15 अगस्त, 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली और ज्योतिषियों ने निर्णय किया कि अद्र्धरात्रि वृषभ लग्न में नये देश का जन्म होना उचित है। लग्न से तीसरे भाव में पाँच ग्रहों की उपस्थिति यह आश्वस्त करती है कि देश का विकास होगा। इस जन्म पत्रिका से भारत के बारे में घटनाएँ सही रूप में मिलती हैं। भारत देश इस समय चन्द्रमा की महादशा और शनि की अन्तर्दशा में चल रहा है। शनि भारत के भाग्य स्थान के स्वामी हंै और संयोगवश इस समय भाग्य स्थान के स्वामी शनि अपनी ही राशि में भ्रमण कर रहे हैं। इस तरीके से भारत इस समय एक शानदार दौर से गुजर रहा है और इस अन्तर्दशा के बीतने के बाद 10 जुलाई से ही बुध अन्तर्दशा प्रारम्भ हो जाएगी जो कि 10 जुलाई, 2021 से 10 दिसम्बर, 2022 तक रहेगी। यह अन्तर्दशा शानदार जाने वाली है।

देश में वर्तमान में जो चल रहा है, वह शनि अन्तर्दशा का परिणाम है। शाहीन बाग में धरने की अंतिम अवधि जब चल रही थी, तब शनि अन्तर्दशा प्रारम्भ हो चुकी थी। ऐसा क्यों? क्योंकि जन्म पत्रिका में शनि अस्त हैं। इसी अवधि में भारत में कोरोना रहा और अर्थव्यवस्था लडख़ड़ा गई, बल्कि नकारात्मक हो गई। अब जब कि 10 जुलाई से बुध अन्तर्दशा आने वाली है, जो कि भारत के दूसरे और पाँचवें भाव के स्वामी हैं और अर्थव्यवस्था में चमत्मकारिक उन्नति आने के लक्षण दिख रहे हैं। बुध वाणिज्य व्यवसाय के भी ग्रह हैं, वाणी के ग्रह हैं और भारत की जन्म पत्रिका के जिस भाव में बैठे हैं, उसका सम्बन्ध संचार व्यवस्थाओं तथा अनुसंधान से हैं। आशा की जानी चाहिए कि न केवल भारत की अर्थव्यवस्था अगले एक वर्ष में श्रेष्ठ प्रदर्शन करेगी बल्कि भारत टेलीकम्प्युनिकेशन, 5जी, डिजीटल संसाधन, ज्ञान विज्ञान, अन्तरिक्ष प्रौद्योगिकी और अन्तर्राष्ट्रीय राजनय में शानदार प्रदर्शन करेगा।

मकर राशि के शनि, 2022 में कुम्भ राशि में आ जाएंगे, फिर मीन राशि में आएंगे। न केवल यह बल्कि आज से अगले 14-15 साल तक शनि का मकर से वृषभ राशि पर्यन्त भ्रमण भारत को अनुमान से जल्दी और अनुमान से अधिक सफलताओं की ओर ले जाएगा। इस वर्ष के लिए अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए 11 प्रतिशत से अधिक वृद्धि का अनुमान लगाया है। शनि देव के अस्त होने के बाद भी भारतीय की जन्म पत्रिका बहुत शक्तिशाली है और इसी कारण से भारत के विखण्डन की कोशिशें सफल नहीं होगी। अगर एक दमदार राष्ट्रीय नेतृत्व रहे तो भारत अपने प्राचीन गौरव को लौटा सकता है। आपको यह स्मरण रहना चाहिए कि सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के समय भारत का साम्राज्य विस्तार सुदूरपूर्व के कई देशों तक तथा पश्चिम दिशा में करीब-करीब स्वेज नहर की सीमाओं तक था।

परन्तु राष्ट्र के बारे में निर्णय करने के लिए जो पद्धति व्यापक रूप से प्रयोग में लाई जाती है, वह मेदिनी ज्योतिष है। व्यक्तिगत ज्योतिष में और मेदिनी ज्योतिष में कई मामलों में सैद्धान्तिक अन्तर है। उदाहरण के तौर पर निजी जन्म पत्रिकाओं में केन्द्र स्थान में ग्रह होना या एक दूसरे से केन्द्र में होना अच्छा माना गया है जबकि मेदिनी ज्योतिष मेें इसे अच्छा नहीं माना गया है।

इस वर्ष अप्रैल तक शनि और बृहस्पति मकर राशि में रहेंगे। फिर 6 अप्रैल के बाद बृहस्पति कुम्भ राशि में आ जाएंगे। मकर राशि के शनि के स्वतंत्र फल शासन के लिए चिन्ता जनक बताए जाते हैं। वराहमिहिर कहते हैं कि सोना, चाँदी, ताँबा, हाथी, घोड़ा, बैल, सूत, कपास का मूल्य तेज हो जाए, अनाज का नाश हो, मार्गों में भय रहे, रोग से नाश हो और शक्तिशाली राजाओं को भी चिन्ता बनी रहे। मार्गों में भय का एक उदाहरण वर्तमान किसान आंदोलन भी माना जा सकता है। शाहीन बाग के धरने को भी माना जा सकता है। कोरोना के कारण यात्राओं पर रोक भी इसका परिणाम माना जा सकता है। धरने और आंदोलन से मार्ग रोकने की घटनाएँ आगे भी आ सकती है। गत महीनों में शनि पूर्वाषाढ़ और उत्तराषाढ़ नक्षत्रों को पार करके अब श्रवण में प्रवेश कर गये हैं।  पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में जब शनि होते हैं तब उत्तर प्रदेश, बंगाल और बिहार में परिणाम देखने को मिलते हैं। नागरिकों को पीड़ा भी होती है। जब उत्तराषाढ़ नक्षत्र में होते हैं तब सीमावर्ती समस्याएँ आती हैं जो कि हम चीन और पाकिस्तान के साथ विवादों में देख चुके हैं। वर्ष 2021 में शनि काफी अधिक अवधि तक श्रवण नक्षत्र में ही रहेंगे और 23 मई को श्रवण नक्षत्र में ही वक्री होकर वर्ष पर्यन्त इसी नक्षत्र में रहेंगे बाद में मार्गी हो जाएंगे। यह विशेष बात है क्योंकि श्रवण नक्षत्र के शनि राजाओं को या शासकों को सहायक सिद्ध होते हैं। केवल एक अवधि जिसमें कि शनि वक्री रहेंगे, थोड़ी चिन्ताजनक हो सकती है। शनिदेव 23 मई को वक्री होंगे और 11 अक्टूबर को मार्गी हो जाएंगे। इस अवधि में देश के राजनैतिक परिदृश्य में गतिविधियाँ तेज हो जाएंगी और शासन को संकट में डालने के लिए कुछ समूह काम करेंगे।

बृहस्पति देव 6 अप्रैल के दिन कुम्भ राशि में आ जाएंगे और 13 अप्रैल, 2021 तक कुम्भ राशि में रहेंगे परन्तु बीच में कुछ अवधि के लिए पुन: मकर राशि में आएंगे। यह अवधि 14 सितम्बर 2021 से लेकर नवम्बर, 2021 तक रहेगी। इसका अर्थ यह हुआ कि 20 जून से 20 नवम्बर तक की अवधि विशेष हो चली है, जिसमें ग्रह विशेष प्रभाव देने वाले हैं। इसमें भी सितम्बर और अक्टूबर ऐसे महीने हैं जिनमें बृहस्पति और शनि वक्री रहकर मकर राशि में भारी प्रभाव छोडऩे वाले हैं जिसे कि भारत की प्रभाव राशि मानी जाती है।

6 अप्रैल के बाद वर्ष के अधिकांश समय बृहस्पति कुम्भ राशि में रहेंगे और थोड़ी सी अवधि के लिए वापिस मकर राशि में आएंगे। मेदिनी ज्योतिष के अन्तर्गत कुंभ राशि के बृहस्पति में फसल का उत्पादन अच्छा माना जाता है। बुद्धिजीवी वर्ग को प्रतिष्ठा मिलती है। कुछ धातुएँ सस्ती हो जाती हैं। राजस्थान में वर्षा को लेकर शंका रहती है, परन्तु श्रावण में अच्छी वर्षा होती है। बृहस्पति का उदय मकर राशि में हो रहा है और उदय नक्षत्र धनिष्ठा है, जिसे कि शुभ बताया गया है और राजकोष में वृद्धि होगी, प्रजा में सुख बढ़ेगा, पीड़ा का निराकरण होगा।

इसी वर्ष में बृहस्पति मकर में भी वक्री रहेंगे और कुम्भ में भी। यह दोनों ही शुभ बताये गये हैं। अनाज सस्ते होंगे, आरोग्यता बढ़ेगी, शासन को विजयश्री मिले, सभी धान्यों की उत्पति होगी, वैश्य वर्ग सुखी रहेगा। सितम्बर के बाद घी, तेल और बर्तन का संग्रह अगर 7-8 महीने तक कर पाएं तो लाभ होगा। आगामी दिनों में बृहस्पति श्रवण नक्षत्र में रहेंगे फिर धनिष्ठा में रहेंगे और गर्मियों में ही शतभिषा नक्षत्र मेंं प्रवेश कर जाएंगे। पुन: वक्री होकर धनिष्ठा में आएंगे और वर्ष के अंत तक धनिष्ठा में ही रहेंगे। यह तीनों ही नक्षत्र बृहस्पति के लिए अत्यंत सुखद माने गये हैं। अच्छी वर्षा, अच्छी खेती और आरोग्य, यह सब बृहस्पति से प्राप्त होने वाले शुभ फल हैं। यद्यपि एक ही नक्षत्र पर शनि और गुरु की उपस्थिति के कारण राजनैतिक दृष्टि से देश में बड़ी उथल-पुथल मची रहेगी और कुछ समूह उग्र प्रदर्शन या उग्रवाद का प्रदर्शन करेंगे। गुरु का एक वर्ष में दो नक्षत्रों के बीच में भ्रमण अच्छा माना गया है। गुरु का अतिचार भी अर्थात् अधिक गति से चलना भी अच्छा नहीं माना गया है। एक राशि में इक_े कई ग्रह भी कुछ ना कुछ उत्पात लाते हैं।

हमें बहुत सावधान रहना होगा। देश की वर्तमान स्थिति को देखते हुए, कई वर्गों में हताशा की स्थिति को देखते हुए कई राजनैतिक दल सत्ता में आने की कोशिश करते हुए ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकते हैं जिन्हें राष्ट्र के लिए कल्याणकारी नहीं कहा जा सकता। भारत के विरुद्ध अन्तर्राष्ट्रीय साजिशें आने वाली हैं। सीमा पर पुन: उत्पात होंगे। देश में सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी देखने में आएगा। शासनतंत्र और राजनैतिक दल नीतिपरक भारी गलतियाँ करेंगे। चंूकि बृहस्पति दशहरे दीवाली के आसपास वक्री होकर अपनी नीच राशि में रहेंगे, इसीलिए जातियों के आधार पर वैमनस्य फैलाने की भयानक कोशिश की जाएगी।

परन्तु इन सब के बाद भी मकर राशि चूंकि भारत की स्वयं की प्रभाव राशि है और यदि जैमिनी ज्योतिष का सहारा लें तो एक राशि में एक से अधिक ग्रह होना उस राशि को समृद्ध बनाता है। भारत के सर्वांगीण विकास की कामना की जा सकती है। भारत की जन्म पत्रिका के भाग्य भाव में 2 बड़े ग्रहों का होना तथा 2 ऐसे ग्रहों का भ्रमण जिनकी कक्षा अवधि छोटी है, भारत को समृद्ध बनाने में मदद करेगा। न केवल अन्तर्राष्ट्रीय राजनय के मामले में बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय रक्षा संधियों, अन्तर्राष्ट्रीय आर्थिक सहयोग, विदेश व्यापार में वृद्धि, दूसरे देशों द्वारा भारत में पूँजी निवेश, भारत के स्टार्टअप की सफलता, गरीबी उन्मूलन के लिए किये गये प्रयास तथा भारत के सकल राष्ट्रीय उत्पादन में वृद्धि भारत को एक नई ऊँचाई दे पाएंगे। भारत में अधिक संख्या में नौकरियाँ सृजित की जाएंगी तथा बड़ी संख्या में ऊँचे पैकेज मिलने लगेंगे। इन दिनों जो संताने उत्पन्न होंगी, वे असाधारण बुद्धिमत्ता वाली, क्षमतावान व प्रतिभाशाली होगी।

 

 

सिंह राशि और आप

राशि चक्र की पांचवी राशि सिंह हैं। यह अग्रि तत्व राशि है। इस राशि के व्यक्तियों के विचारों और कार्यशैली में स्पष्टï रूप से इस अग्रि की झलक देखने को मिलती है। यह अत्यधिक महत्वाकांक्षी होते हैं और महत्वाकांक्षा की पूत्र्ति के लिए किसी भी हद तक जाकर कार्य करते हैं, कार्य को करने के लिए यही अग्रि तत्व इन्हें ऊर्जा प्रदान करता है, अर्थात यह ऊर्जावान होते हैं।

यह एक स्थिर राशि है इसलिए इनका स्वभाव स्थिरता लिए होता है, अत: किसी कार्य में अंत तक उसी तीव्रता से जुड़े रहना पसंद करते हैं जिस तीव्रता से कार्य को आरंभ किया था। इनके मन में एक दृढ़ भावना रहती है कि जो कार्य कर रहे हैं उसमें सफलता अवश्य ही मिलेगी। वादा-खिलाफी  इन्हें पसंद नहीं होती। यह जो बात कहते हैं उस पर स्थिर रहते हैं और अन्य व्यक्तियों से भी यही अपेक्षा रखते हैं। यदि अपेक्षित व्यवहार न मिले तो राशि की अग्रि इनकी जिह्वïा पर भी आ जाती है, यह कटु से कटु वचन बोलने से भी नहीं चूकते, चाहे इनको इस बात भी कितनी ही बड़ी कीमत क्यों न चुकानी पड़े।

इस राशि के स्वामी ग्रहों के राजा सूर्य हैं। साथ ही इस राशि का चिह्न वनराज सिंह है।

राजा के समान साहसी, अपना प्रभुत्व जमाने वाले, दृढ़ निश्चयी और स्वतंत्र प्रवृत्ति के होते हैं। अपने आत्मविश्वास के  कारण यह किंतु परन्तु जैसे शब्दों को नापसंद करते हैं।

जैसे सूर्य सभी ग्रहों की रोशनी देते हैं, उसी तरह यह भी दयालु होते हैं और जहां तक हो सके लोगों की सहायता करने से पीछे नहीं हटते। यह धार्मिक एवं दार्शनिक विचारों के होते हैं। यह अपनी परम्पराओं से बहुत अधिक जुड़े होते हैं और अपनी आसानी से न बदलने की आदत के कारण रूढि़वादी रुख अपना लेते हैं।

सिंह राशि के व्यक्ति राजसी गुण लिए होते हैं, ऐशो-आराम से युक्त जीवन जीना पंसद करते हैं। सिंहासन पर बैठकर नीतियां बनाना और लोगों से उनका पालन कराना, शारीरिक श्रम लेना यह बखूबी जानते हैं। मानसिक व प्रशासनिक कार्य इनके प्रिय विषय हैं।

यह कड़वा सच है कि सिंह राशि के जो गुण हैं यदि वे थोड़े भी अनियन्त्रित हो जाएं तो बहुत बड़े दुर्गुण के रुप में उभरते हैं। सिंह राशि में राजसी गुणों का आधिक्य होने से सुख उपभोग की इच्छा बलवती होती है। अपनी सत्ता में कमी आते रेखकर यह लोग कई बार हिंसक हो उठते हैं। इन्हें छोटे दर्जे का कार्य पसन्द नहीं आता। शालीनता व आज्ञाकारिता में कमी इन्हें पसंद नहीं आती है व अवज्ञा को ये क्षमा नहीं करते।

ये व्यक्ति जिनसे जुड़े होते हैं, उन पर अपना एकाधिकार समझते हैं, जो ईष्र्या की हद तक होता है उस स्थिति में यह उसको पाने के लिए साम, दाम, दण्ड, भेद सभी अपना लेते हैं।

सिंह राशि शरीर में उदर पेट और कुक्षि (कांख) का प्रतिनिधित्व करती है। इस राशि में मघा, पूर्वाफाल्गुनी और उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र सम्मिलित होते हैं। इसलिए सिंह राशि के व्यक्तियों के जीवन में इन नक्षत्रों के स्वामीग्रहों केतु, शुक्र और सूर्य की महादशाएं अवश्य आती हैं। 

सिंह राशि के व्यक्तियों के गुणों एवं अवगुणों के बीच एक महीन विभाजन रेखा है अत: इस राशि के व्यक्तियों को इस विभाजन रेखा में गुणों की ओर ही रहने का प्रयास करना चाहिए।

 

 

मकान में दीवारों की चुनाई करते समय रखें इन बातो का ध्यान

                वास्तुशास्त्र में निर्माणाधीन परिसर की दीवारों की चुनाई का भी विशेष महत्व होता हैं। यदि चुनाई के दौरान दीवार बाहर की और निकलती हुई दिखे तो वास्तु दोष होता हैं। अलग-अलग दिशाओ में इसके परिणाम भी अलग-अलग होतें हैं।

                जब उत्तर की दीवार चुनने पर दीवार बाहर निकल जाती है तो न केवल गृह स्वामी बल्कि मिस्त्री या आर्किटेक्ट के लिए भी संकट आ जाता है। जब पूर्व की ओर की दीवार की चुनाई के समय उसका अगला भाग बाहर निकलता है तब गृह स्वामी के लिए राजा की ओर से भय उत्पन्न होता है, बल्कि राजदंड की सम्भावना बढ़ जाती है। जब पश्चिमी दीवार बाहर निकलती है तो धन हानि होती है एवं चोरों का भय होता है। जब दक्षिण की ओर दीवार चुनने पर बाहर चली जाती है तो गृह के निवासियों को बीमारियां हो जाती हैं एवं सरकार की ओर से दंड मिलता है। यह दंड पुलिस, सेल्स टैक्स, इनकम टैक्स या नगर निगम जैसी संस्थाओं के माध्यम से आ सकता है।

                जब अग्निकोण का विस्तार इस तरह से हो कि चुनी हुई दीवारें बाहर की ओर निकली हुइ्र हों तो अग्निभय और गृह स्वामी की स्थिति पर असर पड़ता है। जब नैऋत्यकोण का अतिरिक्त विस्तार हो (समरांगण सूत्रधान के रचियता राजा भोजदेव बताते हैं कि केवल कर्ण चुनाई के समय बाहर निकले जबकि विस्तार का अर्थ वायव्य कोण से लेकर नैऋत्यकोण तक लगातार बाहर की ओर जाती हुई बाह्य भित्ति है।) अर्थात चुनाई के समय नैऋत्यकोण का कर्ण बाहर निकले तो वहां पर कलह, उपद्रव व भार्या के लिए जीवन संकट उत्पन्न होता है। जब वायव्यकोण का कर्ण चुनाई के समय बाहर निकल पड़े तो पुत्र, वाहन और नौकर के लिए संकट उत्पन्न होता है। जब ईशानकोण बाहर की ओर निकलता है तब गौ, बैल और गुरुओं का नाश होता है।

                    जिस निर्माण कार्य की चुनी जा रही चारों दीवारें बाहर निकल जाती हैं तो शास्त्रों में उसे मल्लिकाकृति की संज्ञा से पुकारा जाता है। ऐसे घर में व्यय बहुत अधिक होता है और आय नहीं होती। अंतत: इस कारण से गृह स्वामी घर छोड़कर भाग जाता है। चुना हुआ जो घर चारों तरफ से छोटा हो जाए, उसे संक्षेप कहते हैं और वह मध्य में विस्तृत होता है। शास्त्रों में इसे मृदंगाकृति संस्थान कहा जाता है और वहां हमेशा व्याधि उपस्थित रहती है। इसी भांति आदि से अंत तक विस्तृत और मध्य में संक्षिप्त जो घर होता है, वह मृदु-मध्य के नाम से कहा जाता है। (जैसे- मृदंग, वाद्य की बाहरी दीवारें बाहर की ओर निकली हुई होती है और उसका पेट फूला होता है, मृदु मध्य में इसका उल्टा होता है तथा इसकी कल्पना एक डुगडुगी की भांति की जा सकती है।) ऐसे घर में सदा भूख रहती है। विषम कर्ण हों, उन्नत कर्ण हों तो घर के लिए हमेशा नुकसान पहुंचाती है। अत: दीवार और कर्ण का ध्यान रखा जाना अत्यावश्यक है।

 

मंगल दोष

1.            यदि वर की कुण्डली में मंगल दोष है तथा कन्या की नहीं है तो वह दोष कन्या को प्रभावित करेगा।

2.            यदि वर की कुण्डली में शनि और मंगल दोनों मिलकर दोहरा दोष कर रहे हैं तथा कन्या की कुण्डली में केवल मंगल से यह दोष बन रहा है तो इसका अर्थ यह है कि इस दोष का पूरा समाधान नहीं हुआ है और कन्या का जीवन या स्वास्थ्य फिर भी प्रभावित हो सकता है।

3.            यदि किसी कारण से अपवाद स्वरूप मंगल दोष का निवारण हो गया है तब भी सावधानी बरतनी आवश्यक है। उदाहरण के लिए भगवान राम की कुण्डली में सप्तम भाव में उच्च के मंगल थे। परन्तु मंगल दोष का निवारण नहीं हुआ और उनका अपनी पत्नी से विछोह हुआ।

4.            इसी तरह से राहु मंगल के साथ हों तो मंगल दोष का निवारण माना गया है। परन्तु ध्यान रहे कि पाप ग्रहों के मूल संस्कार नष्ट नहीं होते, सीमित अवश्य हो सकते हैं, वे अपनी मूल प्रकृति का प्रदर्शन कभी न कभी करेंगे। एक अन्य किंवदंती है कि मंगल का दोष 28 वर्ष के बाद समाप्त हो जाता है। यह तथ्य पूर्णत: सही नही है। विवाह में देरी यदि मंगल के कारण है तो वह 28 के बाद आज्ञा दे देंगे क्योंकि उनकी नैसर्गिक आयु 28 वर्ष मानी गई है, परन्तु मंगल दोष का निवारण हो जाएगा ऐसा मानने का कोई प्रमाण नहीं है। जिन मामलों में वैधव्य आता ही है तो आप पाएंगे कि वह 28 वर्ष के बाद ही आता है पहले नहीं। प्राय: करके यह दोष अल्पायु की ऊपर वाली संधि रेखा पर प्रकट होता है अर्थात 32 से 40 वर्ष के बीच में।

5.            मंगल दोष तब बहुत उग्र हो जाता है जब मंगल किसी अनष्टि भाव के स्वामी हैं और वक्री भी हों।

6.            मंगल दोष से युक्त व्यक्तियों को जीवन में बहुत अधिक उन्नति करते देखा गया है। उनमें जीवन के प्रति ललक, जिजीविषा, एग्रेशन, पहल करने की क्षमता, मारक क्षमता व तीव्र प्रतिक्रिया की क्षमता अन्य व्यक्तियों से बहुत अधिक होती है।

7.            वक्री मंगल नेतृत्व क्षमता देते हैं और दुस्साहस भी देते हैं। बृहस्पति यदि मंगल पर दृष्टिपात कर लें तो ऐसा व्यक्ति आखिरी क्षणों में समझौतावादी हो सकता है। यदि मंगल दोष का निवारण मिलता है तो विवाह अपेक्षा से जल्दी भी हो सकता है। देरी से विवाह का कारण केवल मंगल ही नहीं होते बहुत सारे अन्य कारण भी हो सकते हैं। लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथों में उल्लेख है कि ग्रहों को शांत किया जा सकता है और ग्रहों का शांत होने का अर्थ यह है कि उनकी वजह से जो भी परिणाम आ रहे हैं उनमें सुधार आ जाए।

 

 

हथेली में छुपे है आपके राज

हथेली की त्वचा व्यक्ति की प्रकृति और स्वभाव की ओर संकेत करती है। त्वचा की लचक और रंग का व्यक्ति के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। साथ ही हाथ की प्रकृति इस प्रभाव को उकेरने और पहचानने में अत्यंत सहायक होती है।

 

    लचकदार, नरम और लालिमा वाली हथेली वाले व्यक्ति पूर्णत: स्वकेन्द्रित होते हैं। ऐसे व्यक्ति संघर्षों से दो-चार होने में घबराते हैं। शारीरिक की अपेक्षा मानसिक श्रम को प्रधानता देते हैं। कल्पनाओं में खोए रहना इनकी खासियत है। जीवन में ऐश्वर्य चाहते हैं। विभिन्न विषयों में रुचि होती है। कठोर परिश्रम से घबराते हैं।

 

    कठोर, खुरदरी और भारी हथेली वाले व्यक्ति अव्यवस्थित होते हैं। उनमें सलीके का अभाव होता है। पाशविक प्रवृत्तियों और मानवीय संवेगों से प्रभावित और संचालित होते हैं। जीवनयापन के लिए कठोर से कठोर परिश्रम करने से भी ये नहीं हिचकिचाते हैं। मानवीय संवेदनाओं की तुलना में मूल संस्कारों को प्राथमिकता देते हैं। मुंहफट और कर्कश स्वभाव इसकी प्रमुख विशेषता होती है।

 

    कुछ हथेलियों की त्वचा उपरोक्त दोनों का मिश्रण होती हैं। वह न तो ज्यादा कठोर होती है और न ही ज्यादा नरम। ऐसे व्यक्तियों में कल्पनाशीलता और व्यावहारिकता का समागम देखा जा सकता है। ऐसे व्यक्ति सफलता से काफी नजदीक होते हैं। ऐसे व्यक्ति विवेकपूर्ण निर्णय लेने में सक्षम होकर समाज पर अपनी छाप छोड़ते हैं।

 

    इसके अलावा गुलाबी रंग की हथेली व्यक्ति के अच्छे स्वास्थ्य, क्षमा, प्रेम और धैर्य की ओर संकेत करती है। ऐसे लोग हंसमुख और संकटों का हंसते-हंसते सामना करने में सक्षम होते हैं। लेकिन अधिक गुलाबी या लालिमा वाली हथेली कार्य में हड़बड़ी या उतावली को इंगित करती है। ऐसे लोग कार्य का  प्रारम्भ तो बड़े जोश-खरोश से करते हैं, पर बाद में वे कार्य के प्रति शिथिल हो जाते हैं और किसी भी प्रकार से कार्य को पूरा करने की तिकड़म में लगे रहते हैं। पीली हथेली वाले व्यक्तियों में पित्त की अधिकता होती है। ऐसे व्यक्ति प्राय: निराशावादी और पेट संबंध बीमारियों से पीड़ित होते हैं। नीली या बैंगनी रंग की हथेली खून की खराबी की ओर संकेत करती है। ऐसे व्यक्ति बीमार, उदास, चिड़चिड़े, निराशावादी और लापरवाह होते हैं।