रांची: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबी लोगों एवं परिजनों के बड़ी संख्या में कथित फर्जी कंपनी चलाने और उनके माध्यम से करोड़ों रुपये के लेनदेन के मामले में सोरेन के खिलाफ जांच के अनुरोध वाली जनहित याचिका की पोषणीयता पर उच्च न्यायालय ने बुधवार को हुई बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत इस पर तीन जून को फैसला सुनाएगी।

झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डा. रवि रंजन एवं न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंड पीठ ने सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के करीबियों एवं परिजनों के बड़ी संख्या में कथित फर्जी कंपनियां चलाने और उनके माध्यम से करोड़ों रुपये के धन शोधन से जुड़ी एक जनहित याचिका की पोषणीयता (सुनवाई योग्य है कि नहीं) पर आज चली लगभग साढ़े चार घंटे की बहस के बाद अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।

ज्ञातव्य है कि इस मामले में मुख्यमंत्री और राज्य सरकार मामले को खारिज कराने के लिए सर्वोच्च न्यायालय पहुंचे थे जहां से उन्हें सिर्फ इस राहत के साथ वापस उच्च न्यायालय भेज दिया गया था कि उच्च न्यायालय इस मामले की पोषणीयता पर पहले फैसला करेगी।

सर्वोच्च न्यायालय के इसी निर्देश के अनुसार आज झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश डा. रवि रंजन एवं न्यायमूर्ति सुजीत नारायण प्रसाद की खंड पीठ ने प्रार्थी शिवशंकर शर्मा की जनहित याचिका की पोषणीयता पर लगभग साढ़े चार घंटे की लंबी बहस सुनी और अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।

खंड पीठ के समक्ष आज राज्य सरकार एवं मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की ओर से सर्वोच्च न्यायालय के वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी एवं कपिल सिब्बल ने लगभग दो घंटे तक बहस की और इस जनहित याचिका को राजनीतिक विद्वेष के कारण दायर किया बताते हुए खारिज करने की मांग की।

जवाब में याचिकाकर्ता के वकील राजीव कुमार और प्रवर्तन निदेशालय की ओर से केन्द्र सरकार के महाधिवक्ता तुषार मेहता ने अपने तर्क रखे और इस मामले को सुनवाई योग्य बताया और उच्च न्यायालय से इस मामले की सुनवाई और न्याय करने की मांग की।

आज की बहस के बाद तीन जून को ही मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा स्वयं को खनन पट्टा आवंटित करने के मामले और हेमंत सोरेन के उस आवेदन पर भी सुनवाई की जा सकती है जिसमें उन्होंने चुनाव आयोग में सुनवाई पूरी होने के बाद ही उच्च न्यायालय में सुनवाई करने का आग्रह किया है। यह आग्रह मुख्यमंत्री ने मंगलवार को एक नया शपथ पत्र दाखिल कर किया था।

इससे पूर्व आज इस मामले में राज्य सरकार की ओर से बहस करते हुए कपिल सिब्बल ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता ने अपनी पहचान छिपाई है और याचिका दायर करने के दौरान अदालत को पूरी बात नहीं बतायी लिहाजा याचिका सुनवाई योग्य नहीं है।

सिब्बल ने दावा किया कि प्रार्थी ने झारखंड उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार याचिका दायर नहीं की है। उन्होंने कहा कि उच्च न्यायालय के नियमों के अनुसार जनहित याचिका दायर करने वाले को अपना विवरण देना होता है और उसे यह बताना होता है कि याचिका दायर करने का उद्देश्य क्या है?

सिब्बल ने कहा कि प्रार्थी को उच्च न्यायालय में याचिका दायर करते समय बताना जरूरी होता है कि न्यायालय की शरण में आने के पहले प्रार्थी ने किस फोरम में शिकायत की है और उसकी शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है? लेकिन प्रार्थी ने किसी फोरम में शिकायत ही नहीं की।