महाभारत काव्य में बताया गया है कि द्वारका भगवान श्री कृष्ण की राजधानी थी. बता दें कि ये शहर गुजरात में स्थित है. इतिहासकारों का मानना है कि द्वारकाधीश मंदिर का निर्माण भगवान श्री कृष्ण के पोते ने करवाया है. ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि ये मंदिर 2500 वर्ष पुराना है. ये द्वारका मंदिर आज समुद्र में समाहित है. और इस द्वारका नगरी में द्वारकाधीश मंदिर स्थित है. 

बता दें कि मंदिर में दो मुख्य प्रवेश द्वार हैं. मुख्य प्रवेश द्वार को मोक्ष द्वार और दूसरे को स्वर्ग द्वार कहा जाता है. मंदिर 5 मंजिला बना हुआ है. मंदिर का स्तंभ 78.3 मीटर ऊंची है. इस बात को बहुत कम ही लोग जानते होंगे कि यहां मंदिर का ध्वज दिन में 5 बार बदला जाता है. जिसका निश्चित समय है. इतना ही नहीं, इसकी खास बात यह है कि इस ध्वज को भक्तों द्वारा ही स्पॉन्सर किया जाता है. यानी भक्त पहले ही बुकिंग करवा लेते हैं. 

बता दें कि द्वारकाधीश मंदिर का ध्वज 52 गज का होता है. इसके पीछे कई तरह के मिथक प्रचलित है. एक मिथक के अनुसार 12 राशि, 27 नक्षत्र, 10 दिशाएं, सूर्य, चंद्र, और श्री द्वारकाधीश मिलकर 52 हो जाते हैं. इसलिए ध्वज को 52 गज का रखा जाता है. वहीं, एक अन्य मान्यता के अनुसार एक समय में द्वारका में 52 द्वार थे और ये उसी का प्रतीक है. मंदिर का ये ध्वज एक खास दरजी द्वारा ही सिला जाता है. ध्वज बदलने की प्रक्रिया के दौरान उसे देखने की मनाही होती है. इस ध्वज पर सूर्य और चंद्र बने हुए हैं और ऐसा माना जाता है कि जब तक सूर्य और चंद्र रहेगा, द्वारकाधीश का नाम रहेगा. 

ऐसे बदला जाता है ध्वज

ध्वज बदलने के लिए भक्त एडवांस बुकिंग करवाते हैं. जिस परिवार को ये मौका मिलता है वे नाचते गाते हाथ में ध्वज लेकर आते हैं और भगवान को समर्पित कर देते हैं. यहां से अबोटी ब्राह्मण इसे ऊपर लेकर जाते हैं और ध्वज बदल देते हैं. मंदिर में ध्वज आरती के दौरान चढ़ाया जाता है. द्वारकाधीश मंदिर की मंगला आरती सुबह 7.30 बजे, श्रृंगार सुबह 10.30 बजे, इसके बाद सुबह 11.30 बजे, फिर संध्या आरती 7.45 बजे और शयन आरती 8.30 बजे होती है. इसी समय ध्वज बदला जाता है. 

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