नयी दिल्ली : भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) के डिप्टी गवर्नर टी रवि शंकर ने सोमवार को उद्योग जगत से वित्तीय उत्पादों और सेवाओं के मूल्य निर्धारण को पारदर्शी बनाने का आग्रह किया ताकि उनकी गलत ढंग से होने वाली बिक्री की संभावना को कम किया जा सके।

नेशनल काउंसिल ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च (एनसीएईआर) द्वारा आयोजित कार्यक्रम के दौरान शंकर ने कहा कि मुफ्त सेवाओं के मामले में भी कुछ न कुछ मूल्य तो लगता ही है।

इस तरह की अपारदर्शी व्यवस्था का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वित्तीय क्षेत्र में कई उत्पादों को एक साथ मिलाकर बेचना ऐसी व्यवस्था है। जहां पादर्शिता की कमी लगती है।

उन्होंने कहा, ‘‘उत्पादों को एक बंडल बनाकर बेचने से ग्राहकों की बजाय विक्रेता को ही लाभ पहुंचता है। जब भी विभिन्न उत्पादों को एकजुट कर एक साथ बेचने की बात सामने आती है तो, मुझे लगता है कि नियामकों को गलत बिक्री और दुरुपयोग की संभावनाओं के प्रति अधिक सतर्क रहने की जरूरत है।’’

उन्होंने हालांकि, कहा कि यह विचार शिक्षा क्षेत्र में निवेश और बैंकिंग क्षेत्र में सुरक्षा से संबंधित स्वतंत्र और निष्पक्ष बहस के हित में आरबीआई की तरफ से नहीं बल्कि उनका निजी विचार है।

डिप्टी गवर्नर ने कहा, ‘‘सेवाओं का मूल्य निर्धारित करते समय उद्योग को मूल्य को पारदर्शी बनाने की भी आवश्यकता है। आप जो भी सेवायें बेच रहे हैं उनका मूल्य निर्धारण अलग अलग होना चाहिए।’’

शंकर ने कहा कि डिजिटल भुगतान उद्योग अभी धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है। भारत में डिजिटल भुगतान ने 2010 बाद गति पकड़ी है। उन्होंने कहा कि भारत में डिजिटल भुगतान में वृद्धि की व्यापक संभावनायें हैं। डिजिटल क्षेत्र में एक ऐसा समग्र तंत्र विकसित करने की आवश्यकता है जहां प्रत्येक नागरिक को इसका भरोसा हो कि उसका धन आनलाइन प्रणाली में सुरक्षित है।

डिप्टी गवर्नर ने कहा कि रिजर्व बैंक ने देश में डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के लिये कई कदम उठाये हैं।