उन्हें ब्राह्मण माना जाता। बुध का लालन-पालन चन्द्रमा ने अपनी प्रेयसी पत्नी रोहिणी को सौंपा। इसलिए बुध को 'रौहिणेय’ भी कहते हैं। बुध-चन्द्रमा के पुत्र थे और बृहस्पति ने उन्हें पुत्र स्वरूप स्वीकार किया था। अत: चन्द्रमा और बृहस्पति दोनों के गुण बुध में सम्मिलित हैं। चन्द्रमा गन्धर्वों के अधिपति हैं। अत: उनके पुत्र होने के कारण बुध गन्धर्व विद्याओं के प्रणेता हैं। बृहस्पति के प्रभाव के कारण ये बुद्धि के कारक हैं। चन्द्रमा ने छल से तारा का अपहरण किया था, पिता के संस्कारों एवं स्वभाव का प्रभाव पुत्र पर भी निश्चित रूप से किसी न किसी प्रकार से पड़ता ही है, अत: बुध का सम्बंध भी छल कपट से जोड़ा गया है, मुख्य रूप से सप्तम स्थान स्थित बुध का। जन्मपत्रिका में अकेले बुध ही कई बार व्यक्ति को छल-कपट का आचरण करने पर विवश कर देते हैं।
मिथुन राशि और आप
राशि चक्र की तीसरी राशि 'मिथुन’ है। यह वायु तत्व राशि है। वायु चंचल स्वभाव की, सर्वव्यापक एवं उच्छृंखल होती है। ठीक इसी प्रकार मिथुन राशि के व्यक्तियों का स्वभाव देखा जाता है। यह एक जगह न टिकने वाले व समस्त क्षेत्रों में पाँव पसारने वाले होते हैं।
इनकी सामंजस्य स्थापित करने की क्षमता अद्ïभुत होती है, यह या तो वातावरण को अपने अनुसार ढाल लेते हैं या फिर स्वयं ही वातावरण के अनुसार ढल जाते हैं।
जिस प्रकार 'वायु’ कभी तो मन्द पवन है जो मन को आनन्दित करती है और कभी वही वायु प्रचंड वेग से आने वाली आँधी है। ऐसे ही मिथुन राशि के व्यक्ति भी दोहरा स्वभाव लिए होते हैं क्योंकि यह एक 'द्विस्वभाव’ राशि है। इस राशि के व्यक्ति कभी कोमल सुकुमार भावनाएं लिए व कभी कठोर रूखा व्यवहार करते हैं।
इस राशि के स्वामी ग्रहों में बाल 'राजकुमार’ कहे जाने वाले बुद्धिमान, गणितज्ञ, वाकपटु, रचनात्मक (Creative), शिल्पी, मार्केटिंग कला में निपुण व साहित्यकार बुध है।
मिथुन राशि के व्यक्तियों में बुध का प्रभाव अत्यधिक देखा जाता है। अपने बुद्धि चातुर्य और वाक् पटुता से बड़े से बड़े कार्य को आसानी से बना लेना इनकी आदत होती है। इनकी Grasping Power बहुत अच्छी होती है। इसलिए अधिकतर व्यक्तियों के द्वारा हौवा माना जाने वाला कठिन विषय गणित भी इन्हें 'सरल’ ही लगता है। विषय की गहराई जितनी अधिक होती है, उतने ही यह उसकी ओर अधिक आकर्षित होते हैं, इसलिए ज्योतिष आदि विषयों की ओर इनका विशेष झुकाव रहता है। इनकी हाजिर जवाबी बेमिसाल होती है। बुध ग्रह को बचपन और यौवन दोनों से जोड़ा जाता है। अत: मिथुन राशि के व्यक्तियों में एक ओर जहाँ हर विषय के प्रति बाल सुलभ जिज्ञासा रहती है वहीं दूसरी ओर युवा की तरह सारे संसार को मुट्ठी में बंद करना चाहते हैं।
बालक बुध अपने प्रियजनों का ध्यान केवल अपनी ओर आकर्षित करना चाहते हैं और ऐसा न होने की स्थिति में चंचल बालक की भाँति बिगड़ जाते हैं। बुध बुद्धिमान हैं, योजनाएं बनाते हैं, उनका क्रियान्वयन भी बौद्धिक स्तर पर कर लेते हैं किंतु शारीरिक श्रम की बात की जाने पर अपना राजसी स्वभाव नहीं छोड़ सकते अर्थात् शारीरिक श्रम इनके कार्यक्षेत्र का हिस्सा नहीं बन पाता।
मिथुन राशि का चिह्न स्त्री-पुरुष का जोड़ा है। स्त्री के हाथ में वीणा है और पुरुष के हाथ में गदा है। वीणा और गदा दोनों एक-दूसरे के स्वभाव के विपरीत होते हैं।
वीणा जहां अपनी तारों की मधुर तानों के कोमल स्वर से मन-मस्तिष्क को शांति प्रदान करती है, वहीं गदा कठोरता का भाव लिए मानों युद्ध को ललकारती है। इसी तरह इस राशि के व्यक्ति कोमल, भावुक, रचनात्मकता लिए हुए सुंदर प्रतिमाएं बनाने वाले शिल्पकार हैं और दूसरी ओर आधुनिक प्रतियोगिता के युग में अपनी Marketing प्रतिभा से दृढ़ गदा की भांति कुछ भी विक्रय कर विजय हासिल करते हैं।
लेखन कार्य और साहित्य भी बुध के ही विषय हैं। मिथुन राशि के व्यक्तियों का झुकाव साहित्य की ओर होता है। लेखकों की जन्मपत्रिका में बुध की स्थिति बलवान होती है। बुध बहुत अच्छा ‘Sense of humour’ हैं। इनका ‘Sense of humour’ इनकी वाक् पटुता के साथ मिलता है तो उच्चकोटि का व्यंग्य तैयार होता है। इनके मजाक आसानी से हर किसी की समझ में नहीं आते और लोग इनसे नाराज हो जाते हैं।
मिथुन राशि के व्यक्तियों को अधिक सफलता के लिए अपने दृष्टिकोण को विस्तृत करना चाहिए।
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