मेरी पहली विदेशी यात्रा जो कि वास्तु शास्त्र को लेकर थी, इस्कॉन (ISKCON) के निमंत्रण पर थी। यह संस्था हरे कृष्ण मिशन के नाम से भी प्रसिद्ध है। उस समय ऑस्टे्रलिया में 13 कृष्ण मंदिर बन रहे थे तथा न्यूजीलैण्ड और फिजी देश के टेम्पल प्रसीडेन्ट भी मुझ से वास्तु की सलाह लेना चाहते थे। भारत से रवाना होने से पूर्व मेरे मन में तमाम तरह की आशंकाएँ थी, यथा-

1.कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तु शास्त्र केवल भारत के लिए हो और दूसरे देशों में लागू नहीं हो पाए। संशय का कारण यह था कि वैदिक विद्वान तो राजाओं का आशीर्वाद दे देते थे कि सारी पृथ्वी भोगो, वस्तुत: वह आशीर्वाद आर्यावर्त के लिए ही होता था।

2. ध्रुवों के आसपास चुम्बक के परिणामों में परिवर्तन आ जाता है।

सिंगापुर से मेलबोर्न तक की 8-9 घंटे की फ्लाइट में मैं मन ही मन तर्क-वितर्क करता रहा कि जब सूर्य और चन्द्रमा या नक्षत्र या देवताओं का नाम वास्तु चक्र से सम्बन्धित है तो वे तो सर्वव्याप्त हैं और सार्वभौम प्रकृति के हैं, तो वे केवल भारत तक सीमित कैसे रह सकते हैं। मैंने उस संकल्प को भी याद किया जिसमें सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर वर्तमान विक्रम संवत तक का नाम आता है तथा जम्बूद्वीपे भरत खण्डे जैसे शब्दों का प्रयोग करते हुए जिस स्थान पर बैठकर कर्मकाण्ड आयोजित कर रहे हैं उस स्थान तक का नाम व्यक्ति के गोत्र सहित आ जाता है। यह संकल्प पद्धति भी ज्योतिष या वास्तुशास्त्र के विश्वव्यापी प्रयोग की ओर संकेत करती है।

अस्तु, मेरा पहला परीक्षण एक ऐसे आर्किटेक्ट के कार्यालय को लेकर हुआ जो ग्लोबल टेण्डर लेता था और जिसके अधीन 150 आर्किटेक्ट काम करते थे। मैंने वास्तुचक्र के अंतरिक्ष नामक वास्तु पद के स्थान पर पडऩे वाले द्वार पर अपना ध्यान केन्द्रित किया जो कि घर में चोरियाँ करवाता है। पूर्व दिशा में मकान की बाहरी बाउण्ड्री वॉल पर एक और द्वार मिला, जो कि पूर्व दिशा के इन्द्र नाम के वास्तु पद पर स्थित था। यह पद राजयोग देता है। अनेकों आशंकाओं के बीच मेरी प्रत्युत्पन्न मति ने प्रेरणा दी कि शास्त्रों पर भरोसा करो और अपनी बात कह दो। ''मैंने उन आर्किटेक्ट से पूछा कि क्या आपके यहाँ चोरियाँ हुई है। उन्होंने कहा कि 7 वर्षों में 2 बार हुई है। मैंने दूसरा सवाल पूछा क्या एक बार चोर पकड़ा गया है? वे तो आश्चर्यचकित हो गए और मुझ से पूछा कि ''क्या आपको जादू आता है।ÓÓ मन में अपरिमित संतोष के साथ मैंने देवताओं को धन्यवाद दिया और देवताओं व शास्त्रों के प्रति मेरी श्रद्धा 100 गुना बढ़ गई। मैंने जो तर्क प्रस्तुत किये उसका आधार यह था कि चोरियाँ होने के बाद ऑस्टे्रलिया के उस प्रभावशाली व्यक्ति ने शासन की मदद से सुरक्षा व्यवस्थाएँ करवा ली थीं। वास्तु तर्क यह था कि इन्द्र पद वाले द्वार ने सरकारी साधन उपलब्ध करा दिये गये होंगे और इसीलिए चोर पकड़ा गया।

परन्तु मुझे इस बात से निराशा थी कि वे इसे जादू समझ रहे थे जबकि वास्तु शास्त्र एक विज्ञान है और हम जो भी कहते, बताते हैं, उसका शास्त्रीय आधार होता है। यह आधार पूर्णत: विज्ञान सम्मत होते हैं। मैंने तो उसी समय संकल्प ले लिया कि भारत के प्रति भ्रांत धारणा के निवारण के लिए एक आक्रामक शास्त्र प्रणाली का उपयोग किया जाना चाहिए और वह तभी सम्भव है जब किसी विद्वान को अवसर मिले और वह वैदिक शास्त्रों की उपयोगिता सिद्ध करके दिखाए। उपरोक्त प्रकरण में एक बात और सिद्ध हो गई कि मैंने चुम्बकीय कम्पास के माध्यम से ही वास्तु चक्र के अंतरिक्ष पद पहचान की थी और सही निर्णय पर पहुँच गया। अगर उत्तर या दक्षिण दिशाओं के क्षेत्र में चुम्बक का गुण बदल जाता तो मुझे सही परिणाम प्राप्त नहीं हो सकते थे। हाथ में लिये जा सकने वाले चुम्बकीय कम्पास में यह सुविधा भी रहती है कि पृथ्वी के किसी भी स्थान विशेष पर कोई चुम्बकीय विक्षेप या विचलन किसी जीओपैथिक स्ट्रेस या कोई फाल्ट जोन पड़ जाए तो उसका पठन भी आ जाता है। निश्चित ही ऐसे मामलों में आपकी बुद्धि परीक्षा तो हो ही जाएगी।

वहाँ के एक आर्किटेक्ट को यह समझने में बड़ी दिक्कत आ रही थी कि वास्तु द्वार का धन वृद्धि से क्या सम्बन्ध है? तब तक मैं अपनी उस आक्रामक वार्ताशैली का विकास नहीं कर पाया था, जिससे अहंकार से ग्रस्त वैज्ञानिकों या तर्कशास्त्रियों को परास्त किया जा सके। परन्तु यह अवसर मुझे शीघ्र ही ऑस्टे्रलिया के दूसरे शहर में मिल गया।

ऑस्टे्रलिया में मेरी सभा में कई बुद्धिजीवियों के साथ-साथ एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक भी था। उन से मैंने प्रश्न किया कि आपकी जेब में जो डॉलर पड़ा हुआ है वो कहाँ से आया? मैं सवाल पूछते-पूछते उन्हें सृष्टि के प्रारम्भ में हुए बिग-बैंग या महाविस्फोट की घटना की ओर ले गया जो कि मेरा प्रिय विषय था। जब मैंने प्रश्न किया कि जब लगभग शून्य की स्थिति से एक महाविस्फोट की घटना हुई और एक कण मात्र से अनन्त अंतरिक्ष का विस्तार हो गया, ग्रह - नक्षत्र बने, जिनमें हमारी पृथ्वी भी शामिल थी। उस सृष्टिक्रम से ही जब सारे महल, मकान, रेलगाड़ी, कारें, समस्त भोजन सामग्री निकली हैं तो धन सम्पत्ति क्यों नहीं निकल सकती? मेरा तर्क सुनकर वे अभिभूत हो गए और बोले कि मुझे सोचने का मौका दो। एक तरह से उन्होंने हार स्वीकार कर ली थी। आज का वैज्ञानिक दम्भ हमारे ऋषियों की अद्भुत विज्ञान दृष्टि को स्वीकार ही नहीं करना चाहता। वे केवल लैब में स्थापित सत्य को ही स्वीकार करना चाहते हैं। अन्य तर्कों को स्वीकार नहीं करना चाहते। वस्तुत: यह भारतीय विद्वानों की कमी हैं कि वो विज्ञान सम्पत्त तर्क प्रस्तुत नहीं कर पाते।

इटली के मिलान शहर में एक घर में बैठे हुए परिवार जनों के बीच में 20 साल के एक नवयुवक की जन्म पत्रिका का विश्लेषण किया। मेरे मित्र जिनका कि दीक्षा नाम परमात्मा प्रभु है, मुझे उस परिवार से मिलाने ले गये थे। उन्होंने यह भी कहा था कि अगर पश्चिमी सभ्यता के लोगों को आकर्षित करना है तो उनके व्यक्तिगत सम्बन्धों या प्रेम सम्बन्धों पर ध्यान केन्द्रित करो।  मैंने उस नवयुवक को उसके 2-3 प्रेम सम्बन्धों की अवधि बताई तथा यह भी बताया कि उसकी वर्तमान प्रेमिका के बाल घुँघराले हैं। वह तो आश्चर्यचकित हो गया कि उसकी प्रेमिका तो वहाँ थी ही नहीं, फिर उसकी आँखों और बालों के बारे में मैंने कैसे बता दिया। उसने भी वही सवाल किया - 'क्या आप जादू जानते हो?Ó मुझे बड़ी निराशा हुई कि मैं तो गणित कर रहा हूँ और वह जादू समझ रहा है। अत: मैंने छपी हुई विंशोत्तरी दशा का पेज दिखाकर बताया कि जब - जब सप्तमेश ग्रह की अन्तर्दशा आएगी, तब-तब नया प्रेम सम्बन्ध विकसित होगा। उस कुशाग्र बुद्धि नवयुवक ने तुरन्त ही उस समय का ज्ञान कर लिया जब सप्तमेश की अन्दर्तशा आने वाली थी। वह बहुत खुश हुआ, क्योंकि नई प्रेमिका मिलने का समय पता चल गया था। 

जयपुर के माइकोबॉस प्लांट में डीजल इंजन फ्यूल पाइप बनते हैं और कम्पनी घाटे में चल रही थी। जर्मन कम्पनी को यह समझाना मुश्किल हो गया कि साउथ- वेस्ट का द्वार घाटे का बड़ा कारण है। मैंने वैज्ञानिक तर्क प्रस्तुत किये जिसका सार यह था कि वास्तुचक्र का नैर्ऋत्य कोण यदि खुला रह जाए तो भूमि में ईशान कोण या उत्तर से वैद्युत चुम्बकीय प्रभाव प्रवेश करके नैऋत्य से बाहर निकल जाते हैं, जहाँ वास्तु पुरुष के पैर होते हैं। जर्मनी के आर्किटेक्ट ने वैद्युत चुम्बकीय प्रभाव को तो स्वीकार किया परन्तु वास्तुपुरुष के पैरों को स्वीकार करने में नाक-भौहे सिकोडऩे लगा। खैर उन्होंने लैण्ड स्केपिंग के नाम से नैर्ऋत्य कोण का द्वार बंद कर दिया और उत्तर दिशा में वह द्वार खुलवा दिया, जहाँ मैं चाहता था। सकारात्मक परिणाम आए और वह कम्पनी आज भारत में अत्यधिक सफल है।

 

 

 

शुक्र और चन्द्रमा देते हैं सौन्दर्य

एक जन्म पत्रिका में 12 भाव होते हैं और उन भावों में कुछ भाव ऐसे हैं जो हमारे नजदीकी रिश्तों की सूचना देते हैं, जैसे - पति-पत्नी, भाई-बहिन, माता-पिता आदि। उनका विवरण इस तरह से हैं-

जन्म पत्रिका के विभिन्न भावों में शुक्र और चन्द्रमा अगर स्थित हो जाएं तो उस भाव से सम्बन्धित रिश्ते को सुन्दर और गुणी बना देते हैं। इनमें से कोई एक ग्रह स्थित हो, तो भी गुणी बना देते हैं परन्तु दोनों एक साथ ही स्थित हों तो अत्यधिक गुणी बना देते हैं। चन्द्रमा चंचल वृत्ति भी देते हैं। हम इसे निम्न उदाहरणों से समझते हैं।

मान लीजिए तीसरे भाव में शुक्र स्थित हों तो छोटा भाई सुन्दर होगा, सम्पन्न भी हो जाएगा। पांचवें भाव में शुक्र हों तो पुत्र सुन्दर हो जाएगा, बड़े भाई की पत्नी की सुन्दर होगी और गुणी भी होगी। सातवें भाव में चन्द्रमा हों तो पत्नी सुन्दर होगी। नवें भाव में शुक्र हों तो गुरु का व्यक्तित्व शानदार होगा व देहयष्टि भी सुन्दर होगी। छोटे भाई की पत्नी भी सुन्दर होगी। दशम भाव में शुक्र है तो पिता सुन्दर होंगे। चन्द्रमा-शुक्र दोनों हों तो पिता अत्यधिक गुणी होंगे। 11वें भाव में शुक्र या चन्द्रमा हों तो बड़ा भाई या बहिन सुन्दर होगी और पुत्र वधू भी सुन्दर होगी। इसी तरह से अन्य सभी भावों का देखा जाना चाहिए।

यह ग्रह जहाँ स्थित हों, केवल वहीं सौन्दर्य नहीं देते बल्कि जिस भाव पर दृष्टि करते हैं उससे सम्बन्धित व्यक्तियों को भी सौन्दर्य और गुण प्रदान करते हैं। इन दोनों ग्रहों की सातवीं दृष्टि मानी जाती है। जैसे कि चौथे भाव में बैठा ग्रह दशम भाव में दृष्टि करता है। पंचम भाव में बैठा ग्रह एकादश भाव पर दृष्टि करता है। सातवें भाव पर बैठा ग्रह लग्न पर दृष्टि करता है अर्थात् पत्नी ही नहीं पति भी सुन्दर या आकर्षक होगा। दशवें भाव में बैठा ग्रह चतुर्थ भाव पर दृष्टि करता है, नवम भाव में बैठा ग्रह तीसरे भाव पर दृष्टि करता है अर्थात् नवम भाव में चन्द और शुक्र स्थित हों तो न केवल गुरु का व्यक्तित्व शानदार होगा बल्कि छोटे भाई की पत्नी व छोटा भाई, दोनों सुन्दर होंगे। छोटा भाई इसीलिए क्योंकि नवम भाव में बैठे ग्रह की दृष्टि तीसरे भाव पर होती है।

यह ग्रह अस्त और वक्री ना हों तो सीधे-सीधे परिणाम देखे जा सकते हैं, परन्तु यदि अस्त या वक्री हों या पाप ग्रहों के बीच में बैठे हों तो इनके परिणामों के अन्तर आ जाता है।

 

विवाह रेखा

हाथ में कनिष्ठा अंगुली से नीचे बुध पर्वत पर विवाह रेखा होती है। कनिष्ठा मूल और हृदय रेखा के बीच में बुध पर्वत होता है, जिस पर कि विवाह रेखा स्थित होती है। यह रेखा हृदय रेखा के समानान्तर चलती है। यदि विवाह रेखा पुष्ट होती है, गहरी होती है तो वैवाहिक जीवन अच्छा होता है। यदि यह रेखा कमजोर और टूटी-फूटी होती है तो वैवाहिक जीवन में समस्याएँ आती हैं। यदि इस रेखा पर क्रॉस, द्वीप या कटान मिले तो विवाह में संकट आते हैं। अगर यह रेखा कनिष्ठा के निचलेे पर्व को आधे से अधिक पार कर जाए तो जीवन साथी की आश्चर्यजनक उन्नति की सूचना देती हैं। अगर यह रेखा बुध की अंगुली की ओर झुकाव लिये हो तो पति-पत्नी के बीच में स्नेह की कमी हो जाती है। यदि इस रेखा पर सर्प जिव्हा की तरह दो फाड़ हो जाए तो आपसी विवादों की सूचना देती है। यदि विवाह रेखा आगे बढ़कर झुकाव लेती हुई हृदय रेखा में मिल जाए तो जीवन साथी की मृत्यु होती है या तलाक हो सकता है। अगर विवाह रेखा हो ही नहीं तो व्यक्ति को प्रेम सम्बन्ध का मूल्य मालूम नहीं होता या उसके सुख में कमी आ जाती है।

एक से अधिक विवाह रेखाओं का अर्थ यह नहीं है कि एक से अधिक विवाह होंगे। यह सम्भव है कि यदि मुख्य विवाह रेखा के समानान्तर गहरी रेखा हो तो गंभीर प्रेम प्रकरण मिल सकते हैं। यदि विवाह रेखा के समानान्तर छोटी और पतली कई रेखाएँ हों तो जीवन में कई प्रेम सम्बन्ध देखने को मिल सकते हैं। परन्तु विवाहेत्तर सम्बन्ध तभी टिकेंगे जब मुख्य रेखा के अतिरिक्त अन्य रेखा भी काफी पुष्ट हो। यदि मुख्य विवाह रेखा से निकलकर कोई छोटी रेखा सूर्य रेखा तक चली जाए तो किसी महान व्यक्ति से प्रेम सम्बन्ध की सूचना मिलती है। यदि विवाह रेखा से कोई रेखा निकलकर हृदय रेखा को पार करके पर्वत से नीचे की तरफ मंगल पर्वत पर आ जाए तो गंभीर कानूनी समस्याओं की सम्भावना होती है। विवाह रेखा का लम्बा और पुष्ट होना ही अच्छा माना गया है। अगर बुध पर्वत भी पुष्ट हो और उस पर विवाह रेखा भी पुष्ट  हो तो सौभाग्यशाली और धनी जीवन देखने को मिलता है और जीवन साथी की भी नौकरी या व्यवसाय की सम्भावनाएँ बढ़ जाती हैं।

 

नक्षत्र, नीहारिका और मंदाकिनी

वैदिक ज्योतिष में नक्षत्रों का उल्लेख मिलता है, राशियों का उल्लेख नहीं मिलता। आधुनिक ज्योतिष के प्रणेता महात्मा लगध थे और इसे एक वेदाङ्ग माना गया था। 4 वेद होते हैं और 6 वेदाङ्ग होते हैं।

प्राचीन ऋषियों ने यह समझा कि सूर्य की कक्षा पथ में जो नक्षत्र आ जायें उनके आधार पर नक्षत्र के फलों का निरुपण किया जा सकता है और उन्होंने एक सहज सा तरीका निकाला कि जिस दिन चन्द्रमा पृथ्वी और नक्षत्र के बीच में पड़ जाएं उस दिन उन नक्षत्रों की किरणें चन्द्रमा के माध्यम से पृथ्वी तक पहुँचनी चाहिए। सामान्य भाषा में इसे उस दिन का नक्षत्र माना गया। बाद में यह भी गणना की गई कि एक राशि में सवा दो नक्षत्र होते हैं अत: सवा दो नक्षत्रों से अधिक कुछ काल तक जब चन्द्रमा उस राशि का भोग या भ्रमण करते हैं तो वह व्यक्ति की राशि मानी गई। इसका अर्थ यह हुआ कि नक्षत्र की अवधि एक ही दिन रहेगी और राशि की अवधि सवा दो दिन रहेगी।

परन्तु नक्षत्र का  अर्थ यह नहीं है कि केवल एक ही नक्षत्र हो, कई नक्षत्रों के एक ही समूह में जो प्रधान नक्षत्र हो उसके नाम से ही ज्योतिष की गई। कुछ प्रमुख तारों के अलावा सैंकड़ों तारे भी हो सकते हैं। हाँ, नामकरण सबसे बड़े या चमकीले नक्षत्र के नाम से होगा। चन्द्रमा और सूर्य के माध्यम से इन समस्त तारों का सम्मिलित प्रभाव पृथ्वी तक पहुँचता है।

आधुनिक खगोल शास्त्रियों ने और भी बड़ी - बड़ी इकाइयों का पता लगाया, जैसे नीहारिका और मंदाकिनी। संस्कृत में निहार का अर्थ कुहरा होता है। अत: कुहरे या धुएँ की तरह अन्तरिक्ष में जो प्रकाशमान हो उसे नीहारिका कहा गया। आज से एक हजार वर्ष पहले देवयानी नक्षत्र मण्डल में ऐसा प्रकाश पुंज तलाश किया गया। देवयानी को पाश्चात्य ज्योतिषियों ने एन्ड्रोमेडा का नाम दिया। इसे एम-31 भी कहा जाता है। हमारी आकाश गंगा के बाहर की विशाल नक्षत्र योजना को मंदाकिनी या गैलेक्सी कहा गया। नीहारिका में गैस के रूप में जो द्रव्य रहता है, उसी से नये नक्षत्र या सौर मण्डल बनते हैं। पृथ्वी से 1300 प्रकाश वर्ष दूर मृगशिरा निहारिका है, उसमें आज भी नये-नये नक्षत्र बन रहे हैं।

अरबों - खरबों नक्षत्रों की योजना को मंदाकिनी कहते हैं। हमारी आकाश गंगा भी एक मंदाकिनी है परन्तु हमारी आकाश गंगा से बाहर भी अरबों मंदाकिनियाँ हैं। कोई अण्डे के आकार की है तो कोई सर्पाकार है। कई मंदाकिनियाँ विचित्र आकार लिये हुए हैं। आकाश गंगाओं के विवरण पढ़कर दिमाग चकराने लगता है। जिसे हम सिंह राशि कहते हैं, उसका अनन्त विस्तार अंतरिक्ष में किया जाए तो उसमें 300 मंदाकिनियों का एक समूह है।

इस ब्राह्मण्ड के अनन्त विस्तार के क्रम में सभी मंदाकिनियाँ हमसे दूर होती जा रही है। कोई-कोई तो 2 से 3 लाख किमी. प्रति सैकण्ड की गति से भाग रही है। जिन मंदाकिनियों की विस्तार गति 3 लाख किमी. प्रति सैकण्ड से कम हैं उन्हें तो हमारी दूरबीनें देख सकते हैं बाकी इससे अधिक गति वाली मंदाकिनियों को हमारी दूरबीनें कभी भी नहीं देख पाएंगी। अब तक हमारे खगोलशास्त्री 15 अरब प्रकाश वर्ष दूर तक की मंदाकिनियों को ही देख पाए हैं। एक प्रकाश वर्ष 94,63,00,00,00,000 किमी. के बराबर होता है। हमारी आकाश गंगा का व्यास 1 लाख प्रकाश वर्ष के बराबर है। इसमें एक सौ पचास अरब तारे हैं। आकाश गंगा के केन्द्र से हमारे सूर्य की दूरी 30 हजार प्रकाश वर्ष दूर है।

 

अच्छे कर्मचारी का योग

इस आधुनिक समय में बहुत से पुरुषों की इच्छा एक नौकरीपेश जीवनसाथी की होती है। ऐसे में घर के कार्यों को करने के लिए एक अच्छे नौकर की आवश्यकता होती है और सम्पन्न परिवारों में तो नौकर-चाकर के बिना कार्य ही नहीं चलता, हालांकि यह व्यवस्था प्राचीन समय से ही राजा-महाराजाओं के जमाने से चली आ रही है।

वर्तमान समय में अधिकांश परिवारों में नौकरों की आवश्यकता पड़ती है, अत: ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या हमारे जीवन में एक अच्छे नौकर के योग हैं? यदि नौकर है तो अधिक समय तक वह रुकेगा या नहीं? तथा नौकरों के साथ झिक-झिक होना भी एक समस्या बनती जा रही है।

तीसरे भाव से दास-दासी का उल्लेख वृहत्पाराशर होराशास्त्र में भी मिलता है। जन्म पत्रिका के तीसरे भाव के कारक ग्रह मंगल व तीसरे भाव के स्वामी ग्रह, शनि की स्थिति, दास-दासियों के योगों को दर्शाती है। जन्म पत्रिका में मंगल ग्रह की स्थिति उच्च की या स्वराशि हो व तृतीय भाव के स्वामी की स्थिति उच्च या स्वराशि या मित्र राशि की हो व षड्बल में भी अच्छे हों तो अच्छे नौकरों का योग व्यक्ति के जीवन में होता है। आयु, मृत्यु, ऊंचाई से गिरना, अपमान, चिंता, आलस्य, लोहे की वस्तु, नौकरी व नौकर-चाकर आदि का विचार शनि से किया जाता है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि जन्म पत्रिका में यदि शनि उच्च राशि, स्वराशि, मूल त्रिकोण राशि या शश योग बना रहे हों तो व्यक्ति के  जीवन में अच्छे नौकरों का सुख प्राप्त होता है। नौकर से तात्पर्य है कि जो कोई व्यक्ति किसी कार्य को पूर्ण करने के लिए स्वयं कोई निर्णय न ले सकेे। निर्णय लेने के लिए उसे किसी की आज्ञा लेनी पड़ती हो अर्थात् नौकर का तात्पर्य घर के कार्य करने से ही नहीं बल्कि उनसे भी जो किसी कम्पनी में या किसी के अधीन कार्य करते हों। वह सब कर्मचारी (नौकर) की श्रेणी में आते हैं।

यदि कोई व्यक्ति पूछता है कि मुझे नौकरी कब मिलेगी? तो उसकी जन्म पत्रिका के छठे व दशम भाव से विचार करना चाहिए और यदि कोई व्यक्ति अपने व्यवसाय या अपनी कम्पनी में कार्य करने के लिए अच्छे कर्मचारी कब मिलेंगे? उसके लिए तीसरे भाव व तृतीयेश की स्थिति से देखना चाहिए।

1. तृतीयेश व तृतीय भाव के कारक मंगल व शनि अच्छी स्थिति में हों व शुभ ग्रहों से दृष्ट हों तो व्यक्ति के जीवन में अच्छे कर्मचारी होते हैं।

2. यदि तृतीय भाव में केतु की स्थिति हो तो उसके कम्पनी के कर्मचारी लम्बे समय तक नहीं रूक पाएंगे। 

3. तृतीयेश व लग्नेश की आपस में मित्रता हो तो व्यक्ति का भरोसा अपने कर्मचारियों पर बना रहता है।

4. यदि उच्च के शनि जन्म पत्रिका में तीसरे भाव को देखते हों तो भी अच्छे कर्मचारियों का योग होता है।

5. किसी व्यक्ति की जन्म पत्रिका में नीच के शनि हों साथ वह केतु से दृष्ट हों तो चाहे कितनी ही बड़ी कम्पनी क्यों न हो उस कम्पनी में कर्मचारियों की समस्या हमेशा बनी रहती है।

6. यदि गुरु व शुक्र की दृष्टि तीसरे भाव पर या तृतीयेश पर हो तो उच्च वर्ण के कर्मचारी मिलने के योग होते हैं।

7. कर्मयारियों का स्थाई सुख तभी मिल सकता है जब जन्मपत्रिका के चौथे भाव में शुभ ग्रह हो या शुभ ग्रहों की दृष्टि हो।