भारत राष्ट्र कई समस्याओं से घिरा हुआ है। वृषभ लग्र की इस जन्म पत्रिका में अभी चन्द्रमा की महादशा और शनि की अन्तर्दशा चल रही है और इन्हीं गर्मियों में बुध की अन्तर्दशा शुरु हो जाएगी, जो कि लगभग 2022 के अंत तक चलेगी। 15 अगस्त 1947 वाली जन्म पत्रिका में वर्ष लग्न धनु है और मुंथा मिथुन राशि में है। यह मुंथा 15 अगस्त के बाद कर्क राशि में चली जाएगी, वह राशि जहाँ भारत की मूल जन्म पत्रिका के तीसरे भाव में पाँच ग्रह इकट्ठे बैठे हैं। यानि कि कुछ बड़ा होने वाला है।

वर्तमान समस्याओं का कारण अस्तंगत शनि की अन्तर्दशा है जोकि दिसम्बर 2019 से शुरु हुई और जो जुलाई 2021 तक चलेगी। भाग्य के स्वामी के अस्त होने का अर्थ, भाग्य अस्त होना। राष्ट्र ने क्या पीड़ा नहीं झेली है? बहुत बड़ी संख्या में नागरिक बीमार हुए, लाखों मृत्यु हो गई तथा अर्थव्यवस्था पर भारी असर आया। यद्यपि कोरोना काल में संसार के हर प्राणी पर असर आ चुका है। गलियों के कुत्ते भूखे मर गये और पंछियों को पूरा दाना नहीं मिला। परन्तु एक राष्ट्र के संचालन में आगे तक आने वाले दूरगामी परिणामों की चिन्ता सरकार व जनता को करनी पड़ती है। एक राष्ट्र प्रमुख को करोड़ों लोगों के भविष्य को ध्यान में रखकर बहुत सारे समझौते करने होते हैं।

क्या होगा भारत की बुध अन्तर्दशा में

 

गंभीर समस्याओं के बाद भी भारत की पद-प्रतिष्ठा बढ़ेगी। संचार माध्यमों में हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर में क्रांतिकारी प्रगति होगी। स्पेस टेक्नोलॉजी में भारत नये कीर्तिमान स्थापित करेगा। रक्षा उत्पादन बढ़ेंगे। जनसंख्या नियंत्रण व नागरिकता अधिनियम को लेकर सरकार थोड़ी सख्ती बरतने वाली है। इस अन्तर्दशा काल में ही शनिदेव मकर राशि से कुम्भ राशि में आ जाएंगे। कुम्भ राशि शनि देव की अपनी राशि है जिसके कारण केन्द्रीय सत्ता तमाम अपवादों के बाद भी मजबूत होगी और कठोर निर्णय लेगी। मेदिनी ज्योतिष के अन्तर्गत मंगल, शनि और बुध का केन्द्रीय प्रभाव अन्तर्राष्ट्रीय मामलों में नई घटनाओं को जन्म देने वाला होगा, परन्तु वह बाद की बात है, अभी तो हमें उस बुध की अन्तर्दशा की चर्चा करनी है जिसका सम्बन्ध देश की आर्थिक समस्याओं से है और उस बुद्धिजीवी वर्ग से है जो आलोचना के लक्ष्य को लेकर तरह-तरह के कुतर्क गढ़ते रहते हैं।

15 अगस्त के बाद भारत की वर्ष लग्न में मुंथा वहाँ रहेगी जहाँ बुध सहित 5 ग्रह स्थित हैं, उधर जुलाई से ही बुध अन्तर्दशा प्रारम्भ हो चुकी होगी। इस अवधि में भ्रमित या निहित स्वार्थ वाले कथित बुद्धिजीवियों की फौज सरकार और प्रधानमंत्री को लक्ष्य बनाकर लगातार कार्यवाहियाँ करती रहेगी। सरकार का शिंकजा सोशल मीडिया पर कसा जायेगा और इसमें न्याय पालिकाओं की भूमिका सामने आने वाली है, परन्तु इस सम्बन्ध में भविष्यवाणी यह है कि जब देश के अगले लोकसभा चुनाव होंगे उस समय भारत चन्द्रमा में शुक्र अन्तर्दशा में चल रहा होगा और ट्वीटर जैसे संस्थाएँ वह सब नहीं कर पाएंगी, जैसा कि उन्होंने अमेरिका के आम चुनावों के समय किया था। हाँ, कानूनी लड़ाईयाँ चलती रहेंगी। भारत की जन्म पत्रिका में शुक्र लग्नेश हैं जो कि तीसरे भाव में होने के कारण दुस्साहसी कदम उठाने की प्रेरणा देते है। तो दूसरी तरफ छठे भाव के भी स्वामी है जो कि रोग, शत्रु और ऋण बढ़ाया करते हैं। अर्थ व्यवस्था के जो संकेत हैं उसके अनुसार तो सरकार को कितना भी टैक्स कलेक्शन हो जाए, डेफिसिट फाइनेन्सिग के सिद्धान्तों पर काम करना ही होगा। अब अगर नोट ज्यादा छपेंगे तो मँहगाई और मुद्रा स्फीति को नियंत्रण में लाना बहुत बड़े कौशल का कार्य हो जाएगा। सरकार के सामने यह समस्या रहेगी कि बड़ी संख्या में छोटे दल केन्द्र की कई नीतियों से सहमत नहीं रहेंगे। ऐसे दल एनडीए के अन्दर भी रहेंगे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की समस्याओं का कारण

 

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वृश्चिक लग्न के हैं और सितम्बर के बाद उनकी वर्ष लग्न मकर रहेगी और मुंथा तुला राशि में आ जाएगी। सितम्बर तक वर्ष लग्न तुला है और मुंथा कन्या राशि में है। उनके जन्म दिन से बदलने वाली वर्ष लग्र में मुंथा संकेत  करती है कि उनको भारत विरोधी और नरेन्द्र मोदी अन्तर्राष्ट्रीय लॉबी से सीधे संघर्ष में आ जाना होगा। अमेरिका, कनाड़ा और ब्रिटेन से गुपचुप होने वाली आर्थिक मदद को रोकना होगा। जासूसी संस्थाओं का नेटवर्क बहुत ज्यादा बढ़ाना पड़ेगा। वर्ष लग्र से जो मुंथा दशम भाव में एक वर्ष तक रहेगी, जो कि प्रधानमंत्री की प्रतिष्ठा को बढ़ाने वाली है, दूसरी तरफ वही मुंथा उनकी जन्म लग्र से बारहवें होने के कारण भारत के अन्दर और बाहर बढ़ती हुई आपराधिक कोशिशों को बढ़ावा देगी। निश्चित ही भारत सरकार का दूरसंचार मंत्रालय, गृह मंत्रालय और विदेश मंत्रालय चिन्ता में रहेगा तो उतनी ही चिन्ता भारतीय जनता पार्टी की मीडिया सेल को भी रहेगी। कुम्भ राशि के शनि पर्यन्त, जो कि ढाई वर्ष तक रहेंगे, प्रधानमंत्री को बहुत ज्यादा संघर्ष की स्थिति में ला देंगे। चूंकि ढाई वर्ष तक शनि लग्न को देखते रहेंगे, प्रधानमंत्री के चेहरे पर बुढ़ापे के लक्षण बड़ी तेजी से आएंगे।

राष्ट्र की समस्याओं में सेन्ट्रल विस्टा और अयोध्या का राम मंदिर का योगदान है। जो विषय सम्पूर्ण राष्ट्र को प्रभावित करने वाले हो गये हैं, उनका असर केन्द्रीय सरकार और प्रधानमंत्री पर आना स्वभाविक है। पुराना संसद भवन तब तक ठीक था, जब तक कि उसका ईशान कोण बढ़ा हुआ था। नई योजना शुरु होते ही पुराने और नये प्रोजेक्ट के एक ही वास्तु पुरुष हो गये और ईशान कोण कट जाने के कारण अर्थात् वास्तुपुरुष का सिर उस भूमि में नहीं होने के कारण अनन्त मतभेद का कारण बन गया है। मुद्दा बहुत छोटा है परन्तु दुष्प्रचार को हवा मिली। यह मुद्दा कुछ ना कुछ नुकसान करेगा ही।

रामलला के मंदिर में भी यही हुआ है। 67 एकड़ की जगह 108 एकड़ भूमि पर काम हो रहा है। जैसे एक बच्चे के शरीर विस्तार के साथ-साथ शरीर में स्थित आत्मा और चैतन्य का भी विस्तार होता चला जाता है। इसी तरह से अयोध्या में बन रहे नये राममंदिर में वास्तु पुरुष ने अपना आकार बढ़ा लिया है। वहाँ के निर्माता, आर्किटेक्ट और योजनाकार इस तथ्य को स्वीकार नहीं कर रहे। होना यह चाहिए कि अब जितनी भी भूमि अंतिम रूप से राममंदिर के लिए रखी गई है, उस पर वास्तुचक्र की स्थापना करके नये वास्तु पद विन्यास के अनुसार आवश्यक संशोधन करे जाएं। बढ़ी हुई भूमि के कारण गर्भ गृह ही नहीं बल्कि अन्य भवन भी वास्तु पुरुष के अन्य पदों में स्वमेव ही आ गये हैं और आय-व्यय सिद्धान्त के अनुसार सारी गणित बदल गई है। वहाँ के योजनाकार सतही रूप से नियमों का पिष्ट प्रेषण कर रहे हैं परन्तु वास्तु सम्बन्धी गंभीर गलतियाँ कर रहे हैं। इसीलिए तमाम कोशिशों के बाद भी विवाद थमने का नाम ही नहीं ले रहे हैं। अगर सरकार ने या राम मंदिर ट्रस्ट ने ध्यान नहीं दिया तो अंतिम नुकसान वर्तमान सरकार को ही होने वाला है।

 

मीन राशि और आप

आपका व्यक्तित्व

मीन राशि चक्र की अंतिम राशि है। यह जल तत्व राशि है। जिस प्रकार निर्मल व सौम्य जल व्यक्ति की प्यास बुझाकर उसे जीवन देता है ठीक उसी प्रकार मीन राशि के व्यक्ति भी विनम्र एवं सौम्य स्वभाव के होते हैं। मानवीय संवेदनाओं से पूर्ण होते हैं, जल की तरह जीवन देने की इनकी परोपकारी एवं सहानुभूमि पूर्ण प्रकृति  होती है। यह सबकी मदद भोलेपन से करते हैं व लोक हितैषी होते हैं और अपने भोलेपन से अक्सर लोगों की धोखाधड़ी के शिकार हो जाते हैं। जल का कार्य है बहना तथा अपने राह में आने वाली हर वस्तु को धोना। मीन राशि के व्यक्ति भी सहृदय होते हैं तथा व्यक्ति की जरुरत पता चलते ही उसी क्षण उसकी मदद के लिए चल पड़ते हैं, जैसे जल का प्रवाह असीमित एवं निरन्तर होता है, ठीक वैसे ही इस राशि के व्यक्तियों की कल्पनाएं भी असीमित होती हैं। यह द्विस्वभाव राशि है। द्विस्वभाव अर्थात दोहरा स्वभाव। इस राशि के व्यक्ति भी ऐसे ही होते हैं, ये कभी तो अपनी कामनाओं एवं अभिलाषाओं से अनभिज्ञ होते हैं और कभी इनके मन में अलौकिक कामनाएं होती हैं।

इस राशि के स्वामी देवगुरु बृहस्पति हैं। देवगुरु ज्ञान के कारक हैं। इस राशि के व्यक्ति भी ज्ञानी, ईश्वर में विश्वास रखने वाले होते हैं। गुरु परोपकारी हैं, भेदभाव से रहित हैं जिस प्रकार एक गुरु अपने सभी शिष्यों  को समान रूप से, बिना किसी भेदभाव के शिक्षा प्रदान करते हैं ठीक ऐसे ही मीन राशि के व्यक्ति भी सभी से समान व्यवहार करने वाले होते हैं। बुराई के प्रत्युत्तर में भी अच्छाई करना इनकी विशेषता होती है। ज्ञानी गुरु व्यवहार कुशल, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता, रूढ़ियों का पालन करने वाले हैं। इस राशि के व्यक्ति भी बातचीत की कला में निपुण,समझदार व नीति-निपुण होते हैं। अतः यह व्यक्ति अच्छे सलाहकार होते हैं परन्तु अधिक ज्ञानी होने का दंभ भी इस राशि के व्यक्तियों में आ जाता है। ये आत्मश्लाघी व डींगे मारने वाले होते हैं और कभी-कभी आशा से अधिक आत्मविश्वासी दिखने का प्रयास करते हैं।

इस राशि का चिन्ह जल क्रीड़ा करती दो मछलियाँ हैं। जिस प्रकार मछली अकेली अपनी ही दुनिया में तैरती  रहती है, उसी प्रकार इस राशि के व्यक्ति भी अपने कल्पना लोक में अकेले ही रहना चाहते हैं। इनका काल्पनिक लोक परीकथाओं का सा होता है जिसमें डूबकर यह व्यक्ति जीवन की वास्तविकताओं से दूर चले जाते हैं। जिस प्रकार मछली पानी से बाहर निकाली जाने पर तड़प कर मर जाती है ठीक उसी प्रकार मीन राशि के व्यक्ति जिनसे भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं, उनसे दूर हो जाने पर उसको सहन नहीं कर सकते । यह राशि शरीर में दोनों पैर तलवे तथा पैर की उंगुलियों का प्रतिनिधित्व करती है।

                इस राशि में पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद और रेवती नक्षत्र आते हैं। अतःइस राशि के व्यक्तियों के जीवन में इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों गुरु, शनि तथा बुध की महादशाएं आ सकती हैं।

मीन राशि के व्यक्तियों को आत्मश्लाघा की प्रवृत्ति को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

तुला राशि के लिए रत्न

आपके लिए नीलम और मोती रत्न शुभ हैं।

1.  नीलम पहनने से आपके सुखों में बढ़ोत्तरी होगी, पद में भी बढ़ोत्तरी होगी, माँ और माता पक्ष दोनों से लाभ होंगे, शिक्षा का स्तर बढ़ेगा और परीक्षा में सफलता का प्रतिशत भी बढ़ जाएगा, अचल संपत्ति और साधन बढ़ेंगे। आपकी संतान यदि हैं तो उसको भी इसका लाभ मिलेगा और यदि नहीं हैं तो जब भी संतान होगी उससे आपको लाभ मिलेगा।

आप पाँच रत्ती का नीलम, शुक्ल पक्ष के शनिवार को, अपने शहर के सूर्योदय के समय से एक घंटे के भीतर, सीधे हाथ की मध्यमा अँगुली में पहनें। (सूर्योदय का समय आप अपने शहर के स्थानीय अखबार में देख सकते हैं)। अँगूठी पहनने से पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, गंगाजल, शहद) से अँगूठी को धो लें। इसके बाद ॐ शं शनैश्चराय नमः मंत्र का 108 बार जप करें। इसके बाद ही रत्न धारण करें।

2. मोती पहनने से आपके काम करने की क्षमता बढ़ेगी, सम्मान बढ़ेगा, अधिकारी वर्ग से लाभ मिलेगा। आपके काम करने की योग्यता में भी बढ़ोत्तरी होगी, कार्यक्षेत्र में सफलता का प्रतिशत बढ़ जाएगा। आपको मिलने वाला सहयोग भी बढ़ जाएगा।

आप सवा पाँच रत्ती का मोती, चाँदी की अँगूठी में, शुक्ल पक्ष के सोमवार को, अपने शहर के सूर्योदय के समय से एक घंटे के भीतर, सीधे हाथ की अनामिका अँगुली में पहनें। (सूर्योदय का समय आप अपने शहर के स्थानीय अखबार में देख सकते हैं)। पहनने से पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, गंगाजल, शहद) से अँगूठी  को धों लें। इसके बाद ॐ सोम सोमाय नमः मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। इसके बाद ही रत्न धारण करें।

गर्भ काल में ग्रहों की भूमिका

परसराम वशिष्ठ

ज्योतिष वेद का एक महत्वपूर्ण अंग है। चारों वेदों में गूढ़ार्थों को समझने के लिये वेदागों में पारंगत होना आवश्यक है। जिस प्रकार हमारे शरीर के प्रमुख छह अंग हैं, वेदों के भी शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द और ज्योतिष आदि छह अंग माने गए हैं, जिन्हें वेदांग कहा जाता है। वेदांगों में ज्योतिष को वेद पुरुष अर्थात् वेद भगवान का नेत्र माना गया है। प्राचीन मनीषियों ने अपने संदेशों में स्पष्ट कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को ज्योतिष का ज्ञान होना चाहिये क्योंकि यह विद्या ही एक ऐसी विद्या है जो व्यक्ति को भूत, भविष्य व वर्तमान के बारे में पूरी जानकारी देती है। मनुष्यों को आने वाली सभी अच्छी-बुरी घटनाओं के बारे में पहले से ही सभी जानकारी हमें नवग्रहों के आधार पर मिल जाती है, इसलिये इस विद्या को ज्योतिरूपी चक्षु भी कहा जाता है। ग्रहों का असर मानव शरीर की उत्पत्ति पर भी पड़ता है। जब मनुष्य उत्पन्न हो जाता है तो ग्रहों के अंश प्रत्येक मानव शरीर के अंदर रहते हैं।

मानव का शरीर माता के गर्भ में नौ महीने और नौ दिन में तैयार होता है और प्रत्येक महीने के अलग-अलग ग्रह स्वामी होते हैं। राहु-केतु को छोड़कर, क्योंकि राहु-केतु छाया ग्रह हैं, ग्रह नहीं परंतु छाया का भी प्रकृति पर प्रभाव पड़ता है, इसलिये इन्हें ग्रहों में शामिल किया गया है।

मनुष्य शरीर की उत्पत्ति -

प्रथम महीना - प्रथम महीना जब गर्भ ठहरता है तो उस महीने के स्वामी शुक्र होते हैं। उस महीने में गर्भ के अंदर केवल वीर्य रहता है और वीर्य के कारक ग्रह शुक्र होते हैं। शुक्र जल तत्व ग्रह हैं, इसलिये प्रथम महीने वीर्य में स्थित शुक्राणु स्त्री के डिंबाणु में अवस्थित रज से मिलकर एक अंडे का रूप धारण कर लेता है, इसीलिये प्रथम महीने गर्भ का पता नहीं चल पाता है।

द्वितीय महीना - द्वितीय महीने के स्वामी मंगल होते हैं। मंगल अग्नि तत्व ग्रह हैं, इसलिये मंगल उस रज-वीर्य रूपी अंडे में सघनता लाते हैं और यह मांस का लोथड़ा सा बन जाता है। जिससे माता के शरीर में पित्त बढ़ने लगता है, इसीलिये दूसरे महीने में महिलाओं को उल्टी व चक्कर आना शुरु हो जाता है और बेचैनी बढ़ जाती है।

तृतीय महीना - तृतीय महीने के स्वामी बृहस्पति होते हैं। बृहस्पति आकाश तत्व प्रधान होते हैं तथा जीव अर्थात् प्राणों के कारक भी माने जाते हैं। बृहस्पति उस मांस के लोथड़े में जीव का संचार कर लड़का या लड़की के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। शरीर के अंदर सबसे पहले गुप्त अंग ही बनते हैं जिसके कारण गर्भस्थ जीव की पुष्टि हो जाती है। बृहस्पति आकाश तत्व प्रधान होने के कारण उस गर्भस्थ जीव के शरीर का विकास करते हैं। गर्भस्थ शिशु की वृद्धि से गर्भाशय की ग्रंथियाँ सक्रिय हो जाती हैं और माता के शरीर के पित्ताधिक्य पर नियंत्रण होता है और गर्भवती महिला अद्भुत प्रसन्नता का अनुभव करती है।

चौथा महीना - चतुर्थ महीने के स्वामी सूर्य होते हैं। सूर्य हड्डी के कारक होते हैं, इसलिये चतुर्थ मास में उस मांस रूपी जीव के शरीर में अस्थियाँ बनने लगती हैं और शरीर में पृथक-पृथक अंगों का विकास होने लगता है।

पंचम महीना - पंचम महीने के स्वामी चंद्रमा होते हैं। चंद्रमा जल तत्व ग्रह हैं, इसलिये चंद्रमा उस शरीर के अन्दर पानी उत्पन्न कर देते हैं अर्थात् इस मास में गर्भस्थ शिशु के शरीर में रक्त संचरण होने लगता है और रक्तवाहिनियाँ विकसित होने लगती है और पांचवें महीने में शरीर नसों, मांसपेशियों व नाड़ियों से युक्त हो जाता है।

छठा महीना - छठे महीने के स्वामी शनि होते हैं, इसलिये गर्भस्थ शिशु के शरीर पर बाल उत्पन्न हो जाते हैं, क्योंकि शनि बालों के और स्वरूप के कारक ग्रह हैं, इसलिये छठे महीने में मानव की सुन्दरता, कुरूपता, गोरा या कालापन तैयार हो जाता है अर्थात् शरीर पर त्वचा का निर्माण होने लगता है।

सप्तम महीना - सातवें महीने के स्वामी बुध होते हैं। बुध बुद्धि के कारक हैं। सप्तम महीने का आधिपत्य बुध को इसीलिये मिला, क्योंकि इस मास में गर्भस्थ शिशु में बुद्धि का उदय होता है और वह स्वतः हिलने-डुलने लगता है। माँ के द्वारा ग्रहण किये गये भोजन आदि और मां के स्वभाव पर वह शिशु प्रतिक्रिया करने लगता है, इसलिये गर्भ के अंदर मानव को पूर्ण रूप से बुद्धि प्राप्त हो जती है। गर्भ के अन्दर बच्चा पूर्ण रूप से हमारी सभी बातों को समझने लगता है, इसलिये गर्भवती महिला के दैनिक  गर्भस्थ शिशु को बाहरी जगत की बातों की अनुभूति होने लगती है।

अष्टम महीना - अष्टम महीने के स्वामी गर्भवती महिला के लग्नेश होते हैं। वह कोई भी ग्रह हो सकते हैं, इसलिये अष्टम महीने में बहुत ही सावधानी बरतने की जरूरत होती है, क्योंकि महीने के स्वामी का पता नहीं होता है अर्थात् सभी के पास अपनी जन्म पत्रिका नहीं होती है। यदि अष्टम महीने में लग्नेश ग्रह पीड़ित हो जाये तो समय पूर्व प्रसूति की संभावना बढ़ जाती है और शिशु की मृत्यु भी हो सकती है। आठवें महीने में जन्मे बच्चे इसीलिये माँ को भारी होते हैं। किसी कारण से सप्तम महीने में शिशु जन्म ले लेता है तो उतना अशुभ नहीं माना जाता जितना कि अष्टम में माना जाता है। अष्टम महीना स्वयं माँ से जुड़ा है, स्वयं को कष्ट देता है इसलिये इस मास में जन्में शिशु के बचने की सम्भावना कम रहती है और इस महीने विशेष सावधानी की जरूरत होती है।

नवम महीना - नवम महीने के स्वामी चंद्रमा होते हैं और वह गर्भ के अंदर पेट में इतना पानी पैदा कर देते हैं कि शिशु आराम से हिल-डुल सके तथा आराम से जन्म ले सके।

दसवां महीना - दसवें महीने के स्वामी सूर्य होते हैं। सूर्य अग्नि ग्रह हैं, इसलिये पेट के अन्दर गर्मी पैदा करके शिशु को माता के शरीर से अलग कर देते हैं। वह जिन मांसपेशियों में जकड़ा होता है उनसे छूट जाता है और आराम से जन्म ले लेता है। इस प्रकार सातों ग्रहों का इस शरीर को बचाने में विशेष योगदान होता है।