श्रीकृष्ण जन्माष्टमी

ज्योति शर्मा

भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को जन्माष्टमी पर्व मनाया जाता है। इस दिन रात्रि के 12:00 बजे मथुरा नगरी के कारावास में देवकी के गर्भ से षोड़श कला सम्पन्न भगवान श्रीकृष्ण का रोहिणी नक्षत्र में अवतार हुआ। जन्माष्टमी को गोकुला अष्टमी के नाम से भी जाना जाता है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी रोहिणी नक्षत्र योग रहित हो तो केवला और रोहिणी नक्षत्र युत हो तो जयन्ती कहलाती है।

अष्टमी कृष्णपक्षस्य रोहिणीऋक्षसंयुता।

भवेत्प्रौष्ठपदे मासि जयन्ती नाम सा स्मृता।।

अर्थात् भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यदि रोहिणी नक्षत्र से युक्त होती है तो वह जयन्ती नाम से जानी जाती है। भगवान विष्णु के 10 अवतारों में से आठवें अवतार व 24 अवतारों में से 22वें अवतार श्रीकृष्ण के जन्म का जश्न मनाया जाता है।

जन्माष्टमी भारत ही नहीं विदेशों में भी हर्षोल्लास से बनाए जाने वाला पर्व है परंतु मथुरा, ब्रज क्षेत्र व वृंदावन में अलग ही रोनक व उल्लास देखने को मिलता है। घर-घर में लड्डू गोपाल लाए जाते हैं और प्रात:काल से ही उनकी पूजा-अर्चना करके तरह-तरह के भोग लगाए जाते हैं व मंदिरों में विशेष रूप से भगवान श्रीकृष्ण का श्रृंगार किया जाता है, मुख्यत: लड्डू गोपाल को झूले में झूलाते हुए उनके स्वरूप की पूजा की जाती है। मंदिरों में भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं की झांकी सजाई जाती है। इस दिन घरों व मंदिरों को फूलों, गुब्बारों, केलों व अशोक के पत्तों से सजाया जाता है। मंदिरों के दरवाजों पर मण्डल कलश एवं मूसल स्थापित किया जाता है। रात्रि में भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति अथवा शालिग्रामजी को विधि पूर्वक पंचामृत से स्नान कराकर षोड़शोपचार से विष्णु पूजन किया जाता है और 'नमो भगवते वासुदेवाय’ इस मंत्र से पूजन करके वस्त्रदि से सुसज्जित किया जाता है व रात्रि 12:00 बजे जन्म लेने के प्रतिस्वरूप खीरे को डण्ठल से अलग करके चांदी के सिक्के की मदद से खीरे को काटकर भगवान श्रीकृष्ण का जन्म कराया जाता है। मान्यता है कि जिस तरह से मां की कोख से बच्चे के जन्म के बाद मां से बच्चे को अलग करने के लिए गर्भ नाल को काटा जाता है, उसी तरह खीरे और उसके डण्ठल को नाल रूप में मानकर अलग कर कृष्ण का मां देवकी से अलग करने के स्वरूप में यह किया जाता है। जन्म के पश्चात् दीप प्रज्ज्वलित करके भगवान श्रीकृष्ण की आरती की जाती है, छप्पन भोग लगाए जाते हैं, विशेषकर धनिया पंजीरी, केले, माखन-मिश्री व पंचामृत का भोग लगाया जाता है।

जन्माष्टमी के दिन गली-मौहल्लों में दही-हांड़ी प्रतियोगिता रखी जाती है। युवा झुंड बनाकर गली-मौहल्लों में ढोल बजाते हुए, गाना गाते हुए व शोर मचाते हुए गोपालों के रूप में मस्ती करते हुए दिखाई देते हैं।

भगवान श्रीकृष्ण को सोलह कलाओं से पूर्ण माने गए हैं उनका जन्म धर्म की मर्यादा, सदाचार व आदर्शों की रक्षा के लिए हुआ है। श्रीकृष्ण ने हमें भाग्यवादी नहीं पुरुषार्थवादी बनाने का उपदेश दिया। कभी भी अपने कत्र्तव्यों से पलायन नहीं करना चाहिए। अन्याय के सामने झुकना व मौन नहीं रहना, अपितु संघर्ष करते रहने की प्रेरणा दी है। भगवान श्रीकृष्ण ने सदा त्याग, संघर्ष, स्वाभिमान, पुरुषार्थ, साहस, धैर्य एवं आत्मविश्वास के साथ जीने के लिए प्रेरित किया है। जिस तरह राधा और अन्य गोपियों के माध्यम से संसार में प्रेम, विरह एवं वैराग्य की सरल धारा प्रवाहित की, वहीं दूसरी ओर अर्जुन के माध्यम से सनातन ब्रह्म ज्ञान का प्रकटीकरण किया। श्रीकृष्ण की साधारण लीलाओं में भी असाधारण प्रेरणात्मक संदेश छिपे हुए थे।

जन्माष्टमी के दिन व्रत के साथ अधर्म, घृणा, असत्य, हत्याचारी, कुसंगति व अन्याय के प्रति आवाज न उठाना, इन सब का त्याग कर सभी विकारों से दूर होकर अहंकार शून्य करके प्रभु के चरणों में स्थान पाकर अपने जीवन को सरल व सुखमय बना सकते हैं। जन्माष्टमी का दिन यही संदेश देता है कि हमें अधर्म व अन्याय के प्रति आँखें बंद नहीं करनी चाहिए व सदैव सत्य के प्रति कर्मवादी होना चाहिए।

 

जन्माष्टमी का प्रसाद धनिया पंजीरी एक औषधि है - जानें कैसे?

डॉ. सुमित्रा अग्रवाल

ऐसा शायद ही कोई हिन्दू होगा जो कृष्ण के बाल स्वरूप और लीलाओं से मुग्ध न हो।  भला जन्माष्टमी को कोई कैसे भूल सकता है।  बच्चे घर को नाना प्रकार के खिलौनों से सजाते हैं, माताएं तरह-तरह के प्रसाद बनाती है।  सारा दिन व्रत रख कर रात में १२ बजे कृष्ण के जन्म के साथ इस व्रत का समापन होता है।  सर्व प्रथम जो प्रसाद खाया जाता है पूरे दिन के उपवास के बाद वह प्रसाद धनिया पंजीरी का होता है। हमारी पूजा, रीति- रिवाजों में बहुत कुछ है जो वैज्ञानिक है पर हम उन्हें केवल धर्म से जोड़ कर देखते हैं, उनमे से एक है जन्माष्टमी का प्रसाद। पूरे दिन के उपवास के बाद धनिया का सेवन हमारे पाचन तंत्र को सक्रिय करने में लाभदायक होता है। यह पित्तशामक होता है। दिन भर पानी नहीं पीने के कारण मूत्राशय में जलन होती है यह उसमें भी लाभदायक होता है। कई पूजा, त्यौहारों में स्त्री-पुरुष सम्बन्धों को रखने की अनुमति नहीं होती। जैसे कि नवरात्रों में, वैसे ही जन्माष्टमी में भी कामुकता को रोकने में धनिया का प्रयोग किया जाता है। धनिया का सेवन वासनामय विचारों को नष्ट कर देता है। जन्माष्टमी में बहुत थकावट आ जाती है, उसमें भी २ चम्मच धनिया पंजीरी का सेवन थकावट दूर करने में सहायक होता है।  कई लोगों में देखा गया है कि पूरा दिन पानी नहीं पीने से डिहाइड्रेशन, सर दर्द, माइग्रेन जैसी समस्या देखी जाती है , इन सब में २ चम्मच पंजीरी का सेवन आराम ला देता है। पंजीरी के सेवन के बाद भोजन या बाकी प्रसाद खाने से सुबह मल विसर्जन की भी समस्या नहीं आती है।  इतने गुण तो मैंने सिर्फ धनिया के बताये।

जब नारियल का पानी कुदरती रूप से सूख जाता है तो यह नारियल गिरी बन जाता है। इस पंजीरी में नारियल गिरी भी होती है । नारियल गिरी में फैटी एसिड होते हैं। ये फैटी एसिड सीधे पाचन तंत्र से जिगर तक जाते हैं और आगे कीटोन निकायों में बदल जाते हैं। पूरे दिन के उपवास के बाद भोजन खाने से कई बार बॉडी में ग्लूकोस का लेवल हाई हो जाता है और इसी को नारियल गिरी कंट्रोल करती है। इसमें फाइबर उच्च मात्रा में होता है और यह ग्लूकोज रिलीज को धीमा कर देता है।  उपवास में अक्सर लोगों को हाइपर एसिडिटी होती है , अम्लता और हृदय की जलन समस्याओं को कम करने में भी गिरी मदद करती है।

मखाना खाने में सबको अच्छा लगता है। कुछ लोग तेल में तल कर खाते हैं तो कुछ लोग भून कर खाते हैं और तो और कुछ लोग खीर में डाल कर। धनिया पंजीरी में भी मखाना डाला जाता है।  मखाना के अनेक फायदे हैं, मखाना को मेवा का दर्जा ऐसे ही नहीं मिला है।  मखाना वास्तव में कमल का बीज है। यह एक स्वादिष्ट और पौष्टिक खाद्य पदार्थ है। इसे कई नामों से जाना जाता है, जैसे फॉक्स नट, लोटस सीड, फूल-मखाना और गोर्गन नट।  सारे दिन की थकान के पंजीरी में मिलाए जाने वाले मखाना  का सुखदायक प्रभाव होता है, ये एंटीस्पास्मोडिक होता है, इसलिए आपकी नसों को बेहतर आराम मिलता है और आपको बेहतर नींद मिलती है।

इस पंजीरी में चिरौंजी भी डाली जाती है।  माताएं पंजीरी के स्वाद को बढ़ाने के लिए चिरौंजी डालती हैं परन्तु चिरौंजी के बहुत से औषधिक गुण भी हैं।  चिरौंजीएक प्रकार की टॉनिक है आईये जाने कैसे? चिरौंजी प्रोटीन और वसा का एक अच्छा स्रोत है। इसमे फाइबर की भी अच्छी मात्रा होती है और विटामिन सी, विटामिन बी1, विटामिन बी २, नियासिन, कैल्शियम, फास्फोरस और लोहा भी इसमें पाया जाता है। चिरौंजी पित्त, कफ तथा रक्त विकार नाशक है। चिरौंजी को खाने से शरीर में गरमी कम होती और ठंडक मिलती है। इन चीजों के अलावा चीनी, काजू बादाम भी धनिया पंजीरी में मिलाया जाता है।