वाराणसी, 10 मई (हि.स.)। अक्षय तृतीया पर्व पर शुक्रवार को श्री काशी विश्वनाथ धाम परिसर स्थित श्रीहरि विष्णु के बद्रीनारायण स्वरूप का भव्य श्रृंगार किया गया। परम्परा के निर्वाह में श्री काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास की ओर से आज ही के दिन से पवित्र श्रावण मास तक श्री विश्वनाथ जी के विग्रह पर कुंवरा भी प्रतिवर्ष की भांति लगाया गया।

अक्षय तृतीया श्री हरि के इस स्वरूप की दर्शन पूजन के लिए श्रद्धालु कतारबद्ध रहे। श्रद्धालुओं ने अपनी बारी आने पर बद्री नारायण का दर्शन पूजन किया। पर्व पर शाम को दरबार में विद्वत् संगोष्ठी भी आयोजित होगी। आयोजित गोष्ठी में श्री हरि के अवतार भगवान परशुराम के व्यक्त्तिव पर चर्चा होगी। भगवान परशुराम सनातन वांग्मय में अतुलित बल एवं नैतिक आचार के रक्षक के रूप में जाने जाते हैं। भगवान परशुराम स्वयं श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं, परंतु अवतार लीला में भगवान परशुराम ने शस्त्र शिक्षा महादेव शंकर से प्राप्त की है।

स्वयं महादेव शंकर ने समस्त शैव शस्त्रों पर पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए अपना प्रमुख अस्त्र "परशु" जमदग्नि पुत्र राम को प्रदान कर उन्हें परशुराम उपाधि प्रदान की है। परशु अस्त्र भगवान परशुराम को प्रदान करने के पश्चात महादेव शंकर ने प्रधान अस्त्र के रूप में त्रिशूल धारण किया। यह पौराणिक कथा है। भगवान परशुराम ने ही गंगापुत्र देवव्रत (भीष्म पितामह) को युद्ध शिक्षा दी थी। काशीराज की पुत्रियों के हरण के प्रसंग में भगवान परशुराम नैतिक आचार की रक्षा हेतु भीष्म से युद्धरत हुए।

मान्यता यह है कि कलियुग के उत्तरार्ध में श्रीहरि के कल्कि अवतार को युद्ध की शिक्षा भगवान परशुराम द्वारा ही प्राप्त होनी है। नैतिक आचार के प्रधान संरक्षक भगवान परशुराम के शिष्य कल्कि अवतार श्रीहरि पुनः नैतिक आचार को स्थापित कर सतयुग की स्थापना करेंगे यह पौराणिक मत है। भगवान परशुराम सनातन मत के "सप्त चिरंजीवी" में से एक हैं।



हिन्दुस्थान समाचार/श्रीधर/दिलीप