नयी दिल्ली,: उच्चतम न्यायालय ने हत्या के एक मामले में चार लोगों की दोषसिद्धि को चुनौती देने वाली उनकी अपील को अस्वीकार करते हुए कहा है कि महज प्रत्यक्षदर्शियों के बयान रिकॉर्ड करने में विलंब के कारण उनकी गवाही को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति यू यू ललित, न्यायमूर्ति एस रवींद्र भट्ट और न्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी की पीठ ने कहा कि उपलब्ध सामग्री निश्चित रूप से इस बात को स्थापित करती है कि आरोपी व्यक्तियों ने भय पैदा किया।

न्यायमूर्ति यू यू ललित की अध्यक्षता वाली इस पीठ ने कहा, ‘‘यह सच है कि संबंधित प्रत्यक्षदर्शियों के बयान दर्ज करने में कुछ विलंब हुआ है। लेकिन केवल इस आधार पर उनकी गवाही को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।’’

शीर्ष न्यायालय ने कहा कि यदि गवाह आतंकित और डरे हुए थे और कुछ समय तक वे सामने नहीं आए तो ऐसे में उनके बयान दर्ज करने में हुई देरी को समझा जा सकता है।

न्यायालय चार आरोपियों की ओर से दायर अपील पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें उन्होंने कलकत्ता उच्च न्यायालय के उनकी अपीलों को खारिज करने और सत्र न्यायाधीश द्वारा की गई दोषसिद्धि और सजा की पुष्टि करने के फैसले को चुनौती दी थी।

अपीलकर्ताओं के वकील ने न्यायालय को दो प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के बारे में सूचित किया था और कहा था कि उनके बयानों को दर्ज करने में हुआ विलंब इस मामले में अभियोजन पक्ष के लिए नुकसानदायक होगा। उन्होंने कहा कि इस बारे में कोई स्पष्टीकरण नहीं दिया गया है कि गवाहों के बयान दर्ज करने में देरी क्यों हुई। वकील ने कहा कि दो प्रत्यक्षदर्शियों की गवाही के अलावा अपीलकर्ताओं के अपराध को साबित करने के लिए रिकॉर्ड में कुछ और नहीं है।

इस पर, सरकारी वकील ने कहा कि आरोपियों का आतंक इस कदर था कि गवाह भाग गए थे और वे जांच अधिकारियों द्वारा आरोपियों की गिरफ्तारी समेत अन्य कदम उठाए जाने के बाद ही सामने आए।