स्त्री, सन्तान और गाड़ी का पगफेरा

पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर

हिन्दुओं के जनमानस में यह विश्वास व्याप्त है कि स्त्री का विवाह के बाद और सन्तान का जन्म के बाद घर में आना व्यापक परिणाम लाता है। वह अच्छा भी हो सकता है और बुरा भी हो सकता है। साधारण भाषा में इसे  ‘पगफेरा’ कहते हैं। इस बात को ज्योतिष का भी समर्थन प्राप्त है। ज्योतिष तो घर में गाड़ी के पगफेरे को भी महत्त्व देती है।

चाहे घर में कोई भी नया प्राणी आये, जिसका स्थायी निवास रहने वाला हो, तो उसका भाग्य पहले से ही उस भवन में रहने वालों के साथ जुड़ जाता है। मान लीजिए पहले से पाँच आदमी रह रहे हैं तो उनका भाग्य सम्मलित रूप से घर के लिए काम कर रहा है। अब कोई नया व्यक्ति उस घर में आता है तो 6 व्यक्तियों का भाग्य उस मकान में काम करेगा। नये व्यक्ति का भाग्य हर किसी के लिए अलग-अलग अनुपात में काम करेगा और उस पर स्वयं पर भी अन्य लोगों का भाग्य काम करेगा।

मान लीजिए विवाह होकर एक स्त्री घर में आई और वह सामान्य घरेलू स्त्री है जो नौकरी या व्यवसाय नहीं करती तो निश्चित है कि उस घर में वह अपने भाग्य का ही खाती है। अगर उसको कुछ सुविधा मिलती है तो उसके भाग्य से उसके पति की आय बढ़ेगी और पति के माध्यम से उसको वह सब कुछ प्राप्त होगा जो उसके भाग्य में लिखा है। परन्तु यह बात तो घोड़े या कुत्ते के लिए भी कही जा सकती है। स्त्री के पगफेरे को ही क्यों प्रधानता दी गई है?

स्त्री का सम्बन्ध जन्म पत्रिका के सप्तम भाव से जोड़ा गया है जो कि जीवन साथी, व्यापारिक साझेदार और दैनिक सुख के भागीदार का भाव भी है। स्त्री घर में आती है तो अपार संभावनाओं को लेकर आती है। उस स्त्री के संतानें भी होंगी, प्रपौत्र, प्रपौत्री भी होंगी। घोड़े या कुत्ते का पूरा जीवन इसी घर में निकल जाये, यह जरूरी नहीं है और उनसे उत्पन्न संतानों की तो कोई गारन्टी ही नहीं है। फिर कोई भी मनुष्य किसी अन्य के लिए इतना त्याग नहीं करता जितना कि अपनी पत्नी के लिए करता है। हिन्दुओं के मामले में अक्सर पुरुष पत्नी को अपनी सन्तानों के ऊपर जाकर भी वरीयता देते हैं। आप पुरुष की 50 से ऊपर की आयु की कल्पना कीजिए, जब उसकी पत्नी अपना पिछला अतीत भुला चुकी होती है, दैहिक सुखों का आकर्षण नहीं रहता और उस स्त्री का सब कुछ यानी कि सर्वस्व वही घर बन जाता है, जिस घर में वो पुत्रवधू बनकर आई थी। उसके पति का सम्पूर्ण अस्तित्व उसका स्वयं का अस्तित्व बन जाता है और पति के लिए वह सब कुछ हो जाती है। यह साझेदारी जीवन के अंतिम वर्षों तक चलती है और किसी भी अन्य साझेदारी से मजबूत होती है। एक कुशल स्त्री अपने पति के माध्यम से शेष दुनिया पर राज करती है, उसके निर्णयों को प्रभावित करती है और बड़े-बड़े निर्णय लेने को प्रेरित करती है। ऐसे में स्त्री और पुरुष का स्वतंत्र अस्तित्व नहीं रह जाता। बाहर की दुनिया के लिए वे एक इकाई के रूप में ही कार्य करते हैं। इसलिए उसके घर में प्रवेश करते ही अन्य लोगों का भाग्य प्रभावित होने लगता है। पुरुष के भाग्य में स्त्री का भाग्य जुड़ते ही द्विगुणित हो जाता है और उससे उत्थान या पतन कुछ भी हो सकता है। ऐसा भी देखा गया है कि किसी स्त्री के गृह प्रवेश ने सारे घर को बर्बाद कर दिया तो ऐसे भी उदाहरण बहुत अधिक है जहाँ सामान्य घर से आई हुई महिला के कारण पूरे घर का उत्थान शुरु हो गया। अवश्य ही उसकी जन्म पत्रिका बहुत शक्तिशाली होती है जिनके जीवन में यह सब आता है।

सन्तान का पगफेरा भी अति शक्तिशाली होता है। आधुनिक काल में ज्योतिषी पुत्र के जन्म के दिन से ही घर में आने वाले परिवर्तनों को भाँपने की कोशिश करता है। सच्चाई यह है कि यदि माता के गर्भ धारण करने के दिन से ही यदि आप घटनाक्रम का परीक्षण करें तो पाएंगे कि आने वाली सन्तान के जन्म से पहले ही कुछ घटनाएँ घट चुकी होती है। भारतीय ज्योतिष में आधान लग्न का प्रचलन बहुत समय से रहा है। परन्तु आज के नये ज्योतिषी के लिए आधान लग्न या गर्भाधान लग्न का विनिश्चय बहुत कठिन कार्य हो गया है। बल्कि अधिकांश ज्योतिषी तो जन्म पत्रिका बनाना ही भूल गये। कम्प्यूटर से काम चल जाता है। एक मिनट में जन्म पत्रिका तैयार हो जाती है। हमारे गुरु तो जब कलकुलेटर की मदद से त्रैराशिक पद्धति से दशमलव पद्धति में परिवर्तित करके भी जब दस वर्ग कुण्डली बनाने को कहते थे तो नॉनस्टॉप काम करने भी आठ-दस घण्टे से पहले नहीं बना सकते थे। इतनी माथापच्ची अब कौन करे? इसलिए ज्योतिष का स्तर भी अब गिर गया है।

अस्तु, सन्तान गर्भ में आई नहीं कि घर में खलबली शुरु हो गई। किसी की नौकरी बदलने की तैयारी शुरु है तो किसी के मकान बनाने की तैयारी शुरु है, तो किसी के कुछ और किसी के कुछ..।

जन्म पत्रिका का पंचम भाव जो कि सन्तान भाव तो है ही, संचित कर्मों का भी भाव है आपकी सन्तान और आपके कर्म संचय में अवश्य कोई सम्बन्ध रहा होगा, तभी तो वैदिक मनीषियों ने दोनों विषय एक ही भाव से जोड़ना उचित समझा। इसलिए यह अवधारणा बनी कि सन्तान या तो आपका कर्म संचय बढ़ा देगी या आपको गत जन्मों के कर्मों से मुक्त करने में मदद करेगी। भारतीय वाङ्गमय तो बहुत अधिक स्पष्ट है कि पितृ ऋण से मुक्ति तभी मिलेगी जब सन्तान उत्पन्न करोगे और उत्पन्न हुई सन्तान अपने स्वर्गवासी हो गये पितरों के लिए उचित कर्मकाण्ड के साथ मोक्ष मार्ग या मुक्ति का मार्ग प्रशस्त करेगाी। कर्मकाण्ड का श्राद्ध पक्ष या उत्तर कर्म एक महत्त्वपूर्ण अध्याय है और इसका पालन हर भारतीय करता है। बल्कि भारतीय पद्धतियों में दाह संस्कार और उत्तर कर्म संसार की सर्वश्रेष्ठ पद्धति है जिसके माध्यम से मृत देह और मुक्त प्राण का संधि विग्रह किया जाता है।

मुझे हँसी आती है जब आजकल के कुछ लालची पण्डित हर घटना के लिए पितृ दोष को उत्तरदायी मान लेते हैं। किसी का एक्सीडेन्ट हो गया तो पितृ क्यों करवाएंगे? वे तो हमारे ही पूर्वज हैं, हमारे हितैषी हैं, वे दुर्घटना क्यों करवायेंगे? असल बात यह है कि ईश्वर प्रदत्त आयु से पहले ही कोई चला जाए तो शेष अभुक्त आयु में उसके प्रेत रूप में होने की कल्पना की जाती है। मान लो आयु 80 वर्ष थी और चला गया 60 वर्ष में ही, तो 20 वर्ष वह प्रेत योनि में ही रहेगा। 84 लाख योनियों में प्रेत योनि भी शामिल है। जब हम पितरों के लिए कुछ भी नहीं करते तो पितृ परेशान होते हैं और असल में यही पितृ दोष है। हम उनके लिए वार्षिक श्राद्ध निकालते हैं, तिथि श्राद्ध निकालते हैं, हर कर्मकाण्ड में उनके लिए बलि-विधान रखते हैं, हर अमावस्या को उनके लिए कुछ निकालते हैं और इस तरह से उन्हें शान्त करते हैं, ऐसा न करें तो वह पितृ दोष हो जाता है।

सन्तान का पगफेरा घर का भाग्य पलटने वाला होता है। वह कुल दीपक भी हो सकता है, कुल नाशक भी हो सकता है। किसी-किसी बच्चे के जन्म लेने के बाद सारे घर के भाग्य खुल जाते हैं। ज्योतिष इसको मान्यता देता है।

गाड़ी का पगफेरा भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होता। क्योंकि गाड़ी का भाव जन्म पत्रिका का वही भाव है जो कि माता का भाव है। जिस स्त्री के पगफेरे से घर का भाग्य बदला है, उसी से सम्बन्धित भाव के प्रभाव से घर में गाड़ी आई है। इसलिए इस तर्क में भी सच्चाई जान पड़ती है कि गाड़ी घर को प्रभावित करती है। वह शुभ या अशुभ हो सकती है। मेरे पास एक मोटरसाइकिल 25 वर्ष तक इसलिए बनी रही और बेची नहीं गई, क्योंकि उसे अत्यन्त शुभ माना गया। तो ऐसी बहुत सारी अभागी गाड़ियाँ हैं जिनके आते ही कुछ ना कुछ घट गया और उन्हें घाटे में जाकर भी बेचना पड़ा और घर से बाहर कर दिया गया। पुरानी कार खरीदने वाला हर व्यक्ति उस गाड़ी का पिछला इतिहास जरूर पूछता है। अगर एक्सीडेन्टेड है तो वह उस गाड़ी को नहीं खरीदता। मिस्त्री इस तथ्य को जतन पूर्वक छिपाते हैं।

 

किस दिन, किस अंगुली में धारण करें रत्न

रत्नों का संसार अद्भुत है, इनके प्रभाव भी अद्भुत हैं। जातकों को सामान्यतः यह भ्रम रहता है कि कौन-सा रत्न, किस अंगुली में, किस वार को, कितने वजन का पहना जावे?

विशेष :- रत्न का वजन जातक के प्रति 10 किलो पर 1 रत्ती के अनुसार भी निर्धारित करते हैं। परंतु ग्रहों के षडबल व शुभत्व के आधार पर यह तय किया जाना चाहिए।

रत्न       ग्रह     अंगुली             हाथ     धातु       वार

माणिक्य    सूर्य     अनामिका           दाँया     स्वर्ण       रविवार  

मोती      चंद्रमा    अनामिका           दाँया     चाँदी       सोमवार  

मूँगा      मंगल    अनामिका           दाँया     ताँबा       मंगलवार  

पन्ना      बुध     कनिष्ठिका           दाँया     सोना       बुधवार   

पुखराज    गुरु     तर्जनी             दाँया     सोना       गुरुवार   

हीरा      शुक्र     मध्यमा या कनिष्ठा     दाँया     पंच धातु    शुक्रवार  

नीलम     शनि     मध्यमा            दाँया     पंच धातु   शनिवार  

गोमेद     राहु     मध्यमा            दाँया     अष्ट धातु    शनिवार  

वैदूर्य      केतु     तर्जनी             दाँया     चाँदी       शनिवार       

यह परिचय मात्र हैं साथ ही उपर्युक्त विवरण के आधार पर ही रत्न धारण न करें अपितु जन्म पत्रिका में ग्रह विशेष की स्थिति व भावानुसार ही किसी योग्य ज्योतिषी से परामर्श करके ही रत्न धारण करना चाहिए।

 

देवप्रिय दिव्य वनस्पतियाँ - 2

चंदन : प्रत्येक मांगलिक या शुभ अवसर पर चंदन का प्रयोग अवश्य होता है। चंदन शांति एवं स्वार्पण का प्रतीक है। प्रायः प्रत्येक हिन्दू परिवार में चंदन का टीका मस्तिष्क पर लगाया जाता है। इसका वैज्ञानिक कारण है कि चंदन शीतलता देता है अतः नर्म, क्रोधरहित, मस्तिष्क बनाता है। धूप, अगरबत्ती आदि में भी चंदन मिला रहता है जो वातावरण को शुद्ध, सुगंधित तथा चित्त को शांत करता है। चंदन का तेल जीवाणुनाशक होता है इसलिए इसका प्रयोग दवाइयों में होता है।

चंदनं च महत्पुण्यं पवित्रं पापनाशनम्।

आपदां हरते नित्यं लक्ष्मीस्तिष्ठति सर्वदा॥

पीपल : हिन्दू मान्यता के अनुसार पीपल की जड़ को ब्रह्मा, तने को विष्णु और टहनियों को शिव समझा जाता है। अथर्ववेद में पीपल को आयु, संतति और लक्ष्मीप्रद वृक्ष माना गया है। पुण्याहवाचन के समय में, मंगल कलश में भी पीपल के पत्ते डालने का विधान है। पीपल वृक्ष में पितरों का वास होता है तभी पितृपक्ष में या अमावस्या के दिन औरतें पीपल को जल चढ़ाती हैं और सूत्रवेष्टन करती हैं।

पीपल में अमृत तत्व पाए जाते हैं इसलिए इसे महादेव का नाम दिया गया है। भगवान बुद्ध को भी, इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था इसलिए इसे बोधिवृक्ष भी कहते हैं। सम्राट अशोक के काल में, इस वृक्ष की शाखाएं संपूर्ण विश्व में बुद्ध के सिद्धान्तों को प्रतिपादित करने के लिए लगाई गई थीं।

वृक्ष हमारी प्रकृति का बहुमूल्य अंग हैं, जो ना केवल हमें फल-फूल, छाया तथा ऑक्सीजन आदि देते हैं बल्कि इनके धार्मिक, औषधीय तथा वानस्पतिक गुणों से, हमारे जीवन के चार महापुरुषार्थ धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चरितार्थ होते हैं।

दूर्र्वा : दूर्र्वा, एक घास प्रजाति की औषधि और वनस्पति है। ये गणपति देव को अत्यंत प्रिय है। दूर्र्वा समग्र भारत देश में पायी जाती है। उसकी वृद्धि एवं विकास एकदम तेजी से होता है। दूर्र्वा के कोमल अंकुर को, घी के साथ मिलाकर गणेश याग करने से, कुल वृद्धि अर्थात् संतान प्राप्ति अवश्य होती है।

केला : सत्यनारायण कथा हो या देव प्रतिष्ठा हो, केले के पत्ते या स्तंभ की आवश्यकता अवश्य पड़ती है। सत्यनारायण कथा में यह उल्लेख किया गया है। केले के चार पत्ते या स्तंभ का मंडप तैयार करना चाहिए। केले के पत्ते भगवान विष्णु को बहुत प्रिय हैं।

आगे चलकर भगवान विष्णु, नारद जी को कहते हैं कि जो मेरा भक्त, मुझे रंभाफल (केला) और रंभाफल युक्त हलवा (शीरा) अर्पण करता है, उसे मैं अवश्य गोलोक गमन कराता हूँ। केले को संस्कृत में कदलीफल और रंभाफल कहते हैं।

केले के गर्भ से एक प्रकार की कपूर बनती है जिसकी सुगंध अत्यंत तीव्र होती है, जो देवी तथा देवों को विशेष प्रिय है। दक्षिण भारत में केले के पत्तों पर भोजन करना शुभ व स्वास्थ्यकर माना जाता है।

नागरवेल के पत्ते : कोई भी देवी-देवता का पूजन या यजन हो, उसमें नागरवेल के पत्ते अवश्य होते हैं। चाहे भगवान का आसन हो या मुखवास (तांबूल) हो, नागरवेल के पत्ते के बिना अधूरा ही है। कभी-कभार नागरवेल के अलावा आम्र (आम) के पत्ते, पीपल के पत्ते या बरगद के पत्ते भी पूजन में शामिल किए जाते हैं। यह पंच पल्लव सर्वग्राह्य हैं। इसके संदर्भ में एक पुण्याहवाचन श्लोक है जो मैं यहां प्रस्तुत करता हूँ -

अश्वत्थदुंबरो प्लक्ष चूतन्यग्रोध पल्लवा।

पंचभंगा इति प्रोक्त सर्व कर्म सुशोभन॥

नागरवेल के पत्ते को मुखवास के रूप में, देव पूजा में प्रयोग किया जाता है और मुखवास को तांबूल भी कहते हैं। पुण्याहवाचन में कहा है- तांबूलानि पांतु-ऐश्वर्य मस्तु। अर्थात् तांबूल अर्पित करने से ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।

दर्भ (कुशा) : दर्भ, घास वर्ग की दीर्घायुषी वनस्पति है। उसके मूल बहुत गंभीर होते हैं। दर्भ की एक विशिष्टता है कि उसके मूल सीधे ही होते हैं। कुश पौधे की ऊँचाई 1 मीटर से 2 मीटर तक की होती है। दर्भ, पितृ पूजन का अति-आवश्यक अंग है। इसके बिना की गई पितृ पूजा व्यर्थ मानी जाती है। दर्भ (कुशा) का उपयोग देवयजन एवं पितृयजन में समान रूप से होता है। सूर्यग्रहण और चंद्रग्रहण के समय में दर्भासन पर बैठकर, दर्भ को साथ में रखकर जप करने से, ग्रहण की अनिष्टता दूर होती है। इसके अलावा ग्रहणकाल में पानी,भोज्य पदार्थ एवं खाद्यान्नों पर कुशा रखी जाती है जिससे वे दोषमुक्त रहते हैं। मृत्यु समय में शव के नीचे दर्भ रखा जाता है।

कुशोदर्भस्तथा बर्हिः सूच्याग्रे यज्ञभूषणः।

नतोन्यो दीर्घपत्रः स्यात क्षुरपत्रस्तथैव च॥

उपरोक्त श्लोक में दर्भ (कुशा) के विविध नाम दिए गए हैं।

दर्भ, कुश, बर्हि, सूच्याग्र अर्थात् सूई (सूई जैसी पैनी) जैसी अग्र भाग वाली, यज्ञभूषण अर्थात् यज्ञ कार्य में अति आवश्यक एवं भूषण रूप, दीर्घपत्र-लंबे पान (पत्ते) वाली, क्षुरपत्र अर्थात् अस्त्र जैसी धार वाले पत्रों (पत्ते) से युक्त।

दर्भ समस्त भारत खण्ड में पायी जाती है। वनस्पति के अनेक भेद पुराणों में दर्शाये हैं, जिसमें पहले फूल आने के बाद फल आते हैं, उसको वानस्पत्य कहते हैं। जिसमें फूल आए बगैर फल आते हैं, उसको वनस्पति कहते हैं और फल आने के बाद जो वनस्पति सूख जाती है, उसे औषधि कहते हैं। भाद्रपद अमावस्या को कुशग्रहणी अमावस्या कहते हैं, इस दिन कुश ग्रहण करना अत्यंत पावन माना जाता है।

हरिद्रा : संस्कृत में हरिद्रा, हिन्दी में हल्दी, गुजराती में हलदर, बंगाली में हलुद्र, मराठी में हलद्र, तमिल में मंजल, तेलुगु में पसुपु, अरबी में उरुकुस्सफर तथा लेटिन में करकुमा लौंगा कहते हैं।

इसका पौधा पाँच फुट तक ऊँचा, अदरक की तरह होता है। उसके पत्ते डेढ फुट तक लंबे और 6 इंच तक चौड़े एवं नुकीले, तीव्र सुगंधयुक्त होते हैं। फूल पीले और लंबे, डण्ठल पर लगते हैं। फल लंबा और गाँठदार होता है। जड़ में छोटे-छोटे कद की तरह बन जाते हैं। यह एक प्रकार कंदमूल है। हरिद्रा एक उत्तम एन्टीसेप्टिक औषधीय वनस्पति है। उसका पौराणिक महत्व सविशेष है।

महाराष्ट्र एवं दक्षिण भारत में स्ति्रयाँ कुमकुम-हल्दी का टीका लगाती हैं। कोई भी देवी-देव के पूजन में, सौभाग्य द्रव्य के रूप में हरिद्रा अवश्य प्रयुक्त होती है। हरिद्रा गणपति, विष्णु एवं लक्ष्मीजी को विशेष प्रिय है। उसके उत्तम औषधीय गुण के कारण, हमारे रसोई में यह अग्रिम स्थान पर है। पुराणों में हरिद्रा को सर्वौषधि की उपमा दी गई है।

 

टैरो पद्धति एवं भारतीय ज्योतिष

16वीं शताब्दी के प्रारम्भ में शायद फ्रैन्च लोगों ने टारोच्ची नाम को छोटा करके टैरो कर दिया। अब अंग्रेजी व अन्य भाषाओं में इसे टैरो कहा जाता है। इन टैरो काडर्स के माध्यम से भविष्य कथन की रहस्यमयी पद्धति को सर्वप्रथम पेरिस के राज मिस्त्री एण्टोइनी कोर्ट दी गेवेलिन ने कहा। उसने इनसे जुड़ी अनेक कहानियाँ प्रचलित कीं। उनके समकालीन एटीला ने एक निबन्ध लिखा Rewind and Corrected Card Deck द्वारा भविष्य कथन। फ्रांस से इन कार्डों की लोकप्रियता इंग्लैण्ड पहुँची तथा यूरोप में इन कार्डों का प्रयोग और महत्ता काफी बढ़ गई।

टैरो कार्ड्स - एक संक्षिप्त परिचय : टैरो 78 कार्डों का एक समूह है जिसके साथ कई धारणाएँ एवं विश्वास जुड़े हैं। इनके कार्ड्स के दो प्रमुख समूह हैं। मेजर अरकाना एवं माइनर अरकाना। मेजर अरकाना में 22 काडर्स हैं।

22 मेजर अरकाना कार्डों पर विभिन्न चित्र अंकित होते हैं जो जीवन से जुड़ी घटनाओं, आंतरिक शक्तियों, रहस्यों व उपलब्धियों की ओर संकेत करते हैं।

Minor Arcana(माइनर अरकाना) : माइनर अरकाना में कुल 56 कार्ड्स हैं जिन्हें चार समूहों में विभाजित किया जा सकता है जो चार प्राकृतिक तत्वों पृथ्वी, जल, अग्नि तथा वायु से संबंधित हैं।

टैरो कार्ड्स अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी आदि तत्वों के प्राकृतिक संतुलन को इंगित करते हैं। माइनर अरकाना मानव की ऊर्जा से संचालित होते हैं। मनुष्य किस दिशा की ओर अग्रसर है इन कार्डों से स्पष्ट होता है। कोर्ट काडर्स Page,  Knight, Queen और King जीवन में आने वाली घटनाओं, व्यक्तियों व परिस्थितियों को इंगित करते हैं।

जब काडर्स बिछाए जाते हैं तो ये प्रश्नकर्ता के साथ होने वाली घटनाओं और संभावनाओं की ओर संकेत करते हैं। कोई घटना कब होगी? इसका निर्धारण कार्डों के संकेत तथा टैरो रीडर के अंतर्मन के आभास पर निर्भर करता है। कार्डों को बिछाने के कई तरीके प्रचलित हैं जैसे :-

                The Three Spread, 2. The Cross Spread, 3. The Horseshoe Spread, 4. The Fan spread, 5. The Calander spread, 6. The Tree of Life spread, 7. The Horoscope spread, आदि।

इन सभी spread (बिछाव) में प्रश्नकर्ता द्वारा टैरो कार्ड्स की गड्डी में से खींचे गए कार्ड रखे जाते हैं, जो प्रश्नकर्ता की समस्या का समाधान करते हैं, उसके भूत, वर्तमान व भविष्य को बताते हैं। उसके सामाजिक जीवन, साझेदारी, प्रेम, यात्रा, वित्त संबंधी प्रश्नों के उत्तर देते हैं। मान्यता है कि इन कार्ड्स को बिछाने में प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए। संभव हो तो भूमि पर बैठें, लकड़ी के फर्नीचर का प्रयोग करें। फाइबर या प्लास्टिक का नहीं। बिछाने का कपड़ा सूती या रेशमी होना चाहिए सिंथेटिक नहीं।

टैरो पद्धति एवं भारतीय ज्योतिष : भारतीय ज्योतिष में लग्न कुंडली का सर्वाधिक महत्व है जिसमें मनुष्य के जन्म के समय आकाशीय ग्रहों की स्थिति  व्याख्या की गई हैं। इन ग्रहों का मानव जीवन पर स्थायी प्रभाव बताया गया है। इसके अतिरिक्त गोचर ग्रहों अर्थात् चलायमान ग्रहों का भी प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। टैरो पद्धति भी ग्रहों के प्रभाव से अछूती नहीं है। मेजर अरकाना के सभी कार्ड्स किसी न किसी ग्रह से प्रभावित हैं। यथा- The Magician बुध से, The wheel of fortune बृहस्पति से, The Tower मंगल से आदि। इस प्रकार मेजर अरकाना की तुलना लग्न कुंडली से की जा सकती है।

माइनर अरकाना को ऊर्जा के प्रवाह से जोड़ा गया है। इसकी तुलना गोचर के ग्रहों से की जा सकती है। ये प्रश्नकर्ता की वर्तमान ऊर्जा से संबंधित हैं अर्थात् उसके विचार, भावनाएं व धारणाएं आदि। माइनर अरकाना के चार समूहों में से प्रत्येक में 14-14 कार्ड्स हैं जिनमें से 10, एक से दस तक संख्याओं को प्रतिबिंबित करते हैं तथा 4 काडर्स प्रत्येक समूह में Page,  Knight, Kings और Queens के हैं। इन्हें Court cards कहा जाता है। माइनर अरकाना के चार समूह Wands, Cups, Swords Uऔर Pentacles क्रमशः अग्नि, जल, वायु व पृथ्वी को इंगित करते हैं। भारतीय ज्योतिष में भी इन तत्वों का अत्यधिक महत्व है। मानवीय ऊर्जा को संतुलित करने में इन तत्वों का योगदान है। भारतीय ज्योतिष की सभी राशियाँ इनमें से किसी न किसी तत्व से प्रभावित होती हैं। इसे निम्नलिखित चार्ट द्वारा समझा जा सकता है।

                तत्व                   टैरो समूह    प्रभावित राशि

                अग्नि                   Wands      मेष, सिंह, धनु

                पृथ्वी                  Pentacles    वृष, कन्या, मकर

                वायु                   Swords      मिथुन, तुला, कुंभ

                जल                   Cups       कर्क, मीन, वृश्चिक

अतः भारतीय ज्योतिष की राशियाँ एवं माइनर अरकाना कार्ड्स के समूह दोनों ही अग्नि, जल, वायु व पृथ्वी तत्व से प्रभावित हैं।

टैरो कार्ड्स से प्रश्न का हल जानते समय कुछ कार्ड्स उलटे भी आते हैं अर्थात् प्रश्नकर्ता टैरो काडर््स की गड्डी में से कुछ कार्ड जब खींचता है तो वे उल्टे आते हैं। कार्ड के बताए अर्थ से उल्टे कार्डों का अर्थ विपरीत होता है। उदाहरणार्थ Major Arcana का Justice कार्ड यदि सीधा आए तो इसका अर्थ है जिम्मेदारी एवं संतुलित व्यक्तित्व। इसके विपरीत यदि कार्ड उल्टा आए तो इसका अर्थ है अन्यायपूर्ण एवं प्रतिकूल निर्णय अथवा गलत सलाह। इन उलटे कार्डों की तुलना जन्मपत्रिका के वक्री ग्रहों से की जा सकती है। पृथ्वी की गति की तुलना में जब कोई ग्रह मंद गति से चलते हैं तो वे विपरीत दिशा में चलते हुए प्रतीत होते हैं उस अवस्था को वक्री अवस्था कहते हैं परंतु वक्री ग्रह मानव जीवन पर सदैव विपरीत प्रभाव नहीं डालते। उदाहरणार्थ जन्मकालिक वक्री बृहस्पति वाले जातक अधिकतर उन कामों में सफलता अर्जित करते हैं जिनमें दूसरे लोग असफल होते हैं।

वक्री नेपच्यून के प्रभाव से जातक में गूढ़ विद्याओं में प्रवीणता आती है। इसी प्रकार सभी टैरो कार्ड्स के उलटा पड़ने पर सदैव विपरीत प्रभाव नही पड़ता है। यह तो प्रश्नकर्ता की मानसिक स्थिति पर निर्भर करता है। उदाहरणार्थ III ऑफ स्वोर्ड्स कार्ड यदि उलटा निकल आए तो दिल टूटने एवं धोखा खाने की पीड़ा काफी कम हो जाएगी जबकि सीधा कार्ड आहत हृदय का कारक होगा। उलटा कार्ड यदि बाकी सभी शुभ प्रभाव वाले कार्डों से घिरा है तो उस कार्ड का ऋणात्मक प्रभाव काफी कम हो जाएगा।

निष्कर्ष : भारतीय ज्योतिष एवं टैरो पद्धति में कुछ समानताएं होने पर भी दोनों पद्धतियाँ पूरी तरह से समान नही हैं। टैरो पद्धति पिछले कुछ वर्षों से बहुत अधिक प्रचलन में है।

भविष्य के गर्भ में दिए गए अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने की चाह सभी में है परंतु मेरे विचार में भारतीय ज्योतिष पद्धति का क्षेत्र बहुत व्यापक है। भारतीय पद्धति अधिक सटीक, स्थायी एवं वैज्ञानिक है।