कोविड महामारी की दूसरी लहर के चरम पर पहुंचने के बाद ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वह धीरे-धीरे ही सही, थम रही है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का आकलन है कि यह लहर कम तो हो रही है, पर इसके निष्क्रिय होने में समय लगेगा और इसीलिए तमाम शहरों में लॉकडाउन बरकरार रखना पड़ेगा। भारत जैसे विकासशील देश में लॉकडाउन लंबे समय तक बरकरार रखना बेहद चुनौतीपूर्ण है।

ध्यान रहे कि पिछले साल कोविड महामारी ने आर्थिक तौर पर देश की कमर तोड़ कर रख दी थी। जब अर्थव्यवस्था पटरी पर आ रही थी, तब महामारी की दूसरी लहर आ गई, जो कि अनुमान से बहुत तेज निकली। इस दूसरी लहर में संक्रमण इतना भयंकर है कि पिछले साल जनता जो हौसला दिखा रही थी, वह इस बार नहीं दिखा पा रही।

इस बार अन्य लोगों की तरह कारोबार जगत के भी कई लोग संक्रमण की भेंट चढ़ गए हैं। स्वजनों, कर्मियों और दोस्तों को खोने की पीड़ा झेल रहे कारोबारी समुदाय को अपने हौसले को बनाए रखना होगा और जैसे ही स्थितियां सामान्य होती दिखें, तेजी से सक्रिय होना होगा।

इस समय कोरोना आर्थिक तौर पर भी नुकसान पहुंचा रहा है और मानसिक तौर पर भी। दूसरी लहर का ठीकरा किसके सिर फूटे, इसे लेकर देश में भयंकर राजनीति शुरू है। इस राजनीति की शुरुआत तभी हो गई थी जब मार्च के आखिरी सप्ताह में मुंबई और केरल में संक्रमण तेजी से बढ़ रहा था।

इसी दौरान हरिद्वार में कुंभ हो रहा था और पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव भी चल रहे थे। अप्रैल का दूसरा सप्ताह आते-आते संक्रमण दिल्ली और उत्तर भारत के अन्य इलाकों में भी अपने पैर तेजी से पसारने लगा। इसी के साथ प्रधानमंत्री और गृहमंत्री की बंगाल की चुनावी रैलियों का उल्लेखकर उन पर निशाना साधा जाने लगा और कुंभ को लेकर भी सवाल उठाए जाने लगे। ऐसा करने वालों में राजनीतिक दलों के साथ विदेशी मीडिया भी था।

मद्रास हाईकोर्ट ने तो चुनाव आयोग को कठघरे में खड़ा करते हुए यहां तक कह दिया कि उस पर हत्या का मुकदमा चलना चाहिए। जब यह सब हो रहा था, तब भी कोई यह अनुमान लगाने में सक्षम नहीं था कि संक्रमण की दूसरी लहर सुनामी जैसा रूप धारण कर लेगी, लेकिन ऐसा ही हुआ।