गत 23 मई, 2021 से शनि देव वक्री हैं, जो कि 11 अक्टूबर तक वक्री रहेंगे। इस बीच में एक अन्य बड़े ग्रह बृहस्पति 20 जून से वक्री हो रहे हैं, जो कि 18 अक्टूबर तक वक्री रहेंगे। यह एक असाधारण स्थिति है, जब 20 जून से 11 अक्टूबर तक 114 दिन के लिए वक्री रहेंगे। यह साधारण बात नहीं है, क्योंकि बृहस्पति और शनि जब एक साथ इतने दिन वक्री रहते हैं तो बड़ी घटनाओं को जन्म देते हैं। बृहस्पति और शनि जब एक साथ वक्री रहे हैं तो उन्होंने सदा ही ऐतिहासिक घटनाओं को जन्म दिया है। इस पर भी एक महत्त्वपूर्ण बात होगी कि बृहस्पति लौटकर वापिस मकर राशि में आ रहे हैं अर्थात् 14 सितम्बर से दोनों ग्रह मकर राशि में वक्री रहेंगे और यह स्थिति 11 अक्टूबर तक चलेगी, क्योंकि उस दिन से शनिदेव मार्गी हो जाएंगे। उधर एक अन्य ग्रह बुध वक्री होने के लिए तैयार बैठे हैं। वे 27 सितम्बर को वक्री होंगे और 18 अक्टूबर तक वक्री रहेंगे। इतने ग्रहों का एक साथ वक्री होना विशेष बात है। सितम्बर-अक्टूबर के महीने में राहु-केतु सहित 9 में से 5 ग्रहों का वक्री होना, विशेष घटनाक्रम को जन्म देने वाला है। हमें उसका विश्लेषण करना चाहिए।

कोरोना का प्रारम्भ यद्यपि धनु राशि में बृहस्पति के रहते हुए हुआ था। तब शनि भी धनु राशि में थे, परन्तु देश के तमाम ज्योतिषियों की राय के विपरीत मैं यह मानने वालों में हूँ कि कोरोना का प्रादुर्भाव धनु राशि के शनि और वृश्चिक राशि में गुरु के रहते हुए ही हो गया था। यद्यपि उसका पता तब लगा जब बृहस्पति नवम्बर 2019 में धनु राशि में आने की तैयारी कर रहे थे। अब पुनः खतरनाक स्थिति है, क्योंकि कोरोना का सबसे अधिक घातक प्रभाव मकर राशि के बृहस्पति काल में ही हुआ। 6 अप्रैल 2021 को बृहस्पति यद्यपि कुम्भ राशि में आ गये थे और उसके बाद कोरोना के मामलों में कमी के लक्षण दिखने लगे हैं परन्तु यह बृहस्पति वक्री होकर पुनः मकर राशि में आ रहे हैं। हमारा यह मानना है कि बृहस्पति को ज्योतिष जगत में जीव कहा जाता है और चूंकि यह बृहस्पति की नीच राशि है, इसीलिए जीव जगत को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेंगे। अतः 14 सितम्बर के बाद अगले तीन महीने अत्यधिक सावधान रहने के हैं। कोरोना या ऐसी ही कोई बीमारी पुनः प्रकोप दिखा सकती है। हमें अत्यधिक सावधान रहना होगा।

कोरोना चौरासी लाख योनियों में से ही एक है और इस धरती पर सदा से ही था और सदा से ही रहेगा। हाँ, प्लेग और हैजा की तरह इसे नियंत्रित कर लिया जायेगा।

बुध ग्रह आर्थिक गतिविधियों से, मार्केटिंग, विदेश व्यापार, नये स्टार्टअप व आर्थिक समृद्धि से सम्बंध रखने वाले हैं। सितम्बर-अक्टूबर में शनि और बृहस्पति के साथ-साथ इनका भी वक्री होना आर्थिक गतिविधियों को बड़े पैमाने पर प्रभावित करेगा। निश्चित है कि तब केन्द्रीय और राज्य सरकारें तनाव में रहेंगी।

क्या जून और जुलाई, 2021 आर्थिक गतिविधियों के लिए अच्छे हैं?

निश्चित रूप से जून, जुलाई, अगस्त भारत की आर्थिक गतिविधियों में बहुत तेजी लाने वाले हैं और विकास दर तेजी से बढ़ेगी। यह अनुमान से भी अधिक तेजी से बढ़ेगी। मंगल ग्रह 20 जुलाई को सिंह राशि में आ जाएंगे और उनका अगले कुछ महीनों का सिंह से लेकर वृश्चिक राशि तक का भ्रमण अत्यधिक सुखदाई रहेगा। मंगल भारत की कुण्डली में अन्तर्राष्ट्रीय राजनय, संधियाँ, युद्ध परिस्थितियाँ, विदेशी नीति संधारण और सत्तासीन दल में बढ़ती हुई कुछ कर डालने की भावना, पूरे राष्ट्र को प्रभावित करेगी। जुलाई से दिसम्बर तक देश कुछ अति महत्त्वपूर्ण फैसलों को होते हुए देखेगा और राजनैतिक परिदृश्य बदल जायेगा। केन्द्र सरकार महत्त्वपूर्ण फैसले लेगी और राज्यों से टकराव के अवसर बढ़ेंगे। मुझे मुख्य विपक्षी दलों की कुछ रचनात्मक भूमिका नजर नहीं आ रही है। स्व. अटल बिहारी वाजपेयी के समय जब आम चुनाव हुए थे, तब श्रीमती सोनिया गाँधी के अष्टमेश शनि उनके दशम भाव में गोचर कर रहे थे। वाजपेयी के छठे भाव में शनि गोचर कर रहे थे। अब पुनः जब 2024 में आम चुनाव होंगे तो श्रीमती सोनिया गाँधी की कर्क लग्न की कुण्डली में शनि अष्टम भाव में कुम्भ राशि में चल रहे होंगे। काँग्रेस के लिए यह स्थिति अच्छी नहीं है। ज्योतिष तर्क यह है कि अगले आम चुनावों के समय जो होने वाला है, उसकी पृष्टभूमि शनि और बृहस्पति वक्री होकर अभी से रच देंगे। अर्थात् 2022 शुरु होते-होते देश में कुछ विशेष घटनाएँ और कुछ विशेष योजनाएँ आ चुकी होंगी।

बंगाल में कुछ विशेष गतिविधियाँ शुरु होने वाली है। रोहिंग्याओं को लेकर केन्द्र सरकार बड़े कदम उठायेगी। महाराष्ट्र की राजनीति में भी सन् 2021 में ही एक बड़ा तूफान आने वाला है। राजस्थान की राजनीति में भी अन्दर ही अन्दर अशांति बनी रहेगी। राजस्थान की राजनीति में घात-प्रतिघात और तीव्र हो जाएंगे। बिहार की राजनीति एक नया मोड़ ले रही है।

अगले 4 महीनों में केन्द्र सरकार अधिक प्रभावशाली होकर उभरेगी। जितनी आलोचना होगी, उतना ही उनके पास जवाब  भी होंगे। कुछ मंत्रियों के काम-काज को लेकर केन्द्र सरकार चिंतित रहेगी। उत्तर प्रदेश में योगी कुछ महत्त्वपूर्ण निर्णय लेने जा रहे हैं जो राज्य की राजनीति में बड़ा परिवर्तन लाने वाले हैं। इधर सरकार की धार तेज हो जाएगी तो उधर विरोधियों की, क्योंकि वक्री ग्रह बहुत दिनों तक अपना असर रखेंगे, इसलिए इनके असर सन् 2022 के मध्य तक देखे जा सकते हैं।

कोरोना वैक्सीन को लेकर नरेन्द्र मोदी के प्रयास सफल हो जाएंगे। इधर वैक्सीन का पेटेन्ट समाप्त होने की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी तो दूसरी तरफ भारत में वैक्सीन की उपलब्धि तेजी से बढ़ेगी। कोरोना का अगला दौर आने से पहले वैक्सीन की उपलब्धि बहुत बढ़ जाएगी। 2022 में जब वैक्सिनेशन का नया दौर शुरु होगा, तब तक वैक्सीन की उपलब्धि बहुत अच्छी स्थिति में रहेगी। चूंकि 2022 के पहले त्रैमास में बृहस्पति कुम्भ राशि में ही रहेंगे, इसीलिए वैक्सीन के नये आविष्कार भी सामने आ जाएंगे और वे किसी भी वेरियन्ट पर सफल सिद्ध होंगे। भारतीय वैक्सीन के खिलाफ अन्तर्राष्ट्रीय साजिश सफल नहीं होगी।

जहाँ तक निजी जीवन का सवाल है, जिन लोगों की जन्म पत्रिकाओं में जन्म के समय के बृहस्पति और शनि वक्री थे, उन्हें यह ग्रह पूरे परिणाम दे जाएंगे। सन् 2021 के बचे हुए महीनों में लाखों लोगों की नौकरियाँ बदल जाएंगी, कई प्रतिष्ठानों के विषय बदल जाएंगे, बहुत सारे नये स्टार्टअप शुरु होंगे और कुछ पुराने व्यावसायिक प्रतिष्ठानों के बिल्कुल बंद हो जाने की संभावनाएँ बढ़ जाएंगी, जो कमजोर हो गये हैं, उनका पतन हो जाएगा और जो अपने आप को बचा पाए हैं वे समृद्धि की ओर बढ़ेंगे।

ग्रहों को प्रसन्न करने का जो सर्वमान्य तरीका है, वह मंत्र -मणि और औषधि है। औषधि से तात्पर्य पीड़ित या क्रुद्ध ग्रह का खूब सारा मंत्र जप और उनका दशांश हवन करते समय उस ग्रह की यज्ञ काष्ठ से आहुतियाँ। इसका ज्ञान आप अपने नजदीकी पण्डित जी से कर सकते हैं।

 

 

रोग और शत्रु विचार : रखें इन बातों का ध्यान

कुण्डली में कुल 12 भाव होते हैं। इन 12 भावों में ही व्यक्ति के जीवन से सम्बन्धित सभी पहलू समाहित रहते हैं।

पहला भाव लग्न कहलाता है। इससे व्यक्ति के स्वयं के बारे में विचार किया जाता है। द्वितीय भाव धन-कुटुम्ब से सम्बन्धित होता है। तृतीय भाव छोटे भाई-बहिन, छोटी यात्राएँ और व्यक्ति के पराक्रम का भाव होता है। चतुर्थ भाव से माता, अचल सम्पत्ति तथा मित्रगण का विचार किया जाता है। पंचम भाव से संतान, पद-प्रतिष्ठा, इष्ट देव का विचार किया जाता है। षष्टम भाव रोग, रिपु-ऋण का भाव तो होता ही है, साथ ही विद्यार्थी वर्ग के लिए प्रतिस्पर्द्धात्मक प्रतियोगी परीक्षाओं का विचार भी किया जाता है। सप्तम भाव विवाह, जीवन साथी, साझेदार का भाव होता है। अष्टम भाव रहस्य विद्याओं, आकस्मिक धनहानि तथा ससुराल पक्ष का भाव होता है। नवम भाव से दक्षिण भारत में पिता का विचार किया जाता है। साथ ही यह धर्म, भाग्यऔर व्यक्ति की धार्मिक पक्ष के प्रति आस्था को दर्शाता है। दशम भाव कार्यक्षेत्र, पिता, व ख्याति को इंगित करता है। एकादश भाव बड़े भाई-बहिन, आय से सम्बन्धित होता है और जन्म पत्रिका का द्वादश भाव वैवाहिक जीवन, मोक्ष, विदेश यात्राओं तथा बंधन को दर्शाता है।

 

जन्म पत्रिका में कुल 9 ग्रह होते हैं, जो द्वादश भावों के अधिपति होते हैं। सूर्य चन्द्रमा को एक-एक भाव का स्वामित्व होता है, जबकि बाकी बुध, गुरु, शुक्र, शनि, मंगल को 2-2 भावों का स्वामित्व प्राप्त होता है। राहु और केतु जहाँ स्थिति होते हैं उस भाव के गुणों को घटाते या बढ़ाते हैं। 

पहले और छठे भाव का स्वामी यदि बृहस्पति के साथ किसी भी भाव में स्थित हों तो व्यक्ति निरोगी रहता है।

प्रथम और छठे भाव का स्वामी बुध के साथ स्थित हो तो पित्त रोग होता है।

पहले और छठे भाव का स्वामी यदि चन्द्रमा के साथ स्थित हो तो व्यक्ति को जल से डर लगता है।

अष्टम भाव का स्वामी ग्रह यदि लग्न में स्थित हो तो रोगी होता है।

यदि छठे भाव का स्वामी लग्न में स्थित हो तो व्यक्ति से स्वजातीय लोग शत्रुता की भावना रखते हैं, साथ ही व्यक्ति रोगी भी हो जाता है।

छठे भाव का स्वामी प्रथम भाव के स्वामी से बल में कमजोर हो और षष्ठेश (छठा भाव का स्वामी) को शुभ ग्रह देख रहे हों तो व्यक्ति के शत्रु भी मित्र बन जाते हैं।

पहले व छठे भाव के स्वामी सूर्य के साथ जन्म पत्रिका में कहीं पर भी स्थित हों तो व्यक्ति ज्वर रोग से पीड़ित रहता है।

पहले और छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध यदि मंगल के साथ हो जाए तो व्रण, शस्त्र से आघात, शरीर में गाँठ हो जाने का भय रहता है।

यदि पहले और छठे भाव के स्वामी का सम्बन्ध राहु या केतु से हो तो सर्प, व्याघ्र आदि का भय रहता है।

 

कुंभ राशि और आप

आपका व्यक्तित्व

कुंभ राशिचक्र की ग्यारहवीं राशि है। यह वायु तत्व राशि है। कुंभ राशि के व्यक्ति वायु की भांति स्वच्छंद होकर उड़ने वाले होते हैं। अपनी राह में किसी का हस्तक्षेप इन्हें पसंद नहीं होता। यह ऊंची उठने वाली हवा की ही भाँति उच्चाभिलाषी होते हैं। जिस प्रकार वायु संपूर्ण वातावरण में समान रूप से फैली होती है व सभी के लिए समान श्वासदायी होती है, ठीक उसी प्रकार कुंभ राशि के व्यक्ति भी परोपकारी व उदारमना होते हैं और किसी भी पूर्वाग्रह और लघु दृष्टिकोण से दूर होते हैं इसलिए यह संगठन व समूह में अच्छा कार्य करते हैं, इस राशि के व्यक्तियों में समूह के रूप में कार्य की भावना प्रधान होती है। जिस प्रकार वायु वातावरण में मौजूद तो होती है परन्तु दिखाई नहीं देती ठीक इसी प्रकार कुंभ राशि के व्यक्ति भी अपने द्वारा किए गए कार्यों का श्रेय लेने से बचते हैं। सादगी और सरलता से अपना कार्य करने में विश्वास रखते हैं।

यह स्थिर संज्ञक राशि है। ‘स्थिर’ अर्थात् स्थायी। ऐसे ही कुंभ राशि के व्यक्ति भी निरन्तर बाधाओं का सामना करते हुए एक समान व्यवहार रखते हैं, जीवन मूल्यों से समझौता नहीं करते। स्वभाव की यह स्थिरता ही उन्हें सूक्ष्म दृष्टि प्रदान करती है जिससे यह विषय की गहराई तक उसका विश्लेषण करते हैं। जो बातें यह सोचते हैं, वह अन्य व्यक्तियों की सोच से कई बार परे होती हैं।

इस राशि के स्वामी कठोर परिश्रमी, आध्यात्मिक, न्यायाधिकारी, कठिन परीक्षक शनिदेव हैं। इस राशि के व्यक्ति भी कठोर परिश्रम कर अपनी योग्यता को सिद्ध करते हैं। योग्यता शनिदेव की कसौटी पर खरे उतरकर ही सिद्ध हो पाती है। ‘शनैः+चर’ अर्थात् धीरे चलने वाले। इस राशि के व्यक्तियों को भी देर से परिणाम मिलते हैं। परिणाम पाने के लिए इनको संघर्ष करना पड़ता है, इससे इनका दृष्टिकोण दार्शनिक हो जाता है।

शनिदेव न्यायाधिकारी हैं, अतः सर्वोच्च रहना चाहते हैं, ठीक ऐसे ही कुंभ राशि के व्यक्ति भी बेहद स्वाभिमानी होते हैं। इनका यही स्वाभिमान यदा-कदा ‘अहं’ में बदल जाता है। जिस कारण इस राशि के व्यक्ति अपनी प्रगति में स्वयं ही बाधक हो जाते हैं।

इस राशि का चिह्न कंधे पर कलश धारण किए, पृथ्वी पर जल डालता पुरुष है। पृथ्वी पर जल डालना शुभत्व एवं परोपकार का प्रतीक है। ठीक ऐसे ही कुंभ राशि के व्यक्ति दूसरों की मदद के लिए सदैव तैयार रहते हैं तथा मानवता और ईमानदारी की भावनाएं मन में रखते हैं।

चिह्न में घट से नीचे की ओर बहती जलधारा है। कुंभ राशि के व्यक्तियों में भी लेखन कलादि की जन्मजात प्रतिभा की धार होती है। इस राशि के व्यक्ति जल की भाँति निर्मल व भावुक होते हैं और भावनाओं को ठेस लगना सह नहीं पाते और यही इनके व्यक्तित्व का नकारात्मक पक्ष बन जाता है, ये भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले व्यक्ति को आसानी से क्षमा नहीं करते, अपनी इस ज़िद के कारण यदा-कदा बहुत अकेले हो जाते हैं।

कुंभ राशि शरीर में पैरों की पिंडलियों का प्रतिनिधिव करती है। इस राशि में धनिष्ठा, शतभिषा व पूर्वाभाद्रपद नक्षत्र आते हैं। अतः इस राशि के व्यक्तियों के जीवन में इन नक्षत्रों के स्वामी ग्रहों मंगल, राहु व गुरु की महादशाएं आ सकती हैं।

कुंभ राशि के व्यक्तियों को अपनी लोगों को क्षमा न करने की प्रवृत्ति को छोड़ने का प्रयास करना चाहिए।

 

हस्त रेखा - कुछ स्मरणीय बिंदु

अवतार कृष्ण चांवला

हथेली पर कुल सात उभार होते हैं, जिन्हें पर्वत की संज्ञा दी गई है तर्जनी अंगुली के मूल में गुरु पर्वत, मध्यमा के मूल में शनि पर्वत, अनामिका के मूल में सूर्य पर्वत और कनिष्ठा के मूल में बुध पर्वत स्थित होता है। हथेली के मूल में दोनों और भी पर्वत होते हैं। अंगूठे की तरफ शुक्रपर्वत और दूसरी ओर कनिष्ठा के नीचे हथेली के मूल में चन्द्र पर्वत होता है। मंगल पर्वत को दो हिस्सों में बांटा गया है। अंगूठे के मूल में निम्न मंगल और बुध पर्वत और मस्तिष्क रेखा के नीचे उच्च के मंगल होते हैं।

प्रत्येक पर्वत मानव के निर्माण की मूल स्थिति को प्रकट करता है। इनके विकास का स्वरुप मानव की श्रेणी को परिभाषित करता है। प्रत्येक अंगुली उसके पर्वत के गुणों की प्रतीक है। अलग-अलग हाथों में पर्वत की स्थिति अलग-अलग होती है। कहीं ये विकसित रूप में होते हैं और कहीं ये समतल या चपटे होते हैं। कुछ हाथों में पर्वत की जगह अन्दर दबी होती है, उभरे पर्वत विकसित कहे जाते हैं। समतल पर्वत सामान्य गुणों को प्रकट करते हैं और दबे हुए पर्वत निर्बलता बताते हैं अर्थात् उनमें संबंधित पर्वत के गुणों का अभाव होता है अर्थात् कुछ पर्वत सबल होते हैं, कुछ निर्बल होते हैं और उसी अनुसार जातक के वर्ग और गुणों का निर्धारण होता है।

जातक के हाथ में जो उभार सर्वाधिक पुष्ट हो उसमें उस पर्वत के गुणों की बहुलता होगी।

पर्वत यदि सही ढंग से विकसित हो और उस पर सीधी खड़ी रेखा दिखाई दे तो पर्वत सुदृढ़ है। इसके विपरीत यदि पर्वत पर जाली या आड़ी तिरछी रेखा दिखाई दे तो वह दोषों की परिचायक है। इसी प्रकार यदि हाथ कठोर और लाल हो तो पर्वत की शक्ति का पता चलता है, यदि हाथ मोटा, मांसल तथा सफेदी लिये हो तो वह उर्जा की कमी दर्शाता है।

यदि पर्वत विकसित और लाल है, उस पर सीधी खड़ी रेखा है तथा हाथ मजबूत है तो इससे ज्ञात होता है कि पर्वत अपने गुण के अनुसार अधिक प्रभाव देता है। जैसे गुरु का पर्वत सुदृढ़ है तो जातक में गुरु के गुण अधिक प्रकट होंगे।

इसके अलावा अंगुलियों को भी देखना चाहिए और ये पता लगाना चाहिए कि कौनसी अंगुली बाकी अंगुलियों में प्रमुख और दृढ़ है। इसमें देखें की अंगुली की लम्बाई कितनी है। हाथ में सबसे लम्बी अंगुली शनि की होती है। शनि की अंगुली सबसे लम्बी होने से जातक की बुद्धिमत्ता और सौम्यता को दर्शाती है। गुरु की अंगुली शनि की अंगुली के पहले पर्व तक पहुंचनी चाहिए। इसी प्रकार सूर्य की अंगुली शनि की अंगुली के पहले पर्व के मध्य तक पहुंचनी चाहिए. यदि वह इससे अधिक लम्बी है तो जातक में सूर्य के गुणों की अधिकता होगी। यदि छोटी होगी तो गुणों में कमी होगी। इसी प्रकार बुध की अंगुली सूर्य के पहली पौर्वे तक पहुंचनी चाहिए. यदि अधिक लम्बी हो तो जातक में बुध के गुणों की अधिकता होगी।

अंगुली जिस अंगुली की ओर झुकी होगी तो वह उस पर्वत के गुणों को, शक्ति को कम करती है परन्तु अंगुली थोड़ी टेढ़ी हो तो वह जिधर झुकी होगी उस पर्वत के गुणों में शक्ति में वृद्धि करती है।

जातक के स्वास्थ्य की जानकारी के लिये अंगुली के नाखून को देखना चाहिए. यदि सूर्य की अंगुली या नाखून पर दोष हो तो जातक के ह्रदय की कमजोरी बताता है। शनि की अंगुली या नाखून दूषित हो तो जातक पित्त सम्बन्धी रोगों का शिकार हो सकता है। पित्त प्रधान व्यक्ति की शनि की अंगुली और नाखून पीले होते हैं, इसके साथ यदि यह नाखून भुरभुरा हो तो स्नायु रोग का परिचायक है।

जातक की अंगुलियाँ यदि छोटी हों तो जातक में शीघ्र सोचने और कार्य करने का गुण है। साथ ही यह अधैर्य का भी सूचक है। इसके विपरीत यदि अंगुली लम्बी हो तो जातक प्रत्येक कार्य का विवरण जानना चाहता है। चीज के हर पहलू पर विचार करता है, शंकालु प्रवृति होती है।

यदि लम्बी अंगुलियाँ गांठदार हों तो जातक किसी बात के विवरण को जानने की उस सीमा तक पहुच जाता है जो कष्टकर प्रतीत होता है। इस प्रकार गांठ दार अंगुलियाँ जातक की विश्लेष्णात्मक प्रवृत्ति को बताते हैं। छोटी और सीधी अंगुलियाँ जातक की क्रियात्मकता की सूचक हैं।

जिन हाथों के सारे पर्वत अथवा उभार एक समान विकसित हों तो ऐसा जातक संतुलित स्वभाव, व्यापक दृष्टिकोण, तर्क को जल्दी मानने वाले और स्वस्थ होते हैं।

हस्तरेखा शास्त्री के लिये यह जानना आवश्यक है, कि पर्वतीय उभार का मध्य बिंदु कहाँ है। बहुत से व्यक्ति पर्वत के उभरे हुए मांसल भाग को ही मध्य बिंदु मान लेते हैं, यह सही नहीं है। उभरे हुए भाग के मध्य में बना त्रिकोण ही मध्य बिंदु है। इसका ज्ञान होना सही कथन के लिए आवश्यक है। सामान्यतया यह मध्य बिंदु पर्वत के केन्द्र में होना चाहिए। यदि यह बिंदु पर्वत के शिखर पर हो तो पर्वत के गुणों में वृद्धि करता है और यदि नीचे के भाग में हो गुणों में कमी करता है। यदि यह किसी अन्य पर्वत की ओर झुका हो तो यह बताता है की वो पर्वत अधिक प्रभाव वाला है जिस की ओर यह झुका हुआ है।

आँगन

आंगन प्राचीनकाल में ब्रह्मस्थान की स्थिति को सुनिश्चित करने के लिए रखा जाता था। जिन भवनों में ब्रह्म स्थान की रक्षा अन्य किसी माध्यम से हो जाती थी, वहां भी आंगन की प्रतिष्ठा अति आवश्यक मानी जाती थी।

     आंगन के क्षेत्रफल को लेकर फलकथन की दो प्रथाएं प्रचलित थीं। ये शास्त्रोक्त हैं व वास्तुरत्नाकर और वास्तुराजवल्लभकार ने इनका उल्लेख किया है।

 

     1. आंगन की लम्बाई व चौड़ाई को गुणा करें। प्राप्त गुणनफल में 9 का भाग दें। शेष 1 बचे तो दाता, 2 विचक्षय (विद्वान), 3 भीरू, 4 कलह, 5 नृप, 6 दानव, 7 नपुसंक, 8 चोर और 9 में धनी। ये आंगनों के नाम हैं तथा नाम के अनुकूल ही फल मिलता है।

     2. एक अन्य गंरथ में लिखा है कि -

     आंगन की लम्बाई व चौडाई को हाथों से नापकर योगफल को 8 से गुणा करके 9 से भाग दें। शेष 1 बचे तो तस्कर, 2 भोगी, 3 विचक्षय (विद्वान), 4 दाता, 5 राजा, 6 नपुंसक, 7 धनी, 8 दरिद्र और 9 भय आदि फल प्राप्त होते हैं

     वास्तुराजवल्लभ में कुछ अन्य फल भी बताये गये हैं। बीच में नीचा और चारों ओर ऊंचा आंगन पुत्रनाश करता है। बीच में ऊंचा चारों ओर नीचा शुभ फल करता है।

उदाहरण -आँगन की लंबाई = 15 हाथ + चौड़ाई 21 हाथ = 36 / 9 = शेष 0 = धनवान।

अतः इस नाप का आँगन लक्ष्मी को स्थिरता देता है।

 

कन्या राशि के लिए रत्न

लग्नेश होने के कारण बुध ग्रह का रत्न पन्ना आपके लिए शुभ है।

1. पन्ना पहनने से आपका आत्म-विश्वास बढ़ेगा और बीमारी से लड़ने की क्षमता में बढ़ोत्तरी होगी। आपकी निर्णय लेने की क्षमता में भी बढ़ोत्तरी होगी, जिसकी वजह से आप अपने कार्यों को सही ढंग से पूरा कर पाएंगे। आपका कार्य कौशल बढ़ेगा,  आपके स्वभाव में जो सीधापन है और लोग उससे फायदा उठाते हैं, पन्ना पहनने से आप गणनात्मक हो जाएंगे और लोग आपका फायदा ज्यादा नहीं उठा पाएंगे। आपके सम्मान में बढ़ोत्तरी होगी।

आप सवा पाँच रत्ती का पन्ना सोने की अँगूठी में, शुक्ल पक्ष के बुधवार को, अपने शहर के सूर्योदय के समय से एक घंटे के भीतर, सीधे हाथ की कनिष्ठा अँगुली में पहनें। (सूर्योदय का समय आप अपने शहर के स्थानीय अखबार में देख सकते हैं)। पहनने से पहले पंचामृत (दूध, दही, घी, गंगाजल, शहद) से अँगूठी को धों लें। इसके बाद ॐ बुं बुधाय नमः मंत्र का कम से कम 108 बार जप करें। इसके बाद ही रत्न धारण करें।