बिहार के चुनावी समर में रोजगार मुख्य मुद्दा बनता दिख रहा है। चुनाव के नतीजों पर यदि इसका असर होता है तो फिर देश में आने वाले चुनावों में भी यह मुद्दा उभर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसा प्रतीत होता है कि रोजगार के मुद्दे से बिहार में चुनावी हवा बदली है। 

रोजगार के मुद्दे विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव, कभी भी केंद्र में नहीं रहे। या यूं कहें कि युवाओं के मुद्दों की हमेशा उपेक्षा होती रही है। विपक्ष रोजगार के मुद्दे उठाता जरूर है, लेकिन कभी ऐसा नहीं दिखा कि यह चुनाव का प्रमुख मुद्दा बना हो और चुनाव पर असर डाला हो, लेकिन बिहार में जिस प्रकार से रोजगार का मुद्दा केंद्र बिन्दु में आ चुका है, इससे स्पष्ट संकेत है कि रोजगार के मुद्दे पर बिहार की राजनीतिक हवा बदल रही है। 

भारत के संदर्भ में यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हमारी युवा आबादी बढ़ रही है। 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में करीब 35 फीसदी आबादी युवा है। यह स्थिति करीब-करीब अगले दो दशकों तक बनी रहेगी, जिसके बाद युवा आबादी घटनी शुरू होगी। शिक्षा और तकनीकी शिक्षा का दायरा बढ़ने से वह रोजगार योग्य भी है। सोशल मीडिया ने उनकी दिलचस्पी चुनावों में भी बढ़ाई है। रोजगार चाहने वाले बढ़ने और रोजगार की कमी से यह वर्ग अपने हितों को लेकर सतर्क हैं। इसलिए युवाओं के लिए रोजगार का मुद्दा है। इस मामले में बिहार के चुनाव नतीजे अहम होंगे। यह देखना होगा कि रोजगार का मुद्दा नतीजों पर कितना असर डालता है। दूसरे, क्या यह सिर्फ युवा मतदाताओं तक सीमित रहता है या फिर विस्तृत होकर आम लोगों का मुद्दा बन पाता है?

राजनीतिक विश्लेषक अभय कुमार दुबे कहते हैं कि बिहार चुनावों में यह मुद्दा उभरा है, लेकिन यदि इससे परिणाम पर फर्क पड़ता है तो फिर देश की चुनावी हवा में परिवर्तन होना तय है। जिस प्रकार राजद के 10 लाख नौकरियों के वादे के बाद भाजपा ने 19 लाख रोजगार के अवसर पैदा करने का आश्वासन दिया, उससे साफ है कि राजनीतिक दल भी इस मुद्दे की अहमियत को समझ रहे हैं।