पणजी : प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में प्रवेश के लिए छात्रों के चयन का मौजूदा मॉडल, जिसमें सीएलएटी परीक्षा उत्तीर्ण करना शामिल है, ऐसा नहीं है जिसके परिणाम स्वरूप इस लिहाज से सही स्वभाव वाले अभ्यर्थियों का चयन हो।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ बार काउंसिफ ऑफ इंडिया ट्रस्ट-पर्ल फर्स्ट की पहल पर बनी ‘इंडिया इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ लीगल एजूकेशन और रिसर्च’ (आईआईयूएलईआर) के पहले अकादमिक सत्र के उद्घाटन समारोह को संबोधित कर रहे थे।

उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय को अत्याधुनिक अनुसंधान का केंद्र होना चाहिए और आईआईयूएलईआर में ऐसी प्रणाली होनी चाहिए जो छात्रों को अधिक समावेशी बनाए।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि जरूरी नहीं है कि समान विधि प्रवेश परीक्षा (सीएलएटी) जैसी परीक्षाओं से सभी पात्र अभ्यर्थियों के प्रवेश का रास्ता साफ होता हो।

प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के सामने एक समस्या यह है कि संभवत: हम छात्रों के चयन के लिए जिस मॉडल का इस्तेमाल करते हैं उसमें हमेशा मूल्य आधारित शिक्षा को बढ़ावा नहीं दिया जाता क्योंकि समान विधि प्रवेश परीक्षा होती है और हम छात्रों की इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने की योग्यता को देखते हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह आवश्यक नहीं है कि सीएलएटी के परिणाम स्वरूप वे ही छात्र चुने जाएं जो कानून के क्षेत्र में कॅरियर बनाने का सही स्वभाव रखते हैं। मेरी कुलपति और संकाय सदस्यों से अपील है कि विविध पृष्ठभूमि के छात्रों के लिए मूल्य आधारित विधि शिक्षा को महत्व दें।’’

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा के लिए संसाधनों की जरूरत होती है, लेकिन ये ऐसे तैयार नहीं किये जाने चाहिए कि उन छात्रों के लिए मार्ग ही बंद हो जाए जो इसके लिए भुगतान नहीं कर सकते।