जाति परिचय: बिहार में हुए जाति आधारित सर्वे में उल्लिखित जातियों से परिचित होने के मक़सद से द वायर ने एक श्रृंखला शुरू की है. नौवां भाग चमार जाति के बारे में है. कुछ जातियां ऐसी हैं, जो इस देश के हर हिस्से में निवास करती हैं. इनमें एक जाति है- चमार. बिहार सरकार द्वारा जारी जाति आधारित गणना रिपोर्ट, 2022 के अनुसार बिहार में भी इस जाति के 68 लाख 69 हजार 664 है जो कि कुल आबादी का करीब 5.255 प्रतिशत है. इस जाति की राजनीतिक उपस्थिति भी बेहद खास रही है और आश्चर्य नहीं कि इसी जाति के सदस्य रहे जगजीवन राम केंद्रीय राजनीति एक समय इतना दम रखते थे कि इंदिरा गांधी उन्हें बाबूजी कहकर संबोधित करती थीं.

वहीं 1977 में जब इस देश में गैर-कांग्रेसी सरकार अस्तित्व में आई तब वे उपप्रधानमंत्री बनाए गए. बिहार में ही, जहां अन्य ‘ऊंची’ जातियों का दबदबा रहा, रामसुंदर दास मुख्यमंत्री (21 अप्रैल, 1979 – 17 फरवरी, 1980) बने. यह वह समय था जब कांशीराम का बहुजन आंदोलन का नामोनिशान बिहार में नहीं था.

खैर राजनीतिक चेतना और सामाजिक चेतना में बहुत फर्क है. यह समझने के लिए कि आज भी चमार जाति के लोगों को निम्न क्यों माना जाता है, समाजशास्त्रीय चिंतन-मनन आवश्यक है.

दरअसल, मानव सभ्यता का विकास एक सतत प्रक्रिया है. इसका कोई भी चरण एक झटके में पूरा नहीं होता. मसलन, इस धरती पर आने के बाद इंसानों ने शिकार के बाद जिस कार्य को अपनाया वह खेती थी. यह एक बड़ी उपलब्धि थी, जिसे मनुष्यों के किसी खास समूह ने हासिल नहीं, बल्कि यह सामूहिक उपलब्धि थी. इसलिए यह कहा जा सकता है कि इस धरा पर जितने लोग हुए हैं, सभी के आदिम पुरखे किसान थे.

भारत की बात करें, तो सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेषों के रूप में जो कुछ हासिल हुआ है, वह इसी बात की ओर इशारा करता है कि कृषि सबसे अहम थी. लोग खेती करते थे. अलबत्ता वे शिल्पकार भी थे, जिन्होंने नगरीय सभ्यता को अपने सांचे में ढाला.