उपाय ज्योतिष : कितनी सार्थक

पं.सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर

ज्योतिषियों के बीच भी यह चर्चा सुनने को मिल सकती है कि क्या कर्म करने की स्वतंत्रता है? क्या हम अपनी इच्छा से कोई कार्य कर सकते हैं? या सब कुछ पिछले जन्मों के कर्म के हिसाब से ही होता है। ऐसा गीता भी कहती है।

एक वर्ग ऐसा है जो यह सवाल करता है कि जब सब कुछ जन्म पत्रिका में लिखा ही है तो उपाय करने से भाग्य कैसे बदल जायेगा या कष्ट कैसे दूर हो जायेगा? बहुत सारे लोग उपाय ज्योतिष में विश्वास और अविश्वास की सीमा रेखा पर खड़े हैं। उन्हें मार्ग दर्शन की आवश्यकता होती है। मार्ग दर्शन वही कर सकता है जो सक्षम हो, जिसका शास्त्रों पर अधिकार हो और उसका अनुभव भी हो। ज्योतिष ही नहीं दर्शन शास्त्र पर भी पूर्ण अधिकार हो।

जिन महान ऋषियों ने ज्योतिष के होरा ग्रन्थ लिखे, उन्होंने ही उपाय ज्योतिष की प्रस्तावना भी की। उदाहरण के लिए पाराशर और नारद का नाम लिया जा सकता है। ऐसा नहीं है कि इन ऋषियों को भगवान विष्णु, कृष्ण और गीता जैसे उपदेशों का पता नहीं था। फिर भी उन्होंने प्रस्ताव किया। इसीलिए अवश्य ही गंभीर ज्योतिष वेत्ताओं के प्रस्तावों में सोच-समझ कर ही उपाय ज्योतिष की रचना की।

कर्मफल -

गीता में उल्लेख है कि जिसने कर्म किया है, उसका फल उसे भोगना ही होगा। कर्मयोग की शिक्षा यह है कि जो कर्म निष्काम भाव से ईश्वर के लिए किये जाते हैं वे बंधन उत्पन्न नहीं करते, परन्तु जो कर्म निष्काम भाव से नहीं किये जाते वे पुनर्जन्म का कारण बनते हैं। परन्तु गीता का विषय यह कभी भी नहीं रहा कि कर्म प्रभाव से जब पुनर्जन्म होता है तो वह कर्म किस रूप में फलीभूत होते हैं। ज्योतिष में यह समझने की चेष्टा की गई है कि गत जन्मों के कर्म वर्तमान जन्म में किस रूप में फलेंगे। इस सिद्धान्त को लगभग उन सभी महान ऋषियों ने प्रस्तावित किया है जो कि सर्वकालिक दार्शनिक भी थे। पाराशर सांख्य दर्शन को मानने वाले थे और सांख्य दर्शन को गीता में भी महत्त्व मिला है। हमें ध्यान रहे कि वेद - व्यास पाराशर के पुत्र थे, जिन्होंने महाभारत ग्रन्थ की रचना की। इस अर्थ में ज्योतिष और गीता दोनों ही कर्म के उपासक है। कर्मफल और पुनर्जन्म में विश्वास करते हैं। जहाँ एक ओर गीता कर्मफल के आधीन पुनर्जन्म के स्वरूप को परिभाषित नहीं करता वही ज्योतिष कर्मफल के आधीन यह परिभाषित करता है कि किस जन्म में कर्मफल किस रूप में प्राप्त होगा।

दार्शनिक दृष्टि से जहाँ त्रिगुणात्मक सृष्टि में विक्षोभ से जन्म होते हैं वहीं वेदान्त का मानना है कि माया से प्रभाव से सृष्टि उत्पन्न होती है या जन्म होती है। ज्योतिष इन विक्षोभ या विकारों को पहचानने का काम करती है और यह बताती है कि किस गुण की कमी या आधिक्य इस जन्म में उपलब्ध है या माना का कौन सा स्वरूप इस जन्म में प्रभाव दिशा रहा है।

मंत्र-मणि और औषधि -

मत्स्य पुराण के सहदेवाधिकार में एक संकेत मिलता है कि देवताओं को यज्ञ भाग अर्पित करो तो देवता पुष्ट होते हैं। यज्ञ भाग की प्रक्रिया में मंत्रानुष्ठान और उनका त्याग आवश्यक है। मणि या रत्न का प्रयोग भी ग्रहों को पुष्ट करने के लिए किया जाता है। इस तर्क को मानने का आधार यह है कि जन्म के समय सभी ग्रह अपना सम्पूर्ण अंश प्रदान नहीं करते। ज्योतिष से यह ज्ञान किया जा सकता है कि किस ग्रह ने क्या कमी रख दी है। उसी देवता को प्रसन्न करने के लिए उपाय बताये जाते हैं। जो ग्रह आवश्यकता से अधिक अंश प्रदान करते हैं, जिसका कि ज्ञान षड़बल पद्धति से किया जाता है, उन्हें तो शान्त किया जाता है एवं जिन ग्रहों ने कोई कमी रख दी है उसकी पूर्ति के लिए मंत्र, मणि और औषधि से अधिष्ठान किया जाता है। औषधि से तात्पर्य एलोपैथिक या आयुर्वेदिक औषधियाँ नहीं बल्कि यज्ञ समिधा के रूप में प्रयुक्त किये जाने वाले यज्ञ काष्ठ से है, जिसकी कि आहुतियाँ प्रदान की जाती हैं। सूर्य के लिए मदार, चन्द्रमा के लिए पलाश, मंगल के लिए खैर, बुध के लिए चिड़चिड़ा, गुरु के लिए पीपल, शुक्र के लिए गूलर, शनि के लिए शमी, राहु के लिए दूर्वा और केतु के लिए कुशा की समिधा प्रयुक्त की जाती है। कहीं - कहीं रत्नों की जगह कुछ जड़ भी प्रस्तावित की गई हैं। सूर्य के लिए बेल की जड़, चन्द्रमा के लिए खिरनी की जड़, मंगल के लिए अनन्त मूल की जड़, बुध के लिए विधारा की जड़, बृहस्पति के लिए केले की जड़, शुक्र के लिए सरपोंखे की जड़, शनि के लिए धतूरा, राहु के लिए सफेद चंदन और केतु के लिए अश्वगंधा की जड़ धारण करने के प्रस्ताव हैं। इनको लाने के दिन और नक्षत्र भी अलग-अलग तय हैं।

मंत्र-मणि या औषधियाँ प्रारब्ध को बदलने की क्षमताएँ नहीं रखती। घटनाएँ तो हो कर ही रहेंगी, केवल उनके प्रभाव को कम या ज्यादा किया जा सकता है। रत्न अधिकतम 10, 15 प्रतिशत से अधिक परिवर्तन नहीं ला सकते। रत्नों का असली उद्देश्य कॉस्मिक रेडिएशन के कैचमेंट एरिया को बढ़ाना है। गले में पहने रत्न इतना काम नहीं करते बल्कि अंगूठी में पहने रत्न अधिक काम करते हैं, क्योंकि वे नर्वस सिस्टम के ग्रहण करने वाले क्षेत्रों के नजदीक होते हैं।

स्वतंत्र इच्छा और कर्म - ऋषियों का एक वर्ग यह मानता है कि गत जन्मों के कर्मों को भोगने के अलावा भी कमर्ो्रं की एक कोटि ऐसी होती है, जिसका उद्देश्य ईश्वर की इच्छा का पालन करना है। ज्योतिष जगत में एक मान्यता प्रचलित है कि जिसके दशम भाव को या दशम भाव के अधिपति को किसी भी रूप में बृहस्पति प्रभावित कर लें तो उसके जीवन में ईश्वर की ओर ले जाने वाला एक बड़ा घटनाक्रम अवश्य आता है। व्यक्ति का सब कुछ बदल जाता है और वह जीवन में एक निर्णायक मोड़ पर पहँच जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहाँ स्वतंत्र इच्छा का कुछ अंश ईश्वर से प्रेरित होता है और व्यक्ति वही करता है जो उसके कल्याण में सहायक हो। आवश्यक नहीं कि जन्म-पुनर्जन्म के बंधन को काट देने वाला कोई मोड़ इसी जीवन में आ जाये, परन्तु 84 लाख योनियों में से एक मनुष्य योनि ही ऐसी है जिसमें स्वतंत्र इच्छा या फ्री=विल के माध्यम से किये गये कार्य के फलस्वरूप या तो अगला जन्म भी मानव योनि में हो, ऐसा कुछ किया जा सकता है, जिससे कि मोक्ष के लिए आवश्यक कर्मक्षय को सम्पादित किया जा सके। पुरुषार्थचतुष्टय के 4 स्तम्भ में से अर्थ और काम त्रिगुण में विक्षोभ या माया या विकार को या पुद्गल को बढ़ाने का काम करते हैं परन्तु अर्थ और काम को यदि धर्म से नियंत्रित कर लिया जाये तो पुरुषार्थ चतुष्टय की चौथी सीढ़ी तक पहुँचा जा सकता है। यह धर्म ही स्वतंत्र इच्छा या फ्री-विल है। धर्म का अर्थ है - नियम, संयम या अनुशासन। दुनिया के जितने भी संत - महंत है, वह सब इसी धर्म की पालना के लिए कार्य करते रहते हैं। उपाय ज्योतिष धर्म का ही एक उपकरण है, जिसमें पश्चाताप्, ग्लानि, क्षमा एवं पाप से मुक्ति के भाव समाहित रहते हैं।

उपाय ज्योतिष ऋषि प्रणीत है, शास्त्रसम्मत है, सार्थक है और कर्म के सिद्धान्त के अनुकूल है।

 

 

हवन में प्रयुक्त होने वाली सामग्री

चावल, केसर, अबीर, गुलाल, हल्दी, रोली, सुपारी, धनिया, सप्तधान्य, पंचमेवा, शहद, शक्कर, घी, सामी लकड़ी, तिल, जौ, तरह-तरह के धूप, कपूर, गुलाब की पत्तियाँ, चंदन, लोबान, घी, नागकेसर, तगर, लाल चंदन, नागर मोठा, कमल के बीज, जटामांसी, सतावरी, न्यूमेरिक, गुगुल, ग्रहों के लिए प्रयुक्त यज्ञ काष्ठ जैसे मदार, पलाश, खैर, चिड़चिड़ा, पीपल, गूलर, शमी, दूर्वा और कुशा। इनके अलावा सामर्थ्य के अनुसार और सामग्री भी प्रयुक्त की जाती रही हैं। 

 

 

 

 

 

 

 

 

वृषभ राशि के राहु ने हमेशा साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगाड़ा है

धर्मपाल भारद्वाज

अभी राहु वृषभ राशि में चल रहे हैं। इन दिनों साम्प्रदायिक सौहार्द्र में कमी आई है व ध्रुवीकरण की गति तेज हुई है। 19 सितम्बर, 2020 से लेकर 17 मार्च, 2022 तक वृषभ राशि में स्थित राहु का प्रभाव कुछ ऐसा ही रहेगा।

 

24 नवम्बर, 2002 को मुस्लिम आतंकवादियों ने जम्मू के रघुनाथ मंदिर में निर्दोष श्रद्धालुओं पर अंधाधुंध गोलीबारी की।

अक्षरधाम मंदिर कांड के बाद देश में साम्प्रदायिक सौहार्द्र बिगड़ने के क्रम में यह उनकी एक और बड़ी घिनौनी हरकत थी। रघुनाथ मंदिर पर आतंकवादियों ने इसी वर्ष पूर्व में भी 30 मार्च को हमला बोला था। ऐसी और भी दुःखद घटनायें हुई हैं।

घटनाओं के विश्लेषण तथा राहु एवं वृषभ राशि के अंतरसम्बंधों से इस तथ्य की पुष्टि होती है कि राहु का भ्रमण जब भी वृषभ राशि से हुआ है स्वतंत्र भारत में उस अवधि में सर्वाधिक साम्प्रदायिक संत्रास झेला है। वृषभ राशि  तमोगुण प्रधान है। इस राशि के अधिपति असुरों के गुरु शुक्राचार्य हैं। राहु तमोगुण प्रधान ग्रह है। इसका संबंध शत्रुओं से है। यह दुःख का कारण है। वृषभ राशि में असुराचार्य के प्रभाव में राहु बली हो जाता है। कदाचित विद्वान इसी कारण वृषभ राशि को राहु की उच्च राशि मानते हैं। पौराणिक आख्यानों में राहु को असुरों का सेनापति भी कहा गया है, लेकिन जैसा कि कथाओं से स्पष्ट है राहु और शुक्राचार्य का संयोग देव संस्कृति के हित में नहीं रहा है। वृषभ राशि में राहु होने से केतु इससे 180 अंश के अंतर पर वृश्चिक राशि में होता है। ‘कुज वत् केतु’ अर्थात केतु मंगल के समान होता है। इस कारण केतु भी वृश्चिक राशि में बली होता है, जिस कारण राहु-केतु का यह अक्ष त्रासदायक ही रहा है। राहु-केतु को एक राशि से गुजरने में लगभग डेढ़ वर्ष लगता है। विगत वर्षों में वृषभ राशि पर राहु का गोचर इन अवधियों में हुआ था-

मई 1946-नवम्बर 1947 : देश इसी दौरान आजाद हुआ। भारत की आजादी की लग्न कुण्डली वृषभ राशि के राहु से काल सर्प योग की कुण्डली है। 1947 मे मजहबी दंगे एक जिन्दा इतिहास है। इस अवधि में देश को दो फाड़ करने की योजना बनी और आजादी के रूप में उसकी परिणति हुई।

दिसम्बर 1964-जून 1966 : वर्ष 1965 में पाकिस्तान ने सैवर जेट तथा पैटन टैंकों से भारत पर बड़े योजनाबद्ध तरीके से हमला किया। पाकिस्तानी फौजें तो इन अत्याधुनिक हथियारों के बल पर यहां तक उत्साहित थी कि उन्होंने तो कूच के रास्तों का ऐसा कार्यक्रम बना रखा था कि चाय कहां पीनी है, दिन का भोजन कहां करना है और आखिर में रात का खाना और जश्न दिल्ली के लाल किले में होगा। वह तो भारतीय फौजों की जांबाजी थी जिन्होंने उन के ख्वाब धूल धूसरित कर दिये। इस विजय पर टिप्पणी करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री ने कहा था कि पाकिस्तानी फौजों ने सोचा होगा कि वे टहलते-टहलते दिल्ली पहुंच जायेंगे, लेकिन उन्होंने कल्पना भी न की होगी कि भारतीय फौजें दातुन करते लाहौर तक पहुंच सकती है।

जुलाई 1983 से जनवरी 1985 : दुर्भाग्यवश खालिस्तान मुद्दा, भिंडरावाला काण्ड तथा आपरेशन ब्लू-स्टार जैसी घटनायें इसी अवधि में हुयी, जिस का कोई पूर्व आधार नहीं था। इस अवधि में अतिवाद ने अपने पांव पसारे। इन घटनाओं का दुःखद अंत तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरागांधी की हत्या तथा उनकी हत्या से जनित साम्प्रदायिक उन्माद के रूप में हुआ। यह सत्ता पाने की खातिर बंटवारे की एक खतरनाक साजिश थी।

नवम्बर 1992 से अप्रैल 1994 : इस अवधि में वृषभ राशि से यह अक्ष उल्टा था। इस दौरान केतु वृषभ राशि में था और राहु वृश्चिक राशि में। 6 दिसम्बर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा गिराये जाने की घटना हुयी, जिस कारण देश के अधिकांश शहरों में साम्प्रदायिक हिंसा फैली।

16 फरवरी 2002 से : राहु फिर वृषभ राशि में गोचर कर रहा है। 27 फरवरी को गोधरा काण्ड हुआ और तभी से गुजरात सुलग रहा है। कश्मीर लहुलुहान है। आतंकवादियों ने लगता है अपनी रणनीति बदल दी है। जब वे मन्दिरों को निशाना बनाने लगे हैं। राहु इस राशि पर 5 सितम्बर 2003 तक रहेगा। आतंकी बिसात बारूद की तरह बिछी हुई है। हर आदमी को सतर्क रहना होगा।

 

 

शकुन विचार

सुषमा दिवाकर

ज्योतिष विज्ञान के ज्ञान की कोई सीमा नहीं है। इसमें भूत भविष्य के बारे में सभी कुछ ज्ञान किसी न किसी रूप में प्राप्त होता है। इसमें देश, संसार, घर व्यक्ति विशेष, नगर आदि पर क्या होने वाला है। ये उस समय विशेष को ध्यान में रखकर पता लगाया जाता है। भारतीय ज्योतिषानुसार-स्कन्धपंच -होरा, सिद्घान्त, संहिता, प्रश्न और शकुन है। यहाँ  पर हम शकुन के विषय में सूक्ष्म चर्चा करते हैं।

शकुन अच्छे व बुरे दो प्रकार के होते हैं। उनमें से कुछ शकुन निम्न है :-

1. दिन में तारे का टूटकर गिरना अत्यन्त अशुभ होता है। प्रायः ऐसा माना जाता है कि जिस देश में यह घटना घटित होती है उस देश के लिए सामूहिक रूप से अशुभ होता है।

2. यात्रा करते समय खाली डलिया व बर्तन लिए व्यक्ति सामने से आए, गधा सामने आए, भिखारी भीख मांगे, तेली सामने आए, कुत्ते का कान फड-फडाना, छींक का आना, बिल्ली का रास्ता काटना, भैसे पर सवार कोई व्यक्ति सामने से आए, साधु-सन्यासी का आना, नौ स्ति्रयाँ एक साथ आती दिखाई देवे, तीन ब्राह्मण का एक साथ होना, दो वैश्य, एक शूद्र का सामने से आना, चिकने वस्त्र पहने कोई व्यक्ति का सामने से दिखना, भीगे हुए वस्त्र पहने कोई व्यक्ति  दिखें, कोई ब्राह्मण अपने कर्म से हीन व तिलक रहित सामने से आए, हिजड़े का सामने आना, भौरें लडते हुए सिर पर गिर पड़ें, सर्प सामने दिख जाए, किसी का पीछे से आवाज देकर बोलना कार्य में बाधाएं होने का संकेत से हानि व असफलता प्राप्त होती है।

3. यात्रा के पश्चात गृह प्रवेश के समय सामने से शव यात्रा जा रही हो तभी अपशकुन समझा जाएगा यह रोग या मृत्यु का सूचक है।

4. कुत्तों का शाम को रोना किसी की मृत्यु का सूचक है।

5. मक्खी का मुंह में आ जाना लडाई का सूचक है।

6. कोई सामान खरीदते वक्त, धार्मिक अनुष्ठान प्रारम्भ करते समय, यात्रा के समय, डाक्टर को बुलाते समय या नये मकान में प्रवेश के समय छीक आना छींक का शब्द सुनाई देना अशुभ होता है।

7. दिन में या रात्रि में उल्लू का बोलना या तीन रात्रि लगातार उल्लू का किसी के घर बोलना अत्यन्त दुखदाई होता है। यह धन हानि, व्यापार हानि, जन हानि या चोरी का संकेत है।

8. सात रात्रि लगातार उल्लू किसी के घर बोले तो वह घर सूना हो जाता है।

9. स्नान के पानी में कौवा मुंह देकर पानी पीने लगे तो भी अपशकुन होता है।

10. अधिक मात्रा में लाल चीटियाँ रात्रि में छत पर से सिर या बिस्तर पर गिरे तो अग्नि व चोरी का

भय रहे।

कुछ शुभ शकुन

अशुभ फल के साथ साथ शुभफल देने वाले शकुन भी होते हैं।

                यात्रा करते समय दूध से भरा बर्तन लेकर कोई सामने से आए, श्वेत, वस्त्राभूषण पहने गौर वर्ण की स्त्री, मेहतर या मेहतरानी कूडे से भरी डलियाँ लिए सामने से आए, कपिला गाय, गुड की भेली लिए व्यक्ति, नारियल, सुपारी, ऋतुफल, मिठाई, मधु, घृत, पैठा, पुष्प माला, हरेपान या पान का बीडा लिए व्यक्ति, गोबर, फल, ध्वजा-पताका, देव प्रतिमा लिए सामने से कोई व्यक्ति आए, श्वेत घोडा, अनाज, धोबी धुले वस्त्र लेकर सामने से आता दिखे, नई रजाई लिए व्यक्ति सामने आए, घोडी पे सवार दुल्हा, गर्जन करता सांड, हरी पत्तियों लिए कोई व्यक्ति सामने से आए, चूडीवाला सामने आए, बन्दर का बोलना, घण्टी का शब्द सुनाई देना, चिडियाँ का सिर पर बीट करना अत्यन्त शुभ शकुन होते हैं।

दातुन करते समय सिर पर छिपकली गिर पडे तो धन  लाभ का सूचक है।

दातुन करते समय कुत्ता आकर पैर सूंघे तो लाभकारी होता है।

 

वर्गाकार हाथ

जैनेन्द्र कुमार

वर्गाकार या उपयोगी हाथ : इस हाथ को अच्छा, उपयुक्त, योग्य, व्यवहार्य, साध्य, सार्थक, हितकारी, प्रयोज्य, फायदेमंद आदि नामों से भी जाना जाता है।

पहचान : सामान्यतया वर्गाकार हाथ देखने में ज्यादा आकर्षक नहीं होता। अस्थि  प्रधान, बेड़ौल और मजबूत सरंचना वाले हाथ को इस श्रेणी में रखा जा सकता है। इस प्रकार के हाथ में ग्रंथियों की प्रधानता होती है। वर्गाकार हाथ में कलाई  के पास वाला हाथ तथा अंगुलियों का उद्गम स्थान समान अर्थात वर्गाकार होता है। हथेली जितनी लंबी होती है उतनी ही चौड़ी भी होती है। अंगुलियों के नाखून चौड़े या वर्गाकार होते हैं। यद्यपि वर्गाकार हाथ को सुंदर और विकसित नहीं कहा जा सकता फिर भी  प्रारंभिक हाथ ही तुलना में अंगुलियां लचकदार होती हैं और हथेली की त्वचा कम खुरदरी, पतली व मुलायम होती है। रंग-रूप और बनावट की दृष्टि से भी ऐसे हाथ प्रारंभिक हाथ से सुदृढ़ कहे जा सकते हैं। वर्गाकार हाथ के पृष्ठ भाग पर बाल पाए जाते हैं पर वे बेतरतीब और कठोर नहीं होते हैं। 

 

विशेषताएं, लक्षण अथवा प्रभाव : ऐसे हाथ वाले जीवन के प्रत्येक पहलू को उसकी उपयोगिता के आधार पर ग्रहण करते हैं। इनमें परिस्थितियों के अनुसार अपने आप को ढालने की क्षमता होती है। अपनी योजनाओं को साकार करने की सामर्थ्य भी इनमें होती है। जीवन के अधिकतर भाग में ये संघर्षरत ही रहते हैं। ये धन को ज्यादा महत्व नहीं देते इसी कारण प्रतिभावान व सामर्थ्यवान होने पर भी प्रायः इनके पास धन का अभाव बना रहता है। ये शांत प्रकृति के होते हैं और लड़ाई-झगड़ा करना पसंद नहीं करते और यदि कभी विषम परिस्थितियां सामने आ भी जाएं तो उग्र होने के बजाय युक्ति से काम लेने में विश्वास करते हैं। ये अपनी प्रतिभा, बुद्धि-क ौशल से स्वयं का तो विकास करते ही हैं, साथ ही समाज को भी ऊंचा उठा ले जाते हैं। दर्शन, कला, साहित्य व मनोविज्ञान आदि क्षेत्रों में भी इनका दखल होता है। नाम के ही अनुरूप उपयोगी हाथ वाले जातक घर-परिवार, पास-पड़ौस, सहकर्मियों, रिश्तेदारों व संपूर्ण समाज के लिए उपयोगी सिद्ध होते हैं। यह कहा जा सकता है कि जो भी इनके संपर्क में आता है उसे इनसे लाभ अवश्य होता है। जब तक जीते हैं, तब तक तो समाज का भला ये करते ही हैं मृत्युपश्चात भी इनके द्वारा छोड़ी गई विरासत या धरोहर का लाभ समाज को मिलता रहता है। ये समाज की दशा और दिशा दोनों सुधारने में सक्षम होते हैं। जीवन के प्रत्येक काल और क्षेत्र में उपयोगी हाथ वाले जातक विद्यमान रहते हैं। ये सम्मान, प्रतिष्ठा, कीर्ति, यश, प्रशंसा व नाम के भूखे होते हैं और अपनी प्रशंसा के लिए अनेक कष्टों का वरण भी सहज ही कर लेते हैं। स्वाभिमान इनके जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक बात की ये गहनता से जांच-पड़ताल करते हैं और उसे जानने-समझने को तत्पर रहते हैं पर जो बात इनकी समझ से बाहर होती है या जिस बात को ये समझ नहीं पाते उस पर न कभी विश्वास करते हैं और न ही उसे स्वीकार करते हैं। इनमें मौलिकता व कल्पनाशक्ति का अभाव होता है। जिस काम को हाथ में लेते हैं उसे पूरा करने के बाद ही दम लेते हैं। परिस्थितियों से जूझने की हिम्मत और सामर्थ्य होने के कारण प्रायः जीवन में निर्धारित ध्येयों की प्राप्ति कर ही लेते हैं। ये दृढ़-निश्चयी होते हैं और इन्हें इनके मार्ग से विचलित करना लगभग असंभव होता है। ये अपना कार्य पूरी ईमानदारी, मेहनत व निष्ठा से करते हैं। प्रबल इच्छाशक्ति और दृढ़ आचरण के कारण अनेक बार अपने से अधिक प्रतिभाशाली प्रतिद्वंद्वियों से भी आगे निकल जाते हैं। कृषि व व्यापार में भी इनका रुझान रहता है।

वर्गाकार हाथ वाले जातक नियमों-कानूनों की पालना करने वाले व समय का मूल्य जानने वाले होते हैं। विध्वंस के स्थान पर सृजन व हिंसा के स्थान पर शांति के पक्षधर होते हैं। काम निकलवाने और काम निकालने में माहिर होते हैं। अपने उच्चाधिकारियों का सम्मान करते हैं और उनके आदेश की पालना भी करते हैं, किंतु उच्चाधिकारियों को अधिकारों के दुरुपयोग करने का मौका नहीं देते हैं। अपने अधीनस्थों के प्रति सदाशयता से पेश आते हैं और उनसे व्यवहार करते समय नैतिकता व नियम-कानूनों की गरिमा बनाए रखते हैं। शांतिप्रिय होने पर भी गलत बात बर्दाश्त नहीं करते हैं और अपने अधिकारों का हनन होने पर या ज्यादती होने की स्थिति में अन्यायकर्ता का दृढ़ता व पूरे साहस के साथ विरोध करते हैं। उत्तेजना, क्रोध व जोर आजमाइश के स्थान पर बुद्धि-कौशल व युक्तिसंगतता का प्रयोग करते हैं। साफ-सफाई पसंद होते हैं। लालची नहीं होते, इसीलिए जुआ, सट्टा एवं जोखिमभरे कार्य कर जल्दी अमीर बनने में उनकी दिलचस्पी नहीं होती बल्कि वे उत्तरोत्तर विकास को पसंद करते हैं। येन-केन-प्रकारेण पैसा कमाना या टेढ़े-मेढ़े तरीकों से पैसा कमाने के बजाय सीधा व सरल रास्ता चुनते हैं। अनवरत मेहनत व क्रमिक विकास में आस्था रखते हैं। ये पूर्णतया सामाजिक व व्यावहारिक होते हैं।