रांची : झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्रों में जारी रक्षा परियोजनाओं में कार्यरत राज्य के प्रवासी श्रमिकों का सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) द्वारा शोषण किए जाने का आरोप लगाया और कहा कि वह इस मुद्दे को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष उठाएंगे क्योंकि लगातार संवाद किए जाने के बावजूद हालात में सुधार नहीं हुआ है।

मुख्यमंत्री ने उन श्रमिकों को 'शहीद' का दर्जा दिए जाने की मांग की जिन्होंने दुर्गम इलाकों में सशस्त्र बलों के लिए बुनियादी ढांचा खड़ा करने में अपनी जान गंवा दी। साथ ही दावा किया कि कड़वी यादें लेकर झारखंड लौटने वाले प्रवासी श्रमिक दोबारा बीआरओ के लिए कार्य नहीं करना चाहते क्योंकि उनके साथ अमानवीय व्यवहार किया जाता है।

सोरेन ने 'पीटीआई-भाषा' को दिए साक्षात्कार में कहा कि राज्य के कोविड-19 संकट से उबरने के बाद वह स्वयं उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू - कश्मीर और लद्दाख जैसे विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रशासकों के साथ बैठक कर श्रमिकों को शोषण से बचाने के लिए तंत्र विकसित करने पर बल देंगे।

हालांकि, बीआरओ ने मुख्यमंत्री के आरोपों का खंडन करते हुए दावा किया कि तमाम ऐसे श्रमिक हैं जोकि दशकों से संगठन के लिए कार्य कर रहे हैं।

सोरेन ने कहा, ' मैंने खुद अप्रैल में उन 18 श्रमिकों के शव प्राप्त किए जिनकी उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-चीन सीमा के पास हुए हिमस्खलन में मौत हो गई थी। सभी पीड़ित बीआरओ के लिए कार्य कर रहे थे लेकिन उनके परिवारों को उचित मुआवजा नहीं मिला। राज्य सरकार अपने संसाधनों के जरिए इन श्रमिकों के शव लायी। इससे मैं आहत हुआ।'

मुख्यमंत्री ने कहा कि कुछ दिन पहले उन्होंने सुना कि राजनाथ सिंह दुर्गम इलाकों में सड़क निर्माण को लेकर बीआरओ की सराहना कर रहे थे लेकिन 'मेरा दिल उस वक्त टूट गया, जब रक्षा मंत्री ने उन लोगों के लिए एक शब्द भी नहीं कहा जिन्होंने वास्तव में इस ढांचे को खड़ा करने में योगदान दिया।'

उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकार 'अंतर-राज्यीय प्रवासी श्रमिक अधिनियम' के उल्लंघन के संबंध में कई बार बीआरओ का पत्र लिख चुकी है। सोरेन ने कहा कि कई बार ऐसे मामले सामने आए हैं जब राज्य सरकार के खर्च पर श्रमिकों के शवों को वापस राज्य लाना पड़ा और ऐसे श्रमिकों के परिजनों को उचित मुआवजा तक नहीं मिला।

मुख्यमंत्री ने कहा, ' मैं इस सब से अचंभित हूं। मैं इस मुद्दे को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के समक्ष उठाऊंगा। क्या केवल जवानों को दुश्मन की गोलियों का सामना करना पड़ता है? ऐसे में हमारे बहादुर श्रमिकों को शहीद का दर्जा नहीं मिलना चाहिए? क्या कभी उनके लिए एक शब्द भी नहीं कहा जा सकता।'