मदुरै (तमिलनाडु): मद्रास उच्च न्यायालय ने कहा है कि हिंदुओं के खिलाफ आपत्तिजनक टिप्पणी करने वाला ईसाई धर्म प्रचारक दूसरों की धार्मिक मान्यताओं को चोट पहुंचाने के बाद छूट पाने का दावा नहीं कर सकता।

साथ ही, अदालत ने कहा कि उसकी तुलना किसी तटस्थ टिप्पणीकार या मुनव्वर फारूकी जैसे हास्य कलाकार से नहीं की जा सकती।

धार्मिक भावनाओं को आहत करने सहित भारतीय दंड संहिता की विभिन्न धाराओं के तहत पादरी जॉर्ज पोन्नैया के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी आंशिक रूप से रद्द करते हुए न्यायमूर्ति जी. आर. स्वामीनाथन ने कहा कि इस तरह की छूट संविधान के तहत सिर्फ तर्कवादियों या व्यंग्यकारों या यहां तक कि शिक्षाविदों को उपलब्ध होगी।

हालांकि, न्यायाधीश ने किसी व्यक्ति के अपना धर्मांतरण करने के फैसले की हिमायत करते हुए कहा, ‘‘धर्मांतरण किसी समूह का एजेंडा नहीं हो सकता। ’’

न्यायाधीश ने पोन्नैया की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह कहा। उसके खिलाफ पुलिस ने यह कहने को लेकर एक मामला दर्ज किया है कि भूमा देवी और भारत माता संक्रमण एवं गंदगी के स्रोत थे।

पादरी ने राज्य के कन्याकुमारी जिले में एक सभा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और प्रदेश के एक मंत्री के खिलाफ भी टिप्पणी की थी।

न्यायाधीश ने कहा कि याचिकाकर्ता दूसरों के धर्म या धार्मिक मान्यताओं का अपमान नहीं कर सकता है।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हिंदुओं की धार्मिक मान्यताओं को चोट पहुंचाने की बिल्कुल ही कोई जरूरत नहीं थी। यह अवांछित था। यह इसे जानबूझ कर की गई टिप्पणी और दुर्भावनापूर्ण बनाता है। याचिकाकर्ता ने उन लोगों का मजाक उड़ाया, जो नंगे पैर धरती मां (भूमा देवी) के लिए यात्रा करते हैं। उन्होंने कहा कि ईसाई जूते पहनते हैं ताकि उनके पैरों में खुजली नहीं हो। उन्होंने (पादरी ने) भूमा देवी और भारत माता को संक्रमण और गंदगी का स्रोत बताया।’’

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता के पूरे भाषण को पढ़ने के बाद कोई भी व्यक्ति संदेह में नहीं रहेगा। उनका लक्ष्य हिंदू समुदाय है। वह उसे (हिंदू समुदाय को) एक ओर और दूसरी ओर ईसाई एवं मुसलमान को रख रहे हैं। वह स्पष्ट रूप से एक समूह को दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं। यह अंतर केवल धर्म के आधार पर किया गया है। याचिकाकर्ता ने बार-बार हिंदू समुदाय को नीचा दिखाया।’’

अदालत ने कहा कि भारत का धर्म के आधार पर विभाजन हुआ था और उस दौरान दंगों में लाखों लोग मारे गये थे।

न्यायाधीश ने कहा, ‘‘यही कारण है कि हमारे राष्ट्र निर्माताओं ने नये गणराज्य के मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर धर्मनिरपेक्षता को अपनाया।’’

उन्होंने कहा, ‘‘वह(पादरी) दूसरों के धर्म का अपमान नहीं कर सकते या उनकी धार्मिक मान्यताओं को चोट नहीं पहुंचा सकते और इसके बाद आईपीसी की धारा 295ए/153ए/505(2) को लागू किये जाने से छूट पाने का दावा नहीं कर सकते।’’