जयपुर:  राजस्थान सरकार ने राज्य के नागौर-गंगानगर इलाके में पोटाश खनिज के व्यावहारिकता अध्ययन के लिए त्रिपक्षीय समझौते पर बृहस्पतिवार को हस्ताक्षर किए। इस अवसर पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उम्मीद जताई कि तेल व गैस के बाद अब पोटाश राजस्थान को नयी पहचान देगा।

यह त्रिपक्षीय समझौता राजस्थान सरकार, राजस्थान स्टेट माइन्स एंड मिनरल्स लिमिटेड तथा भारत सरकार के मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (एमईसीएल) के बीच किया गया है।

इस अवसर गहलोत ने कहा कि देश को खनिजों के मामले में आत्मनिर्भर बनाने में राजस्थान का बड़ा योगदान है। राजस्थान खनिजों का खजाना है। हमारा प्रयास है कि इनका समुचित दोहन हो और राजस्थान खनन के क्षेत्र में नंबर वन राज्य बने। इसके लिए व पूरे राज्य की खनिज संपदा की खोज के लिए परामर्शक भी नियुक्त किया जाएगा।

गहलोत ने कहा कि पोटाश के मामले में अभी हमारा देश पूरी तरह आयात पर निर्भर है। हर साल करीब 50 लाख टन पोटाश के आयात पर लगभग 10 हजार करोड़ रूपए की विदेशी मुद्रा खर्च करनी पड़ती है।

उन्होंने कहा कि राजस्थान के गंगानगर, हनुमानगढ़ व बीकानेर क्षेत्र में फैले पोटाश के भंडारों से हम इस खनिज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बन सकेंगे। एमओयू पोटाश के खनन की दिशा में बढ़ा कदम साबित होगा।

गहलोत ने कहा कि जैसलमेर और बाड़मेर में तेल व गैस की खोज से राजस्थान को नई पहचान मिली है। आशा है अब हम पोटाश के क्षेत्र में भी देश की जरूरतों को पूरा कर सकेंगे।

केन्द्रीय कोयला व खान मंत्री प्रहलाद जोशी ने कहा कि केन्द्र सरकार खनन क्षेत्र में नीतिगत सुधार कर रही है और इस क्षेत्र में कई बाधाओं को दूर किया गया है। उन्होंने कहा कि देश के लिए जरूरी पोटाश की उपलब्धता के आकलन और खनन की दिशा में हो रहे इस कार्य में राज्य सरकार से सक्रिय सहयोग मिल रहा है।

उन्होंने कहा कि भारतीय भू-विज्ञान सर्वेक्षण तथा एमईसीएल ने अपने प्रारंभिक अध्ययन में इस बेसिन में करीब 250 करोड़ टन खनिज पोटाश की उपलब्धता का आकलन किया है। उन्होंने कहा कि भारत सरकार खनन के क्षेत्र में राजस्थान को पूरा सहयोग करेगी।

केन्द्रीय संसदीय कार्य राज्यमंत्री अर्जुनराम मेघवाल ने कहा कि पोटाश के खनन से पश्चिमी राजस्थान पोटाश से जुड़े उद्योगों का हब बन सकता है। इससे बड़े पैमाने पर रोजगार के अवसर उपलब्ध होंगे और अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी।