राष्ट्र का कल्याण करेगा, गुरु का आरोही क्रम

पं.सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर

बृहस्पति 6 सालों से अपने अवरोही क्रम में थे अर्थात् अपनी उच्च राशि से नीच राशि की ओर चल रहे थे। इस समय वे अपनी नीच राशि मकर में हैं, परन्तु 2014 में वे अपनी उच्च राशि में थे। मई 2014 में जब भारतीय जनता पार्टी सत्ता में आई तब बृहस्पति अपनी उच्च राशि में आने की तैयारी में थे और शानदार परिणाम देने की स्थिति में आ चुके थे। उस समय शनि वर्तमान सत्ता के प्रतिकूल थे तथा भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी के लिए अनुकूल थे। मकर राशि ऐसी राशि है जिसके बाद बृहस्पति आरोही क्रम में आ जाएंगे और परिणामों की तीव्रता, गति और दिशा में परिवर्तन लाएंगे। 21 नवम्बर 2021 से बृहस्पति अंतिम रूप से अपने आरोही क्रम में प्रवेश कर जाएंगे तथा अगले 6 वर्ष तक अर्थात् पुनः अपनी उच्च राशि में पहुँचने तक देशकाल को बहुत अधिक प्रभावित करेंगे। एक तरह से हम कह सकते हैं कि जब बृहस्पति 2025 में मिथुन राशि से कर्क राशि में जाने की तैयारी में होंगे अर्थात् सितम्बर 2025 के आसपास तो पुनः देश के लिए एक क्रांतिकारी दौर लाने की तैयारी में होंगे। बृहस्पति ज्योतिष के दृष्टिकोण से देवगुरु हैं, महामात्य हैं, बैंकर हैं, वित्त व्यवस्था के नियंत्रक हैं और संस्थाओं में एवं निजी जीवन में सदाचार के प्रेरक हैं, अतः अपनी उच्च राशि में आने के बाद अर्थात् 2025 के अंतिम त्रैमास में, देश में भारी परिवर्तन देखने को मिलेंगे। उस समय बृहस्पति और शनि एक-दूसरे से त्रिकोण में होंगे और पूरे राष्ट्र को ऐसी स्थितियों से गुजरना होगा, जब देश एक तरह से लॉंचिंग पैड़ पर होगा और आर्थिक साम्राज्यवाद के महासमर में बड़ी आर्थिक शक्तियों को अपदस्थ करने की तैयारी कर रहा होगा।

इस देश के भाग्यविधाता शनि हैं। परन्तु अर्थतंत्र का संचालन बृहस्पति करते हैं। वर्ष 2020-21 में वे अतिचारी हो गये अर्थात् अपनी सामान्य गति से तेज गति से चलने के इच्छुक हो गये और आगे भी 21 नवम्बर को कुम्भ राशि में प्रवेश करने के बाद तेज गति से चलते हुए 13 अप्रैल, 2022 को मीन राशि में प्रवेश कर जाएंगे जो कि उनकी अपनी राशि है। यहाँ वह 22 अप्रैल, 2023 तक रहेंगे अर्थात् करीब 1 वर्ष तक और फिर मेष राशि में प्रवेश कर जाएंगे। बृहस्पति जब अपनी राशि में होते हैं तब समृद्धि लाते हैं, चूंकि भारत देश की जन्म पत्रिका में लाभ भाव में स्थित होंगे तो भारत के लाभ को बढ़ाएंगे और प्रतिव्यक्ति आय को बढ़ाएंगे और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में भारत की स्थिति को लगातार सुदृढ़ करते रहेंगे।

कोरोना का सर्वाधिक प्रकोप बृहस्पति की मकर राशि में रहते हुए ही देखने को मिला था। जैसे ही थोड़े समय के लिए कुम्भ राशि में बृहस्पति आए, कोरोना का प्रकोप कम हो गया। इस तर्क के आधार पर हम कह सकते हैं कि 21 नवम्बर, 2021 के बाद कोरोना का प्रकोप तेज गति से कम हो जाएगा और पूरा देश चैन की नींद सो सकेगा। इसका यह अर्थ भी हुआ कि जो कुछ भी खतरा है, वह बृहस्पति के मकर राशि में रहने तक ही है और कुम्भ राशि में आने के बाद बृहस्पति इस खतरे को कम कर देंगे।

2022 में न केवल बृहस्पति कुम्भ राशि में रहते हुए अप्रैल में मीन राशि में चले जाएंगे, शनिदेव भी ढाई साल मकर राशि में बिताने के बाद कुम्भ राशि में ढाई साल के लिए चले जाएंगे। यह घटना 19 अप्रैल के दिन होगी। परन्तु बात यहीं तक सीमित नहीं रहेगी, शनिदेव पुनः वक्री होकर कुम्भ राशि से मकर राशि की ओर रुख कर लेंगे और 12 जुलाई 2022 के दिन मकर राशि में प्रवेश करके कुछ महीने वहाँ रहेंगे और 18 जनवरी, 2023 को पुनः अपनी कुम्भ राशि में आ जाएंगे, यह महीने भी क्रांतिकारी सिद्ध होंगे, क्योंकि इन महीनों में सरकारों में परिवर्तन आएंगे, बहुत उठा-पटक रहेगी और बहुत बड़े राजनैतिक परिणाम आएंगे। पहले तो कुम्भ राशि में रहते हुए बृहस्पति व्यापक परिणाम देंगे और बाद में जब शनि कुम्भ राशि में होंगे और बृहस्पति मीन राशि में होंगे, देश में राजनैतिक परिदृश्य बदल जाएंगे, कई सरकारें दबाव में रहेंगी, कोरोना का असर कम हो जाएगा। वैक्सिनेशन की गति बढ़ेगी। इस क्षेत्र में नये आविष्कार सामने आएंगे। भारत और अमेरिका के रिश्तों में उतार-चढ़ाव के बाद भी प्रगति देखने को मिलेगी और भारत का नाम हथियारों के निर्यातक के रूप में तेज गति से उभर कर सामने आएगा। बृहस्पति के यह केवल 2 वर्ष ही नहीं उनका आरोही क्रम देश को अगले पाँच वर्ष तक चमत्कारिक ढ़ंग से समृद्धि के शिखर की ओर ले जाएगा। पूरी दुनिया चकित होकर भारत की इस प्रगति को देखेगी, जिसमें राष्ट्र की समृद्धि के साथ-साथ प्रति व्यक्ति आय में बढ़ोतरी के रूप में भी देखा जा सकेगा।

कुम्भ राशि - पवित्रता की प्रतीक

जैमिनी ऋषि ने कुम्भ राशि को अत्यंत पवित्र माना है। अन्य ज्योतिष पद्धतियों में भी कुम्भ का अर्थ घट स्थापन या वरुण व सभी जल स्रोतों के आह्वान की राशि माना है। किसी भी प्रलय में सर्वाधिक महत्त्व पंचतत्त्वों में से जल तत्त्व का ही रहा है। यद्यपि महाप्रलय में जल भी विलीन हो जाता है।

 

मेष राशि में सूर्य और कुम्भ राशि में बृहस्पति के आधार पर महाकुम्भ का आयोजन हरिद्वार में होता है। अब नवम्बर में बृहस्पति तो कुम्भ राशि में आ जाएंगे परन्तु सूर्य मेष राशि में ना होकर तुला से आगे की राशियों में रहेंगे परन्तु उसकी पूर्ति शनिदेव कर देंगे, जो कि अप्रैल 2022 में तो कुम्भ राशि में आ ही जाएंगे, पहले से ही कुम्भ राशि के परिणाम देना शुरु कर देंगे। अतः आगामी महीनों में मकर, कुम्भ और मीन के बृहस्पति व कुम्भ राशि के शनि भारत की प्रगति के द्वार खोज देंगे। बृहस्पति देवताओं की कृपा भारत भूमि पर लेकर आएंगे और सरकार तथा जनता दोनों का ही भला होगा।

ग्रह-दोष निवारण

स्व. पं. रामचन्द्र जोशी

मानव के शुभाशुभ जीवन को अभिव्यक्त करने वाला एकमात्र विज्ञान फलित ज्योतिष है। वैदिक काल से आधुनिक काल तक इसमें निरंतर शोधकार्य चलते आ रहे हैं। इस ज्ञान का संबंध मानव समाज से है, अतः काल और परिस्थितियों के अनुसार नक्षत्र-राशि-ग्रह स्वभाव, उनके कार्यक्षेत्र, प्रभाव आदि की नवीनतम स्थितियों का उल्लेख दैवज्ञगण अपनी-अपनी स्व अनुभूत कृतियों के माध्यम से समाज हित में प्रकाशित करते रहते हैं। यही उद्देश्य इस लघु रचना का है। हमें पूर्ण विश्वास है कि जहां यह विद्वानों का मनोरंजन करेगी वहां जिज्ञासुओं का मार्गदर्शन एवं आर्त्त व्यक्तियों के लिए एक बड़ा सहारा रहेगी।

हमारा यह अनुभव है कि ऋषि वाक्य सदा सर्वदा के लिए सत्य हैं। कारण उनके पीछे उनका सतत अनुभव एवं अध्ययन तथा समाज कल्याणकारी उद्देश्य रहा है। हिन्दू दर्शन के आधार पर ही फलित ज्योतिष का तात्ति्वक विवेचन है। मानव स्वयं ही अपने कर्म के द्वारा भाग्य का निर्माण करता है। जैसे भले या बुरे कर्म वह करता है अगले जन्म में उनके अनुसार ही सुख या दुःख भोगकर कर्म बंधन से मुक्ति पानी होती है। जब तपस्या, भक्ति, ईश्वर परायणता से मानव जन्म मरण के चक्कर से मुक्त हो सकता है तब यह निश्चित है कि वह शांति कर्म करके ग्रह प्रभाव (कर्म प्रभाव) को भी न्यूनाधिक कर सकता है। महर्षि पाराशर से लेकर वराहमिहिर दैवज्ञ तक ज्योतिष के आचार्यों ने ग्रहों के दुष्प्रभावों को कम करने के विधान अपने-अपने ग्रंथों में लिखे हैं। क्षेत्रीय दैवज्ञों ने अपने-अपने अनुभव अपने शिष्यों को बताये हैं। ये सारे प्रयोग करने पर सही सिद्ध हुए हैं।

आज हमारे देश के भिन्न-भिन्न प्रदेशों में ग्रहों के दुष्प्रभाव को कम करने के लिए जप-हवन-दान-यंत्र तथा नग धारण की क्रियाएं चालू हैं। इनमें नगों की कीमत निरन्तर बढ़ती जा रही है तथा नकली नगों का व्यवहार अधिक होने लगा है। इमिटेशन वाले नग केवल सुन्दर लगते हैं परन्तु वे ग्रह प्रभाव पर किसी प्रकार का असर नहीं डालते हैं। यदि नग धारण करना हो तो असली नग ही प्राप्त करें तथा उन्हें विधिवत शुभ मुहूर्त में धारण करने पर उनका प्रभाव तत्काल दिखाई देगा। नग ग्रहों की विकिरण को अपने में धारण करके मानव शरीर में प्रवाहित कर देते हैं। उनके प्रभाव से जो तत्त्व न्यूनाधिक रहते हैं, वे ठीक हो जाते हैं। व्यक्ति उनके दुष्प्रभाव को सरलता से सहन करने में सक्षम हो जाता है। नगों के स्थान पर ग्रहों से संबंधित धातुओं का धारण करना अधिक सुगम है। धातुएं अभी शुद्ध रूप में उपलब्ध हो रही हैं।

ग्रहों के कुछ उपाय -

शनि काल नरस्य दुःखम्अतः दुःख का कारक शनि ग्रह है। इसका ढ़ैया, साढ़ेसाती जन्मराशि को विशेष प्रभावित करती है। यह अकस्मात् संकट की स्थिति बना दिया करता है। इसके दुःखदायी प्रभाव को न्यून करने के लिए निम्नलिखित क्रियाएं करें-

1. पिप्पलाद ऋषि रचित  ‘शनि स्तोत्रसूर्यास्त के बाद नियमित रूप से दो बार पढ़ना।

2. घोड़े की नाल या नौका की कील के लोहे से बना छल्ला दायें हाथ की मध्यमा अंगुली पर शनिवार को प्रदोषकाल में धारण करना।

मंगल ग्रह क्रूरता का अधिपति है। इसका नाम तो मंगल है परन्तु यह अमंगल की ओर अधिक आकर्षित रहता है। ऋण या कर्जदारी से बांधे रखना, चोट, खरोंच, आगजनी, चोरी आदि की घटनाओं से चिंतित रखना, अकारण लड़ाई-झगड़े से परेशान करना इस भूमिसुत मंगल के रुचिकर कार्यों में से है। मंगल के अशुभ फल को न्यून करने के लिए निम्नलिखित कार्य करते रहना ठीक रहता है यथा-

1. शुद्ध ताँबे की अंगूठी पर पंद्रह का यंत्र खुदवाकर दायें हाथ की अनामिका पर मंगलवार को तीसरे प्रहर में धारण करना।

2. हर मंगलवार को गेहूं की रोटी पर गुड़, लाल रंग का फल, अरहर की भीगी हुई दाल रखकर गाय को खिलाना।

राहु-  राहु ज्वालामुखी ग्रह है। कहावत है कि ‘राह चलाये कुराह’यह मंगल, सूर्य तथा चन्द्रमा को अपने मुख में रखकर दग्ध कर देता है। इसके दुष्प्रभाव से व्यक्ति दर-दर भटकता है। अपने जीवनकाल में ही दारुण दरिद्रता से महान दुःखी रहता है। पौराणिक आख्यान द्वारा यह सिर्फ ‘सिर’ है। यह हृदयहीन ग्रह है। जप-तप-पूजा पाठ से यह उतना प्रसन्न नहीं होता जितना दान-पुण्य से। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिये निम्नलिखित उपचार करने से ठीक रहते हैं।

1. अमावस्या के दिन उड़द की दाल से बने पकोड़ों पर दही डालकर चील-कांवलों को खिलाना।

2.  अठारह अमावस्या पर एक खोपरे को काली उड़द से भरकर दक्षिणा रखकर डाकोत को दान दें।

केतु चमकने वाला ग्रह है। यह मोक्ष का कारक है। चन्द्रमा के साथ रहकर यह मानसिक विकार तथा अतिशय भावुकता पैदा कर दिया करता है। आत्मघात करने की यह प्रेरणा दिया करता है। इसके अशुभ प्रभाव को न्यून करने के लिए निम्नलिखित कार्य करें-

1. रोजाना कबूतरों को ज्वार या गोलाकार अनाज खिलाते रहना।

2. चन्द्रग्रहण पर सलेटी रंग के ब्लाउज पीस में धुली हुई उड़द की दाल बांधकर दक्षिणा सहित दान करना।

राजा- ग्रहों का राजा सूर्य है। इसके कमजोर रहने से व्यक्ति अर्थ संकट ग्रस्त रहता है। यह दाद-खाज-कुष्ठ-चर्म रोग कर दिया करता है। इसकी अकृपा से राज भय होता है। नेत्र दृष्टि को कमजोर कर देता है। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिए निम्नलिखित उपाय करें-

1. ताँबे के पात्र में जल, कुंकुम, चावल, कनेर पुष्प डालकर प्रातः सूर्य को अर्ध्यदान करना।

2. लाल वस्त्र में गेहूँ, गुड़, लाल पुष्प, ताँबे का टुकड़ा रखकर दक्षिणा सहित रविवार को दान करना।

चन्द्रमा-  मन का अधिपति, ग्रहों की रानी, क्षीण रहने से  अशुभ फलदायी हो जाता है। हर प्रकार का विचलन, मनोबल की दुर्बलता, मन पर तनाव-घिराव बनाये रखना इसका काम है। अस्थिरमना व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में प्रायः परेशान रहता है। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिये निम्नलिखित उपचार किये जाते हैं-

1. हर सोमवार को चांदी के रिक्त पात्र में दूध डालें, फिर जल से भर लें। सफेद रंग का पुष्प डालकर शिव तथा पार्वती की मूर्तियों को स्नान करायें।

2. चन्द्रग्रहण पर सफेद वस्त्र में चावल, चीनी, चांदी का टुकड़ा या चन्द्र मूर्ति बांधकर दक्षिणा सहित डाकोत को दान करें।

बुध -  स्वयं स्वतंत्र फलदायी नहीं है। यह अपने साथी या दृष्टा से प्रभावित होकर अपने स्वभाव में परिवर्तन कर लेता है। यह सद्य फलदायक है तथा निराशावादी ग्रह है। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिए निम्नलिखित उपचार किये जाते हैं-

1. हर बुधवार को गणेशजी की प्रतिमा पर 108 दूर्वादल ‘ॐ गं गणपतये नमः मंत्र से चढ़ायें।

2. बुधवार के दिन, तीसरे पहर, हरे वस्त्र में मूंग, हरा अमरूद, धातुत्रय (सोना-चाँदी-ताँबा) बांधकर दक्षिणा सहित दान करें।

गुरु - शुभ ग्रहों की टोली का प्रधान ग्रह है। निर्बल रहने पर यह अविद्या, दुष्टता, लीवर से संबंधित रोग से जातक को हैरान कर देता है। संतान चिंता, दुर्भाग्य, सामाजिक अपमान आदि निर्बल एवं दुष्ट स्थान स्थित गुरु का मुख्य कार्य है। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिये निम्नलिखित कार्य किये जाते हैं-

1. हर गुरुवार को भीगी हुई चना-दाल, गुड़, केले का फल गाय को खिलाना।

2. केले के पेड़ की पूजा तथा ‘गुरु गायत्री’ मंत्र का जप करना।

शुक्र- चमकीला ग्रह है। रजोगुण का अधिष्ठाता निर्बल रहने पर शरीर में मधुमेह, धातुक्षीणता, यौन रोग करने में इसकी अभिरुचि देखी गई है। इसके दुष्प्रभाव को न्यून करने के लिए निम्नलिखित उपचार करते हैं-

1. हर शुक्रवार को चावलों की खील या सफेद ज्वार की फुल्ली में चीनी मिलाकर बछिया को खिलाते रहें। ऐसा 20 शुक्रवार तक करें।

2. उदित शुक्र के समय सफेद वस्त्र में चावल, चीनी, चाँदी, मीठा कंदफल, दक्षिणा सहित ब्राह्मण की कन्या को दान कर दें।

मानव जीवन की समस्याओं के कारण और उनका निर्धारण

प्रो. शुकदेव चतुर्वेदी

वस्तुतः मानव जीवन समस्या एवं संकटों की सत्यकथा है। इसमें ऐसा कोई स्थान या क्षण नहीं, जब मनुष्य के सामने कोई न कोई समस्या या संकट चुनौती के रूप में खड़ा न हो। इसीलिए मनुष्य के जीवन में लगातार कष्टों का सिलसिला चलता रहता है। इस संसार में चाहे राजा हो या रंक, चाहे पीर हो या फकीर, चाहे ज्ञानी हो या अज्ञानी, चाहे संपन्न हो या विपन्न और चाहे अगड़ा हो या पिछड़ा- ऐसा कोई व्यक्ति पैदा नहीं होता, जिसके जीवन में समस्या और संकट बार-बार तथा लगातार नहीं आते हों।

मनुष्य अपनी पूरी शक्ति एवं बुद्धि लगाकर इनका समाधान करना चाहता है। उसने इनका समाधान करने के लिए हजारों-लाखों वर्षों से मनन एवं चिंतन कर अनेक शास्त्रों का आविष्कार एवं विकास किया है किंतु अभी तक का परिणाम ‘ढाक के तीन पात’ है। हमारे जीवन के इस मर्ज का कोई न कोई तो कारण है कि तरह-तरह के अच्छे से अच्छे इलाज करने पर भी यह समस्या और संकटों का मर्ज हमारा पीछा नहीं छोड़ रहा।

वास्तविकता यह है कि किसी भी समस्या के समाधान के लिए उसके सही-सही कारणों को जानना आवश्यक है क्योंकि जब तक उस समस्या के वास्तविक कारण का निर्धारण न हो जाए, तब तक उनका समाधान संभव नहीं है। वैदिक चिंतनधारा में कारणों के निर्धारण की प्रविधि को ‘कार्य-कारणवाद’कहते हैं।

कारण क्या है?

वैदिक दर्शन के अनुसार जो कार्य या घटना के घटित होने से पहले विद्यमान हो और जिसके बिना कार्य या घटना घटित नहीं हो सकती है, उसको कारण कहते हैं। जैसे मटके का कारण मिट्टी, कपड़े का कारण धागा और रोटी का कारण आटा है क्योंकि घड़ा बनने से पहले मिट्टी, कपड़ा बुनने से पहले धागा और रोटी बनने से पहले आटा विद्यमान होता है और उसके बिना घड़ा, कपड़ा या रोटी नहीं बन सकते।

कारण के भेद

इस विषय में यह सदैव ध्यान में रखना चाहिए कि किसी कार्य के पीछे कोई एकमात्र कारण नहीं होता। जैसे कोई भी अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता, वैसे किसी एकमात्र कारण से कोई कार्य घटना घटित नहीं होती। इस विषय में कार्य-कारणवाद का प्रतिपादन करने वाले महर्षि गौतम एवं कणाद आदि का कहना है कि प्रत्येक कार्य के पीछे तीन कारण होते हैं- जिनको 1. समवायी कारण 2. असमवायी कारण और 3. निमित्त कारण कहते हैं।

जो कारण स्वयं कार्य के रूप में परिणत हो जाता है, वह समवायी कारण कहलाता है जैसे मटके के रूप में समवायी कारण हैं- मिट्टी। कपड़े का समवायी कारण है धागा और रोटी का समवायी कारण है आटा। जिस कारण की सहायता से कार्य होता है, वह असमवायी कारण कहलाता है जैसे मटका बनाने का असमवायी कारण है- चाक एवं डंडा, कपड़ा बुनने का असमवायी कारण है, खड्डी (लूम) एवं गिट्टक और रोटी बनाने का असमवायी कारण है- तवा एवं चूल्हा। जो कार्य की समग्र प्रक्रिया का संयोजक या सूत्रधार होता है, वह निमित्त कारण कहलाता है। जैसे मटका बनाने में कुम्हार, कपड़ा बुनने में जुलाहा और रोटी पकाने में रसोइया।

कार्य की उत्पत्ति

कार्य-कारणवाद का यह आधारभूत सिद्धांत है कि जब समवायी, असमवायी और निमित्त- ये तीनों प्रकार के कारण एक साथ मिलकर सक्रिय होते हैं, तभी कोई कार्य या घटना घटित होती है अन्यथा नहीं। जैसे मटका बनाने के कारण हैं- 1. मिट्टी, 2. चाक 3. डंडा एवं 4. कुम्हार या कपड़ा बनाने के कारण हैं- 1. धागा, 2. खड्डी, 3. गिट्टक एवं 4. जुलाहा अथवा रोटी पकाने के कारण हैं- 1. आटा, 2. तवा, 3. चूल्हा और 4. रसोइया। अब जब ये सभी कारण एक साथ मिलकर कार्य करते हैं तो उसका परिणाम मटके के रूप में, कपड़े के रूप में या रोटी के रूप में मिल जाता है किंतु यदि इन कारणों में एक मौजूद न हो या सक्रिय न हो, तो कार्य नहीं हो पाता। जैसे- आटा, तवा, चूल्हा एवं रसोइया में से किसी भी एक के न होने पर रोटी नहीं पकती।

मानव जीवन की समस्याओं के कारण

वैदिक ज्योतिष के प्रणेता आचार्यों ने मानव जीवन में आने वाली समस्याओं एवं संकटों के अथवा जीवन में घटित होने वाले घटनाचक्र के चार कारण बतलाए हैं- (1) प्रारब्ध  कर्म (2) प्रकृति (स्वभाव) (3) परिस्थिति और (4) काल (समय)। जीवन में जो कुछ भी अच्छा या बुरा घटित होता है, उसका समवायी कारण प्रारब्ध है, उसके असमवायी कारण प्रकृति एवं परिस्थितियां हैं और उसका निमित्त कारण काल या समय है। इसलिए जिस शास्त्र में इन चारों कारणों को जानने, पहचानने और इनके आधार पर निष्कर्ष निकालने की प्रविधि (तकनीक) बतलाई गई है, उसी शास्त्र के अनुसार जीवन में आने वाली समस्याओं का सही ढंग से विचार किया जा सकता है।

वैदिक ज्योतिष की देन

वैदिक ज्योतिष के महर्षियों एवं मनीषी आचार्यों ने जीवन की सभी समस्याओं अर्थात् जीवन के घटनाचक्र का सही रूप में पूर्वानुमान इन चारों कारणों के आधार पर करने के लिए इस शास्त्र में तीन प्रविधियों या पद्धतियों का आविष्कार एवं विकास किया है।

इन चारों कारणों में से प्रारब्ध कर्मों का फल जानने के लिए दशा पद्धति का विकास किया है। इस शास्त्र में विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी एवं योगिनी प्रभृति दशा और उनकी अंतर्दशा एवं प्रत्यन्तर दशाओं के माध्यम से प्रारब्ध कर्मों का फल जाना जाता है। प्रकृति एवं परिस्थिति का ज्ञान करने के लिए इस शास्त्र में योग पद्धति का विकास किया गया है। जन्मकुंडली में मंगली योग, केमद्रुम योग, पंचमहापुरुष योग, राजयोग एवं प्रव्रज्यायोग के अनुसार जातक की प्रकृति एवं जीवन में उसकी परिस्थितियों का पूर्वानुमान किया जाता है। इसके साथ-साथ अनुकूल या प्रतिकूल समय का मूल्यांकन एवं पूर्वानुमान करने के लिए गोचर पद्धति का विकास किया गया है। ग्रहचार, शशिचार, अष्टकवर्ग, ताजिक एवं प्रश्नकुंडली जैसी प्रविधियों से हमारे मनीषी आचार्यों ने यह विचार किया है कि किस व्यक्ति को कब-कब समय सहयोगी या असहयोगी रहेगा?

इस प्रकार वैदिक ज्योतिष के प्रवर्तक ऋषियों एवं चिंतक आचार्यों ने मानव जीवन की समस्याओं और उसके घटनाचक्र का यथार्थ रूप में निर्धारण करने के लिए उक्त चार कारणों को स्वीकार कर पूर्वोक्त, योग, दशा एवं गोचर के आधार पर किस व्यक्ति के जीवन में कब-कब, क्या-क्या अच्छा या बुरा परिणाम घटित होगा? इसको जानने-पहचानने एवं पूर्वानुमान करने के नियमों एवं सिद्धांतों को प्रतिपादित किया है, जिसके समग्र संकलन को वैदिक ज्योतिष शास्त्र कहते हैं।

देवताओं के गुरु बृहस्पति आपको विशेष लाभ कब देंगे ?

डॉ. सुमित्रा अग्रवाल

शुक्र सुख के कारक ग्रह हैं और बृहस्पति सफलता के कारक ग्रह हैं। देव गुरु बृहस्पति की कृपा पाने के लिए ज्योतिष जगत में पुखराज, पुष्पराग या येलो सफायर धारण करने की सलाह दी जाती है। यह एक अनमोल रत्न है और धार्मिकता, धर्मपरायणता और सत्यवादिता को दर्शाता है। यह अक्सर आर्थिक समृद्धि के लिए धारण किया जाता है। पुखराज राजनीतिक और बौद्धिक सफलता के लिए लाभदायक होता है। पुखराज का धारण करना व्यक्ति को एक अत्यधिक पवित्र और धार्मिक व्यक्ति में बदल देता है, पहनने वाले को गलत विचारों से बचाता है, लंबी यात्राओं के दौरान नुकसान होने से बचाव करता है। गुरु की कृपा से संतान की प्राप्ति होती है। कन्या के लिए उचित वर और विवाह के लिए पुखराज धारण किया जाता है। जैसा कि हम सब जानते हैं कि भौतिक जगत में सुख-साधनों का होना आवश्यक है और साधनों के लिए रुपए-पैसों से समृद्ध होना आवश्यक है। देव गुरु बृहस्पति इन्हीं चीजों के कारक हैं। यह हमारे कार्य क्षेत्र में चाहे वह नौकरीपेशा हों या व्यवसाय, दोनों को बढ़ावा देता है।

विभिन्न लग्न के लिए पुखराज-

मेष लग्न के लिए पुखराज योगकारक ग्रह हैं । पुखराज मेष लग्न के व्यक्ति को बौद्धिक, परोपकारी बनाता है और उसे सौभाग्य प्रदान करता है । बृहस्पति की दशा के दौरान पुखराज पहनने पर व्यक्ति अपने जीवन में शीर्ष स्तर पर पहुंचता है।

वृषभ लग्न के लिए पुखराज अशुभ है अत: धारण नहीं करना चाहिए।

मिथुन लग्न में गुरु केन्द्राधिपति दोष से ग्रस्त हैं, इसलिए पुखराज पहनने से पहले आपको ज्योतिषी सलाह की आवश्यकता है।

कर्क लग्न में गुरु भाग्य के स्वामी हैं। कर्क लग्न के लिए हमेशा पुखराज पहनना चाहिए। पुखराज उच्च शिक्षा, नाम, यश, धन और अच्छी संतान देगा।

सिंह लग्न में माणिक्य को पहना जाना चाहिए, लेकिन बृहस्पति योगकारक ग्रह हैं और पुखराज व्यक्ति को बृहस्पति दशा  के दौरान शुभ परिणाम देंगे।

कन्या लग्न में बृहस्पति केन्द्राधिपति दोष से ग्रस्त हैं, लेकिन अन्य मापदण्डों की जांच करने के लिए पुखराज पहनने से पहले ज्योतिषी से परामर्श किया जाना चाहिए।

तुला लग्न में बृहस्पति शुभ ग्रह नहीं हैं, इसलिए सामान्य रूप से तुला लग्न वालों को पुखराज पहनने से बचना चाहिए।

वृश्चिक लग्न में बृहस्पति शुभ हैं और अनुकूल परिणामों के लिए पुखराज पहनें। सर्वोत्तम परिणामों के लिए पुखराज के साथ लाल मूंगा भी पहनें।

धनु लग्न में हमेशा पुखराज पहनें और सर्वोत्तम परिणामों के लिए माणिक्य के साथ पुखराज पहनें।

मकर लग्न में बृहस्पति शुभ ग्रह नहीं हैं और पुखराज को कभी नहीं पहनना चाहिए।

कुंभ लग्न में पुखराज धारण नहीं करना चाहिए।

मीन लग्न में बृहस्पति एक शुभ ग्रह हैं और सफलता के लिए पुखराज को बृहस्पति की दशा के दौरान पहना जाना चाहिए, इससे अनुकूल परिणाम मिलेंगे। मीन लग्न के लिए पुखराज और लाल मूंगा दोनों पहनने से उत्तम परिणाम प्राप्त होंगे।

बृहस्पति ग्रह बहुत सी बीमारियों के निवारण में जबरदस्त योगदान देते हैं। ज्योतिष जगत में यह माना जाता है कि बृहस्पति आयु की रक्षा करते हैं और जब-जब बृहस्पति लग्न के साथ कोई सम्बन्ध बनाते हैं तो जातक की आयु सुरक्षित रहती है।

बीमारी और पुखराज -

अगर किसी को जॉन्डिस या पीलिया हो जाए तो उन्हें 5 रत्ती से बड़ा पुखराज पहनाएं। Anaemia रक्त की कमी या मूत्राशय रोग, इम्पोटेंसी में पुखराज और रेड कोरल लाभदायक है। हर्निया में सोने में पुखराज और रेड कोरल कॉपर में धारण करें। स्किन की समस्या जैसे कि एक्जिमा में पुखराज और वाइट कोरल पहनें। नर्वस सिस्टम डिसआर्डर / मिर्गी में पुखराज, पन्ना और मोती विशेष लाभ देते हैं ।

बृहस्पति का रत्न पुखराज जब भी पहनें 3 रत्ती से ऊपर होना चाहिए, कभी भी 6/11/15 रत्ती नहीं होना चाहिए। पुष्य नक्षत्र में सोने में बना पुखराज जादुई परिणाम देता है। जो भी पुखराज पहनने में असमर्थ है और बृहस्पति ग्रह को प्रसन्न करना चाहते हैं तो शुभ परिणाम के लिए 19,000 बार बृहस्पति मंत्र का जाप करना चाहिए।  ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:। गुरु के यन्त्र का १०८ मंत्र और पीले फूल से पूजन करें।