पुराणों के अनुसार सर्वश्रेष्ठ व्रत एकादशी का माना गया है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। यही कारण है कि इस तिथि को विशेष महत्व दिया गया है। प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियाँ होती हैं। हर माह की कृष्ण पक्ष व शुक्ल पक्ष की एकादशी अपना-अपना महत्व रखती है, परंतु ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को सर्वश्रेष्ठ बताया गया।

इस एकादशी को निर्जला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। निर्जला एकादशी को लेकर पुराणों में एक कथा का उल्लेख मिलता है कि जब महर्षि वेदव्यास जी ने पाण्डवों को चारों पुरुषार्थ- धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का संकल्प करवा रहे थे तभी भीमसेन ने महर्षि वेदव्यास जी से कहा कि मैं भूख सहन नहीं कर सकता। मैं बिना भोजन के एक क्षण भी नहीं रह सकता।

मेरे उदर में वृक नामक अग्नि निरन्तर प्रज्ज्वलित होती रहती है जो भोजन प्राप्त करने से ही शांत होती है। कृपया करके मुझे ऐसा उपाय बताएं कि मैं बिना व्रत के ही वह सब प्राप्त कर सकूं। क्या मैं दान-पुण्य, मंत्र व पूजा-पाठ करके भी भगवान विष्णु को प्रसन्न कर एकादशी का फल प्राप्त कर सकता हूं? इस पर वेदव्यास जी ने कहा- भीमसेन यदि तुमको स्वर्ग लोक प्रिय है और नरक की आपदाओं से बचना चाहते हो तो  ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत करके भी तुम वर्ष भर की समस्त एकादशियों का पुण्य फल प्राप्त कर सकते हो व निःसंदेह इस लोक में तुम यश, सुख और मोक्ष प्राप्त कर सकते हो, इसलिए इस निर्जला एकादशी को विशेष माना गया है।

निर्जला एकादशी की पूजा-पाठ इस प्रकार से करें कि इस तिथि के दिन प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर घर के मंदिर में दीप प्रज्जवलित करें और भगवान विष्णु की आराधना करें और भगवान विष्णु को गंगाजल से अभिषेक करके पुष्प व तुलसी अर्पित करें। इस दिन प्रातःकाल से ही जल व अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। भगवान विष्णु का स्मरण करके भोग लगाएं भोग में तुलसीजी का प्रयोग अवश्य करना चाहिए, क्योंकि श्रीहरि को तुलसी अतिप्रिय होती है और यह एकादशी भगवान श्रीहरि को अर्पित है। इस तिथि को एक मटके में जल भरकर उसे ढक कर शक्कर, मौसमी फल, पंखी, छतरी, शरबत व दक्षिणा आदि रखकर किसी ब्राह्मण को ये सभी सामग्री दे दें या किसी मंदिर में रख दें। यह एकादशी ज्येष्ठ माह में होने के कारण शीतल पेय व जल का दान-पुण्य करना अति महत्वपूर्ण बताया गया है। इस समय सूर्य अपनी तीव्र उष्णता लिए हुए होते हैं, इसलिए इन वस्तुओं का दान करना चाहिए जो गर्मी से राहत दिला सके, अति शुभ होता है। इस दिन सायंकाल के समय तुलसी पूजन करके तुलसी को घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके विष्णु सहस्त्र का पाठ करना चाहिए। इससे घर में धन-धान्य, सुख समृद्धि आदि के साथ-साथ कर्ज से भी मुक्ति व व्यापार में वृद्धि होती है। इस तिथि को अन्न व जल ग्रहण न करके किसी भी मौसमी फल का रस व तुलसी से ही इस व्रत को पूर्ण करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी को जल व अन्न बिल्कुल वर्जित बताया गया है व द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले एक बार फलाहार करके एकादशी व्रत पूर्ण किया जाता है। यदि द्वादश तिथि समाप्त हो जाए व व्रत नहीं खोला गया तो व्रत खण्डित माना गया है।