नयी दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने अल्ट्राटेक सीमेंट को गुजरात के भावनगर जिले में चूना पत्थर के खनन की पर्यावरण विभाग की मंजूरी दिए जाने से जुड़े मामले में केंद्र सरकार और अन्य पक्षों को नोटिस जारी कर चार सप्ताह में जवाब तलब किया है।

राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (एनजीटी) ने इस परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दिए जाने के खिलाफ दायर याचिका खारिज कर दी थी। हरित न्यायाधिकरण के निर्णय के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में अपील दायर की गई है।

इस अपील पर न्यायाधीश न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने केंद्र सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, अल्ट्राटेक सीमेंट, ऊंचा कोटड़ा ग्राम पंचायत और अन्य को नोटिस जारी किए हैं। पीठ ने कहा, ‘‘नोटिस जारी किया जाए। जवाबी हलफनामा 4 सप्ताह के अंदर दाखिल किया जाए। जवाब के खिलाफ कोई हलफनामा दायर किया जाना है तो उसे उसके बाद 4 सप्ताह के अंदर दाखिल किया जाए और इस सिविल अपील को 8 सप्ताह बाद सूचीबद्ध किया जाए।’’

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने 24 सितंबर 2020 को याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया था।

न्यायाधिकरण ने अपने निर्णय में कहा था कि परियोजना के समर्थकों ने दस्तावेजों के संदर्भ में व्याख्या प्रस्तुत कर दी है कि संबंधित सांविधिक प्राधिकरण के माध्यम से सार्वजनिक नोटिस जारी किए गए थे और परियोजना को उस क्षेत्र की पंचायत का समर्थन प्राप्त है।

एनजीटी ने कहा था कि खनन योजना में संशोधन के बाद जहां तक नई सार्वजनिक सुनवाई का सवाल है तो विशेषज्ञ आकलन समिति ने स्पष्ट किया कहा था कि उसकी जरूरत नहीं थी, क्योंकि खनन का क्षेत्र 5% कम कर दिया गया था और सभी संबद्ध पक्षों की चिंताओं का समुचित निराकरण किया जा चुका था ।

याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रस्तुत वरिष्ठ वकील संजय पारीक ने उच्चतम न्यायालय की पीठ में कहा कि राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण का आदेश दर्शाता है कि पर्यावरणीय सवीकृति पर उठायी गयी आपत्तियों पर स्वतंत्र मस्तिष्क से सोचा विचार नहीं किया गया।

उच्चतम न्यायालय में दायर अपील में गाभाभाई देवाभाई चौहान और अन्य ने दावा किया है कि वे उन तीन गावों- कलसार, दयाल और कोटड़ा के हैं, जहां सालाना 20.14 लाख टन चूना-पत्थर खनन की यह परियोजना शुरू की जा रही है। उनका कहना है कि इस परियोजना को कोई सार्थक सार्वजनिक सुनवायी किए ही पर्यावरण एवं वन विभाग की मंजूरी दी ली गयी। उनका आरोप है कि मंजूरी देते हुए कई महत्वपूर्ण पहलुओं की अनदेखी की गयी।