नयी दिल्ली : ब्रिटेन की पेट्रोलियम कंपनी केयर्न एनर्जी ने भारत सरकार के खिलाफ 1.7 अरब डॉलर की वसूली के सिलसिले में अमेरिका में एक मुकदमा दायर किया है। इसके तहत कंपनी एयर इंडिया जैसी भारत सरकार की कंपनियों की विदेशों में स्थित संपत्तियों को जब्त करा सकती है।

यह मामला आयकर कानून में पिछली तिथि से प्रभावी एक संशोधन के तहत कंपनी पर लगाए गए कर से जुड़ा है। केयर्न ने इसे अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता पंचाट में चुनौती दी थी और पंचाट का फैसला उसके पक्ष में आया है।

केयर्न ने 14 मई को न्यूयार्क के दक्षिण जिले की अदालत में मुकदमा दर्ज कर भारत सरकार के स्वामित्व वाली विमान सेवा कंपनी एयर इंडिया को भारत की सरकार का ही अभिन्न रूप माने जाने की अपील की है। इसके आधार पर वह विदेशों में स्थित भारत सरकार की संपत्तियां जब्त कर अपने पैसे वसूलना चाहती है। उसका कहना है कि एयर इंडिया और भारत सरकार एक ही हैं।

पीटीआई ने 28 मार्च की अपनी एक रपट में कहा था कि कंपनी इस तरह की कार्रवाई के लिए भारत के सरकारी उपक्रमों और भारत सरकार के बीच भेद न किए जाने का मामला दायर कर सकती है।

सूत्रों के अनुसार न्यूयार्क की अदालत में केयर्न ने इस मामले में एयरइंडिया को उसका देनदार घोषित किए जाने का आग्रह किया है।

कंपनी ने मध्यस्थता फोरम की डिक्री को लेकर अमेरिकी, ब्रिटेन, कनाडा, फ्रांस, सिंगापुर और नीदरलैंड की अदालतों का रुख किया है। मध्यस्थता फोरम ने पिछली तिथि से कानून संशोधन के माध्यम से कंपनी पर भारत में 10,247 करोड़ रुपए का कर लगाए जाने की मांग को खारिज कर दिया है।

उसने आयकर विभाग द्वारा कंपनी के बेचे गए शेयरों के मूल्य, जब्त किए गए लाभांश एवं रोके गए कर-रिफंड को भी वापस किए जाने का आदेश किया है।

घटनाक्रम के बारे में सीधी जानकारी रखने वाले तीन सूत्रों ने बताया कि अब कंपनी ने भारत सरकार और तेल एवं गैस, पोत परिवहन, एयरलाइन तथा बैंकिंग क्षेत्रों में उसके स्वामित्व वाली कंपनियों के बीच के भेद को हटाने की मांग को लेकर अमेरिका और दूसरे देशों में मुकदमे दायर करना शुरू कर दिया है।

सूत्रों ने कहा कि कंपनी ने विदेशों में भारत की उन सम्पत्तियों की पहचान कर ली है जिन पर वह दावा करेगी।

केयर्न ने कहा है कि वह ‘शेयरधारकों के हित की रक्षा के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है।’ पर भारत सरकार ने कहा है कि कर लगाना हर सरकार का सार्वभौमिक अधिकार है और वह कंपनी की ओर से वसूली की इस तरह की ‘गैरकानूनी कार्रवाई के प्रति अपना बचाव करेगी।’

कंपनी के एक प्रवक्ता ने कहा कि ‘मध्यस्थता अदालत की डिक्री से समाधन होता नहीं देख वह शेयरधारकों के हितों की रक्षा के लिए आवश्यक कदम उठा रही है।’

प्रवक्ता ने यह भी कहा कि ‘केयर्न इस लम्बे समय से चल रहे मामले के समाधान के लिए भारत सरकार से रचनात्मक बातचीत जारी रखने को हमेशा तैयार है।’

केयर्न ने भारत में तेल और गैस की खोज और उत्खनन के काम में 1994 में पहली बार कदम रखा था। उसे राजस्थान में तेल का बड़ा भंडार मिला। उसने 2006 में केयर्न इंडिया को मुंबई शेयर बाजार में सूचीबद्ध कराया।

इसके पांच साल बाद सरकार ने पिछली तिथि से कानून संशोधन के प्रावधान के तहत कंपनी पर 10,247 करोड़ के पूंजीगत लाभ-कर की मांग का नोटिस भेज दिया था जिसमें लागत और ब्याज आदि भी शामिल है।

मामला भारत में विभागीय और न्यायिक मंचों से होते हुए अंतरार्ष्टीय मध्यस्थता मंच में पहुंच गया।

हेग की मध्यस्थता अदालत के दिसंबर 2020 के निर्णय के बाद भी फरवरी में केयर्न के प्रतिनिधियों की तब के राजस्व सचिव अजय भूषण के साथ तीन बैठके हुईं लेकिन बात नहीं बनी।