नयी दिल्ली, 25 जनवरी।  केंद्र ने उच्चतम न्यायालय से सोमवार को कहा कि कोविड-19 स्थिति की वजह से 2020 में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की सिविल सेवा परीक्षा में अपने अंतिम अवसर में न बैठ सके अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अवसर प्रदान करने का ‘‘नकारात्मक असर’’ पड़ेगा और यह समूची कार्यप्रणाली के लिए हानिकारक होगा।

शीर्ष अदालत में दायर शपथपत्र में केंद्र ने कहा है कि कुछ अभ्यर्थियों को अतिरिक्त अवसर या आयु में छूट देना परीक्षा में बैठ चुके अभ्यर्थियों से भेदभाव करने जैसा होगा।

शपथपत्र से कुछ दिन पहले केंद्र ने शीर्ष अदालत को बताया था कि वह 2020 में सिविल सेवा परीक्षा के अपने अंतिम अवसर में न बैठ सके अभ्यर्थियों को एक और अवसर प्रदान करने के पक्ष में नहीं है।

कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग के अवर सचिव द्वारा दायर शपथपत्र में कहा गया है, ‘‘इसलिए, याचिकाकर्ता को कोई भी राहत देने, विचार योग्य न होने के साथ ही, इसका परिणाम भविष्य में अन्य अभ्यर्थियों के साथ गंभीर पूर्वाग्रह के रूप में निकलेगा।’’

इसमें कहा गया है कि मौजूदा याचिकाकर्ताओं को समायोजित करने का नकारात्मक असर होगा और यह समूची कार्यप्रणाली के लिए हानिकारक होगा तथा किसी भी लोक परीक्षा प्रणाली में हर किसी को समान एवं निष्पक्ष अवसर प्रदान करने की आवश्यकता होती है।

शीर्ष अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही है जिसमें उन अभ्यर्थियों को एक और अवसर उपलब्ध कराने का आग्रह किया गया है जो महामारी की वजह से पिछले साल अपने अंतिम अवसर में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल सेवा परीक्षाओं में नहीं बैठ पाए थे।

मामला न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध था।

न्यायालय इस मामले में अगली सुनवाई 28 जनवरी को करेगा।