नयी दिल्ली:  दिव्यांग अधिकार समूहों ने दिव्यांग अध्ययन और पुनर्वास विज्ञान के लिए विश्वविद्यालय बनाने के सरकार के प्रस्ताव को वापस लेने की मांग करते हुए कहा है कि इससे वे समाज में शामिल किए जाने के बजाए अलग-थलग पड़ने के साथ ही काफी पीछे चले जाएंगे।

राष्ट्रीय दिव्यांगजन रोजगार प्रोत्साहन केंद्र और राष्ट्रीय दिव्यांग अधिकार मंच सहित कई दिव्यांग समूहों ने सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की सचिव शकुंतला डी. गामलिन को पत्र लिखकर इस कदम का विरोध किया है।


सरकार ने दिसंबर 2020 में ‘‘अपनी तरह के पहले’’ विश्वविद्यालय के गठन का प्रस्ताव दिया था जिसमें दिव्यांग अध्ययन एवं पुनर्वास विज्ञान को पूरी तरह कवर किया जाएगा।

सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत आने वाले दिव्यांग जन सशक्तिकरण विभाग ने 24 दिसंबर 2020 को सार्वजनिक नोटिस जारी कर विश्वविद्यालय स्थापित करने के लिए संबंधित पक्षों से मसौदा विधेयक पर राय मांगी थी।

पत्र में कहा गया है, ‘‘हम बताना चाहते हैं कि प्रस्तावित विश्वविद्यालय अपनी तरह का पहला संस्थान होगा लेकिन इससे दिव्यांगजन समाज में शामिल होने के बजाए अलग-थलग हो जाएंगे और काफी पीछे चले जाएंगे।’’

इसमें कहा गया है, ‘‘यह दिव्यांग जनों के अधिकार कानून, 2016 की प्रगतिशील प्रकृति के विपरीत है, साथ ही राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की समग्रता की संकल्पना के विरूद्ध है।’’

पत्र में कहा गया है कि मसौदा विधेयक में वास्तविक दिव्यांग अध्ययन पर स्पष्टता में कमी है और यह उच्च शिक्षा व्यवस्था के नियमों और प्रथाओं से भी अलग है।