नयी दिल्ली,  दिल्ली उच्च न्यायालय ने फैसला किया है कि कोविड-19 महामारी को काबू करने के लिए लागू लॉकडाउन के दौरान और उससे पहले मंजूर की गई जमानत और अंतरिम रोक की अवधि बढ़ाने का उसका आदेश 31 अक्टूबर के बाद प्रभावी नहीं रहेगा।

अदालत ने कहा कि जिन विचाराधीन कैदियों की जमानत अवधि बढ़ाई गई थी, उन्हें दो नवंबर से 13 नवंबर के बीच चरणबद्ध तरीके से आत्मसमर्पण करना होगा।

उसने कहा कि यह आदेश उन 356 कैदियों पर भी लागू होगा, जिन्हें अदालत ने जमानत दी है और उन्हें 13 नवंबर को जेल प्राधिकारियों के सामने आत्मसमर्पण करना होगा।

इससे पहले, अदालत ने कोविड-19 महामारी के चलते अपने और जिला अदालतों में उन लंबित मामलों पर सभी अंतरिम आदेशों की अवधि 31 अगस्त से बढ़ाकर 31 अक्टूबर तक कर दी थी, जिनमें अंतरिम आदेश की अवधि 31 अगस्त या उसके बाद समाप्त होने वाली थी।

मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल, न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति तलवंत सिंह की पूर्ण पीठ ने कहा कि जघन्य अपराधों में संलिप्त जिन 2,318 विचाराधीन कैदियों की जमानत मंजूर की गई थी और जिनकी जमानत की अवधि अदालत के आदेश के आधार पर समय-समय पर बढ़ाई गई, उनकी जमानत की अवधि 31 अक्टूबर को सप्ताह होगी और उन सभी को दो नवंबर से 13 नवंबर के बीच चरणबद्ध तरीके से आत्मसमर्पण करना होगा।

आत्मसपर्मण की प्रक्रिया तीस हजारी जिला न्यायालय से शुरू होगी और यह नयी दिल्ली स्थित राऊज एवेन्यू अदालत परिसर में कैदियों के आत्मसमर्पण से 13 नवंबर को समाप्त होगी।

अदालत ने कहा कि कोरोना वायरस के कारण अदालतों का काम-काज प्रभावित होने के कारण अंतरिम आदेशों की अवधि बढ़ाई गई थी, लेकिन अब ‘‘हालात बदल गए हैं’’ और सभी अदालतें काम कर रही हैं।

उसने कहा कि अब अदालतों में कोविड-19 संक्रमण का खतरा नहीं है और 16,000 कैदियों में से केवल तीन संक्रमित हैं, उन्हें अलग कर दिया गया है और वे अस्पताल में भर्ती हैं।

पीठ ने कहा कि यह आदेश उन 356 कैदियों पर भी लागू होगा जिन्हें जमानत दी गई है।

इसी के साथ, पीठ ने लॉकडाउन के दौरान अंतरिम रोक और जमानत मंजूर किए जाने की अवधि बढ़ाने संबंधी आदेशों से जुड़ी जनहित याचिका का निपटारा कर दिया।

इससे पहले अदालत ने 30 अक्टूबर को कहा था कि कोविड-19 महामारी के मद्देनजर कैदियों की अंतरिम जमानत और पैरोल की अवधि बढ़ाने वाले आदेश को समाप्त करने का समय आ गया है।