एक समय था, जब महिलाएं सेना में न के बराबर होती थीं। होती भी थीं, तो इंजीनियरिंग, मेडिकल, कानूनी, सिग्नल और शैक्षिक विंग जैसे विभागों में। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में स्थितियां बदली हैं।

अवनि चतुर्वेदी, भावना कंठ और मोहना सिंह आज कॉम्बैट पायलट बन लड़ाकू विमान उड़ा रही हैं। नौसेना में भी अब महिलाएं पहुंच गई हैं। भारतीय सेना ने भी अब महिलाओं की क्षमता को देखते हुए उनका प्रतिनिधित्व बढ़ाने का फैसला किया है। 100 महिला सैनिकों के पहले बैच को मार्च, 2021 तक कमीशन प्रदान किए जाने की संभावना है।

आज जो स्थितियां बदली हैं, उनमें गुंजन सक्सेना जैसी महिलाओं की अहम भूमिका है। उन्होंने अपनी क्षमता, लगन और दृढ़ता से लड़कियों को आसमान में उड़ान भरने की प्रेरणा दी है। गुंजन युद्ध क्षेत्र में हेलीकॉप्टर उड़ाने वाली वायुसेना की पहली महिला पायलट थीं। उन्होंने कारगिल युद्ध के समय यह कारनामा किया था। उनका काम युद्धक्षेत्र में सैनिकों को सामान की आपूर्ति करना, घायल व शहीद सैनिकों को युद्धक्षेत्र से निकाल कर ले आना और दुश्मन पर निगरानी रखने में सहायता करना था। उन्हें वीरता पुरस्कार ‘शौर्य चक्र’ से भी सम्मानित किया गया था। उन्हें ‘कारगिल गर्ल’ के नाम से भी जाना जाता है।

फिल्म ‘गुंजन सक्सेना-द कारगिल’ उन्हीं गुंजन की कहानी को प्रस्तुत करती है। यह फिल्म कारगिल युद्ध में गुंजन के शौर्य को बस एक संदर्भ के रूप में दिखाती है, उसके विस्तार में नहीं जाती। यह मूल रूप से उनके पायलट बनने और उसके बाद खुद को स्थापित करने के संघर्ष को चित्रित करती है। फिल्म समाज की इस धारणा को भी चुनौती देती है कि सेना में शामिल होना, पायलट बनना सिर्फ पुरुषों का काम है और महिलाएं ऐसे काम नहीं कर सकतीं।

 फिल्म की पटकथा ठीक है। शरण शर्मा का निर्देशन भी ठीक है। पर फिल्म को मसालेदार बनाने के क्रम में लेखक-निर्देशक ने वायुसेना को थोड़ा नकारात्मक रूप में चित्रित कर दिया हैं। पुरुष पायलटों और अधिकरियों को फिल्म के ज्यादातर हिस्सों में इस तरह दिखाया गया है, जैसे वे गुंजन सक्सेना से नफरत करते हों। हां, इसमें दो राय नही है कि तब वायुसेना में महिलाए नहीं होती थीं, तो किसी महिला के यूनिट में आ जाने से असहजता जरूर थी। महिलाओं के लिए तब यूनिट में शौचालय, चेंजिंग रूम नहीं होते थे, जिसके कारण उन्हें परेशानियों से गुजरना पड़ता था। लेकिन वायुसेना ने जल्दी ही इन विसंगतियों को दूर किया। गुंजन सक्सेना ने स्वयं एक बार कहा था कि उन्हें कई मुश्किलों से गुजरना पड़ा था। लेकिन पुरुष पायलटों ने उनकी उम्मीद से ज्यादा जल्दी स्थिति को स्वीकार कर लिया था। वैसे क्लाइमैक्स में निर्देशक ने इस गड़बड़ी को ठीक करने की कोशिश की है। फिल्म दर्शकों को बांधे रखने में कामयाब है।

गुंजन की भूमिका में जाह्नवी कपूर अच्छी लगी हैं। हालांकि इसे वह और बेहतर तरीके से कर सकती थीं। गुंजन के पिता अशोक कुमार सक्सेना के किरदार में पंकज त्रिपाठी अपने चिर-चरिचित अंदाज में हैं। मां कीर्ति सक्सेना के रोल में आयशा रजा कभी कभी फरीदा जलाल की याद दिताती हैं। भाई के किरदार में अंगद बेदी के पास करने के लिए कुछ खास था नहीं। फ्लाइट कमांडर दिलीप कुमार की भूमिका में विनीत कुमार प्रभावशाली लगे हैं। कमांडिंग ऑफिसर गौतम सिन्हा के किरदार में मानव विज का अभिनय भी अच्छा है। अन्य कलाकर भी ठीक हैं।  
यह फिल्म प्रेरित करती है और बताती है कि महिलाएं युद्धक्षेत्र और कठिन हालातों में भी पूरी सक्षमता के साथ कार्य कर सकती हैं। यह देखने लायक फिल्म है।