भोपाल/इंदौर, 21 अक्टूबर (भाषा) मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के मंत्रीमंडल के दो वरिष्ठ मंत्रियों जल संसाधन मंत्री तुलसीराम सिलावट और राजस्व एवं परिवहन मंत्री गोविन्द सिंह राजपूत ने संवैधानिक प्रावधानों के तहत राज्य के मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

मध्य प्रदेश जनसंपर्क विभाग के एक अधिकारी ने बुधवार को इसकी पुष्टि की ।

गौरतलब है कि संविधान का अनुच्छेद 164 (4) कहता है, "कोई मंत्री, जो लगातार छह महीने की अवधि तक राज्य के विधान-मंडल का सदस्य नहीं है तो वह उस अवधि की समाप्ति के उपरांत मंत्री पद पर नहीं रहेगा।"

सूबे में सात महीने पहले सत्ता परिवर्तन के बाद इन दोनों को विधानसभा की सदस्यता के बगैर 21 अप्रैल को चौहान के पांच सदस्यीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया था और कोविड-19 के चलते तब से लेकर अब तक उपचुनाव नहीं हो पाने के कारण ये दोनों अब तक विधायक नहीं बन सके, जिस कारण उन्हें मंत्री पद छोड़ना पड़ा है ।

मध्य प्रदेश में 28 विधानसभा क्षेत्रों में तीन नवंबर को उप चुनाव होने जा रहे हैं और इस उपचुनाव में सिलावट एवं राजपूत क्रमश: सांवेर तथा सुरखी विधानसभा सीटों से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ रहे हैं।

सिलावट का मुकाबला कांग्रेस प्रत्याशी और पूर्व लोकसभा सदस्य प्रेमचंद गुड्डू के साथ है, जबकि राजपूत का मुख्य मुकाबला कांग्रेस की प्रत्याशी पारूल साहू से है। पारूल हाल ही में भाजपा छोड़ कांग्रेस में गई हैं। इस उप चुनाव के नतीजे 10 नवंबर को आएंगे।

इसी बीच, तुलसीराम सिलावट ने बुधवार को कहा कि उन्होंने संवैधानिक प्रावधानों के तहत राज्य के जल संसाधन मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।

सिलावट ने संवाददाताओं को बताया, "मुझे राज्य के मंत्री पद की शपथ लिए आज (बुधवार) छह महीने हो रहे हैं। मैंने संवैधानिक प्रावधानों के तहत कल (मंगलवार) ही मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है।" उन्होंने कहा, "मेरे लिए मंत्री पद महत्वपूर्ण नहीं है। मेरे लिए जनता की सेवा और राज्य की प्रगति महत्वपूर्ण है। मैं बिना मंत्री पद के भी जनता की सेवा कर सकता हूं।" सिलावट ने कहा, "मैं (कमलनाथ की अगुवाई वाली) पिछली सरकार में भी मंत्री पद और विधानसभा की सदस्यता छोड़ चुका हूं।" पत्र में आगे कहा गया, "कृपया मेरा त्यागपत्र आज दिनांक 20 अक्टूबर को अपरान्ह से स्वीकार करने का कष्ट करें।" वहीं, सूत्रों के अनुसार राजपूत ने भी मंगलवार को इस्तीफा दिया है।

इससे पहले, वरिष्ठ राजनेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की सरपरस्ती में सिलावट एवं राजपूत समेत कांग्रेस के 22 बागी विधायकों के विधानसभा से त्यागपत्र देकर भाजपा में शामिल होने के कारण तत्कालीन कमलनाथ सरकार का 20 मार्च को पतन हो गया था। इसके बाद शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में भाजपा 23 मार्च को सूबे की सत्ता में लौटी थी।