शिव पुराण के अनुसार हिन्दू धर्म में श्रावण मास को बड़ा पवित्र व विशेष माना गया है। भगवान शिव को भी यह मास विशेष प्रिय है अतः सभी को श्रावण मास में प्रतिदिन शिव उपासना करनी चाहिए। अधिकांश कुंवारी कन्याएं अच्छे वर की कामना के लिए व विवाहित महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाने के लिए श्रावण के सोमवार, 16 सोमवार व सम्पूर्ण श्रावण मास में व्रत करती हैं। इस परम्परा के पीछे पुराणों में एक कथा का उल्लेख मिलता है - जब माता पार्वतीजी ने अपने दूसरे जन्म में हिमालय और रानी मैना के घर में पुत्री के रूप में जन्म लिया और शिवजी को पुनः अपने पति रूप में प्राप्त करने के लिए श्रावण मास में निराहार रहकर कठोर व्रत करके भगवान शिव जी को प्रसन्न किया।  तभी से शिवजी को यह मास अतिप्रिय है, जो कोई भी व्यक्ति वर्ष भर नियमानुसार पूजा-पाठ नहीं कर सकता वह भी श्रावण मास में भगवान शिवजी की आराधना करके प्रसन्न कर सकता है। सभी देवी-देवताओं में भगवान शिव को सबसे भोले-भाले व सरल बताया गया है, इसीलिए भोलेनाथ भी शिवजी का एक नाम है अतः आसानी से शिवजी को प्रसन्न कर अपनी मनोकामना पूर्ण कर सकते हैं।

शास्त्रों में उल्लेख मिलता है कि श्रावण में व्रत करते समय प्रातः गंगा स्नान अन्यथा किसी पवित्र नदी या सरोवर में या यह भी सम्भव न हो सके तो विधि पूर्वक घर में स्नान करके किसी पवित्र सरोवर से जल लाकर शिवजी को अर्पित कर षोडशोपचार करके पूजन करना चाहिए व एक समय ही भोजन करना चाहिए। इस मास में लघुरुद्र, महारुद्र अथवा अतिरुद्र पाठ कराने का विधान है। पूजन की शुरुआत महादेव के अभिषेक के साथ की जाती है। शिवजी का गंगाजल, दूध, घी, शक्कर, शहद, दही, गन्ने का रस आदि से अभिषेक किया जाता है। उसके बाद बिल्वपत्र, शमी पत्र, दूर्वा, कुशा, कमल, नील कमल, आकड़े व कनेर पुष्प आदि अर्पित करते हैं। भोग के रूप में धतूरा, भांग, श्रीफल आदि अर्पित करके नमः शिवायःका जप करना चाहिए अर्थात् हे शिव! मैं आपको कोटि-कोटि नमन करता हूं। शिव पुराण में इस बात का भी वर्णन मिलता है कि इस मंत्र की महिमा का वर्णन 100 सालों में भी नहीं कर सकते। इन दिनों बड़े-बड़े अनुष्ठान मंदिरों में किए जाते हैं। श्रावण मास में शिव महापुराण व श्रावण महात्म्य कथा अवश्य सुननी चाहिए। श्रावण मास में प्रतिदिन शिवजी आराधना की जाए तो भगवान शिव सभी की मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं। श्रावण मास में लाखों श्रद्धालु ज्योर्लिंग के दर्शन के लिए व धार्मिक स्थानों के लिए जैसे- उज्जैन, हरिद्वार, काशी, नासिक आदि स्थानों पर स्नान करने के लिए जाते हैं। श्रावण मास में आस-पास के सभी लोग एकत्रित होकर कांवड यात्रा का आयोजन भी करते हैं। इस यात्रा में तीर्थ स्थानों से जल से भरे कांवड को अपने कंधों पर रखकर पैदल यात्रा करते हैं व शिव मंदिर जाकर शिवजी का विधि-विधान से अभिषेक करते हैं।

पुराणों के अनुसार जब समुद्र मंथन हो रहा था तो चौदह रत्नों में से एक हलाहल विष भी प्रकट हुआ था। जिससे समस्त सृष्टि नष्ट हो सकती थी। इसी की रक्षा के लिए भगवान शिव ने उस विष को पीकर सृष्टि की रक्षा की थी। विष को अपने गले के नीचे न लेकर गले में ही स्थिर रखा, इस कारण गले में काफी जलन व पीड़ा हुई और वे मूर्च्छित हो गए। यह देखकर सभी देवी-देवता भगवान शिव का जलाभिषेक करने लगे, जिससे उनकी मूर्छा टूटी व पीड़ा कम हुई। तभी से भगवान शिव नीलकण्ठ कहलाए।

जिन लोगों के विवाह में विलम्ब हो रहा है या विवाह संबंधित कोई समस्या है तो उन्हें श्रावण के सोमवार व सम्पूर्ण श्रावण मास के व्रत करके शिव आराधना करनी चाहिए।

श्रावण मास में प्रकृति भी मानो शिवजी का जलाभिषेक कर रही है, ऐसा प्रतीत होता है। इस पूरे माह वर्षा ऋतु होने से धरती हरी-भरी हो जाती है व छोटे-छोटे कीट-पतंगों की उत्पत्ति होती है। श्रावण मास में हरी पत्तेदार सब्जियाँ, बैंगन, लहसुन-प्याज, दही आदि चीजों को वर्जित माना गया है।