एक व्यक्ति की  जन्म पत्रिका में बुध की भूमिका उसे जीव जगत में सबसे महत्वपूर्ण बनाती है। उन समस्त प्राणियों में जिनके पास बोलने की क्षमता, भाषा और अन्य प्राणियों को समझाने की दक्षता नहीं होती, उनका सारा कौशल केवल  इस एक गुण में छिपा रहता है कि वे अपनी रक्षा किस बुद्धि कौशल से करते हैं। शिकार के जितने भी किस्से हैं,

उनमें आप देखेंगे हिरण जैसे प्राणियों में शेर द्वारा पीछा किया जाने पर प्रत्युत्पन्न मति का अभाव दिखता है और वे सीधी  दिशा में ही भागते हुए नजर आते हैं। वे अपनी गति से आत्म रखा करना चाहते हैं और बुद्धि की चपलता नजर नहीं आती। ईश्वर ने उन्हें अन्य शारीरिक दक्षता भी प्रदान नहीं की। परन्तु आप एक बन्दर का व्यवहार देखें। वह बहुत दूर नहीं भागता और अपनी बुद्धि और चपलता से आत्म रक्षा करने में सफल हो जाता है। आप बन्दर या कौए पर उनके पीछे से पत्थर फेंक कर वार करें। वे अपना पूरा शरीर नहीं हिलाते, केवल जरा सी गर्दन हिलाई और बच गए। बन्दर तो अन्य मनोवैज्ञानिक उपाय भी अपनाता है और प्रत्याक्रमण की मुद्रा में आ जाता है। इसी को हम बन्दर घुड़की कहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बुद्धि का कौशल और चपलता एक प्राणी के लिए सबसे महत्वपूर्ण हैं। ईश्वर ने मनुष्य को इसके लिए सबसे अधिक उपयुक्त माना है।

शास्त्रों में जो बुध का वर्णन है, उसमें बुध को ज्ञान-विज्ञान, बुद्धि, चपलता, बुद्धि का स्तर और वाणी जैसे विषय दिये गये हैं। जैमिनी ऋषि ने तो बुध को और भी अधिक महत्त्व प्रदान कर दिया है और यहाँ तक कहा है कि कारकांश लग्न में यदि बुध हो तो व्यक्ति मीमांसक बनता है। भारतीय षड्दर्शनों में उत्तर मीमांसा ओर पूर्व मीमांसा अति प्रसिद्ध हंै। इनका सम्बन्ध वेदान्त, उपनिषद् व वैदिक कर्मकाण्ड इत्यादि से है।

योग: कर्मसु कौशलम्। गीता का यह कथन बुध पर भली-भाँति प्रयोग किया जा सकता है। गीता के चिन्तन में तो योग तथा ईश्वर के निमित्त किये गये कर्म और उनके लिए किये गये कौशल से ही इसका अर्थ अभिप्रेत है, परन्तु यहाँ हम इसी बात को केवल ज्योतिष योगों के सन्दर्भ में प्रयुक्त करके देखेंगे।

बुद्धियुक्तो जहातिह उभे सुकृतदुष्कृते।

तस्माद्धोगाय युजयस्व योग:कर्मसु कौशलम्।।

गीता के इस श्लोक का अर्थ यह है कि बुद्धियुक्त कर्म करें। योग तभी है, जब उसका अनुचित प्रयोग नहीं हो।

बृहतपाराशर होरा शास्त्र के अनुसार में भगवान का बुध अवतार, बुध ग्रह से अवतीर्ण हुआ है। इन्हें शुभ ग्रह या सौम्य ग्रह माना गया है। ये वाणी के कारक हंै। दूर्वा का सा रंग है। इन्हें स्त्री ग्रह माना गया है तथा इनके प्रत्याधि देवता विष्णु माना गया है। यह भूमि तत्त्व हैं तथा क्षुद्र वर्ण हैं व रज प्रकृति के हैं। बुध प्रधान व्यक्तियों की देह सुन्दर होती है। संक्षिप्त में सब कुछ कहने वाले हो सकते हैं। हास्य प्रिय होते हैं और कफ, पित्त, वात तीनों ही प्रवृत्तियाँ होती हैं। तीनों ही प्रकृति इनमें विद्यमान है। शरीर में त्वचा पर इनका अधिकार है तथा सार्वजनिक जीवन में क्रीड़ा स्थल के स्वामी है। ऋतुओं पर इनका नियंत्रण हंै। यह पूर्व दिशा में बलवान होते हैं तथा दिन हो या रात सर्वदा बलवान रहते हैं। शुक्ल पक्ष में अधिक बली होते हैं। फलहीन वृक्षों का सम्बन्ध बुध से जोड़ा गया है तो उधर काले रंग के कपड़ों का सम्बन्ध भी बुध से जोड़ा गया है। इनकी ऋतु शरद है तथा ज्योतिष में वाणी के कारक इन्हें माना गया है। बुध की उच्च राशि कन्या है तथा कन्या राशि में 15 अंशों पर परमोच्च माने गये हैं। मीन राशि में 15 अंश पर ये परम नीच माने गये हैं। कन्या राशि में ही 15 अंश तक बुध की उच्च राशि मानी गयी है। बाद के 5 अंशों में त्रिकोण राशि मानी गयी है और अंतिम दस अंश स्वराशि के माने गये हैं। हम जानते हैं कि उच्च में होने और परमोच्च में होने में बहुत बड़ा अन्तर है। स्वराशि से उच्च राशि तथा उच्च राशि से परमोच्च राशि में बुध बलवान होते चले जाते हैं।

फलित ज्योतिष में बुध की उपादेयता बहुत अधिक है। बुध अशुभ सिद्ध होने पर पाप फल देते हैं, परन्तु शुभ सिद्ध होने पर फलों में अभिवृद्धि कर देते हैं। जिस ग्रह के साथ हों, उसका फल देते हैं या उसके फलों में वृद्धि करते हैं। किसी ग्रह से सहयोग करके बुध उस ग्रह के फल व चरित्र को ही बदल देते हैं। बुध ग्रह में सहज वणिक वृत्ति या लाभ वृत्ति होती है और यदि किसी ग्रह को सहयोग कर जाएं तो उस ग्रह से सम्बन्धित फलों में लाभ के अंश बढ़ा देते हंै।

किसी राशि में बुध और सूर्य साथ स्थित हों तो वह व्यक्ति अत्यंत कार्यकुशल होता है। यदि चन्द्रमा और बुध की युति हो तो चिकित्सा या औषधि के क्षेत्र में काम करने वालों के लिए यह मणिकाञ्चन योग है। ज्योतिष में चन्द्रमा को औषधि और बुध को चिकित्सक माना गया है। गुरु-बुध युति होने पर ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्र में व इन क्षेत्रों में अर्थोपार्जन में कौशल देखने को मिलता है। बुद्धिजीवियों के लिए यह श्रेष्ठ योग है। बुध बृहस्पति के ज्ञान-विज्ञान में वृद्धि तो करते हैं ही और बृहस्पति के आर्थिक पक्ष को उत्तम बनाते हैं। शुक्र और बुध की युति हो तो व्यक्ति कला-कौशल में निष्णात होता है और उसके माध्यम से धन दोहन में सफल होता है। शनि के साथ युति होने पर व्यक्ति मनोवैज्ञानिक होता है, मनोचिकित्सक होता है और न्यूरोलॉजी से सम्बन्ध स्थापित होता है। न्यूरोलॉजी का डॉक्टर भी बन सकता है और बुध अस्त होने पर मरीज भी। बुध शरीर के तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते हैं। राहु के साथ युति करके बुध व्यक्ति को बहुजीवी बना देते हैं और वह कई विषयों में दखल रखता है। यह युति भौतिकवाद के लिए उत्तम है। परन्तु केतु के साथ बुध की युति आध्यात्म की ओर ले जा सकती है। केतु बुध प्रणीत वृत्तियों को काटने का काम करता है।

मनुष्य में बुद्धिमत्ता का स्तर मापना हो तो बुध की अवस्था, युति व भावाधिपत्य का समन्वित रूप से अध्ययन करना पड़ेगा। बुध लाभवृत्ति के पोषक हैं और जिस भी ग्रह से सम्बन्ध स्थापित करते हैं, उसके गुणों में लाभ का प्रयोजन स्थापित कर देते हैं।

ग्रहों में सबसे छोटा आकार बुध का है। इसका परिभ्रमण काल 88 दिन व संयुति काल 115.88 दिन होता है। तापमान के मामले में उतार - चढ़ाव भी सबसे अधिक है। -173 डिग्री सेन्टीग्रेड तक रात में हो जाता है और 427 डिग्री सेन्टीग्रेड तापमान इसकी भूमध्य रेखा पर हो जाता है। इसके अक्ष का झुकाव सबसे कम होता है, 1 डिग्री भी नहीं बल्कि बहुत कम। इसकी धरती बहुत उबड़-खाबड़ है। बहुत सारे के्रटर हैं।

इस पर ऑक्सीजन 42 प्रतिशत, सोडियम 29 प्रतिशत, हाइड्रोजन 22 प्रतिशत, हीलियम 6 प्रतिशत, पौटेशियम 0.5 प्रतिशत तथा कार्बन-डाई-ऑक्साइड व नाइट्रोजन जैसी गैसें नाममात्र के लिए हैं। चूंकि सूर्य के बहुत पास रहते हंै अत: इन्हें दिन में देखा जाना सम्भव नहीं होता, परन्तु शाम को, सूर्यास्त से पहले या सुबह सूर्योदय से पहले देखना सम्भव है। बुध का कोई उपग्रह नहीं है।

वराहमिहिर का कहना है कि बुध जब भी उदित होते हैं तो कोई न कोई उत्पात अवश्य होता है। जल-अग्रि या वायु का किसी भी प्रकार का भय या अनाज का मंहगा या सस्ता होना इत्यादि। कुछ नक्षत्रों में बुध का भ्रमण विशेष परिणाम लाता है। वराहमिहिर का कहना है कि आद्र्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आश्लेषा और मघा नक्षत्र में बुध का संचार हो तो युद्ध परिस्थितियाँ, क्षुधा, रोग, अनावृष्टि और अनेक प्रकार के दु:ख प्रजा में आते हैं। हस्त, चित्रा, स्वाति, विशाखा, अनुराधा और ज्येष्ठा नक्षत्र में बुध योग तारा से भ्रमण करें तो गायों के लिए तो शुभ नहीं है और घृत, तेल, रस इत्यादि में मंहगाई लाते हैं। अन्न पर्याप्त होते हैं। उत्तराफाल्गुनी, कृत्तिका, उत्तराभाद्रपद या भरणी नक्षत्र में बुध का भ्रमण प्राणियों के धातु का नाश करता है। धातु के अन्तर्गत वसा, रक्त, माँस, मेधा, अस्थि, मज्जा और शुक्र आते हैं।

यूं तो बुध के हर नक्षत्र के कोई न कोई फल हैं परन्तु रोग बढ़ाने वाले नक्षत्र पूर्वाफाल्गुनी, पूर्वाषाढ़ा या पूर्वाभाद्रपद होते हैं।

वर्षाकाल में बुध विशेष महत्त्व के हो जाते हैं। बुध वक्री, उदय या अस्त होते हैं तो वर्षाकाल में निश्चित वर्षा होती है। यदि शुक्र, बुध और चन्द्रमा जल नाड़ी में आ जाएं या अमृता नाड़ी में आ जाएं तो बाढ़ और तूफान ला देते हैं।

जैमिनी ऋषि और बुध -

जैमिनी ऋषि ने बुध को विशेष महत्त्व दिया है। वे कहते हैं कि आरूढ़ लग्र से दूसरे भाव में यदि कोई उच्च का ग्रह हो और गुरु, शुक्र या बुध में से कोई एक ग्रह हो तो जातक धनवान होता है। वे कारकांश लग्न में बुध को विशेष महत्त्व वाला मानते हैं। यदि कारकांश लग्र में बुध हो तो व्यक्ति मीमांसक होता है। पाराशर कारकांश लग्न में बलवान बुध को कला और शिल्प विद्या में भी निपुण मानते हैं।

चन्द्रमा या लग्र से दशम भाव में बुध ग्रह निष्णात या पंडित बनाते हैं। पंडित से अर्थ विशेषज्ञ है। परन्तु केन्द्राधिपत्य दोष होने पर इस फल में कमी आ जाती है। केन्द्राधिपत्य दोष तब होता है जब मिथुन व कन्या राशि केन्द्र स्थान में हों। बुध ग्रह मिथुन, कन्या, तुला, मकर लग्र वाले के लिए शुभ फल देने वाले और कुम्भ लग्र वालों के लिए मध्यम फल देने वाले, बाकि लग्रों के लिए अशुभ फलदायी हैं। बुध और बृहस्पति एक राशि में हों तो विद्वान, ज्योतिष में वर्णित किसी भी लग्र में बुध हों तो वेद=वेदाङ्गों की समझ वाला व्यक्ति होता है। अच्छा प्रवृक्ता, समीक्षक, आलोचक, गायक, हास्य कवि, चिकित्सक, ज्योतिषी  या पत्रकार बनना हो तो बुध ग्रह को प्रसन्न करना अति आवश्यक है। ग्रहों को प्रसन्न करने के लिए मंत्र, मणि और औषधि का प्रयोग उत्तम रहता है। बुध की मणि पन्ना है और उसकी औषधि के रूप में यज्ञकार्य में चिड़चिड़े की आहुतियाँ दी जाती हैं।

 

 

सूर्य रेखा

अवतार कृष्ण चावला

सूर्य रेखा हाथ की एक प्रमुख रेखा है। यह चन्द्र पर्वत के उच्च क्षेत्र से चालू हो कर सूर्य पर्वत की और जाती है। यह रेखा तेजस्विता, प्रतिभाशीलता, और ख्याति की द्योतक है। इस रेखा वाले को मित्र, धन सम्पदा, तथा मान सम्मान अवश्य प्राप्त होता है। इस रेखा का फलादेश कहने से पहले पूरी हथेली का सम्यक अध्ययन आवश्यक है।

जिस व्यक्ति के हाथ में यह रेखा पूर्ण रूप से विकसित हो उस जातक में सफलता प्राप्त करने की विशेष योग्यता हो सकती है। मोटे मांसल हाथ, कमजोर अंगूठा, निर्बल मस्तिष्क रेखा, निर्बल मंगल पर्वत के कारण सूर्य रेखा के फल में कमी आ सकती है।

कई बार ऐसा भी होता है कि स्पष्ट सूर्य रेखा वाले व्यक्ति अति आत्मविश्वास के कारण अनुभब की कमी से वांछित सफलता प्राप्त नहीं कर पाते।

सूर्य रेखा के विषय में सर्व प्रथम उसकी लम्बाई और निरंतरता से मालूम पड़ता है कि वो कितनी प्रभावी होगी।  यदि सूर्य रेखा कलाई से प्रारम्भ हो कर सूर्य पर्वत तक पहुंचे तो यह विशिष्ट योग्यता की सूचक है। ऐसा जातक अपनी योग्यता के बल पर जीवन में अभूतपूर्व सफलता प्राप्त कर सकता है। परन्तु यदि यह सूर्य पर्वत तक पहुँचने से पहले लुप्त हो जाये तो जानकारी मिलती है कि जातक में योग्यता तो है पर सफलता नहीं मिल पायेगी।

यदि यह रेखा मस्तिष्क रेखा के नीचे से प्रारंभ हो कर मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा को पार कर जाये तो भी विशेष योग्यता और प्रभाव की सूचक है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन काल में अपनी योग्यता का पूरा उपयोग कर अनूठी सफलता प्राप्त करता है।

यदि सूर्य रेखा हृदय रेखा के नीचे से प्रारंभ हो कर सूर्य पर्वत तक पहुँच जाये तो जातक जिस भी क्षेत्र में काम कर रहा हो उसे उस विषय में प्रसिद्धि प्राप्त होगी।

कई बार शनि और सूर्य रेखा एक दूसरे पर आश्रित होती है। ऐसी स्थिति में जातक के हाथ में एक रेखा अधिक स्पष्ट होती है और दूसरी निर्बल तो इन्हें आपस में सहायक रेखा माना जाता है।

यदि सूर्य रेखा कुछ दूर चल कर लुप्त हो रही हो और फिर पुन: प्रकट हो रही हो तो वह इस बात की सूचक है कि इस दौरान जातक की योग्यता भी लुप्त रही। इस दौरान यदि जीवन रेखा में कोई दोष पाया जाये तो वह खऱाब स्वास्थ्य भी एक कारण हो सकता है।

यदि मस्तिष्क रेखा में इस दौरान कोई दोष पाया जाये तो समझा जाना चाहिए कि जातक की उस दौरान मानसिक शक्तियां कमजोर रहीं।

यदि जीवन रेखा से कोई रेखा प्रारंभ हो कर सूर्य पर्वत के नीचे समाप्त होती है तो वह सूर्य रेखा ना हो कर आकस्मिक रेखा होती है। उससे सूर्य रेखा के गुण प्राप्त नहीं होते।

परन्तु यदि रेखा चन्द्र पर्वत के उच्च से प्रारंभ हो कर सूर्य पर्वत तक पहुंचे तो यह जातक की उच्च कल्पना और भाषा शक्ति की सूचक है। वह प्रसिद्धि की ऊंचाई को प्राप्त कर सकता है।

सूर्य रेखा गुणों में वृद्धि की सूचक है। यदि यह रेखा स्पष्ट हो तो जातक जिस क्षेत्र में काम करेगा उसमे उसकी क्रियात्मक शक्ति उसे सफल बनाएगी। यदि यह रेखा पतली हो तो उसके गुणों में कमी आती है। यह जंजीर नुमा हो तो भी जातक के गुणों में कमी आती है। ऐसा जातक बडबोला हो सकता है। यह रेखा लहरदार हो तो जातक बहुत चतुर परन्तु अविश्वसनीय किस्म का होगा। परन्तु लहरदार रेखा के अंत में सितारा हो तो जातक का जीवन बहुत प्रभावशाली ढंग से समाप्त होगा और अंत में अवश्य सफलता प्राप्त करेगा। यदि इस रेखा पर द्वीप दिखाई दे तो यह जीवन में भयंकर रुकावटों का द्योतक है। जातक के धन यश की प्राप्ति में रुकावटें आएँगी। मान-सम्मान और धन हानि का भय रहेगा। यदि ऐसे जातक की सूर्य ऊँगली का तीसरा पर्व लम्बा और मोटा हो तो जातक जुआरी होगा। यदि बुध की ऊँगली मुड़ी हो, हृदय रेखा हलकी या लुप्त हो और अन्य दृष्टियों से भी हाथ अच्छा ना हो तो जातक धोखेबाज होगा और अपनी योग्यता इन्ही बातों की पूर्ति में लगाएगा।

यदि छोटी रेखाएं सूर्य रेखा को बार बार काटती हों तो सफलता में रुकावट की सूचक है। सूर्य रेखा पर धब्बे हों तो जातक के सम्मान के लिए अच्छा नहीं होता। इसी प्रकार रेखा में टूट फूट जातक की प्रगति में रुकावट की सूचक है। यदि यह रेखा प्रारंभ में कमजोर हो और धीरे धीरे लुप्त होती जा रही हो तो वह बताती है की आयु वृद्धि के साथ जातक की धन पैदा करने की इच्छा कमजोर होती जा रही है। यदि रेखा के अंत में एक बिंदु हो तो वह बताता है की सफल और समृद्ध जीवन के बाद जातक के सम्मान को धक्का पहुँचेगा।

यदि सूर्य रेखा सितारे पर समाप्त हो तो यह उत्तम सफलता की सूचक है तथा यदि सूर्य रेखा पर दो सितारे हों तो उसे चकाचौंध करने वाली सफलता और बेशुमार प्रसिद्धि प्राप्त होगी। यदि सूर्य रेखा के प्रारंभ और अंत में सितारा हो तो उसका जीवन प्रारंभ से अंत तक बहुत तेजस्वी और सफल होगा।  यदि सूर्य रेखा के अंत में सूर्य पर्वत पर साथ साथ दो सहायक रेखा भी हो तो यह जातक की योग्यता को बढाता है और जातक को जीवन में अपार सफलता मिलती है लेकिन यदि सूर्य रेखा के अंत में अनेक खड़ी रेखा हों तो यह जातक के प्रयत्नों को बिखेर देने का चिन्ह है। परन्तु यदि सूर्य रेखा के अंत में उसमें से निकल कर शाखा बुध और एक शाखा शनि पर्वत की और जाये तो जात्तक सूर्य, शनि और बुध तीनों की संयुक्त योग्यता से धन, अपार प्रसिद्धि अर्जित करता है।

यदि इस रेखा के अंत में क्रॉस का चिन्ह हो तो यह बहुत हानि कारक है। यह सम्मान के पूरी तरह समाप्ति का सूचक है।

यदि सूर्य रेखा अंत में दो भागों में बाँट जाए तो बताती है की जातक अनेक क्षेत्रों में योग्यता रखता है परन्तु यदि हाथ के अन्य भाग उसे सपोर्ट नहीं करें तो वह किसी भी क्षेत्र में पूर्ण मेहनत नहीं करेगा और उसे पूर्ण सफलता नहीं मिलेगी।

सूर्य रेखा से शाखा निकल कर जिस पर्वत की ओर जा रही हो उस पर्वत के गुणों का समावेश सूर्य रेखा के प्रभाव को तदनुसार बढा देता है।

इस सम्बन्ध में यह बात ध्यान रखनी चाहिए कि सूर्य रेखा के प्रभाव जातक के प्रतिदिन के कार्यों में परिलक्षित होते हैं। इसकी उपस्थिति से जातक को अनेक दिशाओं में सफलता प्राप्त हो सकती है। इसके सही परिणाम जानने के लिये इस रेखा से निकलने वाली सहायक रेखा, वे कहाँ जा कर मिलती हैं, उनके दोष आदि का ध्यान रख कर ही फलादेश का कथन करना चाहिए।

 

 

ज्योतिष के कुछ प्रसिद्ध योग

बुधादित्य योग

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ज्योतिष में 12 भाव होते हैं। किसी भी भाव में जब सूर्य और बुध एक साथ स्थित हों तो यह बुधादित्य योग कहलाता है। योग की प्रबलता इस बात पर निर्भर करती है कि सूर्य और बुध अच्छे भाव में बैठे हैं या खराब भाव में बैठे हैं। चूंकि सूर्य के साथ किसी भी ग्रह का साथ बैठना अस्त होने के खतरे को उत्पन्न करता है। हर ग्रह के अस्त होने की डिग्री अलग-अलग है। बुध की 15 डिग्री है। अर्थात् बुध यदि सूर्य से 15 अंश के अन्दर-अन्दर होंगे तो वो अस्त कहलाएंगे। अस्त का अर्थ यह है कि उसकी स्वयं की रश्मियाँ जातक पर कम पड़ेंगी और सूर्य की रश्मियाँ अधिक पड़ेंगी। ग्रह सूर्य से जितना अधिक नजदीक होंगे उतना ही अधिक अस्त रहेंगे और तदनुसार ही योग फल में कमी आएगी।

बुध ग्रह प्रतिभा के सूचक हैं। जन्म पत्रिका में बुद्धि से सम्बन्धित जितने भी कार्य हैं वह बुध से सम्बन्धित हैं। चपलता, व्यावसायिक निर्णय, वैज्ञानिक प्रतिभा, हानि - लाभ की गणित, प्रत्युत्पन्न मति आदि सब बुध ग्रह के विषय हैं। जैमिनी ऋषि ने बुध से प्रभावित व्यक्ति को मीमांसक बताया है अर्थात् वेद-वेदाङ्ग का अध्येता। मेदिनी ज्योतिष में वर्षा काल में बुध के उदय, अस्त और वक्री होने पर वर्षा होती है, ऐसा बताया है।

बुधादित्य योग होने पर व्यक्ति अत्यंत कुशल होता है और जिस काम में हाथ डालता है, अत्यधिक सफल हो जाता है। बुधादित्य योग की वजह से व्यक्ति जिस भी आजीविका में रहें, उसी में निष्णात होता चला जाता है। ऐसे व्यक्ति शास्त्रों में रूचि लेने लगते हैं तथा किसी भी विषय के गूढ़ रहस्य को जानने के लिए उत्सुक रहते हैं। वृषभ, धनु, मकर और कुम्भ लग्न के लिए तो बुधादित्य योग राजयोग में बदल जाता है। केन्द्र त्रिकोण में यह योग शानदार परिणाम देता है, अन्य भावों में मध्यम या खराब फल देता है।

गजकेसरी योग –

 

जन्म पत्रिका में चन्द्रमा से केन्द्र स्थान में यदि बृहस्पति हों तो यह गजकेसरी योग कहलाता है। हाथी जैसी शक्ति और सिंह जैसी चपलता गजकेसरी योग की विशेषता है। गजकेसरी योग वाले व्यक्ति गुणी होते चले जाते हैं तथा 50 वर्ष की आयु होते-होते सर्वमान्य हो जाते हैं। गजकेसरी योग के लिए आवश्यक नहीं है कि चन्द्रमा और बृहस्पति केन्द्र स्थानों में ही हों, परन्तु ग्रह यदि 6, 8 या 12वें भाव में स्थित हों तो योगफल में कमी आ जाती है।

इस योग वाले व्यक्ति किसी न किसी विषय में विशेषज्ञ हो जाते हैं। उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा अत्यधिक हो जाती है। समाज और परिवार उनकी आज्ञा का पालन करने लगता है और यह लोग गलत बातों को स्वीकार नहीं करते। जन्म पत्रिका के अन्य योग कितने ही कमजोर हों, गजकेसरी योग अकेला ही व्यक्ति की उन्नति निश्चित कर देता है।

 

 

पंचमहापुरुष योग –

 

जन्म पत्रिका का केन्द्र स्थान अति महत्त्वपूर्ण होता है। इनमें किसी ग्रह का स्थित होना या इन भावों के स्वामी होना जीवन में बड़े परिणाम लाता है और यह परिणाम उस ग्रह की दशा आने पर अधिक मिलते हैं। ग्रहों की अन्तदर्शाओं में भी कुछ समय के लिए यह परिणाम आ जाते हैं। मंगल, बुध, बृहस्पति और शुक्र जब केन्द्र स्थान में अपनी ही राशि या अपनी उच्च राशि में हों तो पंचमहापुरुष योग की सृष्टि होती है। इनमें से जो भी ग्रह यह योग बनाये व्यक्ति उस ग्रह के अनुरूप ही शारीरिक संरचना, व्यवसाय या कार्यप्रणाली अपनाता है।

 

 

उत्पात

शास्त्रों में उत्पात लक्षण नाम का अध्याय अवश्य मिलता है और उनके परिणाम बतलाये गये हैं। ये परिणाम सामूहिक रूप से प्राप्त होते हैं।

शिवलिङ्ग, देवताओं की मूर्ति या देवताओं का स्थान बिना किसी कारण के फट जाए, उनमें कम्पन्न हो, उनमें पसीना आ जाए, रोने-गिरने जैसे शब्द निकलें तो प्रजा व शासन दोनों के लिए अनिष्टकारी होता है। यदि धार्मिक स्थानों की यात्रा के समय गाड़ी की धुरी या एक्सल, टायर, ध्वजा आदि गिर जाएं या टूट जाएं तो उसे अशुभ माना गया है। चुनावी सभाओं में स्टेज का टूटना या गिरना भी अशुभ माना गया है। इससे शासन पर आपत्ति आती है।

जिन देवताओं में विकृति आई है उनके पूजा पाठ से शान्ति होना बताया गया है।

कुछ अन्य प्रकार के उत्पात भी बताये गये हैं। अगर बिना अग्नि की ज्वाला दिखाई दे या लकड़ी होने पर भी अग्नि प्रज्ज्वलित ना हो, जल, मांस और गीली वस्तु में अकारण जलन पैदा हो तो वह स्थिति शासन के लिए अशुभ है और अग्निभय उत्पन्न होता है। अकारण शरीर, वनस्पति, पशु और वायुमण्डल में अग्नि या दाह उत्पन्न होना सदा ही अशुभ माना गया है। वृक्ष की शाखाएँ अचानक टूट जाएं, वृक्षों से हँसी या रोने की आवाज आने लगे, अनुपात से अधिक पुष्प व फल उत्पन्न होने लगे, अकारण वृक्ष से अधिक दूध निकले या रसायन युक्त द्रव निकले तो बीमारी और दुर्भिक्ष का भय होता है। वृक्षों से आवाज का निकलना शुभ नहीं माना गया है। वृक्षों की शान्ति के लिए एकादश रुद्र के पाठ बताये गये हैं।

शासकों में पाखण्ड, प्रकृति में विचित्र घटनाओं का घटना, आकाश, जल और पशुओं का विचित्र व्यवहार भी जनता को परेशान करने वाला होता है। अत: ऐसे समय विशेषज्ञों से ज्ञान प्राप्त करके या तो शासन उचित उपाय कराए या जिस व्यक्ति के घर में ऐसे उत्पात आएं उनकी शान्ति कराया जाना आवश्यक है। व्यक्तिगत उत्पात कई तरह के आ सकते हैं। जैसे कि घर में मकडिय़ों का जाल हो जाए, घर में कलह उत्पन्न हो, घर में किसी व्यक्ति के द्वारा कोयले से विकृत या मृत व्यक्तियों के चित्र बनाये जाएं, कुत्ता हड्डी या शव के किसी अंग को लेकर घर में आ जाए, घर के ऊपर कबूतर बैठने लग जाएं, तो इस तरह के बहुत सारे उत्पात बताये गये हैं जो अशुभ परिणाम लाते हैं। कबूतर का घर में वास करना भी अशुभ माना गया है। इन सबकी शान्ति कराई जानी आवश्यक होती है।