नयी दिल्ली:उच्चतम न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में अपीलों के लंबित रहने का संज्ञान लिया है। शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के महापंजीयक को वहां आपराधिक अपीलों को सूचीबद्ध करने के लिए अपनाई जाने वाली सामान्य प्रक्रिया की जानकारी देने के निर्देश दिए हैं, खासतौर पर उन मामलों में, जिनमें अपीलकर्ता उम्रकैद की सजा काट रहे हो।

सर्वोच्च अदालत ने महापंजीयक से यह भी बताने को कहा है वहां सामान्य तौर पर लंबित अपीलों की सुनवाई करने के लिए कितनी पीठ हैं और क्या ऐसी अपीलों को सूचीबद्ध करने के लिए कोई खास तंत्र है, जिनमें किसी व्यक्ति को 10 या उससे कम वर्षों के लिए जेल की सजा सुनाई गई है।

न्यायमूर्ति यूयू ललित, न्यायमूर्ति एसआर भट, न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि एक याचिकाकर्ता ने सात साल की सजा में से साढ़े तीन साल की सजा पूरी कर ली है, जबकि एक अन्य याचिकाकर्ता ने 10 साल की सजा में से साढ़े आठ साल से अधिक की सजा काट ली है, लेकिन उच्च न्यायालय में 2019 में दायर उनकी याचिका अब भी लंबित है।

पीठ ने यह भी कहा कि उसके समक्ष शिकायत की गई है कि आपराधिक दंड संहिता (सीआरपीसी) की धारा 389 के तहत राहत के लिए याचिकार्ताओं द्वारा दायर अर्जियों को उच्च न्यायालय के समक्ष सुनवाई के लिए सूचीबद्ध नहीं किया जा रहा है।

सीआरपीसी की धारा 389 सजा के निलंबन और अपीलकर्ता को जमानत पर रिहा करने से संबंधित है।

शीर्ष अदालत ने उच्च न्यायालय के महापंजीयक को 11 जुलाई तक जवाब दाखिल करने का निर्देश देते हुए यह बताने को है कि ‘‘उच्च न्यायालय आपराधिक अपीलों (खासतौर पर जब अपीलकर्ता आजीवन कारावास की सजा काट रहे हो) को सूचीबद्ध करने के लिए कौन-सी प्रक्रिया अपनाता है।’’

न्यायालय ने महापंजीयक से यह भी बताने को कहा है कि क्या उम्रकैद की सजा काट रहे अपीलकर्ताओं के मामलों में याचिकाओं को सूचीबद्ध करने के लिए कोई खास तंत्र मौजूद है।