उम्र बढ़ने के साथ हमारे अंगों में अपने प्रदर्शन क्षमता के शिखर पर पहुंचने के बाद गिरावट देखी जाने लगती है. हम 80 साल की उम्र में उतना तेज नहीं दौड़ सकते जितना 18 साल की उम्र में दौड़ते थे.

उसी तरह, खास उम्र के पास जाने पर इंसान की दिमाग के सेल्स बिगड़ने लगते हैं. ये कई कारकों का परिणाम हो सकता है. दुर्भाग्य से भारत में बहुत कम लोग बुढ़ापा से जुड़े मुद्दों की पहचान और इलाज में विशेषज्ञ की मदद हासिल करते हैं.

 

डिमेंशिया या अल्जाइमर से पीड़ित लोगों को सार्थक देखभाल की जरूरत होती है. लेकिन उचित देखभाल उस वक्त तक संभव नहीं हो सकता जब तक कि देखभाल करनेवालों की दोनों बीमारियों के प्रति स्पष्ट समझ न हो. दोनों स्थितियों के बीच अंतर करने के लिए आप चंद लक्षणों को समझ सकते हैं.

 

अल्जाइमर- याद्दाश्त और दिमागी कार्य क्षीण होने के कारण दिमागी सेल्स का बिगाड़ अल्जाइमर की बीमारी के तौर पर जाना जाता है. हालांकि वजहों की निश्चित व्याख्या का पता लगाया जाना अभी बाकी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक, अल्जाइमर आहिस्ता-आहिस्ता याद्दाश्त और सोचने की क्षमता को खराब करती है. बुजुर्गों में डिमेंशिया की ये सबसे आम वजह है.

 

अल्जाइमर ज्यादातर बुजुर्गों को प्रभावित करती है और पर्यावरणीय और जेनेटिक फैक्टर का जोखिम में योगदान हो सकता है. वक्त गुजरने के साथ अल्जाइमर के लक्षण खराब होते चले जाते हैं, यहां तक कि एक शख्स के लिए हाल की घटना का याद रखना और परिचित लोगों को पहचानना भी मुश्किल हो जाता है.

 

डिमेंशिया- उम्र बढ़ने के साथ दिमाग के काम में गिरावट को डिमेंशिया से संबोधित किया जाता है. डिमेंशिया के सबसे आम प्रकार में अल्जाइमर शामिल है. डिमेंशिया के पीड़ितों को संवाद करने में मुश्किल का सामना होता है. विभिन्न स्थिति जैसे पार्किसन्स और हंटिंगटन रोग से मस्तिष्क की कोशिकाओं को नुकसान हो सकता है, जिसके नतीजे में डिमेंशिया होता है. डिमेंशिया के करीब 10 फीसद मामलों का संबंध स्ट्रोक या दिमाग तक रक्त प्रवाह से जुड़ता है. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर और हाई कोलेस्ट्रोल लेवल भी जोखिम कारक हैं.