वास्तुशास्त्र और सरकारी संस्थाओं के नियम  पं. सतीश शर्मा


वास्तु शास्त्र की प्रैक्टिस करते समय मेरे अनुभव में कुछ कानूनी व व्यावहारिक समस्याएँ आईं और उनका कोई समाधान निकलता नजर नहीं आता था। वास्तुशास्त्री और उसका यजमान खूब उपाय कर लें तो भी कानून विरुद्ध कार्य करना उचित नहीं है। राजा का आदेश भी ईश्वर का आदेश ही होता है। कुछ उदाहरणों के साथ इस बात को  समझेंगे। 


मान लीजिए एक दक्षिणमुखी भूखण्ड का आकार 30 x 60 है, जो कि एक लोकप्रिय आकार है। अब अगर वह भूखण्ड 60 फीट चौड़ी सड़क पर है और स्थानीय नगर निगम या संस्था का विधान फ्रन्ट सैटबैक के रूप में 20 फीट खाली या बिना निर्माण के रखने के लिए विधान करता है तो यहाँ वास्तुशास्त्र की समस्या आएगी। आमतौर से वास्तुशास्त्री कहेंगे कि जितना दक्षिण में खाली छोड़ा है, उतना ही उत्तर में भी खाली छोड़िए तथा पूर्व व पश्चिम में अगर 5-5 फीट का भी स्थान खाली छोड़ा जाए तो  निर्माण के लिए योग्य बचा क्षेत्रफल बहुत कम रह जायेगा। वास्तुशास्त्री कभी नहीं चाहेंगे कि उत्तर भारी हो जाए और दक्षिण हल्का या खाली रह जाए। जब यजमान को यह सलाह दी जाती है कि जितना उत्तर दिशा भी दक्षिण की अपेक्षा उतना ही या ज्यादा  खाली रखो तो यजमान या ग्राहक को यह बात जंचती नहीं और आर्किटेक्ट भी सहमत नहीं होता। परिणाम यह होता है कि 2-3 वर्ष के अन्दर-अन्दर भूखण्ड के मालिक का पतन हो जाता है या दुर्घटनाएँ आने लगती हैं। 


ऐसी परिस्थितियों में मैंने जब यह सलाह दी कि आप पूरे भूखण्ड में बेसमेन्ट बनाकर नीचे - नीचे उसका विस्तार फ्रन्ट सैटबैक एरिया के नीचे भी कर लो और उसकी छत पर लॉन बना लो। यह कार्य भी कानून सम्मत नहीं है और मुझे यह दुविधा रहती है कि अगर नगर निगम आज्ञा दे तो ही बनाओ वर्ना मत बनाओ। वास्तुशास्त्री के तौर पर हम कभी भी सरकारी आज्ञाओं का उल्लंघन नहीं करेंगे। फिर भी कुछ तिकड़मी लोग इस सलाह पर अमल कर लेते हैं। 


मेरे पास आये हुए लोगों के लिए मैंने सरकारी नियमों के अन्तर्गत ही वास्तु ले-आउट प्लान बनाकर दिये और वही नक्शा सबमिशन प्लान के अन्तर्गत सरकार में जमा हो गया। परन्तु दो साल बाद जब मुझे उसी मकान पर जाना हुआ तो नगर-निगम द्वारा स्वीकृत नक्शे के अलावा भी बहुत कुछ बनाया हुआ मिलता है। मन का लालच है कि थमता ही नहीं। इस क्रम में वास्तुशास्त्री की योजना तो भंग हो ही गई, क्योंकि जब वास्तुशास्त्र का आयव्यय का सिद्धान्त निर्मित क्षेत्रफल पर लागू करते हैं तो एक वर्गफीट का अतिरिक्त निर्माण भी आय-व्यय के सिद्धान्त को खण्डित कर देता है। मान लो ग्रह स्वामी ने शत-प्रतिशत हमारी योजना से मकान बना लिया, फिर भी जब बच्चा जवान हुआ, कॉलेज में जाने लगा और उसके लिए नया कमरा बनाया गया तो फिर वास्तुशास्त्र का उल्लंघन हुआ। उस पर भी अगर दिशाओं के अनुकूल कमरा नहीं बनाया गया तो मकान का वास्तु सन्तुलन बिगड़ जायेगा और गृह स्वामी को नुकसान हो सकता है। मेरे वर्तमान कार्यालय के ठीक सामने वाले मकान में जब गृह स्वामी ने प्रथम तल पर ठीक ईशान कोण में कमरा बना लिया जो कि प्रथम तल पर एकमात्र निर्माण था, उसे सन्तुलित करने के लिए मैंने कुछ सलाह दी परन्तु वह नहीं कर पाए। मैंने दुर्घटना की चेतावनी भी दी, परन्तु उन्होंने अनसुनी कर दी। गोचरवश जैसे ही शनि-मंगल का प्रभाव उस कोण पर एक साथ पड़ा तो उनका एकमात्र पुत्र दुर्घटनाग्रस्त हो गया और उसकी मृत्यु हो गई। नतीजा यह निकला कि वे जयपुर छोड़कर हमेशा के लिए आगरा चले गये। उन्होंने मुझ से यह अवश्य कहा कि आपको पता था यह मृत्यु हो जाएगी परन्तु आपने बताया नहीं। मैंने उत्तर दिया कि मैंने आपको गंभीर दुर्घटना की आशंका तो बताई थी, भला मृत्यु की घोषणा कौन करता है? 


एक मकान में सरकारी नियमों के अन्तर्गत सैटबैक एरिया अर्थात् खाली छोड़े जाने वाला क्षेत्र पश्चिम दिशा में था और 10 फीट चौड़ा था। इसीलिए द्वार भी उत्तर पश्चिम कोण में ही आना सम्भव था। वर्षों बाद घर में जब समस्याएँ हुईं तो घर के वरिष्ठ पुत्र मकान दिखाने के लिए मुझे वहाँ लेकर गये। मैं द्वार पर ही ठिठक गया क्यों कि वायव्य कोण का द्वार मृत्यु लाता है या जेल भेजता है। मैं मुख्य द्वार से अन्दर प्रवेश करूँ, इससे पूर्व ही वृद्ध माताजी घर से निकलकर बाहर आईं और अपने बेटे से बोली कि ‘‘फिर किसी नये को ले आये।’’ मुझे अपमानित सा वहाँ खड़ा रहना अच्छा नहीं लगा और मैंने उन वृद्ध माताजी से कहा कि ‘‘माताजी मत्स्य पुराण में इस द्वार का निषेध किया गया है और यह घर में घटनाएँ लाता है। मैं तो वापिस चला जाता हूँ, परन्तु कोई भी घटना अगर आए तो मुझ से बात जरूर करना।’’ कुछ महीनों बाद ही उस घर में एक जवान व्यक्ति की मृत्यु हो गई और फिर माताजी को मेरी याद आई और वह मेरे कार्यालय तक पहुँच गई। ‘‘बेटा!  मेरे घर तो भगवान ही आये थे, मैं समझ नहीं पाई।’’ मैंने कहा कि ‘‘माताजी अब मैं क्या कर सकता हूँ। मृतक को तो मैं वापिस ला नहीं सकता।’’


सरकारी नियमों के अन्तर्गत उस द्वार को मैं किसी और जगह नहीं बनवा सकता था। हाँ आगे के लिए मैंने निश्चय अवश्य कर लिया कि सरकारी द्वार को बना रहने दो परन्तु ऐसे ही मामले में वास्तुसम्मत अतिरिक्त द्वार तो कम से कम खुलवा दो। अब बुरे द्वार से बुरे परिणाम आते रहेंगे और शुभ द्वार से शुभ परिणाम आना शुरु हो जाएंगे। 


उत्तरमुखी और पूर्वमुखी मकानों में सामने की सड़क कितनी ही चौड़ी हो, चाहे 60, 80 या 100 फीट की, उसमें वास्तुशास्त्र मदद करता है, क्योंकि ग्राउण्ड फ्लोर पर अधिक ना बनाकर अधिक ऊँचाई के भवन बनाये जा सकते हैं। परन्तु पश्चिममुखी या दक्षिणमुखी भवनों में समस्या और गहरी हो जाती है, क्योंकि जितनी चौड़ी सड़क होगी, उतना ही सैटबैक एरिया दक्षिण या पश्चिम में छोड़ना पड़ेगा। हमें निर्माण से पहले ही पता लग जाता है कि मकान मालिक समस्याओं में फँसने वाला है। 


एक बहुत ही सामान्य समस्या है कि दक्षिणमुखी और पश्चिम मुखी मकानों में फ्रन्ट सैटबैक या लॉन एरिया में ही भूमिगत पानी का टैंक बनाने की गुंजाइश रहती है और वह सदा नुकसान करते हैं। आमतौर से वास्तुशास्त्री उत्तर दिशा या ईशान कोण की ओर भूमिगत जलाशय बनाने के लिए कहते हैं। उधर ही बोरिंग कराने के लिए कहते हैं। भूमिस्वामी का कहना है कि भूखण्ड खाली रहने तक तो बोरिंग के लिए खुदाई की जा सकती है परन्तु बनने के बाद बोरिंग करने वाली मशीनें घर के पिछवाड़े में नहीं जा सकती। हार-थक कर लोग समझौता कर लेते हैं और फ्रन्ट लॉन में ही पानी का टैंक या बोरिंग करवा लेते हैं। नतीजा साल-दो-साल के अन्दर-अन्दर घर में रोग-शोक आने लगते हैं। इस तरह की कुछ समस्याओं की चर्चा मैं अगले बुधवार को प्रकाशित होने वाले अंक में करूँगा।

 

क्या 2 विवाह रेखा 2 विवाह कराती हैं?
ज्योति शर्मा
हाथ की कनिष्ठा अंगुली के नीचे बुध पर्वत पर हृदय रेखा के समानान्तर एक छोटी सी आड़ी रेखा विवाह रेखा कहलाती है। इस छोटी सी रेखा से ही दाम्पत्य जीवन के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। अक्सर लोग तब चिंतित होते हैं जब रेखाएँ एक से अधिक हों और आसपास के यार-दोस्त भी सलाह दे देते हैं कि 2 रेखाएँ हैं तो 2 विवाह होंगे और 3 रेखाएँ हैं तो तीन विवाह होंगे। यह गुप्त सलाह होती है, परन्तु इस पर जिन्दगी भर सलाहें आती रहती हैं। 


 
आज अधिकांश देशों में एक विवाह को ही कानूनी मान्यता है। एक पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह अवेध है और सजा योग्य है। ऐसे में कानूनी रूप से विवाह किया जाना सम्भव नहीं है। अतः ऐसी स्थिति में तीन-चार तरह के अनुभव देखने में आते हैं। 
1. विवाह से पहले कोई प्रेम कथा असफल रह जाए। 
2. पत्नी के होते हुए भी कहीं प्रेम सम्बन्ध हो जाए। 
3. विवाह रेखा सुदृढ़ हो परन्तु दूसरी रेखा अत्यंत छोटी और महीने या पतली हो तो आयाराम -गयाराम जैसा प्रेम सम्बन्ध हो जाए या कहानी छोटी ही रह जाए। 
4. विवाह रेखा आगे चलकर दो मुँही हो जाए जिसे अंग्रेजी में फोर्क कहते हैं, तो ऐसी स्थिति में दाम्पत्य जीवन में कलह बनी ही रहती है। 
5. विवाह रेखा आगे चलकर बुध रेखा पर होती हुई अचानक मुड़ जाए और हृदय रेखा को स्पर्श कर ले तो ऐसी स्थिति में उस स्त्री या पुरुष के जीवन साथी की मृत्यु आती है या तलाक के कारण सम्बन्ध विच्छेद हो जाता है। 
6. एक से अधिक गहरी रेखाएँ अधिक प्रेम सम्बन्धों की परिचायक है। 
7. दो गहरी विवाह रेखाएँ समानान्तर चलें और सूर्य पर्वत की ओर बढ़ें तो विवाह के अतिरिक्त भी स्थायी प्रेम सम्बन्ध लम्बी अवधि तक चलते हैं और व्यक्ति अपनी प्रेमी के खर्चे भी उठाता है। 
8. विवाह रेखा के अतिरिक्त कोई बहुत छोटी रेखा हो, पतली या महीन हो और किसी अन्य रेखा से समकोण पर काट भी दी जाए तो इच्छा होते हुए भी विवाह सम्बन्ध या प्रेम सम्बन्ध की अंतिम परिणिती नहीं होती और मन की इच्छाएँ मन में ही रह जाती हैं। 
यदि विवाह रेखा हृदय रेखा के बहुत नजदीक हो तो विवाह जल्दी हो जाते हैं और अतिरिक्त प्रेम सम्बन्धों की सम्भावनाएँ क्षीण हो जाती है। परन्तु यदि विवाह रेखा हृदय रेखा से काफी दूर और कनिष्ठ अंगुली के नीचले पौरवे से अधिक नजदीक पड़े तो विवाह देरी से होता है और सफल या असफल प्रेम कथाओं की संभावनाएँ बढ़ जाती हैं। विवाह रेखा को कोई रेखा काट दे तो विवाह या प्रेम सम्बन्धों में बाधाएँ या रूकावट आती हैं। यदि विवाह रेखा घूमकर कनिष्ठ अंगुली की ओर मुड़ जाए तो विवाह में अनन्त बाधाएँ आ जाती हैं। विवाह रेखा पर चिह्न भी अच्छे नहीं होते हैं, अपयश कारक होते हैं। पर यदि कोई गहरी और गाढ़ी विवाह रेखा बुध पर्वत को आधा भी पार कर जाए तो जीवन साथी के लिए अनन्त सफलताएँ ला देती हैं। 
नौसिखिए लोगों को इन रेखाओं को देखकर बिना सोचे समझे ऐसी सलाहें नहीं देनी चाहिए जो कि दूसरे व्यक्ति के जीवन में विष घोल दे। स्वयं वह स्त्री या पुरुष जिसके हाथ में ऐसी रेखाएँ हैं, बताए जाने पर ग्लानि अनुभव करते हैं और तरह-तरह की सफाइयाँ देने को मजबूर हो जाते हैं। दो विवाह रेखाएँ वर्तमान कानून के कारण दूसरे विवाह में परिवर्तित नहीं हो सकती, अतः बोलने से पहले यह अवश्य परीक्षण कर लेना चाहिए कि व्यक्ति के जीवन में जीवन साथी की मृत्यु या तलाक तो नहीं हैं जिसके कारण दूसरा वैध विवाह होना सम्भव हो।

क्या भ्रम एक मानसिक बीमारी है?  क्या कालिदास को विद्योत्तमा के प्रेम में भ्रम होने लगा था?
डॉ सुमित्रा अग्रवाल
आम बोल चाल की भाषा में अक्सर यह बोला जाता है कि व्यक्ति प्रेम में पागल और अँधा हो जाता है, सही गलत की समझ धूमिल हो जाती है। इसी संदर्भ में कालिदास और विद्योत्तमा का उल्लेख आता है कि कालिदास उनसे मिलने भीषण वर्षा में लाश पर बैठ कर आ गए और सांप को रस्सी समझ कर उसे पकड़ कर विद्योत्तमा के कमरे तक पहुंच गए। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या यह प्रेम था या भ्रम?
भ्रम एक मानसिक रोग है। यह ज्ञान, बोध या उपलब्धि के व्यतिक्रम का विकार है। किसी सत्य वस्तु में असत्य वस्तु का भान या ज्ञान होना भ्रम कहलाता है। जो पदार्थ जैसा है, वैसा न दिखाई देकर दूसरा ही मालूम पड़े, जैसा कि कालिदास के साथ हुआ, लाश उन्हें लकड़ी लग रही थी और सांप उन्हें रस्सी होने का भान करा रहा था। 
भ्रम का इलाज नहीं करने से यह आगे चलकर विभ्रम या अवस्तुबोधन करा देगा।  यह भ्रम के आगे की स्थिति है, जिसका कोई आधार नहीं होता। यह अस्तित्वविहीन मिथ्या ज्ञान है। कई बार रोगी को वििभन्न प्रकार की धमकी, तिरस्कार अथवा प्रशंसा भारी ध्वनियाँ सुनाई देती हैं जो अवास्तविक एवं अस्तित्वविहीन होती है। यहाँ तक की रोगी को दिव्य, अलौकिक तथा चमत्कारपूर्ण दृश्य दिखलाई देते हैं, जो मिथ्या होते हैं। कई बार फूलों का गन्ध मालूम होना जबकि वस्तुत: यह अस्तित्वविहीन होती है। कई बार रोगी को कृमियों के शरीर पर रेंगने या उसके स्पर्श का अनुभव होता है जो पूर्णत: मिथ्या है।
जब किसी व्यक्ति में भ्रम का स्थिर निवास होता है, तो उसे 'संविभ्रम कहते हैं। यह एक प्रकार की प्रवृद्ध भ्रमावस्था है। रोगी को सदैव यह   भ्रम रहता है कि कोई भोजन में विष मिलाना चाहता हो। इसमें प्रमुख समस्या यह होने लगती है कि रोगी का भ्रम स्थायी होता है और अपने अलग-बगल की प्रत्येक वस्तु को वह खतरनाक समझता है। रोगी किसी पर विश्वास नहीं करता है और सबको सन्देह की दृष्टि से देखता।  कल्पना लोक में विचरण करना और दूसरों को सजा देने के विषय में सोचना ही इनका उदेश रह जाता है। विरोधाभाष और अपनी हत्या का भ्रम बराबर बना रहता है।
जब रोगी को गलत धारणा हो और किसी भी प्रमाण से सही नहीं सिद्ध किया जा सके तो रोगी व्यामोह - मिथ्या विश्वास-संघर्ष से पीड़ित होता है। यह एक प्रकार का उन्माद जैसा रोग है जो अनेक प्रकार के मानसिक रोगों में एक लक्षण के रूप में पाया जाता है। रोगी किसी भी क्षेत्र में सर्वोत्कृष्ट, सर्वोत्तम और महानतम होने का दावा करता है और यही उसका मिथ्या विश्वास संघर्ष कहा जाता है। ईर्ष्या, द्वेष, काम, क्रोध, लोभ, अहंकार, अपने बल तथा धन जन का अपार दर्प रहता है। किसी क्षेत्र में सफलता मिल जाने पर ऐसे व्यक्ति के मानस पटल पर मिथ्या विश्वास का जन्म होता है।
ज्योतिष के जातक ग्रन्थों में मानसिक रोगों के विभिन्न वर्गों के नाम आयुर्वेद में प्रयुक्त रोगों के नामों से भिन्न है, तथापि जातक ग्रन्थों में उपरोक्त सभी रोगों के लक्षण तथा योग प्राप्त हो जाते हैं। जातक ग्रन्थों में उपरोक्त रोगों के विभिन्न लक्षणों का उल्लेख है जैसे—मतिभ्रम, हीन बुद्धि, जड़ बुद्धि तथा चंचल बुद्धि आदि। सभी क्षण उपरोक्त रोगों से ही सम्बन्धित है।
ज्योतिष के महान ग्रन्थों में मानसिक रोगों के योगा योग बताये गए हैं। 
मतिभ्रम का योग तब बनता है जब बुध और चन्द्रमा संयुक्त होकर केन्द्र भावों में स्थित हों अथवा दोनों पापग्रह के नवांश में स्थित हो तो जातक बौद्धिक विश्रम से पीड़ित होता है। 
हीन बुद्धि के योग - यदि लग्न में चन्द्रमा स्थित हों तथा उसे शनि व मंगल देखते हों तो हीनबुद्धि अर्थात् कम बुद्धि वाला होता है। यदि पंचमेश क्रूर षष्टयंश में हो तो मनुष्य हीनबुद्धि होता है। शनि, मंगल व सूर्य-ये तीनों यदि चन्द्रमा को देखते हों तो मनुष्य मूर्ख होता है। यदि बृहस्पति पंचम स्थान में स्थित हों तो मनुष्य की स्मरण शक्ति का नाश होता है।
जड़ बुद्धि के योगों - चन्द्रमा, शनि व गुलिक यदि ये तीनों केन्द्र स्थानों में हो तो मनुष्य जड़बुद्धि होता है। धन स्थान में गुलिक व सूर्य स्थित हों तथा उन्हें पाप ग्रह देखते हों या शनि व तृतीयेश दोनों एक साथ हों तो। यदि द्वितीयेश पाप ग्रहों से युक्त होकर दशम स्थान में स्थित हो तो मनुष्य जनसमुदाय के सामने जड़बुद्धि हो जाता है अर्थात् लोगों के सामने उसकी बुद्धि ठीक कार्य नहीं करती है। तृतीयेश यदि राहु के साथ हों या पंचम स्थान में शनि लग्नेश होकर स्थित हो तथा पंचमेश को शनि देखते हों तथा पंचमेश पापग्रहों से युत हो तो भी जड़बुद्धि होता है। गुलिक व शनि दोनों पंचम स्थान में हो तथा शुभ ग्रहों का कोई सम्बन्ध वहाँ न हो तो मनुष्य जड़बुद्धि होता है।
चंचल वृद्धि के योग - सूर्य व चन्द्रमा लग्न या त्रिकोण स्थानों में कहीं हो तो मनुष्य चंचल बुद्धि वाला होता है। यहाँ तक कि यदि बुध द्वितीय स्थान में स्थित हो तो भी मनुष्य चंचल बुद्धि वाला होता है। यदि बुध द्वितीय स्थान में स्थित हो तथा वह निर्बल हो और पाप ग्रह उसे देखते हो तो मनुष्य की विचारधारा अस्थिर होती है अर्थात् वह अस्थिर मन वाला होता है।
सुतेमन्दे लग्नेश मन्द्रदृष्टे सुतेशे सपापे जड़:।
अर्थात् 1. पंचम भाव में शनि का स्थित होना, 2. शनि का लग्नेश होना, 3. पंचमेश का शनि द्वारा दृष्ट होना, 4. पंचमेश का पाप ग्रहों से युक्त होना। सूत्र के रचनाकार के मत के अनुसार यदि किसी जन्म कुंडली में यह चारों स्थितियाँ हैं तो जातक जड़बुद्धि होगा ।
विभिन्न मानसिक रोगियों की जन्म कुंडलियों की समीक्षा करने के उपरान्त यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि यदि किसी जन्म कुंडली में एक ही स्थिति अर्थात् पंचम भाव में शनि का स्थित होना पाया जाता है तो भी रोग की उग्रता २५ प्रतिशत होती है। इसी प्रकार दो स्थितियों में ५० प्रतिशत, तीन स्थितियों में ७५  प्रतिशत तथा चार स्थितियों में शत-प्रतिशत उग्रता होती है। उन्माद तय जड़बुद्धि आदि रोग उग्र लक्षणों वाले रोग हैं, जबकि भ्रम, विभ्रम तथा व्यामोह आदि रोग हल्के तथा मध्यम उग्रता वाले रोग हैं। जो योग के एक या दो स्थितियों की दशा में देखे गए हैं। 
उपाय - जिस भी ग्रह के कारण यह परिस्थिति उत्पन्न हो रही है उनका वैदिक मंत्र का उच्चारण करें।  हर ग्रह की जप संख्या निर्धारित है। आपको उतना जप करें। जप से पूर्व संकल्प अवश्य करें।

शिक्षा में सफलता और असफलता
शिक्षा को सफलता की कूंजी माना गया है। शिक्षा मानव जीवन का महत्वपूर्ण विषय है और शिक्षा से मिला हुआ ज्ञान मानव जीवन का अनमोल रत्न है। इसके माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन में आगे बढ़ता है। शिक्षा व्यक्ति को जीवन जीने का सलिका,  अनुशासन, समाज में प्रतिष्ठा आदि सिखाती है। शिक्षा समय के साथ कई रूपों में व्यक्ति को प्राप्त होती है। व्यक्ति के अध्ययन काल में किया गया परिश्रम ही व्यक्ति का भविष्य निश्चित करता है। कहा भी गया है- पढ़ेंगे-लिखेंगे तो बनेंगे नवाब। प्रत्येक माता-पिता की इच्छा रहती है कि उनका बच्चा पढ़-लिखकर समाज में प्रतिष्ठित हो व अपनी आजीविका बेहतर तरीके से निर्वाह करें। शिक्षा के माध्यम से ही व्यक्ति अपने जीवन के उन सपनों को पूरा करने में सफल होता है जो उसने अपने जीवन के लिए सजोएं हैं। शिक्षा प्राप्त करने की कोई उम्र नहीं होती। व्यक्ति उम्र के हर पढ़ाव में शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ सकता है। शिक्षा के साथ-साथ व्यक्ति बड़े व्यक्तियों के द्वारा दी गयी सीख को भी अपने जीवन में अपनाता है तो मानो सोने पर सुहागा हो गया हो।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार ग्रह व्यक्ति के जीवन के सभी विषयों को पूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं। इनमें से एक विषय शिक्षा भी है। व्यक्ति की जन्म कुण्डली में यदि अनुकूल ग्रह स्थिति या ग्रहों का सहयोग समय पर प्राप्त न हो तो व्यक्ति पूर्ण रूप से शिक्षा में असफल हो जाता है या रूक-रूक कर शिक्षा प्राप्त करता है। बच्चों के अध्ययन काल में कई प्रकार की समस्याएं आती हैं। अध्ययन में मन नहीं लगना, ध्यान एकाग्र नहीं, स्मरण शक्ति का कम होना व आत्मविश्वास की कमी होना आदि। ऐसी कई समस्याओं से बच्चों के साथ-साथ माता-पिता भी उनके लिए चिंतित रहते हैं। ऐसी स्थिति में ज्योतिष शास्त्र की मदद ली जा सकती है। मेहनत करने के उपरान्त भी बच्चे परीक्षा में अच्छे नम्बर नहीं ला पाते हैं। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि किसी सफल ज्योतिषी से जन्म पत्रिका का फलकथन करवाएं एवं जो भी समस्या बच्चे के अध्ययन में आ रही हो उस समस्या का समाधान करवाएं। कई बार देखा गया है कि बच्चे की जन्म पत्रिका में दशाक्रम व ग्रह स्थिति कुछ अलग होती है और बच्चा विपरीत दिशा में प्रयास कर रहा होता है। ऐसे में यदि उसे सही दिशा मिल जाए तो वह सफलता प्राप्त कर सकता है। आधुनिक युग में तो बच्चे एक-दो अंक से क्या रह जाते हैं कि वह अपना जीवन ही दाव पर लगा देते हैं या फिर डिप्रेशन में जाने लगते हैं। 
ज्योतिष शास्त्र ही एक ऐसा माध्यम है जिससे हम उसे सही दिशा दिखाने में सफल रहते हैं। ज्योतिष के ऐसे कई योग हैं जो बच्चे की सफलता या असफलता पता लगा सकते हैं, वह इस प्रकार से है- 
जन्म कुण्डली में यदि पंचम भाव, पंचमेश, द्वितीय भाव, द्वितीयेश, चतुर्थेश, गुरु व बुध। इन सभी का मुख्य रूप से विचार करना आवश्यक होता है। यदि इन ग्रहों की स्थिति अस्त, अशुभ, शुत्र या पापकर्तरी हो तो बच्चे का मन अध्ययन में नहीं लगता। ऐसे बच्चों को बार-बार बोलकर अध्ययन कराने के लिए मजबूर किया जाता है। 
लग्न से व्यक्ति की प्रकृति, स्वभाव व विचारों का पता लगता है। यदि शनि ग्रह का लग्न व लग्नेश पर प्रभाव अशुभ होकर या अस्त स्थिति में हो तो बच्चा आलसी प्रवृति का होता है, परंतु शनि उच्च राशि या स्वराशि में होकर लग्न व लग्नेश को प्रभावित करें तो बच्चा एकाग्र होकर अध्ययन करने में सफल रहता है। 
ऐसे ही ज्योतिष के कुछ योग व ग्रह स्थितियाँ होती हैं जो बच्चे के अध्ययन में सहायता या असहायता करती है। कहने का तात्पर्य यह है कि बच्चे की स्मरण शक्ति कैसी है, बच्चा कैसे स्कूल में शिक्षा प्राप्त करेगा, बच्चे को अपनी आजीविका के लिए कौन से ऐसे विषयों का चयन करें जो कि वह एक सफल जीवन व्यतीत कर सके। कई बच्चे इस बात से भ्रमित रहते हैं कि हमें व्यवसाय करना चाहिए या नौकरी। इसी बात लेकर माता-पिता बच्चे के जीवन महत्वपूर्ण कई वर्ष ऐसे ही व्यर्थ कर देते हैं कि बच्चा कहीं न कहीं अच्छी नौकरी में अच्छा वेतन प्राप्त करेगा परंतु बच्चे की कुण्डली में नौकरी के योग न होकर व्यवसाय के योग बने होते हैं, जिससे आगे जाकर माता-पिता को उसे व्यवसाय की करवाना पड़ता है। कई बार देखा गया है कि बच्चा बचपन में तो काफी होनहार व अच्छे अंकों से उत्तीर्ण हुआ करता था परंतु युवा अवस्था में उसे अच्छे अंकों की जरूरत थी, जिससे कि वह अपनी आजीविका का चयन कर सके या अपने पसंद की जगह पर अध्ययन करें, उस समय बच्चे की मेहनत रंग नहीं लाती।
 यह सब बच्चे की जन्म पत्रिका की ग्रह स्थितियों व दशाक्रम पर निर्भर होता है। माता-पिता को चाहिए कि वह जब बच्चे के महत्वपूर्ण वर्ष प्रारम्भ हो तो वह किसी अच्छे ज्योतिषी की सलाह लेकर बच्चे के भविष्य का चयन करें, जिससे कि बच्चा समय पर सही चुनाव कर सके।