नयी दिल्ली : केंद्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बुधवार को कहा कि भारत जलवायु परिवर्तन संबंधी अपनी प्रतिबद्धताओं को बढ़ाएगा लेकिन किसी तरह के दबाव में नहीं और वह किसी को भी अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी भूलने की अनुमति नहीं देगा।

उन्होंने यह भी कहा कि भारत दूसरों की गलतियों का परिणाम भुगत रहा है और ‘‘वह जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार नहीं है।”

जावड़ेकर ने ये टिप्पणियां फ्रांसीसी दूतावास में फ्रांस के विदेश मंत्री ज्यां येव्स ले द्रियां के साथ मुलाकात के बाद अपने भाषण में कीं।

फ्रांसीसी मंत्री ले द्रियां ने कहा कि अगर दुनिया औद्योगिकीकरण पूर्व के स्तर से वैश्विक तापमान बढ़ोतरी को दो डिग्री या 1.5 डिग्री सेल्सियस तक नहीं रोक पाती है तो परिणाम बहुत भयानक होंगे।

उन्होंने कहा कि इसलिए यह अत्यंत महत्त्वपूर्ण है कि सभी देश पेरिस समझौते के मुताबिक ग्लासगो में होने वाले कोप26 तक जलवायु संबंधी उनकी प्रतिबद्धताओं को पूरा कर लें।

ले द्रियां ने कहा, “लक्ष्यों में इस बढ़ोतरी में 2030 तक राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित नए योगदान को और कार्बन उत्सर्जन न के बराबर करने के लिए दीर्घकालिक रणनीतियों को भी शामिल किया जाना चाहिए। हमें नये कोयला आधारित संयंत्रों का निर्माण बंद करना होगा और यह जरूरी है कि हम वैश्विक स्तर पर बिजली उत्पादन के इस माध्यम को धीरे-धीरें रोक दें।”

जावड़ेकर ने कहा, ‘‘हम हमारी प्रतिबद्धताओं को पूरा करेंगे हमारी आकांक्षाओं को बढ़ाएंगे लेकिन दबाव में नहीं। और हम देशों से जलवायु संबंधी उनके कार्यों के बारे में भी पूछेंगे तथा उनसे निधि एवं प्रौद्योगिकी सहायता देने को कहेंगे।”

उन्होंने कहा कि भारत जी 20 का एकमात्र देश है जिसने पेरिस जलवायु समझौते पर जो कहा, वह किया और “ हमने अपने वादे से ज्यादा किया है।”

पर्यावरण मंत्री ने कहा कि असामान्य मौसमी घटनाओं का बार-बार होना बढ़ गया है लेकिन ‘‘हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह नयी बात नहीं है।”

जलवायु परिवर्तन पर जारी बहस में ऐतिहासिक जिम्मेदारी को अत्यंत महत्त्वपूर्ण पहलू बताते हुए उन्होंने कहा, “हम आज जो भुगत रहे हैं वह 100 साल पहले हुआ था। यूरोपीय और अमेरिकी देशों तथा पिछले 30 वर्षों में चीन ने ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन किया है और इसलिए दुनिया भुगत रही है... भारत दूसरों की हरकतों का परिणाम भुगत रहा है।”

उन्होंने कहा, “हम ऐतिहासिक जिम्मेदारी को भूल नहीं सकते और न किसी को हम यह भूलने देंगे।’’

मंत्री ने कहा कि हर कोई समान खतरे का सामना कर रहा है लेकिन जिन्होंने प्रदूषण फैलाया है उन्हें कार्रवाई भी ज्यादा करनी होगी।

उन्होंने कहा, “उन्होंने कोपनहेगेन में हर साल 100 अरब डॉलर देने का वचन दिया था लेकिन पैसा कहां है। पैसा कहीं नहीं दिख रहा है।”

कोपनहेगन समझौते के तहत, विकसित देशों ने जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए विकासशील देशों की मदद के वास्ते 2020 तक 100 अरब डॉलर हर साल जुटाने की प्रतिबद्धता जताई थी।

जावड़ेकर ने कहा कि कई देश अपनी 2020 से पूर्व में की गई प्रतिबद्धताएं भूल गए हैं।

उन्होंने कहा, “पहले पेरिस लक्ष्यों को पूरा करें..हर कोई 2050 की बात कर रहा है और 2025 और 2030 की बात नहीं हो रही है।”

उन्होंने कहा, “ हम अब कह रहे हैं कि कोयले का इस्तेमाल नहीं करें, लेकिन विकल्प कोयले से काफी सस्ता होना चाहिए, तभी लोग कोयले का इस्तेमाल बंद करेंगे।” साथ ही कहा कि भारत बड़ा उत्सर्जक नहीं है।

मंत्री ने कहा कि भारत ने 15,000 वर्ग किलोमीटर में पेड़ लगाए हैं और 2030 तक वह परती भूमि के 2.6 करोड़ हेक्टेयर को सुधार देगा तथा उत्सर्जन तीव्रता को वह 26 प्रतिशत तक कम कर चुका है।

पर्यावरण मंत्री ने अपनी प्रतिबद्धता को दर्शाने के लिए बताया कि भारत ने जीवाश्म ईंधन पर 40 प्रतिशत कार्बन कर लगाया है।

जावड़ेकर ने कहा, “अगर जलवायु परिवर्तन आपदा है तो हमें इससे लाभ भी नहीं कमाना चाहिए।”