भारत की जन्म पत्रिका में जो कि वृषभ लग्न की है, वृहस्पति और मंगल ही ऐसे ग्रह हैं जो कर्क राशि से बाहर हैं, जहाँ कि सूर्य के साथ चार और ग्रह भी बैठे हैं। ऐसी गणनाओं में राहु केतु को अलग रखा जाता है। भारत की जन्म पत्रिका के तीसरे भाव में पाँच ग्रहों का इकट्ठा होना कई बार आलोचना का विषय भी बना है तो कई बार प्रशंसा का भी। बृहस्पति जो कि कई योग बना रहे हैं तो कई योग खण्डित भी कर रहे हैं। यदि ग्रहों की गणित पर ध्यान दिया जाए तो बृहस्पति सबसे कमजोर ग्रह हैं जो अपनी निर्धारित शक्ति का केवल 72 प्रतिशत ही प्रदान कर पा रहे हैं। वे अष्टमेश भी हैं और लाभेश भी हैं अर्थात् लाभ भाव के स्वामी हैं। इसीलिए भारत पर प्रतिव्यक्ति कर्जा काफी अधिक है, हाँ, यह बात अलग है कि प्रतिव्यक्ति आय भी बढ़ रही है। अगर आज बृहस्पति की महादशा होती तो भारत का पतन हो गया होता। 2050 के बाद जब यह दशा आएगी तब यह देखना होगा कि कहाँ नुकसान होने वाला है।

                                                                  

यह अद्भुत बात है कि इस समय भारत चन्द्रमा की महादशा में चल रहा है, जो कि सितम्बर 25 तक चलेगी। बीजेपी चन्द्रमा की महादशा में चल रही है जो कि अक्टूबर, 2028 तक चलेगी। मोदी स्वयं चन्द्रमा की महादशा में चल रहे हैं जो कि नवम्बर, 2021 तक रहेगी। अगले लोकसभा चुनाव के समय नरेन्द्र मोदी मंगल महादशा में चल रहे होंगे। उस समय तक भारत की शनि अन्तर्दशा आ जाएगी। भारत की मंगल महादशा 2032 तक रहेगी। उनकी कुण्डली में चन्द्रमा और मंगल दोनों से ही नीच भंग राजयोग बना हुआ है। जो कि उनकी मदद करता है।

क्या भारत की कुण्डली में कालसर्प योग है? कालसर्प योग को लेकर भारत में कुछ भ्रांत धारणा चल पड़ी है। वास्तव में इस तरह का कोई योग होता ही नहीं है। नारद, गर्ग, वशिष्ट, विश्वामित्र, अत्रि, वराहमिहिर, रामदैवज्ञ व मंत्रेश्वर जैसे विद्वानों ने   या अन्य किसी भी पुराने विद्वान ने जो कि ज्योतिष ग्रन्थों के मूल लेखक हैं, काल सर्प योग नहीं बताया है। यह जो नई मनगढ़ंत है, वस्तुतः काल सर्प में जिस काल का नाम लिया गया है, वह सौर कक्षा में सीमित राहु-केतु तक सीमित नहीं रह सकता। भारत की जन्म पत्रिका में राहु-केतु अक्ष के एक ही दिशा में सारे ग्रह हैं परन्तु दूसरी तरफ भारत के भाग्य भाव में स्थित मकर राशि सात ग्रहों से दृष्ट हैं और इतनी शक्तिशाली है कि कोई भी अशुभ योग उसके सामने नहीं ठहरता। यद्यपि भारत के बारे में अन्य कई तरह की जन्म पत्रिकाओं से भी भविष्यफल देखा जा सकता है, परन्तु 1947 वाली जन्म पत्रिका भी अच्छा भविष्य कथन कर रही है।

मुझे  इस बात में सार नजर नहीं आता कि भारत तथाकथित कालसर्प दोष से पीड़ित है। अव्वल तो इस नाम का कोई योग होता ही नहीं है और भारत शीर्ष ज्योतिष इस पर सहमत हैं, दूसरा अगर ऐसा योग हो भी तो भारत पर इसका प्रभाव नहीं के बराबर है।

भारत की जन्म पत्रिका में चन्द्रमा नक्षत्र राज पुष्य में हैं और तिथि भी त्रयोदशी है। शुक्र और शनि अस्त हैं, परन्तु मंगल स्वतंत्र हैं और राहु के नक्षत्र में रहते हुए इस कुण्डली के सर्वाधिक शक्तिशाली ग्रह हैं। गणित की भाषा में मंगल का षड़बल 1.63 है जो कि किसी ग्रह के औसत बल से 63 प्रतिशत अधिक है। इतना अधिक ग्रह बल होने पर तो जन्म पत्रिका सौ गुना शक्तिशाली हो जाती है। तो क्या मंगल महादशा में जो कि सितम्बर, 2025 से शुरु होगी, भारत की भूमिका संसार में सबसे प्रमुख हो जाएगी? क्या भारत अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या अन्य वैश्विक संस्थाओं के अनुमानों से कहीं अधिक और बहुत जल्दी सफलता प्राप्त करेगा? क्या ज्योतिष गणनाएँ अन्तर्राष्ट्रीय अनुमानों से ज्यादा सफल सिद्ध होंगी?

निश्चित रूप से यह होने वाला है। ज्योतिष वह सब देख सकती है, जो मनुष्य नहीं देख पाता। हम आने वाली महादशाओं को देखते हुए अत्यंत महत्त्वपूर्ण भविष्यवाणियाँ कर सकते हैं।

भारत की मंगल महादशा -

भारत की मंगल महादशा सितम्बर, 2025 से शुरु होगी। परन्तु उससे पहले जब शनिदेव कुम्भ राशि में रहेंगे अर्थात् 2022 से लेकर 2025 के मार्च महीने तक, भारत की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ेगी यद्यपि आंतरिक संघर्ष बहुत अधिक होंगे। विद्यटनकारी शक्तियाँ अत्यधिक सक्रिय हो जाएंगी तथा एक-दो देशों से भारत के सम्बन्ध बहुत बिगड़ेंगे और उसके कारण कुछ समस्याएँ आएंगी। मेदिनी ज्योतिष के अनुसार 2021 में भी दशहरे-दीवाली के आसपास ऐसी परिस्थितियाँ रहेंगी जब शनि, बृहस्पति और बुध एक साथ वक्री रहेंगे और जन्म पत्रिका के सात ग्रह एक दूसरे से त्रिकोण में रहेंगे, जो नई-नई घटनाओं को जन्म देंगे। 6 अक्टूबर, वाली अमावस्या कुछ कठिन परिणाम ला सकती है। 2024 में भी कुछ ऐसी स्थितियाँ आएंगी जब सारे ग्रह कुंभ, मीन और मेष में इकट्ठे हो जाएंगे और ना केवल भारत पर बल्कि पूरे संसार पर प्रभाव डालेंगे और घटनाओं की संख्या बहुत अधिक हो जाएगी। 7 अप्रैल, 2024 ऐसा ही एक दिन है जब भौगोलिक दृष्टिकोण से व घटनाओं के दृष्टिकोण से कुछ बड़ी बातों को होते हुए देखा जा सकेगा।

कुम्भ राशि के शनि (अप्रैल, 2022 के बाद) भारत को और भारत में चल रहे शासन को बहुत बड़ी चुनौती देने वाले हैं, परन्तु मंगल महादशा तो बाद में शुरु होगी, जो सात साल तक चलेगी। इस महादशा में भारत आंतरिक कलह में उलझा हुआ रहेगा, क्योंकि ज्योतिष के अनुसार दूसरे ग्रह में स्थित मंगल निष्फल हो जाते हैं और आंतरिक कुटुम्ब को जोड़े रखने में बहुत दिक्कतें आएंगी। दूसरी तरफ अन्तर्राष्ट्रीय संधियों से भारत बहुत अधिक बलवान हो जाएगा। अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार बहुत अधिक बढ़ जायेगा। बजट घाटा कम होगा। भारत से निर्यात इतना बढ़ जाएगा कि जिसके कारण प्रतिव्यक्ति आय तेजी से बढ़ेगी। 2025 से लेकर 2032 के बीच में मंगल महादशा में भारत स्पेस टेक्नोलॉजी, डिजिटल टेक्नोलॉजी और हथियारों के निर्यातकर्ता के रूप में अपनी बहुत बड़ी पहचान बना लेगा और बहुत सारे देश भारत का नेतृत्व स्वीकार करने के इच्छुक रहेंगे। भारत की प्रतिष्ठा अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर अत्यधिक हो जाएगी और उसे चीन जैसे देशों को सफल चुनौती देने में मदद मिलेगी।

मंगल ग्रह न केवल तेजस्विता बढ़ाता है बल्कि ऊर्जा का आधिक्य होने पर व्यक्ति आक्रामक हो जाता है, पहल करने की क्षमता रखता है और दुस्साहस का परिचय देता है। विश्व के नेतृत्व की दौड़ में भारत भी एक मजबूत दावेदार के रूप में उभरेगा। इस अवधि में भारत जनसंख्या नियंत्रण के लिए बड़े और प्रभावी कदम उठायेगा और एक-दो छोटे या बड़े युद्धों से भारत की प्रतिष्ठा बहुत बढ़ेगी। इससे पूर्व भी पाकिस्तान में चल रही विखण्डन की प्रक्रिया को भारत पूर्णता की ओर ले जाने की चेष्टा करेगा। 2024 और 2025 में उपजे विवादों की भरपाई, मंगल महादशा के शुरु होने के बाद करेगा।

इस शताब्दी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन मंगल महादशा में ही देखने को मिलेगा। क्योंकि उसके कारण भारत की प्रतिव्यक्ति आय और शिक्षा का स्तर संसार भर से बहुत ऊँचा रहेगा। तब भारत में सबसे ज्यादा तकनीकी रूप से शिक्षित वैज्ञानिक, डॉक्टर या चार्टेड आकाउन्टेंट रहेंगे। भारत की युवा पीढ़ी देश की मशाल को पूरे संसार में ले जाएगी।

क्या है भद्रा?

पंचांग के 5 अंगों में से एक करण भी होता है। एक तिथि का आधा भाग करण कहलाता है। इस तरह से कुल 7 करण होते हैं- बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि। इस विष्टि करण को ही भद्रा कहते हैं। श्रीपति एक महान विद्वान हुए हैं। उन्होंने बताया कि देवासुर संग्राम में देवताओं की पराजय हो गई तो शंकर भगवान अत्यंत क्रोधित हो गए और उनकी दृष्टि हृदय पर पड़ जाने के कारण एक शक्ति उत्पन्न हो गई। इसका मुँह गधे जैसा, सात भुजाएँ, सिंह के समान गर्दन, कृश पेट वाली और प्रेत पर सवार हो गई और दैत्यों का विनाश करने लगी। बाद में देवताओं ने इसे अपने कान के पास स्थापित कर दिया जिससे कि इसे करणों में गिना जाने लगा। विकट और उग्र मुँह वाली भद्रा भूमि पर आकर कई कार्यों का विनाश कर देती है। भद्रा के मुख में पाँच घड़ी, कण्ठ में दो घड़ी, हृदय में 11 घड़ी तथा नाभि में 4 घड़ियाँ होती हैं। 1 घड़ी या घटी 24 मिनट की होती है। कमर में 6 और पूँछ में 3 घड़ी स्थापित करना चाहिए। अगर भद्रा मुख घटी में पड़े तो कार्य का नाश, गले में पड़े तो प्राणों का नाश, हृदय में पड़े तो धन नाश, नाभि में पड़े तो कलह, कमर में पड़े तो धन का नाश और पुच्छ वाली घटियों में विजय प्राप्त होती है। अर्थात् आधी तिथि के विष्टि करण वाले भाग की आखिरी तीन घटियाँ विजय प्राप्त कराने वाली होती है।

कृष्ण पक्ष की तृतीया व दशमी तिथि में भद्रा रात्रि में पड़ती है, चतुर्दशी में दिन में और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और एकादशी में रात में और शुक्ल पक्ष की अष्टमी और पूर्णिमा को भद्रा दिन में होती है।

देवगुरु बृहस्पति ने बताया है कि भद्रा वाली तिथि के दिन मांगलिक कार्यों को नहीं करना चाहिए। केवल एक ही अपवाद है कि दिन वाली भद्रा रात में पड़ जाए और रात वाली दिन में पड़ जाए तो भद्रा का दोष नहीं होता है।

कुछ कार्य भद्रा में अच्छे भी बताये गये हैं। वध, बंधन, जहर, अग्नि, अस्त्र, छेदन, उच्चाटन, घोड़ा, भैंसा, ऊँट आदि के कार्य में भद्रा सफल रहती है। कालिदास ने तो यहाँ तक बताया है कि महादेव जी के जप में, तीन राशि के चन्द्रमा में पूजन करने में, शिवा के रात्रि होम काल में व मेष के चन्द्रमा में भद्रा अशुभ फल नहीं देती है।

मेष, वृष, मिथुन और कर्क में भद्रा का वास स्वर्गलोक में होता है। कन्या, तुला, धनु और मकर में भद्रा का वास पाताल में होता है। शेष राशियों में भद्रा का निवास पृथ्वी पर होता है,पृथ्वी की भद्रा का सदा त्याग कर देना चाहिए। स्वर्ग और पाताल की भद्रा सदा शुभ होती है। राशियों को लेकर विद्वानों में कभी-कभी मतभेद भी रहे हैं।

मलमास

जब मीन राशि में सूर्य होते हैं तो उसे मलमास कहा जाता है। 14 मार्च 2021 से मलमास लगा है। इसी को खरमास भी कहते हैं। जब तब सूर्य मीन राशि में रहेंगे, तब तक ही मलमास रहेगा। 14 मार्च को शाम के समय सूर्य मीन राशि में आ जाएंगे और  14 अप्रैल को मेष राशि में प्रवेश करेंगे।

तालाब, कुआँ, बावड़ी आदि की प्रतिष्ठा व यज्ञ आदि के कार्य मलमास में नहीं किये जाते। बृहस्पति कहते हैं कि अग्न्याधान, प्रतिष्ठा, यज्ञ, दान व्रत आदि, वेदव्रत, चूड़ाकर्म, यज्ञोपवित, मंगल कार्य और अभिषेक आदि मलमास में नहीं करने चाहिए। परन्तु वार्षिक श्राद्ध व पितरों आदि की क्रिया कराई जा सकती है।

इन दिनों सूर्य दक्षिण गोल से उत्तर गोल में प्रवेश करते हैं और मार्च के तीसरे सप्ताह में मेष राशि के प्रथम बिन्दु पर आते हैं। उस दिन सूर्य विषुवत वृत के ठीक मध्य में स्थित होते हैं इसीलिए दिन और रात बराबर होते हैं। हम हमेशा देखेंगे कि 21 और 22 मार्च के दिन सबसे बड़ा दिन होता है। इसके ठीक 6 महीने बाद सबसे छोटा दिन होता है। अभी सूर्य दक्षिणायन में नहीं होंगे, वे तीन महीने तक उत्तर गोल में रहते हुए भी दक्षिणाभिमुख नहीं होंगे, यह स्थिति जून के तीसरे सप्ताह में आती है। मीन राशि में जब सूर्य उत्तर गोल में प्रवेश करते हैं, उसके बाद शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नये संवत का प्रारम्भ होता है। ऐसा तब होता है जब सूर्य मीन राशि से मेष में आ जाएं तथा चन्द्रमा भी अमावस्या के बाद प्रतिपदा में आ जाएं तब फाल्गुन मास समाप्त होकर चैत्र शुक्ल प्रतिपदा होती है।

शनि रेखा

अवतार कृष्ण चावला

शनि रेखा हथेली की एक महत्वपूर्ण रेखा है। इसे भाग्य रेखा, धन रेखा आदि के नाम से भी जाना जाता है। शनि रेखा हथेली के नीचे के भाग से प्रकट होकर शनि पर्वत की ओर जाती है, इसलिए इसे शनि रेखा कहा जाता है। प्रकारांतर से ये भी मान्यता है कि जीवन रेखा जहाँ समाप्त होती है, वहां से जीवन तरंग का प्रवाह मस्तिष्क में जाता है और वहीं से यह जीवन तरंग शनि रेखा के रूप में पुनः प्रकट होती है।

 

इस रेखा से यह पता चलता है कि मनुष्य को जीवन में सफलता किस उम्र में, किस कारण से और कितनी प्राप्त होगी। जिस मनुष्य के हाथ में यह रेखा स्पष्ट होती है उसे भाग्यशाली माना जाता है, इसलिए इसे भाग्य रेखा भी कहा जाता है।

परन्तु केवल इस कारण से कि हथेली में इस रेखा की उपस्थिति है वह सफल और भाग्यशाली होगा एक गलत धारणा होगी। एक स्पष्ट भाग्य रेखा की उपस्थिति यह बताती है कि उस व्यक्ति में कठोर परिश्रम करने की, अच्छे स्वास्थ्य, विकसित मस्तिष्क के साथ सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता है और उसकी वजह से वह आगे तरक्की करने के अपने रास्ते खोल सकता है।

कई बार देखा गया है कि एक भिखारी के हाथ में एक विकसित और निर्दोष भाग्य रेखा की उपस्थिति है परन्तु वह भीख मांग रहा है। विद्वान बताते हैं कि ऐसे व्यक्ति अपनी परिस्थिति को स्वीकार कर चुके हैं और एक संतुष्टि का स्तर उनके दिमाग में आ चुका है अतः उनकी आगे उन्नति बंद हो गई है। इसका दूसरा पहलू है कि हथेली की अन्य रेखा और पर्वत उसकी सहायता नहीं कर रहे हैं। इसका अर्थ है कि जिस व्यक्ति का जीवन आराम से चल रहा हो, वह भाग्यशाली है।

कुछ लोग यह मानते हैं कि जो उनके भाग्य में है वह तो उन्हें मिलेगा ही परन्तु वह लोग आलसी होते हैं और परिश्रम नहीं करना चाहते। भाग्य भी उन्हीं का साथ देता है जो मेहनत करता है। सही दिशा में, सही समय पर लिया गया सही निर्णय व्यक्ति के जीवन को बदल सकता है और व्यक्ति सफलता के नए आयाम छू सकता है। असल में मेहनती व्यक्ति ही भाग्य को प्राप्त कर सकता है।

जब शनि रेखा स्पष्ट हो और शनि पर्वत पर गहरी हो तो वह व्यक्ति की बुद्धिमत्ता का प्रतीक है। उस व्यक्ति में संतुलन, ऊर्जा, मितव्ययिता और चातुर्य होता है और इन्हीं गुणों के कारण उसे सफलता प्राप्त होती है। खोज कार्य शनि प्रधान व्यक्ति का नैसर्गिक गुण है।

बहुत से हाथों में शनि रेखा दिखाई नहीं देती। कई विद्वान इसके बारे में नकारात्मक विचार रखते हैं, परन्तु सच यह है कि यदि हाथ के बाकी लक्षण अच्छे व सहायक हों तो प्रारंभ में इन लोगों ने काफी सामान्य दिन बिताए होते हैं, पर ऐसा व्यक्ति जीवन में अपने प्रयासों से सफलता प्राप्त करता है और अपने सफल जीवन का निर्माण करता है।

शनि रेखा हथेली में निचले भाग से कहीं से भी प्रारम्भ हो सकती है। कई बार जीवन रेखा के अन्दर से, कभी जीवन रेखा के बाहर से, कभी चन्द्र पर्वत से और कभी-कभी हथेली के मध्य से भी आरम्भ होती है और शनि पर्वत की ओर बढ़ती है। 

यदि शनि रेखा जीवन रेखा के अन्दर से आरम्भ होती है तो ऐसे व्यक्ति को जीवन के भौतिक क्षेत्र में सफलता मिलती है और उसके मित्र और सम्बन्धी उसके कार्यों में सहायक होते हैं। यदि यह रेखा हथेली के मध्य से प्रारंभ हो तो व्यक्ति स्वयं निर्मित होता है अर्थात् स्वयं के प्रयासों से सफलता प्राप्त करता है। चन्द्र पर्वत से उद्गम यह बताता है कि जातक के कार्यों में विपरीत लिंग की सहायता का संकेत होता है। कभी यह हथेली के मध्य से आरम्भ होती है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपनी युवा अवस्था में इतना सफल नहीं होता मगर अपने प्रयासों से वह जीवन की मध्यावस्था में सफलता प्राप्त करता है।

यदि जातक के जीवन रेखा में प्रारंभ में कुछ दोष हों तो इसका मतलब जीवन के प्रारंभ में स्वास्थ्य कारणों से जातक सफलता प्राप्त नहीं कर सका। यदि शनि रेखा देर से आरम्भ हुई है और मस्तिष्क रेखा में कुछ दोष हैं तो संभवतः मानसिक बीमारी या कमजोरी के कारण सफलता में रूकावट आई। यदि शनि रेखा यौवन अवस्था से आरम्भ हो रही है और मस्तिष्क रेखा प्राम्भ में दूषित हो और वहां से हृदय रेखा पर दोष होते हों तथा इस काल में जीवन रेखा भी हलकी हो तो इससे ज्ञात होता है कि प्रारंभ में मस्तिष्क सम्बन्धी और फिर हृदय सम्बन्धी रोगों से पीड़ित रहा है और इस स्थिति से उभरने के बाद ही उसने सफलता प्राप्त की है।

यदि शनि रेखा गहरी न हो और अन्य रेखाएं भी गहरी या स्पष्ट न हो तो शनि रेखा का प्रभाव कम होगा परन्तु ये रेखाएं गहरी व स्पष्ट हों तो जातक को जीवन में सफलता प्राप्त होती है। जिस उम्र में यह रेखा गहरी व स्पष्ट हो उस उम्र में जातक को विशेष सफलताएँ मिलती हैं। पतली रेखाएं जीवन में संघर्ष को बताती हैं, यदि जंजीर नुमा रेखा है तो सारा जीवन संघर्ष करते हुए ही व्यतीत होता है। जब-जब भी शनि रेखा पर दूषित चिह्न नजर आएं तो उस आयु में संघर्ष मालूम पड़ता है।

शनि रेखा पर द्वीप दिखाई देना आर्थिक परेशानी दर्शाता है। यदि यह जीवन रेखा के पास हो तो स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या के कारण आर्थिक परेशानी हो सकती है।

शनि रेखा टूटी-फूटी हो तो यह एक बहुत खराब अवस्था है। यदि रेखा का रुख बदल जाए तो जीवन में तथा कार्य में बहुत बड़ा परिवर्तन हो सकता है परन्तु यदि टूटन के आस-पास आयताकार रेखाएं दिखाई दे तो व्यक्ति कड़ा परिश्रम कर सफलता प्राप्त करता है।

यदि शनि रेखा कहीं पतली, कहीं मोटी और कहीं गहरी हो जीवन में बहुत उतार-चढ़ाव आते हैं। यदि यह लहरदार हो तो यह व्यक्ति की परिवर्तनशीलता बताती है।

यदि शनि रेखा हथेली के बीच में ही समाप्त हो जाए तो जातक पहले अच्छी स्थिति में था परन्तु बाद में उसकी स्थिति में गिरावट आएगी ऐसा समझना चाहिए।

क्रमश...

                           

एक श्रेष्ठ गजकेसरी योग

15 अगस्त, 1927 को जन्मे इस व्यक्ति की कुण्डली में एक शक्तिशाली गजकेसरी योग उपस्थित है। इस गजकेसरी योग ने उन्हें जीवन में बहुत बड़ी सफलताएँ दी।

                

क्या है गजकेसरी योग?

जन्म पत्रिका में चन्द्रमा कहीं पर भी हो, वहाँ से चन्द्र राशि, चन्द्रमा से चतुर्थ, चन्द्रमा से सप्तम चन्द्रमा से दशम में बृहस्पति ग्रह स्थित हों तो गजकेसरी योग कहलाता है। इस योग में व्यक्ति में गज जैसी शक्ति तथा केसरी यानि कि सिंह जैसी चपलता चातुर्य जाता है। जब वृहस्पति और चन्द्रमा अच्छी राशियों में होते हैं तब गजकेसरी योग और भी शक्तिशाली हो जाता है। इस कुण्डली में गणित के अनुसार चन्द्रमा का बल सामान्य से 43 प्रतिशत अधिक है और बृहस्पति का बल भी सामान्य से अधिक है। शुक्र ग्रह ने भी अपनी दृष्टि के कारण गजकेसरी योग को शक्तिशाली बनाया, क्योंकि शुक्र भी औसत से 48 प्रतिशत अधिक बलवान है। यह योग और भी बलवान हो गया क्योंकि मंगल ग्रह ने अपनी 8वीं दृष्टि से चन्द्रमा और बृहस्पति पर दृष्टिपात किया जो कि इनके परम मित्र है।

इन का उत्थान बीच जवानी में हुआ, जब वह शुक्र महादशा में चल रहे थे। शुक्र इस जन्म पत्रिका के सबसे शक्तिशाली ग्रह हैं और गजकेसरी योग बनाने वाले ग्रहों की उन पर 7वीं दृष्टि है। इनकी सर्वश्रेष्ठ उपलब्धि चन्द्रमा की महादशा में हुई जब ये गजकेसरी योग बनाने वाली ग्रह दशा में चल रहे थे। कभी इनकी कम्पनियों का सेंधा नमक ही हिन्दुस्तान में बिकता था। सोना और जवाहरात के बड़े खिलाड़ी थे। पन्ने के आयात - निर्यात में बड़ा व्यापार था। ज्योतिष का सॉफ्टवेयर खरीद कर उसका भी विकास कराया। राहु दशा में इनका पूर्ण पतन हो गया तथा इनके हाथ से मुख्य व्यवसाय निकल गये तथा अन्य व्यवसाय अपनाने पड़े और कई सम्पत्तियाँ हाथ से निकल गई।