शहडोल (मध्य प्रदेश) : राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मंगलवार को जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग जैसे चुनौतियों के मद्देनजर आदिवासी समाज की जीवन शैली और वन संरक्षण के प्रति उनकी दृढ़ता को सीखने की जरुरत पर बल दिया।

राष्ट्रपति मध्य प्रदेश के शहडोल के जिले में ‘‘जनजाति गौरव दिवस’’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि आदिवासी समुदायों ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया था।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नीत सरकार ने आदिवासी नायक व स्वतंत्रता सेनानी बिरसा मुंडा की जयंती 15 नवंबर को ‘‘जनजाति गौरव दिवस’’ के रूप में मनाने की घोषणा पिछले साल की थी।

राष्ट्रपति मुर्मू ने लालपुर गांव में आयोजित कार्यक्रम में कहा, ‘‘आज, जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग की चुनौतियों को देखते हुए जनजाति समाज की जीवन शैली तथा वन संरक्षण के प्रति उनकी दृढ़ता से सभी को शिक्षा लेने की जरूरत है।’’

राष्ट्रपति ने देश में ब्रिटिश शासन के दौरान वन क्षेत्रों के संरक्षण में आदिवासी समाज के संघर्ष को याद किया और कहा कि उन्होंने इस उद्देश्य के लिए अपने जीवन का बलिदान दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘अधिकांश जनजातीय क्षेत्र वन एवं खनिज सम्पदा से समृद्ध रहे हैं। हमारे आदिवासी भाई बहन प्रकृति पर आधारित जीवन यापन करते हैं और सम्मान पूर्वक प्रकृति की रक्षा भी करते हैं। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान प्राकृतिक संपदा को शोषण से बचाने के लिए जनजातीय समुदाय के लोगों ने भीषण संघर्ष किए थे और अनगिनत लोग शहीद भी हुए थे। उनके बलिदान से ही वन संपदा का संरक्षण, काफी हद तक, संभव हो पाया था।’’

इस साल जुलाई में देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनी, मुर्मू ने कहा कि आदिवासी समाज द्वारा मानव समुदाय और वनस्पतियों को समान महत्व दिया जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘आदिवासी समाज में व्यक्ति की जगह समूह को, प्रतिस्पर्धा की जगह सहकारिता को और विशिष्टता की जगह समानता को अधिक महत्व दिया जाता है।’’ उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज में लिंग अनुपात अन्य समुदायों की तुलना में बेहतर है।

राष्ट्रपति ने कहा कि न्याय के हित में सब कुछ त्याग देने की भावना आदिवासी समाज की विशेषता रही है। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे स्वाधीनता संग्राम में, भिन्न-भिन्न विचारधाराओं और गतिविधियों की भूमिका रही है। उस संग्राम के इतिहास में, जनजातीय समुदायों द्वारा किए गए विद्रोहों की अनेक धाराएं भी शामिल हैं।’’

राष्ट्रपति ने पूर्व प्रधानमंत्री (दिवंगत) अटल बिहारी वाजपेयी को याद करते हुए कहा कि उन्होंने जनजाति समाज के लिए एक अलग मंत्रालय --जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन किया, जिसने देश में आदिवासी क्षेत्रों के विकास में अहम भूमिका निभाई है।

राष्ट्रपति ने आदिवासी समुदायों की प्राकृतिक जीवन शैली की प्रशंसा करते हुए कहा कि इससे वनों और प्रकृति के संरक्षण में मदद मिली है।

राष्ट्रपति मुर्मू ने कहा कि झारखंड के उलीहातू गांव में भगवान बिरसा मुंडा की प्रतिमा पर पुष्पांजलि अर्पित करके आज वह बहुत प्रसन्न हैं। उन्होंने कहा कि मुंडा के जन्म और काम से जुड़े स्थानों पर जाना मेरे लिए किसी तीर्थ पर जाने जैसा है।

राष्ट्रपति ने केंद्र और प्रदेश सरकारों द्वारा पिछले कुछ सालों में आदिवासी समुदाय के विकास के लिए कई कदम उठाए जाने पर प्रसन्नता व्यक्त की।

उन्होंने कहा, ‘‘समग्र राष्ट्रीय विकास और जनजातीय समुदाय का विकास एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसलिए, ऐसे अनेक प्रयास किए जा रहे हैं जिनसे जनजातीय समुदायों की अस्मिता बनी रहे, उनमें आत्म-गौरव का भाव बढ़े और साथ ही वे आधुनिक विकास से लाभान्वित भी हों। समरसता के साथ जनजातीय विकास की यही मूल भावना सबके लिए लाभदायक है।’’

राष्ट्रपति ने इस अवसर पर ग्राम पंचायतों के अधिकार बढ़ाने के लिए पेसा अधिनियम लागू करने को लेकर मध्य प्रदेश सरकार की प्रशंसा की। पेसा अधिनियम-1996 ग्राम सभा की सक्रिय भागीदारी के साथ जनजातीय आबादी के शोषण को रोकने के लिए बनाया गया था। यह अधिनियम जनजातीय क्षेत्रों में, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार देता है।

केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा और फग्गन सिंह कुलस्ते, मध्य प्रदेश के राज्यपाल मंगू भाई पटेल और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया।

चौहान ने आदिवासी समुदाय के कल्याण के लिए पेसा अधिनियम की मुख्य विशेषताओं का उल्लेख करते हुए कहा कि शराब की दुकान खोलने के लिए ग्राम सभा से अनुमति अनिवार्य होगी और किसी आदिवासी के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज होने पर पुलिस को ग्राम सभा को सूचित करना होगा।

राष्ट्रपति मंगलवार से दो दिवसीय मध्यप्रदेश दौरे पर हैं।