ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी रविवार व हस्त नक्षत्र के दिन गंगा का अवतरण पृथ्वी पर हुआ था। पुराणों के अनुसार विष्णु भगवान के अंगूठे से निकली गंगा को जब भागीरथ पृथ्वी पर लाना चाहते थे तो मां गंगा का कहना था कि भगवान शिव के अतिरिक्त कोई भी मेरे वेग को धारण नहीं कर सकेगा। भगवान शिव ही प्राणी के कल्याण के लिए इस बात के लिए तैयार हो गये थे।

इक्ष्वाकु वंश में राजा सगर के केशिनी और सुमति नाम की दो रानियाँ थीं। इनके नाम महाभारत में वैदर्भी तथा शैव्या हैं। सगर की तपस्या से सुमति ने एक तूम्बी के माध्यम से साठ हजार पुत्र जन्मे कुछ आधुनिक लोग इसे क्लोनिंग का मामला भी मानते हैं। उस काल में कुछ और भी अयोनिजा जन्म हुए हैं। सगर की दूसरी रानी से अंशुमान नामक पुत्र हुआ। वह दुष्ट था और उसे राज्य से निर्वासित कर दिया गया। राजा सगर ने अश्वमेघ यज्ञ की प्रतिज्ञा की और श्याम कर्ण घोड़े के पीछे-पीछे साठ हजार पुत्रों की सेना चली। देवराज इन्द्र ने भयभीत होकर वह घोड़ा चुरा लिया और महर्षि कपिल जो कि तपस्या में थे के आश्रम में बांध दिया। इस प्रकरण में महर्षि कपिल के श्राप से सारे सगर पुत्र भस्म हो गए।

राजा सगर ने अपने निर्वासित पुत्र अंशुमान को बुलाया और कपिल मुनि को प्रसन्न करने का आदेश दिया। कपिल मुनि ने प्रसन्न होकर कहा कि केवल गंगाजल के तर्पण से ही साठ हजार पुत्रों का उद्धार हो सकता है। अंशुमान ने अश्वमेघ यज्ञ तो पूर्ण करा दिया परंतु न तो अंशुमान न ही उनका पुत्र दिलीप बल्कि दिलीप का पुत्र भागीरथ इस काम में सफल हुआ। उसने भगवान की तपस्या की और वरदान पाकर मां गंगा से भी आशीर्वाद लिया। भगवान शिव ने हिमालय पर्वत पर खड़े होकर गंगा के वेग को रोक लिया। भागीरथ आगे-आगे चले और पीछे-पीछे गंगा मां। जब राजा सगर के साठ हजार पुत्रों तक गंगा पहुंच गई और उनका उद्धार हो गया तब मां गंगा ने अपना आगे का रास्ता तय किया और बंगाल की खाड़ी तक पहुंच गईं।

गंगा की आयु -

गौ मुख से निकली भागीरथी 205 किलोमीटर तक चलकर अलकनंदा से मिलकर गंगा बनती है। भगवान विष्णु ने कलियुग में गंगा की आयु 5 हजार वर्ष बतायी है। अब उससे भी ऊपर सवा सौ से भी अधिक वर्ष हो चुके हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार गंगा इसके बाद विष्णु लोक चली जाएंगी।

जलयुग की शुरुआत -

जलवायु परिवर्तन के विषय पर तैयार एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 10 बड़ी नदियाँ वर्ष 2040 तक सूख जाएंगी। इनमें मिश्र की नील, चीन की यांग्त्सी, मेंकाम व ब्रिटेन की टेम्स नदी भी शामिल है। इन दिनों ग्लोबल वार्र्मिंग के कारण हिमनदों व ग्लेशियरों के पिघलने के कारण यह खतरा और भी बढ़ गया है। धु्रवों के पास भी हिम खण्डों के टूटने की खबरें हैं। आशंका है कि पहाड़ों की बर्फ पिघलेगी व समुद्र स्तर बढ़ेगा। हिम युग के बाद जलयुग आता ही है। कई शहर व तटवर्ती देशों की जमीन डूब जाने का पूरा खतरा है।

कहां गायब हुए हानिकारक बैक्टीरिया भक्षी तत्व -

गंगा में भारत की आत्मा निवास करती है। दक्षिण भारत के रामेश्वरम में ज्योर्तिलिंग पर गंगाजल चढ़ाओ तब तीर्थ पूरा माना जाता है और सारे भारत के हिन्दू मतावलम्बी लोग जब तक मृतक का अस्थि विसर्जन गंगा में नहीं कर लें तब तक उनका मन शांत नहीं होता।

सन् 1965 हामन लेबोरेट्री ने शोध में पाया कि गंगा जल में ऐसे बैक्टीरिया तत्व मिलते हैं जिनके कारण गंगाजल के हानिकारक बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं। गंगोत्तरी से ऋषिकेश तक चट्टानों में मिट्टी व जड़ी-बूटियों के कारण गंगाजल सड़ता नहीं है। इसमें बहुत अच्छी ऑक्सीजन घुली होती है परंतु बॉयोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमाण्ड का स्तर बहुत बढ़ गया है जिससे पानी अशुद्ध हो रहा है। पर्यटन के कारण यह समस्या बहुत बढ़ी है। शिकॉगो विश्वविद्यालय की एक शोध के अनुसार उत्तर भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में वायु प्रदूषण बहुत बढ़¸ा है व औसत आयु 5 से 7 वर्ष कम हो गयी है।

गंगा के कितने रूप -

शिवजी की जटाओं से निकली इसलिए जटाशंकरी कहलायी। भागीरथी, जान्हवी, मंदाकिनी व हुगली सहित गंगा के कुल 108 नाम हैं और 2525 किलोमीटर लम्बी है। बांग्लादेश में पहुंचकर यह पद्मा नदी कहलाती है। वहीं पर इनसे ब्रह्म पुत्र मिलती है और यह मेघना नदी कहलाकर बंगाल की खाड़ी में गिरती है।

स्वच्छ गंगा मिशन -

 वर्ष 2014 में गंगा के प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से केन्द्र सरकार ने गंगा काया कल्प मंत्रालय बनाया और नमामि गंगे मिशन प्रारम्भ किया। इस मिशन के तहत केन्द्र सरकार ने 2019 -20 तक 20 हजार करोड़ रुपये खर्च करने की योजना बनाई जो कि पूर्णतया केन्द्र प्रवर्तित थी। इस विषय में सुप्रीम कोर्ट भी बहुत सक्रिय रहा। इस योजना के तहत नगर निगम से आने वाले कचरे की समस्या को हल करने के लिए 25000 एम.एल.डी. अतिरिक्त ट्रीटमेंट कैपेसिटी का लक्ष्य रखा गया। जलवायु स्तर में वृद्धि, कटाव कम करना और नदी की इकोलॉजी सुधारने के लिए तीस हजार हैक्टयर भूमि पर वन लगाने का संकल्प लिया गया। यह कार्यक्रम 2016 में शुरु हुआ। पानी की गुणवत्ता के लिए 113 रियलटाइम जल गुणवत्ता केन्द्र स्थापित किए गये। सरकार में केबिनेट, हाईब्रिट वार्षिक आधारित पब्लिक प्राइवेट मॉडल पर भी विचार किया गया। केवल उत्तराखण्ड में 32 में से 29 सीवर ट्रीटमेंट प्लांट तैयार किये गए हैं। अब तक कुल 299 परियोजनाएं कार्यान्वित की जा रही है। जिनमें जल-मल आधारभूत संरचना, घाट एवं शवगृह, नदी-तट विकास, नदी सतह सफाई, घाट की सफाई और जैव उपचार शामिल हैं। इस मिशन के अन्तर्गत प्रोजेक्ट डॉलफिन भी शामिल किया गया है। ‘गंगा डॉलफिन’ को भारत सरकार ने राष्ट्रीय जलीय जीव के रूप में मान्यता दी है।

प्रधानमंत्री की सक्रियता -

उत्तर प्रदेश में योगी सरकार के आने के बाद प्रयाग में हुए कुंभ से पूर्व गंगा की सफाई पर बहुत ध्यान दिया जाने लगा। सफाई कर्मचारियों के महत्व को नए ढंग से परिभाषित किया गया। जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 6 सफाई कर्मियों के पद प्रक्षालन कार्यक्रम को सार्वजनिक कर दिया तो सारा भारत चकित रह गया। 

अब न केवल गंगा में उपलब्ध कचरे को साफ करने को लेकर काम हो रहा है, बल्कि गंगा में जा रहे कचरे को लेकर भी बहुत ध्यान दिया जा रहा है। उपयोग किए गए गंदे पानी, जैविक कचरा व प्लॉस्टिक की रिकवरी के लिए कई योजनाएं प्रस्तावित की गई हैं। ऐसा लगता है कि बहुत अधिक धनराशि की आवश्यकता है और सरकारी संसाधन कम पड़ रहे हैं।

गंगा में शव विसर्जन -

गत दिनों गंगा नदी में बहुत सारे शव मिले। इसे मुद्दा बना लिया गया। ऐसा विश्वास है कि गंगा में अस्थि विसर्जन से मुक्ति हो जाती है। गंगा तट पर देहावसान होने पर दाह संस्कार आवश्यक नहीं है। देह गंगा में प्रवाहित कर दी जाती है। इसकी आज्ञा शास्त्रों में भी है परंतु कोरोना के समय में यह आलोचना का विषय हो गया। अब तटीय क्षेत्रों में आबादी अधिक होने के कारण यह संख्या भी बढ़ गई है। इस मामले में केन्द्र सरकार धार्मिक भावनाओं का सम्मान करते हुए कोई अच्छी नीति बना सकती है।

हम क्या करें?

आज गंगा दशहरा के दिन हम यह संकल्प ले सकते हैं कि अस्थियों के साथ पूरी भस्म गंगा में प्रवाहित न करें ऐसी समझाइश करें। गंगा तट पर जो पर्यटक जाएं उन्हें समझाएं कि गंगा नदी में कचरा, प्लॉस्टिक व अपशिष्ट पदार्थ न डालें, शौच आदि से भी गंगा को अपवित्र न करें। कारखानों व फैक्ट्ररियों में ट्रीटमेंट प्लांट लगाएं और गंदे पानी को नदी में जाने से रोकें। प्रदूषण उत्पन्न करने वाली हर गतिविधि में कमी लाएं। केन्द्र सरकार और राज्य सरकारों के निर्देशों को मानें।

चूंकि यह प्रयास बड़े स्तर पर किए जाने जरूरी हैं, इसलिए सरकार और मीडिया की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण हो जाती है। गंगा दशहरा न केवल गंगा के महत्व को रेखांकित करता है, बल्कि जल साधनों की पवित्रता पर भी ध्यान देता है। देश के जल के प्रत्येक कण को जब तक गंगाजल नहीं समझेंगे तब तक यह लक्ष्य पूर्ण नहीं होगा। आज से कुछ सौ साल पहले अस्थि विसर्जन के बाद जब लोग गंगाजल लेकर लौटते थे तो उन्हें गांव के बाहर ही ठहराया जाता था और पूरा गांव उनके स्वागत के लिए जाता था। हम इन मूल्यों को भूल गए हैं, उन्हें पुनः याद करने की आवश्यकता है।