श्राद्ध का अर्थ श्रद्धा से है, जो धर्म का आधार है। माता पार्वती और शिव को ‘श्रद्धा विश्वास रूपिणौ’ कहा गया है। पितृ-पक्ष हमें अपने पितरों के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। हिंदू धर्म में मान्यता है कि मानव शरीर तीन स्तरों वाला है। ऊपर से दृश्यमान देह स्थूल शरीर है। इसके अंदर सूक्ष्म शरीर है, जिसमें पांच कर्मेंद्रियां, पांच ज्ञानेंद्रियां, पंच प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान समान), पंचमहाभूत (पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश, वायु) के अपंचीकृत रूप, अंत:करण चतुष्टय (मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार), अविद्या, काम और कर्म होते हैं। इसी के अंदर कारण शरीर होता है, जिसमें सत, रज, तम तीन गुण होते हैं। यहीं आत्मा विद्यमान है। मृत्यु होने पर सूक्ष्म और कारण शरीर को लेकर आत्मा स्थूल शरीर को त्याग देता है।

मान्यता है कि यह शरीर वायवीय या इच्छामय है और मोक्ष पर्यंत शरीर बदलता रहता है। दो जन्मों के बीच में जीव इसी रूप में अपनी पूर्ववर्ती देह के अनुरूप पहचाना जाता है। मरणोपरांत जीव कर्मानुसार कभी तत्काल पुनर्जन्म, कभी एक निश्चित काल तक स्वर्गादि उच्च या नरकादि निम्न लोकों में सुख-दुख भोग कर पुन: जन्म लेता है।

अधिक अतृप्त जीव प्रबल इच्छाशक्ति के चलते यदाकदा स्थूलत: अपने अस्तित्व का आभास करा देते हैं। उचित समय बीतने पर ये पितृ लोक में निवास करते हैं। ‘तैतरीय ब्राह्मण’ ग्रंथ के अनुसार, भूलोक और अंतरिक्ष के ऊपर पितृ लोक की स्थिति है।