डॉनल्ड ट्रम्प का उत्थान उसी शैली में हुआ, जिस शैली में एडोल्फ हिटलर का हुआ। दोनों ने ही प्रखर राष्ट्रवाद के आधार पर सत्ता हस्तगत की। हिटलर ने उसी शैली में उत्पादन बढ़ा कर संसार के बाजारों को जर्मन सिल्वर से पाट दिया था, जिस शैली में चीन ने दुनिया के बाजारों को चीनी शैली में पाट दिया।

हिटलर ने एक महान गलती की कि रूस से उलझ बैठा और पागलपन भरा निर्णय करके अपनी सेनाएँ वहाँ भेज दी। लाखों सैनिक बर्फ में गल गए। उसने इतिहास से भी सबक नहीं लिया था। क्योंकि 28 देशों का विजेता नेपोलियन बोनापार्ट वही गलती किये बैठा था। पाँच लाख सैनिक रूस से लडऩे भेज दिये थे। उनमें से कुछ सौ सैनिक ही वापिस लौटे और बाकि सब बर्फ में ही गल गये। रूसी लोगों ने हमेशा ही यह किया कि पीछे हटते गये और गाँवों को उजाड़ करते गये जिससे कि शत्रु सैनिक भूखे मर जाएँ।

प्रखर राष्ट्रवाद डॉनल्ड ट्रम्प का एक शक्तिशाली हथियार था जो कि वर्तमान में कई अन्य शासकों का भी प्रमुख हथियार है। नरेन्द्र मोदी और ट्रम्प में एक बड़ा अन्तर यह है कि नरेन्द्र मोदी सच्चे स्कॉर्पियन हैं, वृश्चिक राशि के चन्द्रमा वाला वह बिच्छू जो प्रत्यक्ष प्रहार नहीं करता और मानसिक सन्तुलन बनाए रखता है। डॉनल्ड ट्रम्प भी बिच्छू ही हैं परन्तु उनके चन्द्रमा 280 36Ó  जबकि केतु 27044Ó पर हैं और यहीं ट्रम्प मात खा गये, क्योंकि केतु और चन्द्रमा की युति दिग्भ्रमित करने वाली मानी जाती है। आप दोनों जन्म पत्रिकाओं की तुलना करें। ट्रम्प व्हाइट मेंन्टीलिटी के शिकार हैं और व्हाइट सुप्रीमेसी के ख्याल में वे पागलपन की हद तक आगे बढ़ते चले गये और एक मनोविकार की सीमा तक पहुँच गये। यद्यपि हर जुनून जिसको अंग्रेजी में पैशन कहते हैं, 10 प्रतिशत पागलपन होना जरूरी है। परन्तु जब यह पागलपन या जुनून इससे अधिक प्रतिशत में हो जाए तो वह मनोविकृत्ति में बदल जाता है। जातीय श्रेष्ठता का अहंकार सदा से ही पृथ्वी पर विद्यमान रहा है। परन्तु इसे पोषक तत्त्वों ने अपने उद्देश्य पूर्ति के लिए छद्म आचरण या प्रच्छन्न नीतियों का सहारा लिया है। ट्रम्प यहाँ चूक गये। वे सीधे जातीय युद्ध में उलझ गये, इस कारण अश्वेत वोट शिफ्टिंग तेजी से जॉय बिडेन के पक्ष में हुई। जॉय बिडेन ने भारतीयों की प्रभावी नियुक्तियों का संकेत देकर उच्च कोटि की कूटनीति का परिचय दिया था।

चुनाव से पहले ही ट्रम्प को मारक दशा शनि की अन्तर्दशा शुरु हो चुकी थी। उच्च कोटि के राजयोग के लिए नवमेश, दशमेश या पंचमेश की दशा-अन्तर्दशा होना जरूरी है, न कि सप्तेश की अन्तर्दशा। गोचर भी बहुत बलवान होना चाहिए। यद्यपि ग्रह-गोचर डॉनल्ड ट्रम्प को भी मदद कर रहे थे, परन्तु उनकी भारी पराजय के लिए कई ग्रह काम कर रहे थे। उनकी मारकेश की अन्तर्दशा अभी समाप्त नहीं हुई है और मुकद्मे झेलने पड़ सकते हैं। अभी शनि अन्तर्दशा चल रही है। उनके शनि का षड़बल बहुत कम है।

डोनाल्ड ट्रम्प के पतन की भविष्यवाणी मैंने नेशनल दुनिया के 02 दिसम्बर, 2020 के अंक में इसी कॉलम में कर दी थी।

 

                             

जहाँ नरेन्द्र मोदी की जन्म पत्रिका में वृश्चिक राशि में चन्द्रमा के साथ मंगल उसे शक्तिशाली बना रहे हैं वहाँ ट्रम्प की कुण्डली में वृश्चिक राशि के चन्द्रमा को केतु ने ग्रसित कर लिया है और उनको दिग्भ्रमित कर दिया।

इतिहास में पागलपन की हद तक दो जुनूनी व्यक्तित्व नेपोलियन बोनापार्ट, एडोल्फ हिटलर की जन्म पत्रिकाएँ भी यहाँ प्रस्तुत की जा रही हैं परन्तु यहाँ उनके चन्द्रमा, वृश्चिक राशि और ज्येष्ठा के नक्षत्र के नहीं हैं बल्कि जन्म पत्रिका के दशम भाव में शनि की उपस्थिति है। दशम भाव में शनि की उपस्थिति का मतलब महान उत्थान और महान पतन। दशमस्थ शनि ऐसा ही करते हें। ऐसी ही जन्म पत्रिका बेनजीर भुट्टो व शेख मुजीबुर्रहमान की है।

                        

             

दशम शनि नरेन्द्र मोदी की कुण्डली में भी स्थित हैं, परंतु अभी उनकी योगकार दशाएं चल रही हैं। शनि महादशा जन्म के समय ही थी।

 

कुछ निश्चित योग

अवतार कृष्ण चांवला

सम्भवत: कोई भी ज्योतिषी यह दावा नहीं कर सकता कि उसके द्वारा की गई प्रत्येक भविष्यवाणी सफल हुई है। लेकिन फिर भी कुछ ऐसी स्थापित स्थितियां हैं जो सहज रूप से पहचानी जा सकती हैं और उनके लिये कथन किया जा सकता है। ऐसी कुछ स्थितियों को नीचे संगृहीत कर लिखने का प्रयास किया गया है।

1.            किसी भी जन्मकुंडली में यदि 10वें अंक (मकर राशि ) के साथ किसी भी घर में है तो उस व्यक्ति के  जीवन में कम से कम एक भयंकर विफलता अवश्य आएगी। और यदि यह अपराध है तो काफी भयंकर होगा।

2.            यदि चन्द्र के साथ शनि व राहू या राहू और मंगल जैसे दुष्ट ग्रह हों तो वह व्यक्ति मानसिक रूप से बहुत परेशान रहता है। यह स्थिति उसे पागलपन की स्थिति तक पहुंचा सकती है। यदि दो या अधिक दुष्ट ग्रह चन्द्र पर दृष्टि डालें तो भी ऐसा ही दुष्प्रभाव पड़ता है। पाप कर्तरी दोष भी ऐसा ही प्रभाव डालता है।

3.            जब मंगल व शुक्र एक साथ एक ही घर में हों तो व्यक्ति के विवाहेतर सम्बन्ध होने की संम्भावना विद्वान् लोग व्यक्त करते है। यदि इस पर राहु की दृष्टि भी पड़े तो स्थिति और भयावह हो सकती है। परन्तु आजकल कुछ विद्वान् इस योग को इसकी स्थिति को देखते हुए जातक के कम्प्यूटर ज्ञान और व्यवसाय से भी जोडऩे लगे हैं।

4.            आम तौर पर दूसरे घर में जो वाणी का भाव भी कहा जाता है, में क्रूर ग्रहों की उपस्थिति वाणी को कठोर बनाती है। ऐसा व्यक्ति बोलने में कठोर शब्दों का चयन करता है। उसकी भाषा के कारण उसके सम्बन्ध खराब रहते हैं। यदि दूसरे घर में मकर राशि का मंगल हो और कुंडली स्त्री की हो तो उसके पिता का स्वभाव आम बात चीत में भी गाली-गलोच करने का होगा। यदि यह स्थिति किसी पुरुष की कुंडली में हो तो अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाला चाचा होगा। परन्तु इसका एक सकारात्मक पक्ष भी है कि वह व्यक्ति स्वयं प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी होगा।

5.            तुला का शनि जब लग्न में होता है तो व्यक्ति विद्वान् और प्रथम श्रेणी का विद्यार्थी होता है। तुला में शनि उच्च का होता है।

6.            जब कर्क का गुरु यानि उच्च का गुरु लग्न में हो तो व्यक्ति विश्वास योग्य, उदार हृदय , सादा जीवन, स्पष्ट वक्ता, सत्यप्रिय, उच्च चरित्र वाला तथा विद्वता के लिए विख्यात होता है। जब कर्क का गुरु पंचम या नवम में हो तो भी यही स्थिति होती है।

7.            यदि लग्न में किसी भी राशि का मंगल हो तो व्यक्ति शीघ्र क्रोधी स्वभाव का होगा। यद्यपि यदि मित्र राशि में या मित्र अथवा सौम्य ग्रहों से दृष्ट हो तो क्रोध शीघ्र शांत भी होगा और अपनी गलती यदि होगी तो स्वीकार भी करेगा।

8.            यदि मेष लग्न है तो व्यक्ति अधीर होगा और भविष्य में सफलता की प्रतीक्षा किये बगैर आज ही विपरीत परिणाम भी सुनने को तैयार हो जायेगा।

9.            गुरु और चन्द्र कुंडली में कहीं भी साथ हों या एक दूसरे से एक, चार, सात अथवा दस घर में हों तो गज केसरी योग बनता है। यदि कर्क लग्न में अथवा नवम घर में कर्क राशि में गुरु और चन्द्र हों तो वह व्यक्ति महान नेता, सत्य का निडर पुजारी तथा उच्च ख्याति को प्राप्त करता है।

10.          जब मकर लग्न में केतु अकेला हो तो वह व्यक्ति दुर्बल शरीर और पीत मुख का होता है। उसे क्षय रोग भी संभव है। यही स्थिति यदि सप्तम में तो जीवन साथी को क्षय रोग की संभावना होती है।

11.          यदि मंगल किसी भी राशि में तृतीय घर में हो तो व्यक्ति बहादुर व साहसी होता है। वह किसी भी युद्ध , संघर्ष अथवा लड़ाई से कभी भयभीत नहीं होता।

12.          मंगल यदि कू्र्रर राशि में या क्रूर ग्रहों से दृष्ट हो कर द्वितीय घर में हो तो चाचा से सम्बन्ध खराब रहने की सम्भावना रहती है। इसके विपरीत यदि शुभ राशि अथवा शुभ ग्रहों से दृष्ट मंगल दूसरे घर में हो तो सम्बन्ध चाचा से अच्छे रहते हैं।

13.          किसी भी घर में मकर राशि में चार अथवा अधिक ग्रहों वाला व्यक्ति लज्जा, कलंक अथवा पराजय की भावना से ग्रसित होता है अर्थात हीन भावना से ग्रस्त होता है। समाज में या उच्च लोगों के सामने अपने को प्रस्तुत करने में उसे परशानी होती है। महाराणा प्रताप जो एक महान देशभक्त और योध्या थे, के तीसरे घर में पांच ग्रह थे, परिणाम स्वरुप वे महान योद्या व साहसी थे। परन्तु ये सब मकर राशि में थे अत: उन्हें वह सफलता नहीं मिली जो उन्हें मिलनी चाहिये थी । लेकिन तृतीय भाव में पांच ग्रहों के कारण वे अद्वितीय पराक्रमी एवं साहसी अवश्य हुए।

14.          कुंडली में किसी भी घर में राहु और चन्द्र का एक साथ होना व्यक्ति के लिए कारावास, भयंकर आरोपों के साथ कोर्ट केस, परिवार में रोटी कमाने वाले की अकस्मात तथा दुखांत मृत्यु के कारण अनाश्रित अवस्था जैसी घोर विपदा।

15.          यदि किसी भी घर में कर्क राशि के गुरु और चन्द्र अथवा शुक्र और चन्द्र एकत्र हों तो सम्बद्ध व्यक्ति सुन्दर व स्वस्थ होगा। यदि यह स्थिति लग्न में है तो वह व्यक्ति स्वयं बहुत सुन्दर व स्वस्थ होगा। यदि यह स्थिति चतुर्थ घर में है तो उसकी माता का व्यक्तित्व अत्यंत आकर्षक होगा । यदि सप्तम में हो तो जीवन साथी का व्यक्तित्व आकर्षक होगा।  यदि इन दोनों ग्रहों की कोई सी भी युति दशम घर में हो तो पिता का व्यक्तित्व आकर्षक तथा प्रभावी होगा। यदि गुरु , चन्द्र और शुक्र सभी कर्क राशि में हैं तो सम्बद्ध व्यक्ति का सौन्दर्य विशिष्टता पूर्वक सीमातीत होगा।

16.          चतुर्थ घर में चन्द्र और शनि का एकत्र होना व्यक्ति के लिए शैशव अवस्था और किशोर अवस्था में घोर विपदाओं का फल देने वाला होता है।उतरोत्तर जीवन में भी यह युति जीविका की अकस्मात हानि अथवा वित्तीय हानि का कारण होती है। यदि चन्द्र तीसरे घर में हो और शनि चतुर्थ में हो तो भी परिणाम समान ही होते है।

 

 

कृत्तिका

कृत्तिका कभी प्रथम नक्षत्र था। आज नक्षत्र गणना अश्विनी से प्रारम्भ होती है और कृत्तिका तीसरा नक्षत्र माना जाता है। परन्तु वेदों के रचनाकाल के समय कृत्तिका को प्रथम नक्षत्र माना जाता था। अथर्वसंहिता, तैत्तिरीय संहिता और तैत्तिरीय ब्राह्मण ग्रन्थों में कृत्तिका को प्रथम नक्षत्र माना गया है। आधुनिक गणनाओं में कृत्तिका का एक चरण मेष राशि में आता है और तीन चरण अगली राशि वृषभ में आते हैं। कृत्तिका से अग्निकोण में रोहिणी और मृगशिरा इत्यादि है। पूर्व दिशा में पुनर्वसु नक्षत्र है। कृत्तिका नक्षत्र के स्वामी सूर्य माने गये हैं। जब किसी का जन्म कृत्तिका नक्षत्र में हो अर्थात् जन्म के समय चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र से भ्रमण कर रहे हों तो यह माना जाता है कि सूर्य की महादशा में जन्म हुआ। कृत्तिका प्रमुख तारा है परन्तु सामान्यत: भारतीय पुराण कथाओं में कृत्तिका में 6 या 7 तारे माने गये हैं। अष्टाध्यायी नामक ग्रन्थ में कृत्तिकाओं के लिए बहुला शब्द बताया गया है।

पृथ्वी से 400 प्रकाश वर्ष दूर कृत्तिका का नजारा एक अंगूर के गुच्छे जैसा है, जहाँ हमारे सूर्य का सतह तापमान 6000 डिग्री सेंटीग्रेड है, कृत्तिका की बाहरी सतह का तापमान 15000 डिग्री सेंटीग्रेट से अधिक है। कृत्तिकाओं का जन्म बहुत बाद में हुआ है, मुश्किल से 25 लाख वर्ष पूर्व। भारतीय कथानकों में अम्बा को कृत्तिका का सबसे चमकदार तारा माना गया है।

भगवान शिव और पार्वती से उत्पन्न दोनों ही संतानें अयोनिजा हैं। कृत्तिका का सम्बन्ध दूसरे पुत्र कार्तिकेय से जोड़ा गया है। स्कन्द या कार्तिकेय बाद में देवताओं के सेनापति हुए और असुरों का संहार किया। कार्तिकेय का दूसरा नाम षण्मातुर भी कहा गया है। कार्तिकेय के जन्म के समय उनके पालन पोषण के लिए 7 धाय माताएँ सामने आयी। उन्हें ऋषि पत्नियों के नाम दिये गये- सम्भूति, अनुसूया, क्षमा, प्रीति, सन्नाति, अरुन्धती और लज्जा। परन्तु तैत्तिरीय ब्राह्मण के अनुसार कृत्तिकाएँ 7 बहनें हैं जिनके नाम हैं- अम्बा, दुला, नितत्नि, अभ्रियन्ती, मेघयन्ती, वर्षयन्ती और चुपुणीका।

अम्बा दुला नितत्निरभ्रयन्ती मेघयन्ती वर्षयन्ती चुपुणीका नामासि।

इन कृत्तिकाओं ने धायमाँ बनकर शिवपुत्र कार्तिकेय को अपना दूध पिलाया और पालन-पोषण किया। पुराण कथाओं के विकास के साथ बाद में कृत्तिकाएँ 6 ही मानी गयीं। इसीलिए उनको षण्मातृकाएं भी कहा गया।

वैदिक काल में कृत्तिका क्यों था प्रथम नक्षत्र?

सूर्य की कक्षा अपनी मूल कक्षा से हट कर कुछ कोण लिए हुए है। इन दोनों कक्षाओं में अब 24 डिग्री का कोण बनता है। इसे अयन-चलन कहा जाता है और 24 डिग्री को अयनांश कहा जाता है। ये दोनों कक्षाएँ आपस में टकराती हैं, उस बिन्दू को वसंत सम्पात कहते हैं। सम्पात का मतलब क्रॉस पॉइन्ट। यह बिन्दु पश्चिम की ओर सरकता रहता है और 26 हजार वर्ष में खगोलीय वृत्त का एक पूरा चक्कर लगा लेता है। एक नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र तक पहुँचने में करीब 960 वर्ष लगते हैं। यही कारण है कि वर्ष का आरम्भ वैदिक काल में कृत्तिका से होता था और आजकल खिसकता हुआ वह भाद्रपद नक्षत्र तक पहुँच गया है।

कार्तिक महीने की पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा कृत्तिका नक्षत्र पर होते हैं और प्राचीन भारत में उस दिन दीप जलाकर रोशनी की जाती थी।

कृत्तिका नक्षत्र को शास्त्रों में छुरे के समान स्वरूपधारी, अग्निदेवता वाला, अग्रि वैश्य गोत्र वाला, सौम्य दारुण, अग्न्याधान आदि कार्य पाक यज्ञ, यज्ञ क्रिया, बगीचा, जहर, घात, चूल्हा बनाना, इष्टि, पशुओं का बन्धन, चौल, यज्ञोपवीत, उग्र कार्य, पशु पूजा, तेजस्वी कार्य और आयुध शस्त्र सम्बन्धी कार्यों का कारक माना गया है। कृत्तिका में ना कर्ज लेना चाहिए और ना ही कर्ज देना चाहिए।

कृत्तिका नक्षत्र में गूलर की उत्पत्ति हुई है इसलिए यदि किसी कारण से कृत्तिका नक्षत्र पर पाप ग्रह हों या नक्षत्र पीडि़त हो या नक्षत्र पर ग्रहण हो तो गूलर वृक्ष की पूजा करनी चाहिए।  वृहत्त संहिता के अनुसार कृत्तिका नक्षत्र के आश्रित सफेद पुष्प, अग्रिहोत्री, मंत्रज्ञ, यज्ञ का जानने वाला, वैयाकरण, खान, नाई, ब्राह्मण, कुम्हार, पुरोहित और ज्योतिषी आते हैं।

 

 

इकट्ठे ग्रह – कितना खतरा ?

इन दिनों मकर राशि में पाँच ग्रह इकट्ठे रहे हैं तथा फरवरी के दूसरे सप्ताह में 6 ग्रह इकट्ठे हो जाएंगे। ग्रहों के इकट्ठे होने का क्या फल होता है, इसे समझना जरूरी है।

चत्वार: पञ्चषा: खेटा बलिनस्त्वेकराशिगा:।

राज्ञां बहुभयं दद्युररिभिर्दु:खदा मता:।।

चार या पाँच ग्रह इकट्ठे हों तो राजाओं को शत्रुओं से तरह-तरह के कष्ट मिलते हैं।

यदा प्रतीपगौ खेटौ नृपं क्षोभयतस्तदा।

प्रतीपगास्त्रय: खेटा युद्धवृष्टिभयप्रदा:।।

अगर दो ग्रह वक्री हों तो राजाओं में क्षोभ बढ़ता है और तीन ग्रह वक्री हों तो युद्ध, वर्षा और भय होता है।

राजान्यत्वं हि कुर्वन्ति चत्वारो यदि वक्रिण:।

प्रतीपगा: पञ्च खेटा भङ्गदा राजयराष्ट्रयो:।।

अगर चार ग्रह वक्री हों तो राज्य भंग और पाँच ग्रह वक्री हों तो राज्य व राष्ट्र का नाश होता है।

अर्कसौरी भौमसौरी तमस्सौरीज्यमङ्गलौ।

गुरुसौरी महायोगो महीनाशाय कल्पते।।

अगर सूर्य, शनि या मंगल शनि या राहु शनि या राहु मंगल या गुरु और शनि की युति एक राशि में हो तो प्राय पृथ्वी में विनाश आता है।

कोरोना और उससे उत्पन्न प्रभावों के कारण संसार का हर प्राणी प्रभावित हो चुका है, अत: यह एक अच्छा उदाहरण है।

पञ्च ग्रहा ध्नन्ति चतुष्पदानां ते षट् ग्रहा ध्वन्ति समस्तभूपान्।

सप्तग्रहा ध्नन्ति समस्तदेशान् अष्टग्रहै: स्यात्खलु कूटयोग:।।

अगर पाँच ग्रह एक राशि में आते हैं तो पशुओं का विनाश, छ: ग्रह एक राशि में आते हैं तो राजाओं का नाश व सात ग्रह एक राशि में आते हैं तो समस्त देशों का नाश होता है और आठ ग्रह एक राशि में आने से कूटयोग होता है, जो विनाश कराता है।

 

 

एक पेट से उत्पन्न यह ना करें?

1. सगी बहनों की शादी, सगे सहोदरों से, परन्तु वशिष्ठ कहते हैं कि नदियों के अन्तर और पर्वत की ओट में हो तो विवाह शुभ हो जाता है।

2. यज्ञोपवीत ना करें।

3. दोनों के समान संस्कार ना करें, जैसे कि चौल।

4. यदि विमाता हो तो और सहोदर ना हो तो कन्या के विवाह से 4 दिन बाद विवाह करना चाहिए।

5. एक पेट से उत्पन्न लोगों का 3 कार्य एक वर्ष में ना करें।

6. दो कन्या एक पुरुष को ना दें।

7. सहोदरों का कार्य एक मण्डप में ना करें।

 

 

जप का फल

स्मृति ग्रन्थों के अनुसार घर में एक गुना, नदी में दुगुना, गौशाला में दस गुना, अग्निघर में सौ गुना, तीर्थ में हजार गुना और विष्णु भगवान की मूर्ति के पास जप करने से अनन्त फल होता है।

गृहे त्वेकगुणं जाप्यं नद्यां तु द्विगुणं स्मृतम्।

गवां गोष्ठे दशगुणं अग्न्यागारे शताधिकम्।।