कोलकाता : अमेरिका से पोर्क (सूअर का मांस) के आयात की अनुमति देने के केंद्र सरकार के फैसले से आक्रोशित पूर्वोत्तर के सूअरपालक किसानों का कहना है कि इससे लाखों लोगों के सामने आजीविका का संकट पैदा हो सकता है।

देश में कुल पोर्क खपत में पूर्वोत्तर की लगभग 70 प्रतिशत हिस्सेदारी है और यहां के किसानों को डर है कि बराबरी का मुकाबला नहीं होने और सस्ते अमेरिकी पोर्क उत्पादों से देशी बाजार प्रभावित हो सकता है।

अमेरिका की व्यापार प्रतिनिधि कैथरीन ताई और कृषि सचिव टॉम विल्सैक ने हाल ही में घोषणा की थी कि अमेरिकी कृषि व्यापार के लिए लंबे समय से चली आ रही बाधा को दूर करते हुए भारत पहली बार पोर्क और पोर्क उत्पादों का आयात करने के लिए तैयार हो गया है।

एक हजार से अधिक सदस्यों वाले पूर्वोत्तर प्रगतिशील सूअर पालक किसान संघ (एनईपीपीएफए) ने कहा, ‘‘हम इस कदम का पूरी तरह से विरोध करेंगे, क्योंकि इससे लाखों लोगों की आजीविका प्रभावित होगी। यह फैसला एक तेजी से बढ़ते क्षेत्र के खात्मे की शुरूआत होगा।’’

एनईपीपीएफए ​​के अध्यक्ष मनोज कुमार बसुमतारी ने कहा कि इस क्षेत्र में देश के लगभग 40 प्रतिशत सूअर हैं, और यहां सालाना लगभग 1.3 लाख टन पोर्क तैयार होता है।

उन्होंने कहा कि अमेरिकी सूअरों की आनुवंशिकी और पालन-पोषण की प्रक्रिया पूरी तरह से अलग है, तथा अमेरिकी पोर्क उत्पादों के आयात की अनुमति देने से हमें मुकाबले के लिए बराबरी का मौका नहीं मिलेगा।

बसुमतारी ने पीटीआई-भाषा से कहा कि केंद्र सरकार को इस फैसले की जगह सूअरों के प्रजनन और चारे की गुणवत्ता में सुधार लाने और किसानों को ऋण उपलब्ध कराने पर ध्यान देना चाहिए।