जयपुर : राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बुधवार को कहा कि लोगों को महापुरूषों के विचारों को अपनाना चाहिए और देश में आज की परिस्थितियों में बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर द्वारा दिखाए गए रास्ते पर चलते हुए समाज में समरसता कायम किये जाने की जरूरत है।

गहलोत बुधवार को आंबेडकर जयंती पर आयोजित ‘सर्व समाज की भूमिका शांतिपूर्ण प्रदेश के लिए' ऑनलाइन संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा, ‘‘जिस परिवार में झगड़े होते हैं, वहां सुख-शांति कायम नहीं हो सकती। यही बात हमारे समाज, प्रदेश और देश पर भी लागू होती है। आज समाज को विघटित करने वाली भाषा प्रयोग में लाई जा रही है, लोगों को गुमराह किया जा रहा है। इससे समाज के विभिन्न वर्गों में वैमनस्य कायम हो रहा है। धर्म निपेक्षता की मूल भावना को भुला दिया गया है। संवैधानिक संस्थाओं पर भारी दबाव है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान की मूल भावना को आत्मसात करते हुए हमें अपने व्यवहार और भाषा पर संयम रखने की आवश्यकता है।’’

मुख्यमंत्री ने कहा कि डॉ. आंबेडकर ने बचपन में उनके साथ हुए अन्याय और अपमान पर प्रतिक्रिया नहीं की बल्कि उच्च अध्ययन कर अपने आपको काबिल बनाया और दलित, शोषित एवं पिछड़ों को उनका हक दलाया।

अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाले मोहम्मद ने कहा कि आज जाति और धर्म के आधार पर समाज को बांटने के प्रयास किए जा रहे हैं, ऐसे में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों को अपनाने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्यमंत्री राजेन्द्र यादव ने कहा कि बाबा साहेब के विचारों को अपनाते हुए प्रदेश में दलित, शोषित एवं पिछड़े वर्गों के कल्याण की भावना के साथ कार्य किया जा रहा है।

संगोष्ठी के वक्ता गांधीवादी विचारक डॉ. एन सुब्बाराव ने कहा, ‘‘धर्म, जाति और क्षेत्र के आधार पर किसी तरह का विभेद नहीं हो और पूरी मानव जाति को एक परिवार की तरह माना जाए, ऐसी शिक्षा हमें हमारे बच्चों को देने की जरूरत है।’’

गांधीवादी विचारक और गांधी पीस फाउण्डेशन के पूर्व उपाध्यक्ष पीवी राजगोपाल ने कहा, ‘‘ समाज को तोड़ने वाली भाषा के प्रयोग का हमारी भावी पीढ़ी पर गलत असर पड़ेगा। भाषा का संतुलन एवं ज्ञान आधारित सूचना आज समाज के लिए बहुत जरूरी है। हिंसा की तुलना में हमें अहिंसा को उससे भी मजबूत करना होगा।’’ उन्होंने कहा कि गांधीजी विरोधी के प्रति भी नफरत की भावना रखने में विश्वास नहीं करते थे।

डॉ. भीमराव आंबेडकर विधि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. देव स्वरूप ने कहा कि बाबा साहेब ने पहली बार दलित एवं शोषित वर्ग में चेतना पैदा की और उन्हें इस बात का अहसास दिलाया कि संसाधनों पर उनका भी बराबरी का हक है। उन्होंने कहा कि वे मानते थे कि व्यक्ति की पहचान उसकी जाति या धर्म से नहीं बल्कि उसकी काबलियत के आधार पर होनी चाहिए और वे एक संतुलित एवं न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के पक्षधर थे।