ज्योतिष के सहारे फलते-फूलते बाजार उत्पाद

पं. सतीश शर्मा,  एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया

भारत में इतनी बड़ी ज्योतिष की अर्थव्यवस्था नहीं है, जितनी कि ज्योतिष के नाम पर बेचे जा रहे उत्पादनों की है। लाफिंग बुद्धा या फ्राइम्स, लाल फिनिक्स, रेकी क्रिस्टल, स्टार स्टेल, हैंगिंग सेट, हाथी - मेंढ़क बल्कि तीन टाँग के मेंढ़क, पॉलीरेसिन अरोना फिश, डबल फिश, ग्रीन क्रिस्टल बॉल, रोस्टर गुड फॉरच्यून, लकी बेल, चाइनीज कॉइन बॉल, हरा लकी बेम्बू, जापानी लकी चार्म, मनी टर्टल, कछुए, विक्ट्री हॉर्स, थ्री बेल, छह सिक्के, हैप्पीनेस फ्रेम और ना जाने क्या - क्या विक्रय के लिए उपलब्ध हैं। सलाह देने वाले भारतीय ज्योतिषियों का एक वर्ग भी खड़ा हो गया है, जो इन प्रोडक्ट्स को बेचने में लगा रहता है। वैदिक वास्तु के उपाय कठिन लगते हैं और ये उपाय सस्ते हैं और सपना दिखाते हैं। नई पीढ़ी को आस्तिक बनाने, देवीय चरित्रों का सम्मान करने और कर्मक्षय की विधियाँ बताने के स्थान पर एक बड़ा वर्ग इन उत्पादनों को खरीदने की सलाह देता है और मजे की बात यह है कि इनसे क्या सफलता आएगी और कितनी आएगी, इसकी बात कोई नहीं करता।

मेरे ज्योतिष जीवन में राशि रत्न बेचने वाले सदा ही सम्पर्क करते रहते हैं और कमीशन का प्रस्ताव देते हैं। मैंने इसीलिए कभी भी ना तो किसी रत्न व्यवसायी का नाम लिया और ना ही किसी आर्किटेक्ट का नाम रिकमण्ड किया। बल्कि इन लोगों को यह सलाह दी कि जो भी कमीशन बनता है उतना डिस्काउण्ट अपने क्लाइंट को दे दो। कमीशन खाने के बाद सलाह की निष्पक्षता पर संदेह होने लगता है। एक ईमानदार ज्योतिषी को इन सब से बचना चाहिए।

प्लास्टिक के छोटे पिरामिड -

पिरामिड का चलन मिस्र जैसे देशों से हुआ, जहाँ किसी राजा या फराओ की मृत्यु के बाद उसके शव को एक पिरामिड के अंदर रासायनिक लेप सहित रख दिया जाता था। एक विश्वास के अन्तर्गत उनके खानपान, आभूषण व वैभव की सामग्रियाँ भी अन्दर रख दी जाती थी। तूतनखामेन का पिरामिड तो अति प्रसिद्ध हुआ। तूतनखामेन मिस्र का राजा था, जो कि 1333 ईसा पूर्व से लेकर 1324 ईसा पूर्व तक शासन में था और राजघराने में चल रही रंजिश के कारण 19 वर्ष की आयु में ही उसकी हत्या कर दी गई थी। उसकी कब्र से सोने और हाथी दाँत से बने आभूषणों का भण्डार मिला। लोग दावा करते हैं कि उसकी ममी रात में आसपास घूमती रहती है और कई बार संगीत भी सुनने को मिलता है।

पिरामिड के अन्दर मृतक व्यक्ति रखे जाते थे परन्तु पिरामिड की रचना पत्थरों से होती थी, त्रिकोणमिति का सहारा लिया जाता था तथा सूर्य की ऊर्जा लगातार प्राप्त होती रहती थी। भारत में प्लास्टिक के पिरामिड़ों का चलन तेजी से बड़ा। छोटे आकार के इन पिरामिडों के अन्दर कुछ भी रखना सम्भव नहीं है। ऊर्जा के कुचालक प्लास्टिक के पिरामिड़ इसीलिए कोई परिणाम भी नहीं देते। भारत में मंदिरों में शिखर का प्रयोग करके कॉस्मिक ऊर्जा को गर्भगृह में लाने का प्रयास सदा ही किया गया। परन्तु उसकी शर्त यह है कि देवता का विग्रह शिखर या डोम के नीचे होना ही चाहिए। कई लोगों ने प्राकृतिक चिकित्सा या योग के लिए पिरामिड जैसी रचनाएँ बनाकर उसके अन्दर या नीचे रहकर लाभ प्राप्त करने का प्रयास किया है। इसे भी उचित माना जा सकता है। परन्तु कुछ इंच के पिरामिड जिनके अन्दर कुछ भी नहीं रखा जाता किस उद्देश्य की पूर्ति करते हैं? निश्चित ही यह निर्माता कम्पनियों का प्रचार तंत्र है जिसके जाल में बहुत सारे नौसिखिये भारतीय ज्योतिषी भी उलझ गये हैं। कमीशनखोरी की आदत आदमी को ईमानदार नहीं रहने देती।

वैदिक उपाय ग्रह प्रदत्त दोषों को दूर करने के लिए हमेशा से ही प्रयोग में लाए जाते रहे हैं। जन्म-जन्मान्तर के अभुक्त कर्म नष्ट करने के लिए श्रमसाध्य वैदिक कर्मकाण्डों के प्रस्ताव किये गये हैं। यह एक गंभीर विधा है। कई लोग उपाय के रूप में नदी में सिक्के को बहा देना या ऐसे ही आसान उपाय बता देते है, यह समझ से बाहर है कि पूर्व जन्म में किये गये भारी भरकम पापकर्म के कारण इस जन्म में दुःख पा रहे हैं तो वह कर्म छोटे-छोटे उपायों से कैसे नष्ट हो सकते हैं? ज्योतिषियों का एक वर्ग ऐसा है जो बिना शास्त्र पढ़े या बिना दीक्षा लिये हुए 4 किताब पढ़कर ही ज्योतिषी बन गया है और शास्त्रीय प्रमाणों की आवश्यकता उसे पता ही नहीं है। एक वर्ग ऐसा भी है जो केवल ज्यादा से ज्यादा कर्मकाण्ड या यज्ञ कराने में लगा रहता है या अपने माध्यम से ही रत्न बिकवाने में लगा रहता है। यह अनुचित है अगर इसका उद्देश्य धनयापन है।

वैदिक व्यवस्थाएँ -

एक योग्य ज्योतिषी को यह अवश्य ही ज्ञान होना चाहिए कि उसके क्लाइंट के संचित कर्मों के कारण इस जीवन में कितना कष्ट आना है और उनके शमन के लिए वास्तव में कितना पूजा - पाठ कराया जाना आवश्यक है। अगर 51 हजार जप संख्या से काम चल जाता है तो सवा लाख जप की सलाह नहीं देनी चाहिए। इससे क्लाइंट का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा, परन्तु ज्योतिषी का खुद का पाप का खाता बढ़ता चला जायेगा। अगर ऐसे बहुत सारे मामले हो गये तो उसकी विद्या का कौशल भी जाता रहेगा। एक अन्य उदाहरण लें। एक व्यक्ति ज्योतिषी से यह प्रश्न करता है कि आने वाली संतान लड़का होगा या लड़की? ज्योतिषी ने यदि लड़की बता दिया तो अगले दिन ही वह व्यक्ति अपनी पत्नी को हॉस्पिटल ले जाकर गर्भपात करवा देता है। हत्या का दोष किसे लगेगा? यह ऐसी ही बात है कि जज ने तो फाँसी का फैसला सुना दिया और जल्लाद ने फाँसी लगा दी। तो जल्लाद को दोष क्यों लगेगा? इसी कारण से मैंने तो मेरी परम्परा के शिष्यों से हमेशा से ही यह अपेक्षा की कि लड़का या लड़की जन्म से सम्बन्धित भविष्यवाणियाँ मत करो, पाप के भागी मत बनो। सर्जरी से होने वाले बच्चे की लग्न तभी तय करो जब यह निश्चय हो जाए कि बिना सर्जरी के सन्तान का जन्म नहीं हो सकता। ईश्वर के विधान से खिलवाड़ करना अच्छी बात नहीं है, इसका दोष ज्योतिषी को ही लगेगा।

वास्तुशास्त्र में तोड़-फोड़ -

एक वास्तुचक्र में द्वादश आदित्य जैसे बड़े देवता भी वास करते हैं अगर किसी ने गलत स्थान पर या मर्म स्थान पर कोई खम्भा गढ़ लिया है तो इसका परिणाम अवश्य ही आयेगा। कई ज्योतिषी बिना तोड़-फोड़ की वास्तु का विज्ञापन देते हैं। भला कैंसर का पोषण थोड़े ही किया जायेगा, उसे तो हटाना ही पड़ेगा। देवताओं को पीड़ा देने वाली दीवार या खम्भे को हटाना ही पड़ेगा। अगर अनाड़ीपन से गलत निर्माण किया है, शास्त्रीय सलाह नहीं ली है तो भुगताना तो आपको ही पड़ेगा। मिथ्या प्रचार या मिथ्या उपाय जीवन में सुख नहीं बढ़ाते बल्कि दुःख ही बढ़ाते हैं।

मुझे यह स्वीकार करते हुए बहुत दुःख है कि केवल ज्योतिष ऐसी विद्या है जिसे व्यवसाय में अपनाते समय किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं पड़ती है। जनता भी भोली-भाली है कि ज्योतिषियों से शिक्षा के प्रमाण नहीं माँगती। शिक्षा चाहे स्कूल कॉलेज में हो या किसी पहुँचे हुए गुरु द्वारा दी गई हो या परम्परा से मिली हो उसकी अपनी ही ताकत होती है। इस विषय में सरकार को अवश्य कुछ न कुछ कदम उठाने ही चाहिए और अशिक्षित ज्योतिषियों को काम करने से रोक देना चाहिए। अन्यथा वे ज्योतिष कम करेंगे और बाजारू उत्पाद अधिक बेचेंगे। इन उत्पादों में चीनी उत्पादों का हिस्सा सबसे बड़ा है।

सियार सिंगी, बगनखा या बिल्ली की जेर -

तंत्र के नाम से इन चीजों की बिक्री होती रही है। वन्य जीव संरक्षण के लिए बने कानून के अन्तर्गत यह अपराध है। जिस चीज पर रोक लगा दी जाए वह चोरी से ज्यादा मूल्य में बिकती है। सम्मोहन या वशीकरण के लिए कामिया सिन्दूर जैसी चीजें भी बिकती हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इनका बाजार बहुत बड़ा है। जब ज्योतिषी इन चीजों को बेचेगा तो इसका अर्थ यह हुआ कि उसे अपनी ज्योतिष विद्या पर भरोसा नहीं है।

फेंगशुई व चीनी उत्पादों का बाजार बहुत बड़ा है। वैदिक ज्योतिषी को ज्योतिष ही करनी चाहिए विक्रय नहीं।

 

कन्या राशि और आप

आपका व्यक्तित्व

राशि चक्र की छठी राशि कन्या है। यह पृथ्वी तत्व राशि है। जिस प्रकार पृथ्वी में सबको धारण करने व उत्पादन की क्षमता है, ठीक इसी प्रकार कन्या राशि के व्यक्ति रचनात्मक व धैर्यवान होते हैं। पृथ्वी सभी जीव-जन्तुओं को धारण करती है, जब इसे जोता जाता है तब यह ‘शस्य श्यामला’ अर्थात् धान्य आदि से परिपूर्ण हो जाती है। कन्या राशि के व्यक्ति भी अपनी सभी जिम्मेदारियों को बहुत कुशलतापूर्वक निभाते हैं, चाहे इन्हें श्रेय मिले या न मिले। पृथ्वी यथार्थ का भी प्रतीक है। कन्या राशि के व्यक्ति दूसरों के दर्द को बहुत गहराई से समझकर उसको दूर करने का प्रयास करते हैं, परन्तु जब इनकी बारी आती है तो पृथ्वी की ही भांति अपने दर्द को छुपाकर रखते हैं। दर्द की शिकायत करना इनके स्वभाव में आसानी से नहीं आ पाता। इस दर्द को समझना इनको एक अच्छा मनोवैज्ञानिक सिद्ध करता है।

धान्य और धातुओं को उगलने वाली पृथ्वी अपने भीतर सालों तक लावे को समेट कर रखती है और एक दिन अचानक न सह पाने के कारण ‘ज्वालामुखी’के रूप में फट पड़ती है, ऐसे ही इस राशि के व्यक्तियों का स्वभाव होता है। यह कष्ट और अन्याय चुपचाप सहते हैं और अचानक एक दिन विद्रोह कर देते हैं, उस विद्रोह में कौन जलेगा, कौन नहीं, यह सोचना उनके विचार का हिस्सा नहीं बन पाता।

यह द्विस्वभाव राशि है। यह स्वभाव कन्या राशि के व्यक्तियों में भी देखने को मिलता है। कभी तो यह बहुत ही भावुक हो जाते हैं और दूसरे ही पल कठोर हृदय बन जाते हैं। ‘पल में तोला पल में माशा’ की इनकी प्रवृत्ति होती है परन्तु वास्तव में जरूरत मंद व्यक्ति सदैव इनका स्नेह पात्र रहता है।

कन्या राशि के स्वामी ग्रहों में ‘राजकुमार’कहे जाने वाले कोमल, सुकुमार, बुद्धिमान, गणितज्ञ, वाक्पटु, रचनात्मक, शिल्पी, मार्केटिंग कला में निपुण व साहित्यकार बुध हैं। बुध के यही गुण कन्या राशि के व्यक्तियों में होते हैं। इनकी वाक्पटुता इन्हें तार्किक भी बनाती है, यह बातों को तर्कपूर्ण तथ्य के रूप में प्रस्तुत कर विजय हासिल करते हैं। इनकी विश्लेषण शक्ति अद्भुत होती है और किसी भी विषय का गहराई से अध्ययन कर उस पर विस्तृत टिप्पणी करने वाले होते हैं। इनका उर्वर मस्तिष्क नित नए विचारों को जन्म देकर उन्हें मूर्त रूप देने में सक्षम होता है।

यह व्यक्ति अपने बुद्धि बल से एक अच्छे कार्यकर्ता तो हो सकते हैं परन्तु नेतृत्व शक्ति का इनमें कभी-कभी अभाव होता है।

इस राशि का चिह्न ‘कुंवारी कन्या’है। कन्या की सुकोमलता इनके व्यवहार में स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। यही कोमलता इन्हें दूसरों के प्रति ममतावान बनाती है।

इस राशि के व्यक्तियों की कोमलता कभी-कभी नकारात्मक रूप में प्रकट होती है। किन्हीं क्षणों में यह एक संस्कारित एवं दृढ़ आत्म विश्वासी होते हैं व किन्हीं क्षणों में इनका स्वयं पर से ही विश्वास उठने लगता है और यह हताश हो जाते हैं। कन्या राशि के व्यक्ति अत्यधिक सफाई पसंद होते हैं। व्यक्तिगत स्वास्थ्य और सौंदर्य के प्रति ये संवेदनशील होते हैं। इस राशि में हस्त, चित्रा और स्वाति नक्षत्र सम्मिलित होते हैं। इसलिए कन्या राशि के व्यक्तियों के जीवन में इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों चंद्रमा, मंगल एवं राहु की महादशाएं अवश्य आती हैं। कन्या राशि शरीर में ‘कमर’का प्रतिनिधित्व करती है।

कन्या राशि के व्यक्तियों को अपने व्यक्तित्व के नकारात्मक पहलू को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

 

लहसुनिया या कैट्स आई

केतु के लिए लहसुनिया पहनाया जाता है। कैट्स आई का मतलब बिल्ली की आँख। क्योंकि कैट्स आई को देखने से बिल्ली की आँख जैसी चमक नजर आती है। इसका रंग स्लेटी, पीला, सफेद, हरा या भूरा होता है परन्तु स्लेटी रंग सबसे ज्यादा चलता है। यह सिलीकॉन डाइ-ऑक्साइड का बना होता है। आकार छोटा है तथा इसमें रेशे होते हैं।

यह बहुत चिकना रत्न है और जब इसमें गड्डे या छेद हो जाते हैं या धब्बे पड़ जाते हैं तो इसे त्याग दिया जाता है। जब विभिन्न कोणों से लहसुनिया को देखते हैं तो ऐसा लगता है कि जैसे बिल्ली की आँख घूम रही है। धब्बे वाले लहसुनिया अशुभ परिणाम देते हैं या रत्न पर रेखाएँ पड़ जाएं या दाग हो तो वह भी अशुभ परिणाम देते हैं।

इसको मणियों की श्रेणी में लिया गया है। वैदूर्य मणि या विडालाक्ष नाम प्रचलन में रहे हैं। कठोर रत्नों को मणि कहा जाता है। आमतौर से मणियों पर खरोंच डालना भी आसन नहीं होता बल्कि मणियाँ ही दूसरी वस्तुओं पर खरोंच डाल सकती हैं। ऐसा इसलिए होता है कि मणियों का घनत्व अधिक होता है। लहसुनिया का आपेक्षित धनत्व 2.65 और वर्तनांक 1.55 के आसपास होता है।

केतु जब केन्द्रीय या त्रिकोण में हों या छठे, आठवें या ग्यारहवें भाव में हों तो लहसुनिया धारण किया जा सकता है। केन्द्र के स्वामी के साथ यदि केतु भी केन्द्र में हों तो लहसुनिया धारण करना लाभदायक होता है। केतु जब अपनी नीच राशियों में हों तब लहसुनिया ज्यादा अधिक फल देता है। केतु की दशाओं में भी लहसुनिया धारण कराया जाता है। परन्तु लहसुनिया को धारण करने से पूर्व विद्वान ज्योतिषी की सलाह अवश्य लिया जाना चाहिए।

 

स्ति्रयाँ व वास्तु शास्त्र

सास बहू के संबंधों को वास्तु शास्त्र तथा ज्योतिष की सहायता से नियंत्रित किया जा सकता है। यदि शास्त्रीय नियमों का साधारण सा प्रयोग भी घरों में किया जाए तो रिश्तों में मधुरता लाई जा सकती है।

जैसे विवाह योग्य युवक-युवतियों की जन्म पत्रिका में राशि मिलान, लग्न मिलान, नक्षत्र मिलान इत्यादि किया जाता है। प्रत्यक्ष रूप से वास्तु में भी ऐसा किया जा सकता है। यह समझना जरूरी है कि वास्तु शास्त्र के हिसाब से किस स्त्री को भूखण्ड के किस भाग में सोना-बैठना चाहिए।

यदि गृहस्वामी दक्षिण दिशा में शयन करते हैं तो निश्चित है कि गृहस्वामिनी भी दक्षिण दिशा में ही शयन करेंगी। दक्षिण दिशा में सिर करके उत्तर दिशा में पैर करके सोना प्रशस्त माना गया है। मानव शरीर भी एक छोटे चुम्बक की भांति कार्य करता है। शरीर का उत्तरी धु्रव सिर है तथा दक्षिणी धु्रव पैर है। शरीर के उत्तरी धु्रव का भौगोलिक दक्षिण और शरीर के दक्षिण धु्रव का भौगोलिक  उत्तर की ओर होना मनुष्य की चिंतन प्रणाली को नियंत्रित करता है। शरीर की बहुत सारी प्रणालियाँ विद्युत चुम्बकीय प्रभावों से नियंत्रित होती हैं अतः दक्षिण में सिर करके सोना पृथ्वी के विद्युत चुम्बकीय प्रभावों से समन्वय बैठाना है। इससे स्वभाव में गम्भीरता आती है। व्यक्ति स्थिरमति हो जाता है। दक्षिण दिशा व्यक्ति के आत्मविश्वास में वृद्धि करती है। दक्षिण दिशा में स्थित व्यक्ति नेतृत्व क्षमता से युक्त हो जाता है अतः गृहस्वामिनी या कोई अन्य स्त्री यदि दक्षिण दिशा में शयन करती है तो वह अधिक प्रभावशाली हो जाती है। इसका यह अर्थ भी हुआ कि अपेक्षाकृत कनिष्ठ स्ति्रयाँ, चाहे वह उम्र से कनिष्ठ हो चाहे दर्जे से, उन्हें दक्षिण में शयन नहीं करना चाहिए। 

जो स्ति्रयाँ अग्निकोण में शयन करती हैं, उनका दक्षिण में शयन करने वाली स्ति्रयों से मतभेद रहता है। अविवाहित युवक या युवतियाँ अग्निकोण में सीमित समय के लिए शयन करें परंतु यह कोण अध्ययन व शोध के लिए प्रशस्त है।

भूखण्ड के वायव्य कोण में जो भी स्ति्रयाँ शयन करती हैं, उनके मन में उच्चाटन का भाव आने लगता है और वे अपना अलग घर बसाने के सपने देखने लगती हैं। इस स्थान पर विवाह योग्य कन्याओं को तो सोना चाहिए, परंतु नई नवेली बहू को यह स्थान कदापि नहीं देना चाहिए। यदि पुरुष वायव्य कोण में बहुत अधिक दिनों तक शयन करें तो यह भी ठीक नहीं है।

यदि घर में कई बहुएं हों तो वास्तु शास्त्र का उचित प्रयोग करके तालमेल बनाए रखा जा सकता है।

भवन का सबसे शक्तिशाली भाग दक्षिण दिशा होता है। इस भाग में सास को ही सोना चाहिए। यदि सास स्वर्गवासी हो तो  बड़ी बहू को सोना चाहिए। नम्बर दो बहू को (सास न होने पर) दक्षिण-पश्चिम में शयन करना चाहिए। नम्बर तीन बहू को पश्चिम दिशा में शयन करना चाहिए। नम्बर चार बहू को पूर्व दिशा में शयन करना चाहिए। यदि और भी छोटी बहू हो तो ईशान कोण में शयन करें। यदि दक्षिण में सिर करके सोने की सुविधा नहीं मिले तो पूर्व में सिर करके तथा पश्चिम में पैर करके शयन किया जा सकता है।

यदि वरिष्ठ बहू दक्षिण में शयन करती है तो उसे पति के बाईं ओर शयन करना चाहिए। यदि कोई बहू अग्निकोण में शयन करती है तो उसे पति के दाईं तरफ सोना चाहिए और सभी मामलों में पत्नी को पति के बाईं तरफ सोना चाहिए।

घर में बहुओं के होते हुए सास को पूर्व दिशा या ईशान कोण में शयन नहीं करना चाहिए। सास या बड़ी बहू के अशक्त हो जाने की स्थिति में उन्हें ईशान कोण में स्थान दिया जा सकता है। वृद्धावस्था में किसी भी स्त्री को अग्निकोण में शयन नहीं करना चाहिए।

अग्निकोण में अग्नि कार्य से स्ति्रयों की ऊर्जा का सही परिपाक हो जाता है। इस स्थान पर अग्निहोत्र कर्म भी प्रशस्त है। अग्निकोण में यदि स्ति्रयाँ तीन घंटे भी बिताकर पाक कर्म करें तो उनका जीवन उन्नत होता है।

उत्तराभिमुख मकानों में उत्तर दिशा से ईशान कोण पर्यन्त पूर्वाभिमुख मकानों में पूर्व दिशा मध्य से अग्निकोण पर्यन्त, दक्षिणाभिमुख मकानों में दक्षिण दिशा मध्य से नैर्ऋत्य कोण पर्यन्त तथा पश्चिमाभिमुख मकानों में पश्चिम दिशा मध्य से वायव्य कोण पर्यन्त यदि बाह्य द्वार न रखा जाए तो स्ति्रयों में अधिक समन्वय होता है।

 

तिथि और वार का संयोग करता है चमत्कार

कुछ मामलों में तिथि और वार का संयोग बड़े फल प्रदान करता है। यह फल शुभ या शुभ दोनों आ सकते हैं। इन संयोगों की सारणी बनाकर घर में रख लेनी चाहिए जिससे कि किसी काम को करने में सफलता या असफलता का ज्ञान हो जाये।

पहली तिथि को नंदा, दूसरी तिथि को भद्रा, तीसरी तिथि को जया, चौथी तिथि को रिक्ता कहते हैं। यही क्रम छठी से दसवीं तिथि व ग्यारहवीं तिथि से पूर्णिमा तक होता है। कृष्ण पक्ष में भी ऐसी गणना की जा सकती है।

सिद्धि योग - रविवार को हस्त नक्षत्र, सोमवार को मृगशिरा, मंगल को अश्विनी, बुधवार को अनुराधा, गुरुवार को पुष्य, शुक्रवार को रेवती और शनिवार को अगर रोहिणी नक्षत्र पड़े तो सारे काम सिद्ध होते हैं।

दग्ध योग - इन योगों में कार्य बिगड़ जाते हैं। सोमवार को एकादशी तिथि पड़े, शनिवार को द्वादशी, गुरुवार को छठी, बुधवार को तृतीया, अष्टमी को शुक्रवार, मंगलवार को पंचमी और नवमी को रविवार पड़े तो दग्ध योग होता है। इसमें काम नहीं बनते। कुछ और नक्षत्र भी ऐसे ही हैं। रविवार को भरणी, सोमवार को चित्रा, मंगलवार को उत्तराषाढ़ा, बुधवार को धनिष्ठा नक्षत्र, बृहस्पतिवार को उत्तराफाल्गुनी, शुक्रवार को ज्येष्ठा नक्षत्र और शनिवार को रेवती नक्षत्र हो तो यह भी दग्ध योग कहलाते हैं और कामकाज में बिगाड़ हो सकता है। एक सारणी दी जा रही है जिसमें नक्षत्र और वारों का मेल बताया गया है। उनके परिणाम भी बताये गये हैं।

योग     उत्पात              मृत्यु                 कॉण                             सिद्ध

रवि         विशाखा      अनुराधा                ज्येष्ठा                                      मूल

सोम        पूर्वाषाढ़ा                उत्तराषाढ़ा             अभिजीत                                श्रवण

मंगल       धनिश्ठा                 शतभिषा                पूर्वा भाद्रपद                           उत्तरा भाद्रपद

बुध          रेवती                      अश्विनी                  भरणी                                     कृत्तिका

गुरु          रोहिणी                   मृगशिरा                 आर्द्रा                                       पुनर्वसु

शुक्र         पुष्य                        श्लेषा                        मघा                                        पूर्वा फाल्गुनी

शनि        उत्तराफाल्गुनी       हस्त                        चित्रा                                      स्वाति

 

 

 

विवाह मुहूर्त्त

गत 16 फरवरी को इस देश में हजारों विवाह सम्पन्न हुए, क्यों कि बसंत पंचमी थी और उसे अबूझ सावा माना जाता है। शास्त्रीय दृष्टिकोण से बृहस्पति अस्त हों या शुक्र अस्त हों तथा उनका बाल्यत्व या वृद्धत्व काल हो तो विवाह नहीं किये जाने चाहिए। परन्तु अबूझ सावे के नाम से या अबूझ मुहूर्त्त के नाम से जन साधारण समस्त नियमों का उलंघन करते हुए भी विवाह आदि कृत्य में संलग्र होते हैं।

क्या है अबूझ मुहूर्त्त -

अबूझ मुहूर्त्त या अबूझ सावा या स्वयं सिद्ध मुहूर्त्त आमतौर से शुभ माने गये हैं और ऐसा माना जाता है कि उन दिनों पड़ने वाली ग्रह स्थितियाँ शुभ होती हैं। विद्वानों ने साढ़े तीन मुहूर्त्त ऐसे मान रखे हैं जिनमें अन्य मुहूर्त्त निकालने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। हिन्दू विक्रम संवत् के अनुसार चैत्र शुक्ला प्रतिपदा, विजयादशमी, अक्षय तृतीया और कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा का आधा भाग साढ़े तीन अबूझ मुहूर्त्तों में माने गये हैं। परन्तु ऐसा मानते ही कुछ गलतियाँ हो जाती हैं। कम से कम विवाह और वास्तुशास्त्र सम्बन्धी मुहूर्त्त में अत्यंत सावधानी बरतनी आवश्यक है। वास्तु शास्त्र के मुहूर्त्तों में तो चक्र शुद्ध इत्यादि के विधान हैं अतः उपलब्ध कई मुहूर्त्तों में से मुश्किल से ही ग्रह आरम्भ और ग्रह प्रवेश के मुहूर्त्त मिलते हैं। प्राय सामान्य ज्योतिषी वृष वास्तु के सिद्धान्त या चक्र शुद्धि के सिद्धान्त की उपेक्षा करके ही मुहूर्त्त बता देते हैं जो कि गलत पद्धति है। पण्डित जी का कुछ भी नहीं जाता परन्तु विवाहित जोड़े का जीवन नष्ट हो सकता है या मकान के परिणाम अशुभ हो जाते हैं।

दिन में विवाह शास्त्र सम्मत है। सामाजिक परिस्थितियों या विधर्मी शासनों की वजह से रात्रि में विवाह सम्पन्न होने लगे हैं। दिन में विवाद शास्त्र सम्मत है और अगर दिन में अभिजित मुहूर्त्त को बढ़ावा दिया जाये तो इससे कई ग्रहों के दोष स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं। दोहपर के अभिजित मुहूर्त्त के साथ-साथ मुहूर्त्त शास्त्र के अन्य पक्षों पर भी ध्यान दिया जाना उचित रहेगा। गुरुद्वारों में हमेशा ही दोहपर में विवाह सम्पन्न होते हैं जो कि एक अच्छी परम्परा है। यदि भारत के सभी समाज रात्रि विवाह की वर्जना करने लगें तो बारातों के शाम के खर्चें, शराब का प्रयोग व भारी भरकम पार्टियों व बैण्ड बाजों के खर्चों से बचा जा सकता है। हम सभी जानते हैं कि शराब पीकर नाचने वालों की उन्मुक्त भीड़ किसी भी विवाह मुहूर्त्त का पालन नहीं होने देती और प्रायः हर विवाह मुहूर्त्त अवधि के बाद ही होता है। इसके दुष्परिणाम भी आते हैं। कई पण्डित लालच में आकर कई-कई विवाह एक रात्रि में ही सम्पन्न करवा देते हैं। यह भी अनुचित है। कई बार जिसके घर में विवाह है वह पण्डित जी को ही बाध्य कर देता है कि मुझे तो दस दिन में शादी करनी हैं इन 10 दिनों में ही कोई मुहूर्त्त निकाल दो, यह भी अनुचित है। पण्डित जी को मुहूर्त्त निकालने की स्वतंत्रता होनी ही चाहिए और पण्डितों को भी ग्रहों की इच्छा के विरुद्ध कार्य नहीं करना चाहिए। उन्हें तो गलत मुहूर्त्त में कर्मकाण्ड करने से भी इंकार कर देना चाहिए।

मुहूर्त्त शास्त्र भारतीय ज्योतिष का एक सशक्त उपकरण है। कई बार यह घटनाओं के प्रवाह को परिवर्तित कर देता है। कई बार जन्म पत्रिकाओं के दोषों को अच्छा मुहूर्त्त विरल कर देता है। अतः इस पक्ष का अत्यधिक सम्मान किया जाना चाहिए। यह उन ऋषियों की अद्भुत खोज है जो वे हजारों वर्ष पूर्व ही हमको दे गये हैं।