प्रयागराज : इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने तांडव वेब सीरीज का प्रसारण करने वाली कंपनी एमेजन प्राइम वीडियो के इंडिया ओरिजिनल्स की प्रमुख अपर्णा पुरोहित की अग्रिम जमानत याचिका बृहस्पतिवार को खारिज कर दी।

न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की पीठ ने कहा, यह तथ्य सामने है कि याचिकाकर्ता ने इस देश के बहुसंख्यक नागरिकों के मौलिक अधिकारों के खिलाफ एक फिल्म के प्रसारण की अनुमति देकर गैर जिम्मेदाराना कार्य किया है।

अदालत ने कहा, ' हमारे संज्ञान में आया है कि आवेदक ने लखनऊ के हजरतगंज पुलिस थाने में दर्ज एक अन्य प्राथमिकी के संदर्भ में अग्रिम जमानत की अर्जी दी थी। उसे 11 फरवरी को एक दूसरी पीठ द्वारा गिरफ्तारी से राहत दी गई, लेकिन वह जांच में सहयोग नहीं कर रही थीं।'

गौरतलब है कि यह अग्रिम जमानत याचिका गौतम बुद्ध नगर जिले के ग्रेटर नोएडा में रबुपुरा पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी के संदर्भ में राहत देने के अनुरोध के साथ दायर की गई थी। रौंजिया गांव के बलबीर आजाद ने 19 जनवरी, 2021 को रबुपुरा पुलिस थाने में प्राथमिकी दर्ज कराई थी, जिसमें आजाद ने आरोप लगाया है कि तांडव वेब सीरीज के जरिए उत्तर प्रदेश पुलिस की छवि खराब की गई है। साथ ही इसमें हिंदू देवी-देवताओं का अपमान किया गया है। यह प्राथमिकी अपर्णा पुरोहित और छह अन्य लोगों के खिलाफ दर्ज की गई थी।

राज्य सरकार के वकील ने यह कहते हुए इस जमानत याचिका का कड़ा विरोध किया कि देश में इस विवादास्पद वेब सीरीज को लेकर कुल 10 प्राथमिकी और चार आपराधिक शिकायतें दर्ज कराई गई हैं। उक्त मामलों से पता चलता है कि याचिकाकर्ता और अन्य सह आरोपियों के कृत्य से केवल एक व्यक्ति ही प्रभावित नहीं है, बल्कि देशभर में अनेक लोगों को लगता है कि यह वेब सीरीज उनकी भावना को ठेस पहुंचाती है। इसलिए आवेदक को किसी तरह की राहत देना उचित नहीं है।

इस पर अदालत ने कहा, 'हमें देखने में आया है कि कई फिल्मों में हिंदू देवी-देवताओं के नाम का उपयोग किया गया है और उन्हें गलत ढंग से दिखाया गया है जैसे 'राम तेरी गंगा मैली', 'सत्यम शिवम सुंदरम', 'पीके', 'ओह माई गॉड' आदि में।'

पीठ ने आगे कहा कि पश्चिम के फिल्म निर्माता ईसा मसीह या मोहम्मद साहब का मखौल उड़ाने से बचते हैं, लेकिन हिंदी फिल्म निर्माता अब भी हिंदू देवी-देवताओं के संदर्भ में धड़ल्ले से ऐसा कर रहे हैं।

अदालत ने कहा, यही नहीं, ऐतिहासिक और पौराणिक हस्तियों की छवि भी विकृत करने के प्रयास किए गए हैं। बहुसंख्यक समुदाय की आस्था से जुड़े नामों का उपयोग पैसा कमाने के लिए किया गया है, जैसे कि 'गलियों की रासलीला रामलीला।'

उन्होंने कहा कि हिंदी फिल्म उद्योग की यह प्रवृत्ति बढ़ रही है और यदि समय रहते इस पर अंकुश नहीं लगाया गया तो इसके भारतीय सामाजिक, धार्मिक और सांप्रदायिक स्थिति के लिए विध्वंसक परिणाम होंगे।