स्वागत विक्रम संवत् 2078 : 13 अप्रैल 2021 -1 अप्रैल, 2022

पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया

अंग्रेजी कलेन्डर से भी पुराना है हमारा यह विक्रम संवत्। आमतौर से मार्च या अप्रैल से प्रारम्भ होने वाले विक्रम संवत् की नकल में ही नये अंग्रेजी वित्त वर्ष का प्रारम्भ हुआ है। अंग्रेजों की साम्राज्यवादी नीति के कारण उनकी प्रणाली अधिक देशों में पहुंच गई परन्तु हमने अपनी पद्धति को नहीं छोड़ा। कोई जमाना आयेगा, सम्राट विक्रमादित्य के काल के समान ही हम पुनः संसार भर में फैल जाएंगे।

हम कलियुग के 5122 वर्ष बिता चुके हैं और 4 लाख 26 हजार 878 वर्ष का कलियुग भोगना शेष है। आप सभी जानते हैं कि 17 लाख 28 हजार वर्ष का सतयुग था, 12 लाख 96 हजार का त्रेता, 8 लाख 64 हजार वर्ष का द्वापर एवं 4 लाख 32 हजार वर्ष का कलियुग होता है।

इस संवत्सर का नाम राक्षस है, वर्ष के राजा मंगल हैं, मंत्री भी मंगल ही हैं। सेनापति चन्द्रमा हैं। शुक्र कई विषयों के प्रभारी हैं। लगभग प्रत्येक ग्रह को इस पद्धति में कोई न कोई प्रभार मिलता है।

मंगल हिंसा प्रधान हैं, अग्नि प्रधान हैं और संवत्सर का नाम राक्षस है तो घटनाक्रम साधारण नहीं जाना चाहिए। यह सब बातें देखने को मिलेंगी। अग्निकाण्ड, हिंसा, विद्रोह, सैनिक व पुलिस गतिविधियाँ और युद्ध परिस्थितियाँ। देश का तापमान बढ़ा हुआ रहेगा। गर्मी अधिक पड़ेगी। सत्ता संघर्ष बढ़ेगा और वह सब षड़यंत्र देखने में आएंगे जो राजगद्दी प्राप्त करने के लिए किये जाते रहे हैं। झूठ, फरेब, अपराधिक षड़यंत्र, हिंसा, वर्ग विभाजन, अफवाहें, आर्थिक अपराध और राष्ट्र विरोधी गतिविधियाँ, तदनुसार ही शासन की कार्यवाहियाँ, घात-प्रतिघात और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष दण्ड, यह सब भी देखने को मिलेगा। जिस बात का भय है वह रोग का भी है। अग्नि और वायु का संचार रोग को बढ़ाता है और भयानक गर्मी रोग को नष्ट नहीं होने देती।

रोहिणी नक्षत्र की भूमिका भी इस वर्ष में महत्त्वपूर्ण है। निवास तट पर है। रोहिणी का निवास यदि समुद्र में हो तो भारी वर्षा, तट पर हो तो अच्छी वर्षा परन्तु खण्डवृष्टि होती है, कहीं बहुत अधिक तो कहीं बहुत अधिक। इसका निश्चित परिणाम तो यह आएगा कि फसल तो बहुत अच्छी होगी, मुख्य धान भी खूब पैदा होगा। अनाजों का भण्डार बढ़ेगा। परन्तु दूसरी तरफ तट प्रदेशों में तूफान और बाढ़ का प्रकोप भी रहेगा। यह अवश्य है कि संवत्सर का वाहन वराह होने के कारण सरकारें जानमाल बचाने के लिए बहुत अधिक कोशिश करेंगी।

इस वर्ष की आर्द्रा प्रवेश कुण्डली भी मिथुन लग्न की है और उस दिन चन्द्रमा भी विशाखा नक्षत्र में हैं। बृहस्पति और शनि वक्री रहेंगे। राहु-केतु सदा ही वक्री रहते हैं। यह अच्छी वर्षा कराने वाले योग हैं। भारी तो गर्मी पड़ेगी और बादल गरजेंगे - बरसेंगे। विशाखा नक्षत्र के चन्द्रमा रोग भी बढ़ाएंगे। रोगों की प्रकृति में अन्तर हो सकता है।

23 मई को शनि वक्री हो जाएंगे और गुरु 20 जून से वक्री हो जाएंगे। वक्री गुरु दक्षिण मार्ग से भ्रमण करेंगे जो कि रोगों के शमन में, उत्तम वर्षा में, बुद्धिजीवियों और वैज्ञानिकों की प्रतिष्ठा में तथा देश में मंगल कार्य होने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इस वर्ष रक्षा संसाधनों पर, उपग्रह प्रक्षेपण पर विशेष ध्यान रहेगा तथा हथियारों की बिक्री आशातीत रहेगी।

शनि 11 अक्टूबर को मार्गी होंगे। यदि भारत की 15 अगस्त 1947 की जन्म पत्रिका से भी विचार किया जाए तो यह वक्री शनि भारत की भूमिका और उत्तरदायित्व को बहुत अधिक बढ़ा देंगे। चूंकि संवत् लग्न के राजा और मंत्री मंगल हैं और सेनापति चन्द्र हैं, इसीलिए चन्द्रमा और मंगल मिलकर पाकिस्तान के विरुद्ध प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष दण्डात्मक कार्यवाही के लिए सन्नद्ध रहेंगे। शनि और बृहस्पति एक और भूमिका में रहेंगे जब बृहस्पति वक्री रहते हुए कुम्भ से मकर में आ जाएंगे इसीलिए 14 सितम्बर से लेकर 11 अक्टूबर तक अर्थात् शनि के मार्गी होने तक देश में विशेष घटनाक्रम आने वाला है, यद्यपि बृहस्पति कुम्भ राशि में 21 नवम्बर तक बने रहेंगे।

शनि और बृहस्पति जब एक साथ एक ही राशि में वक्री होते हैं तो देश में हंगामा मचा देते हैं। कुछ राजनीतिज्ञों को पागलपन की स्थिति में ला देंगे, कुछ मंत्रियों को पद छोड़ने पड़ेंगे और नये संवत्् में भारत से बाहर वैश्विक स्तर पर कम से कम 2-3 राष्ट्राध्यक्षों का पतन करा देंगे। चूंकि संवत्त्सर के नाम बृहस्पति के आधार पर होते हैं और राक्षस संवत्सर में मंगल का सहयोग जुड़ गया है इसलिए 1-2 बार ऐसा लगेगा कि युद्ध के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा है। ऐसा कई राष्ट्रों के बीच में होगा।

भारत की सैन्य गतिविधियाँ- सेना के विकास के लिए बहुत धन खर्च होगा। गैर योजना मदों में खर्चा बढ़ेगा। सीमाओं पर सेनाओं का डिप्लोयमेंट बना रहेगा। भारत नये हथियारों का परीक्षण करेगा। भारत की कुण्डली वृषभ लग्न की है, उसकी वृषिक राशि अन्तर्राष्ट्रीय विषयों, कूटनीति व युद्ध नीति का नियंत्रण करती है। यह राशि नरेन्द्र मोदी की जन्म राशि भी है। चूंकि इस राशि के स्वामी मंगल ही वर्ष के राजा व मंत्री हैं अतः भारत क्षेत्रीय रक्षा समूहों में प्रभावी भूमिका निभायेगा व परमाणु हथियारों का व कृत्रिम उपग्रहों का उत्पादन करेगा व उसकी विदेश नीति और युद्ध नीति आक्रामक हो जाएगी। भारत बहुत शीध्र ही अच्छा हथियार विक्रेता बनने जा रहा है। जैसे अमरिका, फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन आदि हथियार बेच-बेच कर अमीर हुए हैं अब भारत की बारी है।

राजनीतिक दलों में उन्माद - कुछ राजनीतिक दल अस्तित्व का संकट झेलेंगे। सब कुछ गंवा देने की कल्पना से भयाक्रांत यह दल हिंसा, अपराध, वर्गभेद, अफवाह, छद्मक्रांति का सहारा लेंगे। वर्ष के राजा और मंत्री मंगल इनका क्रूरता पूर्वक दमन करेंगे। अपराधियों की संख्या बढ़ेगी व दण्ड पाने वालों की संख्या भी बढ़ेगी।

भारत का शासक वर्ग - थोड़ा सा सत्ता मद बढ़ेगा। शैली आक्रामक हो जाएगी। कई मामलों में आर-पार निर्णय होंगे। कई बड़े निर्णय ऐसे होंगे, जिनमें विवेक का अभाव होगा, दम्भ प्रकट होगा और जनता के मन में कभी-कभी दो तरह की राय बनेगी। कभी-कभी शल्य चिकित्सा आवश्यक हो जाती है। परन्तु शासक वर्ग को बहुत अधिक धैर्य का परिचय देना होगा और उदार स्वरूप का परिचय देना होगा। उसे चुनावी मानसिकता से बहुत शीघ्र बाहर आना होगा। लोक कल्याण की योजनाएँ पूरी शक्ति के साथ लागू की जाएंगी। परन्तु ग्रह प्रदत्त आवेश व प्रतिशोध के बढ़ते हुए अंशों का प्रयत्न पूर्वक दमन करना होगा। यह बात उन शासकों पर अधिक लागू होती है, जिनकी जन्म पत्रिका में मंगल, शनि और बृहस्पति अधिक प्रभावी हैं।