दुनिया के 20 सबसे बड़े शहरों का वास्तु अध्ययन करने पर बहुत चौकाने वाला निष्कर्ष है। सबसे बड़ा निष्कर्ष यह है कि  सारे शहर दक्षिण दिशा की ओर ही बढ़ रहे हैं। उनका विकास सरकार चाहे या ना चाहे दक्षिण दिशा की ओर ही हो रहा है। दुनिया के बड़े शहरों में शामिल टोकियो (जापान), दिल्ली (भारत), संघाई (चीन), मैक्सिको सिटी, सॉओपालो (ब्राजील), कायरो (मिस्र), बिजिंग (चीन), ढ़ाका (बांग्लादेश), रियो-डी-जेनेरो (ब्राजील), लंदन (ब्रिटेन), जकार्ता (इंडोनेशिया), मनीला (फिलीपींस), तियांजिन (चीन), किनशाशा (कांगो), लागोस (नाइजीरिया), ब्यूनस आयर्स (अर्जेंटिना), इस्तांबुल (टर्की), कराची (पाकिस्तान), ओसाका (जापान), फ्रेंकफर्ट (जर्मनी), पेरिस (फ्रांस) में यह प्रवृत्ति पाई गई है कि सरकारी नियमों का उल्लंघन करके भी शहरों के विकास दक्षिण दिशा की ओर हुए हैं और नगर संस्थाएँ कुछ भी नहीं कर सकी हैं।

कलकत्ता, बम्बई, स्पेन के वार्सीलोना, इटली के रोम, टर्की के इस्तांबुल जैसे शहरों में यह समस्या रही कि दक्षिण में समुद्र है तो वहाँ यह निष्कर्ष निकला कि इस शहर के दक्षिण हिस्से में व्यावसायिक उत्थान बहुत अधिक हुआ, भूमि की दरें बहुत अधिक बढ़ गई और वहाँ पर से व्यापार बहुत अधिक केन्द्रित हुआ।

वास्तुशास्त्र के इस शोध कार्य में यह पाया गया कि किसी भी शहर के दक्षिणी हिस्से में व्यापारिक गतिविधियाँ विस्तार पाती हैं, फिर वह स्थान व्यावसायिक केन्द्र हो जाता है और उसके स्थापित होने के बाद वह शहर फिर दक्षिण दिशा की ओर विस्तार पाने लगता है।

मयमतम्, मानसार, समराङ्गणसूत्रधार व वृहतसंहिता जैसे ग्रंथों में यह निर्देश मिलते हैं कि दक्षिण दिशा में वणिकों को बसावें अर्थात् वहाँ वाणिज्यिक गतिविधियाँ शुरु करें। प्राचीन नगर सभ्यताओं में इन निर्देशों का पालन किया गया। यह भी अनुभव में आया कि जिन नगर सभ्यताओं के उत्तर में जल प्रवाह है, नदी या समुद्र है या बड़ा तालाब है, उनका विकास बहुत तीव्र गति से हुआ। एक वास्तुशास्त्रीय तर्क यह है कि वर्तमान उपलब्ध सम्पत्ति से दक्षिण में और पश्चिम में सम्पत्ति खरीदने का निषेध है। इसके पीछे तर्क यह है कि उत्तर के मुकाबले दक्षिण दिशा हल्की होने रहने पर घर का विनाश हो जाता है और वह सम्पत्ति दैत्य पृष्ठ कहलाने लगती है। इसी तरह से पश्चिम में यदि सम्पत्ति खरीदें और पूर्व दिशा में पहले से ही निर्माण हो तो यह पुन: दैत्य पृष्ठ की संज्ञा वाला भवन हुआ। दैत्य पृष्ठ तभी होगा जब दक्षिण और पश्चिम में खाली भूखण्ड हो। इसके उलट दक्षिण भारी, उत्तर हल्का और पश्चिम भारी पूरब हल्का भूखण्ड गजपृष्ठ कहलाता है। दैत्य पृष्ठ विनाश कराता है और गजपृष्ठ उत्थान कराता है।

परन्तु शहर इस नियम को नहीं मान रहे। संभवत: वास्तुशास्त्र का नियम शहरों पर उतना लागू नहीं हो रहा, फिर भी अगर शहर का ढ़लान दक्षिण या पश्चिम की ओर हुआ तो उसका पतन हो जाएगा। जिन बड़े शहरों के दक्षिण या पश्चिम में समुद्र है, वहाँ इस नियम का अपवाद है, परन्तु समुद्र की सतह वास्तु उपाय का काम कर जाती है। आपने देखा होगा कि जिन शहरों के पश्चिम में समुद्र है, वहाँ लक्ष्मी जी ने विशेष कृपा की है। वे शहर धनी होते चले गये हैं और व्यवसायिक दृष्टि से उन्नत होते चले गये हैं। हाँ, यह देखने में अवश्य आया कि व्यक्ति और संस्थाओं में चरित्रगत दोष बढ़े हैं। अमेरिका का ह्यूसटन शहर, सान डियागो, लॉस एंजेलिस तथा भारत का मुम्बई शहर इसका उदाहरण है।

वास्तुपुरुष भूखण्ड में आत्मा की तरह है, जैसे कि किसी शरीर में आत्मा। घर या नगर को यदि शरीर मान लें, तो वास्तु पुरुष उसमें आत्मा की तरह व्याप्त होते हैं। अगर नगर का विस्तार किसी दिशा की ओर होता है तो वास्तु पुरुष भी अपने आप ही विस्तार पा जाते हैं और समस्त गृहीत उपयोग में लायी जा रही भूमि पर व्याप्त हो जाते हैं। ऐसा होने से दोष भी उत्पन्न होते हैं क्योंकि प्रदत्त भूमि पर नगर बसावट को लेकर की गई वास्तु गणनाएँ परिवर्तित हो जाती हैं, ऐसा मकानों में भी होता है। वास्तु पुरुष के मर्म स्थान, ब्रह्म स्थान एवं अन्य स्थापनाओं की स्थिति व कोण परिवर्तित हो जाते हैं। परन्तु ऐसा होता ही है और जनसंख्या के दबाव के आगे नगर संस्थाएँ व सरकार विवश सी हो गई जान पड़ती हैं।

दक्षिण दिशा आधिपत्य की दिशा है

दक्षिण में शयन कक्ष प्रशस्त बताया गया है। नगरों में सेनापति या प्रशासकों को बसाने की व्यवस्था दी गई है। समराङ्गणसूत्रधार जो कि उज्जयिनी के राजा भोज देव की रचना है, के अनुसार दक्षिण दिशा में वैश्यों के, जुआरियों के, गाड़ी वालों के, नटों के तथा नाचने वालों के घर स्थापित करने चाहिए। सेनाध्यक्षों, राजा के सामान्तों को अग्निकोण में बसाना चाहिए। विभिन्न सैनिक संस्थानों को भी अग्निकोण में बसाना चाहिए। पुलिस जैसी संस्थाओं को, जेल इत्यादि को नैर्ऋत्य कोण में बसाना चाहिए। यह तीनों दिशाएँ शहर के दक्षिणी भाग में ही पड़ती है। यद्यपि वणिज, वैश्य तथा विशेषकर सेनाओं को चारों ही दिशाओं में बसाने के उल्लेख भी हैं परन्तु अनुभव में आया है कि दक्षिण दिशा व्यावसायिक दृष्टिकोण से सबसे अधिक विकसित हो जाती है। सम्भवत: यही कारण है कि नगर विस्तार दक्षिण दिशा की ओर ही होने लगते हैं। वहाँ पर जो कार्य करते हैं और निवास करते हैं वे लोग भी सम्पन्न और सत्तायुक्त हो जाते हैं। दक्षिण दिशा आधिपत्य की दिशा है और इधर बसने वाले लोग, चाहे घर में और चाहे नगर में, आज्ञापालन कराने में समर्थ होते चले जाते हैं। ज्योतिष में दक्षिण दिशा में मंगल ग्रह को बलवान बताया गया है। वे दक्षिण में ही प्रसन्न होते हैं। उधर ज्योतिष में मंगल को सेनापति भी बताया गया है। जब ये ग्रन्थ रचे गये थे तब सम्राट के बाद महामात्य और सेनापति ही सर्वशक्तिमान होते थे। परन्तु इन लोगों को दक्षिण दिशा से विशेष शक्ति प्राप्त होती है।

सरकारें क्या करें ?

सरकारों को शहरों के अनियंत्रित विकास को रोकने के लिए 500 या 1000 साल की नगर योजना बनानी चाहिए और उसके बाद नगर संस्थाएँ इस ढ़ंग से काम करें कि शहरों का विकास चारों दिशाओं में समान रूप से होने लगे।

 

 

 

 

 

 

 

चिह्न ज्ञान

अवतार कृष्ण चावला

मनुष्य के हाथ को देखते समय आप अनेकों प्रकार के चिह्न देखते हैं। इन चिह्नों को पहचान लेने से और फलादेश कहते समय इन चिह्नों को ध्यान रखने से सटीक फलादेश कहना संभव होता है। कुछ विशेष चिह्न नीचे वर्णित हैं-

चोकोर निशान या वर्ग - एक शुभ और रक्षात्मक चिह्न माना जाता है। जहाँ पाया जाए उस भाग के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाता है, समकोण त्रिभुज अशुभ प्रभाव तथा संकटों से रक्षा करता है। गुरु के पर्वत पर इसकी स्थिति प्रतिष्ठावान बनाती है। शनि के पर्वत पर हो तो भारी मुसीबत से रक्षा करता है, यदि सूर्य स्थान पर हो तो व्यापार में मददगार होता है परन्तु यदि यह शुक्र पर्वत पर पाया जाये तो इसके प्रभाव में कमी आती है। यहाँ यह मान हानि, कारागार तक भी भेज सकता है।

त्रिकोण या त्रिभुज - यह एक अनुकूल चिह्न है जोकि व्यक्ति की बुद्धिमत्ता और भौतिक प्रगति को बताता है। गुरु के स्थान पर हो तो राज्य में उच्च पदाधिकारी हो सकता है। सूर्य के स्थान पर विज्ञान के अनुसंधान एवं औषधि का कार्य करता है। मंगल के स्थान पर सैनिक कार्य में कुशलता प्रदान करता है। भाग्य रेखा के शुरु में त्रिकोण हो तो छोटी अवस्था में माता-पिता का वियोग होता है।  जीवन रेखा, मस्तक रेखा और स्वास्थ्य रेखा के आपस में मिलने से बड़ा त्रिभुज बनता है। यह बड़ा और स्पष्ट हो तो व्यक्ति भाग्यवान तथा सदाचारी बनता है।

यव -  यह एक महत्वपूर्ण चिह्न है जो अंगूठे के मध्य भाग, अंगूठे की तली में, अंगुलियों के जोड़ों पर प्रमुखता से पाया जाता है। यदि अंगूठे के मध्य यह निशान स्पष्ट हो तो व्यक्ति को धनी और यशस्वी बनाता है। यह व्यक्ति अपने परिवार और जाति का यश बढ़ाने वाला होता है। इससे व्यक्ति का जीवन खुशहाल होता है और व्यक्ति का मान बढ़ता है परन्तु गुरु पर्वत पर इसकी उपस्थिति अपयश दिलाती है। बुध की अंगुली के नीचे ह्रदय रेखा पर हो या बुध पर्वत पर हो तो नाजायज प्रेम किसी रिश्तेदार से होने की सम्भावना होती है। विवाह रेखा पर पति-पत्नी के अलगाव की सूचना देता है।

त्रिशूल - यह अधिक भाग्यशाली होने का चिह्न है। हथेली के जिस भाग पर होता है उस भाग के प्रभाव को बढ़ाता है।  किसी भी रेखा के ऊपर इसकी स्थिति से उस रेखा के पॅजिटिव गुण बढ़ जाते हैं। इस चिह्न को धारण करने वाले व्यक्ति का जीवन शांति और समृद्धिशाली गुजरता है।

मछली - यह भी एक बहुत अच्छा चिह्न है। ऐसा व्यक्ति उच्चाधिकारी बनता है, विद्वता के क्षेत्र में नाम और यश प्राप्त करता है। स्त्री के हाथ में ऐसा चिह्न सभी तरह की शुभता प्रदान करता है। उसे जीवन में धन, पोजीशन, पुत्र एवं पति का संपूर्ण सुख प्राप्त होता है। इसकी हथेली में स्थिति बताती है कि इसके प्रभाव जीवन में कब प्राप्त होंगे।

शंख - यह चिह्न बहुत ही धनी, प्रसिद्ध, ज्ञानी और विद्वान व्यक्तियों के हाथ में पाया जाता है।

छतरी -  यह चिह्न बहुत ही दुर्लभ है और बहुत ही विशिष्ट व्यक्तियों के हाथ में पाया जाता है। यह चिह्न भगवान की अद्भुत देन है। संसार में कुछ ही लोगों के हाथ में यह चिह्न पाया गया है।

झंडा - अति विशिष्ट व्यक्तियों के हाथ में पाए जाने वाला यह दूसरा दुर्लभ चिह्न है। ऐसा व्यक्ति धनी और अच्छे चरित्र वाला होता है। उसे सभी वाहन सुख, यश और धन की कोई कमी नहीं होती।

पेड़ - जिसके हाथ में यह चिह्न होता है वह व्यक्ति सफल, धनी, उच्चाधिकारी होगा एवं सबकी मदद करने वाला होगा।

मंदिर - यह भी एक दुर्लभ चिह्न है जो अति विशिष्ट और धनी व्यक्तियों के हाथ में पाया जाता है।

घड़ा - यह राजनीति में उच्च स्थान दिलाता है। यदि भाग्य और सूर्य रेखा सपोर्ट करें तो व्यक्ति मंत्री भी बन सकता है।

कमल का फूल - पुन: एक दुर्लभ चिह्न की चर्चा कर रहा हूँ। ऐसा व्यक्ति दैविक शक्तियों को प्राप्त करने का प्रयास करता है।

स्वास्तिक - यह एक अनुकूल चिह्न है जो लाभप्रद है।

चंद्रमा - सज्जन व्यक्तियों के हाथ में पाए जाने वाला चिह्न जो उनके किये काम की प्रशंसा उन्हें दिलाने में सहायक होता है।

धनुष - व्यक्ति को धन लाभ कराता है।

गुणक - यह & की तरह होता है। आम तौर पर इसका फल अशुभ होता है परन्तु कहीं किसी अवसर पर यह शुभ भी होता है। सूर्य और शनि के पर्वत के बीच हो तो दु:ख होता है। यदि यह गुरु के पर्वत पर हो तो सुखमय जीवन होता है। चन्द्र पर्वत पर हो तो गठिया रोग हो सकता है। विवाह रेखा पर हो तो दम्पति में से किसी एक की मृत्यु हो सकती है। बुध के पर्वत पर हो और कनिष्ठा अंगुली टेढ़ी हो तो व्यक्ति चोर होता है। चोर की हृदय रेखा शनि पर्वत तक ही जाती है। सूर्य पर्वत पर हो तो धनी होने की सम्भावना है।

वृत्त - रेखाओं पर इस चिह्न का होना अशुभ होता है। अलग-अलग रेखाओं पर इसकी उपस्थिति अलग-अलग अशुभ फल देती है परन्तु ग्रहों के पर्वतों पर यह शुभ फलदायक होता है। गुरु पर्वत पर यह सफलता, समृद्धि और मान देता है। सूर्य पर्वत पर यह सफलता, यश और धन देता है, लेकिन चन्द्र के स्थान पर इसकी उपस्थिति जल में डूब कर मरने की सम्भावना बताती है।

 

 

 

 

भारतीय जनजीवन और शकुन

शकुन शास्त्र को भारतीय ज्योतिष में एक महत्त्वपूर्ण स्थान दिया गया है। शकुन के पीछे शास्त्रीय धारणा यह है कि यह ग्रहों से प्रेरित होते हैं। इसीलिए इनका वास्तविक असर आता है। छींंकना, खाँसना, अंग फड़कना, बायटा (वात-विकार) आना, रास्ता काटना, प्रकृति के उत्पात जैसे कि अंधड़, तूफान, असमय वर्षा और बर्फबारी, भूमि स्खलन, आकाश का दूषित होना, आकाश से रुधिर इत्यादि की वर्षा होना, तीन लोगों का एक साथ घर से निकलना जैसे शकुन परिणाम लाते हैं, ऐसी धारणा है। शास्त्रों से निकलकर यह धारणाएँ जनजीवन में व्याप्त हो गई है। बहुत बड़े-बड़े कवियों ने साहित्य तक में शकुनों का उल्लेख किया है। जैसे कि तुलसीदास ने सुन्दरकाण्ड में लिखा है कि भगवान राम द्वारा लंका प्रस्थान के समय जो-जो शुभ शकुन हुए उतने ही अशुभ शकुन लंका में रावण के महल में हुए। अगर एक से अधिक शकुन एक साथ हों, अच्छे चाहे बुरे, तो निश्चित परिणाम आते हैं।

कवि बाण ने सम्राट हर्ष के बारे में हर्षचरित लिखा है, उनके प्रस्थान को लेकर उन्होंने एक साथ कई शकुनों का उल्लेख किया, जैसे- हिरण इधर-उधर भागने लगे, मधुमक्खियाँ उड़कर आँगन में भर गई, घोड़ों ने हरे धान का खाना छोड़ दिया, सेविकाओं के हाथ से चँवर छूट कर गिर गये, योद्धाओं को दर्पण में अपना सिर धड़ से अलग दिखाई दिया, जंगली कबूतर घर में आने लगे, शृगाली मुँह उठाकर रोने लगी, रात्रि में कुत्ते मुँह उठाकर रोने लगे, महल के फर्श में घास निकल आई, भूमि काँपने लगी, उल्कापात होने लगा और भयंकर झंझावात आ गया। वराहमिहिर का कहना है कि पूर्व में घोड़ा और सफेद वस्तु, दक्षिण में शव और माँस, पश्चिम में कन्या और दही तथा उत्तर में गाय, ब्राह्मण और सज्जन पुरुष श्रेष्ठ हैं। यह यात्रा शकुन है। इसी तरह से पूर्व दिशा में जाल के साथ - साथ चलने वाले, कुत्ते के साथ चलने वाले, दक्षिण में शस्त्र और कसाई, पश्चिम में शराब लेकर चलने वाले और हिजड़े तथा उत्तर में आसन और हल अशुभ है।

शास्त्रों में हजारों शकुन बताये गये हैं परन्तु आम नागरिक उसके स्वयं पर असर डालने वाले शकुनों पर ही ध्यान देता है। छिपकली का शरीर पर गिरना, घर में मकड़ी के जाले उत्पन्न होना, बिल्ली का रास्ता काट जाना, घर से निकलने पर सब्जी वाले का दायाँ-बायाँ मिलना, सफाई कर्मचारी का घर से निकलने पर दाँये-बाँये मिलना जैसे शकुन व्यक्ति को बहुत प्रभावित करते हैं। कोई प्रश्न कर ले तो उसका सम्बन्ध भी शकुन से जोड़ा गया है। अगर प्रश्न करने वाला पूर्व दिशा में हो तो चाँदी, अग्नि कोण में हो तो सोना, दक्षिण में हो तो पीडि़त, नैर्ऋत्य कोण में हो तो स्त्री सम्बन्धित, पूछने वाला पश्चिम में हो तो बकरा, वायव्य कोण में हो तो सवारी, उत्तर में हो तो यज्ञ जैसे विषय आते हैं परन्तु यह विषय ज्योतिषियों के लिए अधिक हैं।

ब्राह्मण के दर्शन, व्रत करने वाली स्त्री के दर्शन, साधु के दर्शन परम मित्रों के दर्शन शुभ माने गये है। श्यामा पक्षी का दिखना या आवाज करना शुभ माना गया है। कबूतर का वाहन, आसन और शैय्या पर बैठना व घर में प्रवेश अशुभ माना गया है। यदि गमन करने वाले के सामने सर्प आ जाए तो शत्रु का मिलना होता है तथा बन्धुओं के वध तथा विनाश को सूचित करता है। यदि खंजन  पक्षी कमल, घोड़ा, हाथी, सर्प के मस्तक पर दिखाई दे तो राज्य को देने वाला होता है। शेखावाटी जनपद में यह लोककथा बहुत प्रसिद्ध है कि साधू महाराज से आशीर्वाद लेकर प्रथम बिड़ला जी यात्रा पर निकले तो उन्हें बताया गया कि सर्प के सिर पर खंजन पक्षी मिलेगा तो डरना मत और आगे निकल जाना। परन्तु बिड़ला जी संकोच में आ गये और झुन्झुनूँ जिले में स्थित संत जी के पास पुन: पहुँचे। संत जी ने उन्हें उलहाना दिया कि अभी भी समय है वापस चले जाओ। परन्तु वापस जाने पर खंजन पक्षी उड़ चुका था, बिड़ला जी आगे निकल गये। लोकोक्ति है कि यदि शकुन की पूर्ण पालना हो जाती तो बिड़ला जी को सम्राट बनना चाहिए था। फिर भी वो धनी व्यक्ति तो बने ही। बाद में उन साधु महाराज के यहाँ अपार भीड़ लगने लगी और वो कई बार क्रुद्ध होकर पत्थर या डण्डा फेंक कर मार देते थे। लोग उसको भी आशीर्वाद मानने लगे।

पवित्र स्थान पर हरी घास दिखाई दे तो शुभ है तथा भस्म, हड्डी काठ, तुस, बाल या तृण दिखाई दे तो अशुभ माना गया है। वानर का किलकिल शब्द यात्रा में अशुभ माना गया है, परन्तु मुर्गे की बांग शुभ मानी गयी है। यात्री के बाएँ भाग में गधा श्रेष्ठ है और यदि वह रेंकने के समय ओंकार शब्द करे तो शुभ माना गया है। रात में मुर्गे का 'कु-कु-कु-कुÓ शब्द फिर भी ठीक है परन्तु भयभीत स्वर या अन्य सभी तरह के स्वर भय उत्पन्न करने वाले शकुन हैं, परन्तु रात्रि के अंतिम भाग में मुर्गे का लगातार स्वर शुभ माना गया है। उल्लू का बार-बार बोलना, कलह कारक माना गया है। सारस का जोड़ा यदि एक साथ शब्द करें तो मनोकामना पूर्ण होती है, परन्तु जोड़े में से एक ही सारस बोले तो अशुभ होता है।

व्यक्ति के अग्निकोण में स्थित कुत्ता सूर्य की तरफ मुख करके रोए तो चोर और अग्नि का भय, आधी रात को कुत्ता रोए तो बुद्धिजीवियों को पीड़ा और पशु की चोरी की सूचना है। यदि वर्षाकाल में मकान में या झोपड़ी में स्थित कुत्ता ऊँचे स्वर में शब्द करें तो अत्यंत शुभ माना गया है। परन्तु अन्य ऋतुओं में ऊँचे शब्द में चिल्लाना अशुभ माना गया है। बरसात नहीं हो रही हो और कुत्ता जल में भीग कर आए और बार-बार लोटनी करे तो यह बरसात की सूचना होती है। कुत्ते के अगर एक आँख में आँसू आए और कम भोजन करे तो यह घर के लिए दु:ख लाता है। गाय के साथ कुत्ते का खेलना शुभ माना गया है। कुत्ता बायीं जाँघ को सूंघे तो धनलाभ, दाहिनीं जाँघ को सूंघे तो स्त्रियों के साथ कलह आती है। कुत्ता घर से बाहर निकलने वाले व्यक्ति के दोनों पाँवों को सूंघे तो यह यात्रा का निषेध होता है। परन्तु यदि यात्री वहीं पर स्थित हो जाए तो कार्य की सिद्धि होती है। कुत्ता यदि एक स्थान पर स्थित व्यक्ति के जूते को सूंघे तो यह शीघ्र यात्रा होने का संकेत है। कुत्ता गाँव में चिल्लाये और बाद में श्मसान में जाकर चिल्लाए तो प्रधान पुरुष का नाश होता है।

कौआ घर के मुंडेर पर आकर शब्द करे, काँव-काँव करे तो बजुर्ग महिलाएँ कहती हैं कि आज कोई मेहमान आने वाला है। कौए को घांैसला बनाना नहीं आता, परन्तु बैशाख मास में यदि कौआ अच्छे वृक्ष पर घौंसला बनाए तो अच्छी वर्षा होती है परन्तु अशुभ वृक्ष, काँटेदार वृक्ष या सूखे वृक्ष पर घौंसला बनाए तो नगर के लिए अशुभ लक्षण है। जिस देश में कौआ, सरकंडा, कुशा, बेल, धान्य, महल, घर में नीचे घौंसला बनाए तो वह देश चोरी, अकाल और रोग से पीडि़त हो जाता है। कौए के 4 तक बच्चे हों तब तो वर्षा अच्छी होती है परन्तु पाँच बच्चे हों तो शासन बदल जाता है और अण्डा गिर जाए, एक अण्डा देवे या नहीं दे तो चहुँओर अमंगल होता है।

सम्राट विक्रमादित्य के नवरत्नों में से एक वराहमिहिर जैसे गणितज्ञ ने बहुत सारे पक्षियों, हाथी, घोड़े इत्यादि को लेकर शकुन और उनके परिणाम बताये हैं, उनमें से कुछ इस लेख में आ पाए हैं।

 

 

 

 

 

 

नए वस्त्र कब पहनें?

चन्द्रमा एक दिन एक नक्षत्र का भोग करते हैं। जब चन्द्रमा किसी दिन किसी नक्षत्र में होते हैं तो उस दिन का नक्षत्र कहलाता है। विभिन्न नक्षत्रों में भ्रमण करते समय चन्द्रमा अलग-अलग नक्षत्रों का फल देते हैं। वैदिक ज्योतिष नक्षत्रों पर ही आधारित थी। भारतीय ज्योतिष में 27 नक्षत्रों को अधिक उपयोग में लाया गया है। चन्द्रमा एक चक्र पूरा करने के बाद पुन: उसी नक्षत्र में आ जाते हैं। जैसे किसी दिन अश्विनी नक्षत्र में चन्द्रमा हैं। उसके 28वें दिन पुन: अश्विनी में ही आ जाएंगे। राशियाँ बाद में उपयोग में आई हैं। इस सूची से पता चलेगा कि चन्द्रमा जब किसी नक्षत्र में भ्रमण कर रहे होते हैं, उस दिन उस नक्षत्र की प्रकृति के अनुसार वस्त्र पहनने से क्या फल मिलता है।

नक्षत्र में चन्द्रमा        फल

1. अश्विनी                              बहुत वस्त्र का लाभ होगा

2. भरणी                                वस्त्रों की हानि

3. कृत्तिका                      अग्नि से वस्त्र का जलना

4. रोहिणी                      धन प्राप्ति

5. मृगशिरा                     वस्त्र को चूहों से भय

6. आद्र्रा                       मृत्यु

7. पुनर्वसु                 शुभ की प्राप्ति

8. पुष्य                                 धन का लाभ

9. आश्लेषा                      वस्त्र नाश

10. मघा                       मृत्यु

11. पूर्वाफाल्गुनी                 राजा से भय

12. उत्तराफाल्गुनी       धन का लाभ

13. हस्त                       कर्मों की सिद्धि

14. चित्रा                      शुभ की प्राप्ति

15. स्वाति                      उत्तम भोजन का लाभ

16. विशाखा                     जनों का प्रिय

17. अनुराधा                     मित्रों का समागम

18. ज्येष्ठा                      वस्त्र का क्षय

19. मूल                 जल में डूबने का भय

20. पूर्वाषाढ़ा                    रोग

21. उत्तराषाढा                   मिष्ठान्न का लाभ

22. श्रवण                      नेत्र रोग

23. धनिष्ठा                     अन्न का लाभ

24 .शतभिषा                    विष का अधिक भय

25. पूर्वाभाद्रपद                   जल का भय

26. उत्तरा भाद्रपद       पुत्र का लाभ

27. रेवती                      रत्न लाभ