वर्तमान किसान आंदोलन शनि और बृहस्पति की एक - दूसरे पर प्रभाव जमाने की चेष्टा है। शनि 30 साल में एक बार राशि चक्र का भ्रमण पूरा करते हैं तो बृहस्पति औसतन 12 साल में। अब जो बच्चे जन्म लेंगे, वे अपने जीवन के 60वें साल में षष्टिपूर्ति का उत्सव मनाएंगे अर्थात् ये दोनों ग्रह 60 वर्ष बाद उन्हीं परिस्थितियों में अपनी जन्मकालीन राशियों में लौटते हैं, जिनमें कि वे जन्म के समय थे। ये राशियाँ अलग-अलग भी हो सकती हैं, परन्तु इन कुछ महीनों में जिन बच्चों ने जन्म लिया है, उनकी गुरु और शनि की मकर राशि में स्थिति 60 साल बाद ही आएगी। यह प्रथा अब लोग भूल से गये हैं, परन्तु ग्रह अपनी करामात भूलने नहीं देते।

शनिदेव 24 जनवरी, 2020 को ही मकर राशि में आ चुके थे और उनके साथ कई ग्रह भी थे परन्तु जब तक बृहस्पति ने धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश नहीं किया अर्थात् 30 मार्च, 2020 को, परिस्थितियाँ साधारण ढ़ंग से चलती रहीं। शाहीन बाग का आंदोलन 11 दिसम्बर, 2019 को प्रारम्भ हुआ। 26 दिसम्बर के दिन एक ऐसी परिस्थिति थी कि जब एक राशि में सूर्य,  बुध, बृहस्पति, केतु, शनि और चन्द्रमा थे। उस दिन के ग्रहण के परिणाम बाद में आए, जिसे लोगों ने कोरोना से जोड़ दिया, जबकि कोरोना का उत्पात काफी पहले शुरु हो चुका था। यहाँ शनि विशेष प्रभावशाली नहीं थे। परन्तु एक राशि में 6 ग्रहों का इकट्ठे होना, किसी बड़े घटनाक्रम का संकेत अवश्य दे रहा था। परन्तु शाहीन बाग का मामला 24 मार्च को समाप्त हो गया। 24 मार्च के तुरन्त बाद भारत सरकार हरकत में आई और देशव्यापी लॉकडाऊन घोषित कर दिया। उस समय भारत की जन्म पत्रिका के आठवें भाव में इतने ग्रहों की उपस्थिति और सातवें भाव में मंगल की उपस्थिति एक डरावना सा परिदृश्य उत्पन्न कर रही थी।

धनु राशि में इतने ग्रहों का इक_ा होना और उसके बाद इन्हीं सब ग्रहों का मकर राशि में आकर इकट्ठा होना इस बात का पूर्व संकेत दे रहा था कि कोई न कोई बड़ी घटना इस बीच में आएगी। 14 जनवरी,2021 को भारत की जन्म पत्रिका के नवें भाव में सूर्य, शनि, गुरु, बुध और चन्द्रमा इकट्ठे हुए और इसके बाद 10 फरवरी, 2021 को एक साथ ही 6 ग्रह मकर राशि में ही इकट्ठे होंगे। जिन ग्रहों की कक्षा अवधि कम समय की है वे भी गुरु और शनि की एक राशि में उपस्थिति को महत्त्वपूर्ण बना देंगे, उस पर राहु की इन 6 ग्रहों पर दृष्टि है। करेला और नीच चढ़ा। 10 फरवरी की भारत की जन्म पत्रिका की यह स्थिति है।

अर्थात् फरवरी, 2021 भी साधारण नहीं जाने वाला और तब तक ग्रह कुछ न कुछ कमाल करते रहेंगे।

बृहस्पति और शनि का मिलन साधारण बात नहीं है, शनि अति शक्तिशाली हैं, क्योंकि अपनी ही राशि में हैं। उधर बृहस्पति अपनी नीच राशि में हैं और सबसे कमजोर स्थिति में है। ज्योतिष की षड़बल गणना पद्धति के अनुसार 10 फरवरी की दोपहर को बृहस्पति का ग्रहबल औसत से 75 प्रतिशत ही है। ज्योतिष में सदा से शनिदेव को किसान, मजदूर और सर्वहारा वर्ग माना जाता रहा है। बृहस्पति देवताओं के सलाहकार हैं और अमात्य वर्ग में हैं। मंत्रि परिषद का अर्थ बृहस्पति ही है। यह बृहस्पति 17-18 फरवरी तक एक बार अपने औसत षड़बल पर आ जाएंगे और फिर थोड़ा बहुत ऊँच-नीच के साथ कमजोर स्थिति से निकलने की कोशिश करेंगे। इन ग्रह स्थितियों में ही किसान आंदोलन का समाधान छिपा हुआ है।

अभी दिसम्बर में यह स्थिति थी। दिसम्बर के तीसरे सप्ताह में बृहस्पति और शनि एक ही राशि अंश कला पर आये थे और जिसे ज्योतिष की भाषा में ग्रह युद्ध कहा जाता है। बृहस्पति को शनि की पकड़ से निकलने में काफी दिन लग गये। परन्तु अब बृहस्पति शनि से आगे चलने लगे हैं और अगले 15-20 दिन में काफी आगे निकल जाएंगे।

ज्योतिष की भाषा में जब ग्रहों में परस्पर युद्ध होता है तो धरती पर उनके वर्गों में भी युद्ध होता है। बृहस्पति को ज्योतिष में जीव भी कहा जाता है। शब्दान्तर से जीव और प्राण शब्द समानार्थक जैसे हैं। बृहस्पति के कमजोर होने से जैसे पृथ्वी पर प्राणियों का जीव का निकल गया हो। संसार का हर प्राणी प्रभावित हो चुका है। केवल दिल्ली के किसान आंदोलन की बात नहीं है, जिस-जिस देश में कोरोना का प्रकोप बढ़ा है वहाँ लोग घरों में कैद हो गये। मनुष्य के आसपास रहने वाले प्राणियों को भोजन और पानी नहीं मिला, चिडिय़ों को दाना नहीं मिला और मृत्यु भय बुरी तरह से व्याप्त रहा। भूख ने, दरिद्रता ने और अभाव ने अपने साम्राज्य का विस्तार कर लिया। देखा जाए तो शाहीन बाग आंदोलन और किसान आंदोलन बहुत पीछे रह गये और भारत-चीन सीमा विवाद, कोरोना पर परस्पर वाक् युद्ध करते देश, कई देशों की सेनाओं का आमने-सामने होना और अमेरिका में डेमोक्रेट और रिपब्लिकन्स के बीच में भंयकर विवाद इन ग्रहों के कारण हुआ। भारत में लाल किले वाली दुर्घटना और ट्रम्प के समर्थकों का व्हाइट हाउस में उत्पात एक जैसी ही घटनाएँ हैं।

निश्चित ही इस ग्रह युद्ध में बृहस्पति के वर्ग जो कि अमात्य वर्ग है, पीड़ा में दिख रहे हैं, परन्तु बृहस्पति अब धीरे-धीरे शनि की पकड़ से निकल रहे हैं। 6 अप्रैल को वे उस राशि से बाहर निकल जाएंगे जिस राशि में शनि बैठे हैं और कुम्भ राशि में रहकर वे कई समस्याओं का समाधान लाएंगे। तब न तो किसानों के नाम पर समृद्ध समूह सरकार को मजबूर कर देने की स्थिति में बचेंगे और ना ही कोरोना भय और आतंक का कारण बना रहेगा। बृहस्पति चाहते हैं कि शनि प्रदत्त दुराग्रह को हठात् समाप्त कर दिया जाये और बृहस्पति के वर्गों को राहत प्रदान की जाये। बाद में कोरोना 3 दिन का ही वायरल रह जायेगा और कालान्तर में वैक्सीन के स्थान पर गोलियाँ भी आ जाएंगी। इसमें थोड़ा सा समय लगेगा परन्तु साधारण गोलियाँ कोरोना को ठीक कर दिया करेंगी। परन्तु इन सबसे पूर्व शनि और बृहस्पति फरवरी के महीने में परस्पर जोर-तुलाई करने वाले हैं। यह नूराकुश्ती नहीं है, वास्तविक ग्रहयुद्ध और वर्गयुद्ध है। बड़े-बड़े लोग साफ बच निकलेंगे, यद्यपि मुकदमे झेलेंगे और आपराधिक व्यवहार के दोषी अपने घर-परिवार को नष्ट होता देखेंगे और सजा पाएंगे। जहाँ तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का सवाल है, उनका जन्म नक्षत्र ही अनुराधा है, उन्हें शनि का वरदान प्राप्त है और वे देश के आम किसानों को समझाने में सफल हो जाएंगे।

 

 

हमारा सूर्य

खगोल वैज्ञानिकों के अनुसार हमारा सूर्य आज से करीब 6 अरब वर्ष पहले केवल विशाल बादलों से बना हुआ था। जन्म के 5 करोड़ वर्ष बाद यह बादल धीरे-धीरे सिकुड़ते गये और सूर्य ने एक तारे या नक्षत्र का रूप लेना शुरु किया। इसके केन्द्रीय भाग में हाइड्रोजन का संगलन प्रारम्भ हुआ, जिसके अन्तर्गत हाइड्रोजन गैस हीलियम में बदल जाती है। इतने वर्षों में केवल 6 प्रतिशत हाइड्रोजन हीलियम में बदली है। यदि भारतीय वैज्ञानिक सुब्र्रहम्णम चन्द्रशेखर, जिनका कि जन्म 1910 में हुआ था, की मानें तो जब हमारे सूर्य की 12 प्रतिशत हाइड्रोजन हीलियम में बदल जाएगी तब इसका जीवन समाप्ति की ओर होगा। आज की तारीख में सूर्य के केन्द्र भाग का तापमान 1 करोड़ 60 लाख डिग्री सेन्टीग्रेड है और इसकी सतह का तापमान लगभग 6 हजार डिग्री सेन्टीग्रेड है। आज से 6 अरब साल बाद सूर्य का आकार और तापमान बहुत बड़ जाएगा। आज सूर्य के गोले का अद्र्धव्यास 7 लाख किलोमीटर है 6 अरब साल बाद यह 2 करोड़ 10 लाख किमी. हो जाएगा। हम सब अर्थात् बुध ग्रह, शुक्र ग्रह और पृथ्वी सब इसमें समा जाएंगे। सारे समुद्र वाष्प बन जाएंगे। पृथ्वी की धातुएँ पिघल जाएंगी, पृथ्वी का सतह तापमान 500 डिग्री सेन्टग्रेड हो जाएगा।

हमारी आकाश गंगा में हमारे सूर्य की कोई खास स्थिति नहीं है। भगवान कृष्ण ने अर्जुन को कुरुक्षेत्र के युद्ध क्षेत्र में जो विराट स्वरूप दिखलाया था उसमें हमारे सूर्य ही नहीं बहुत बड़े-बड़े नक्षत्र भी काल कलवित होते दिखाई दिये थे। अर्जुन डर गया था और उसने प्रार्थना की थी कि मुझे तो वही स्वरूप दिखाइये जिसमें कि आप अब हैं, तभी मुझे विश्वास होगा।

हमें डरने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि ईश्वर की बनाई इस सृष्टि में लय और विलय की प्रक्रिया चलती ही रहती है। हर जीव में जो आत्मा है, वह ईश्वर का ही अंश है और निर्विकार होने पर उस आत्मा को सूर्य जैसे नक्षत्रों का विनाश प्रभावित नहीं कर सकता चाहे विनाश काल में उसके केन्द्र का तापमान 20 करोड़ सेन्टीग्रेड तक पहुँचा माना जाता है। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमारे 100 वर्ष पूरे होने के बाद मुक्त आत्मा का पुन: अवतरण ईश्वर की किसी भी अन्य योजना में अन्यत्र कहीं भी हो सकता है। यह इस बात पर निर्भर करता  है कि पाप कर्मो के नष्ट होने से हम इस त्रिआयामी विश्व से कितनी अधिक दूर जा सकते हैं। अनन्त अंतरिक्ष की परिकल्पना भगवान कृष्ण के विराट स्वरूप से ही जानी जा सकती है। हाँ, यह अवश्य है कि चाहे देवता हों और चाहे मनुष्य पृथ्वी पर अवतरण से पूर्व उनकी गति और प्रकटीकरण हमारे सौर मण्डल की निर्धारित गतियों से ही नियंत्रित होता है। वह गति 3 लाख किमी. प्रति सैकण्ड से कुछ कम ही है। यद्यपि वैज्ञानिक इससे अधिक गति की खोज में लगे हुए हैं।

सूर्य की प्रसन्नता के लिए सूर्याष्टक बहुत लोकप्रिय है -

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर:।

दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तुते।।

सप्ताश्वरथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम्।

श्वेतपद्मधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम्।

महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

त्रैगुण्यं च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम्।

महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

बृं हितं तेज: पुञ्जं च वायुमाकाशमेव च।

प्रभुं च सर्वलोकानां तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

बंधूक पुष्प सङ्काशं हारकुण्डल भूषितम्।

एक चक्रधरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

तं सूर्य जगत्कर्तारं महातेज: प्रदीपतम्।

महापापहरं देवं तं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

तं सूर्य जगतां नाथं ज्ञानविज्ञान मोक्षदम्।

महापाप हरं देवं सूर्य प्रणमाम्यहम्।।

 

 

स्वप्न

यदि अधिक संख्या में स्वप्न आएं, दिन में स्वप्न आएं, चिन्ता, रोग और प्रकृति के विकारों के कारण जो स्वप्र उत्पन्न होते हैं उनके फलों पर विचार नहीं करना चाहिए।

जल से उत्पन्न पदार्थ, अनाज, पत्तों सहित कमल, मणि, मोती, मूँगा आदि के स्वप्र उस व्यक्ति को दिखते हैं जो कि कफ प्रकृति का होता है।

रक्त वरण, पीत वरण पदार्थ, अग्नि से उत्पन्न पदार्थ तथा सोने के आभूषण इत्यादि वह व्यक्ति स्वप्र में देखता है जो कि पित्त प्रकृति का होता है।

वायु प्रकृति का व्यक्ति जिन स्वप्रों को देखता है, उनमें व्यक्ति का नीचे गिरना, तैरना, सवारी पर चढऩा, पर्वत के ऊपर चढऩा, वृक्ष और महल पर चढऩा आदि शामिल है।

जो व्यक्ति सिंह, व्याघ्र, हाथी, गाय, बैल, घोड़ा और मनुष्यों के साथ स्वयं रथ पर चढ़कर कहीं जाए तो ऐसे स्वप्र वाला व्यक्ति राज्य को प्राप्त करता है।

जो व्यक्ति श्रेष्ठ हाथी पर चढ़कर महल या समुद्र में प्रवेश करे, ऐसा स्वप्र देखने वाला व्यक्ति निकृष्ट शासक होता है, परन्तु जो व्यक्ति सफेद हाथी पर चढ़कर नदी या नदी के तट पर भोजन में चावल ग्रहण करता हुआ स्वप्र देखता है तो उसे शीघ्र ही राजयोग की प्राप्ति होती है।

इसी प्रकार किसी के स्वप्न में महल दिखें, सिंहासन या सवारी दिखें, सोने या चाँदी के बर्तन में स्नान दिखें, उत्तम बर्तनों में भोजन करते दिखें तो उसे शीघ्र राजयोग की प्राप्ति होती है।

इसी भाँति यदि स्वप्र में वन, पर्वत या पृथ्वी व समुद्र दिखें और वह व्यक्ति अपने पराक्रम से उसे पार करता हुए दिखे तो यह राजयोग प्राप्तिके लक्षण हैं।

स्वप्न में यदि सफेद रंग के मल-मूत्र को साफ करता हुआ दिखे या हटाता हुआ दिखे तो भी राजयोग प्राप्ति के लक्षण हैं या प्राप्ति शीघ्र होती है।

जो व्यक्ति स्वप्न में सूर्य और चन्द्रमा का स्पर्श करता हुआ दिखे, शत्रु का वध कर दे और श्मशान भूमि में भी निर्भय होकर घूमे तो व्यक्ति को धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

समृद्धि तब भी प्राप्त होती है, जब व्यक्ति स्वप्र में सफेद वस्त्र और श्रेष्ठ आभूषण धारण करे और हाथी पर चढ़े तो सही परन्तु भय लगता हो, इस भय से राजयोग घटकर समृद्धि में रह जाता है।

स्वप्न में देव, साधु, ब्राह्मण, और प्रेत (पूर्वज) को देखें, वे सब सुख प्राप्त करते हैं। यदि इनमें से कोई क्रोधित दिखें तो अनिष्ट होता है।

अगर स्वप्न में घर का दरवाजा दिखे या कोई व्यक्ति अपने घर को पहचान ले तो कष्ट से छुटकारा हो जाता है।

इसी भाँति यदि स्वप्र में जल या शरबत पीता हुए दिखे या कोई बँधा हुआ व्यक्ति छूट रहा हो तो इस स्वप्न का फल ब्राह्मण और शिष्यों के लिए श्रेष्ठ होता है।

यदि स्वप्न में नीचे कुएँ आया जल या छिद्र को देखे या भयभीत होकर स्थल पर चढ़ता हुआ नजर आए तो धनधान्य की वृद्धि होती है, परन्तु श्मशान में सूखे वृक्ष, लता, और सूखी लकड़ी को देखता है या स्वयं को यज्ञ के खूँटे पर चढ़ता हुआ पाता है तो कोई न कोई विपत्ति आने वाली होती है।

स्वप्न में शीशा, राँगा, जस्ता, पीतल, रस्सी, सिक्का और शहद का दान मृत्यु की सूचना देने वाला होता है।

 

 

 

 

 

लक्ष्मीजी को प्रिय है कमल

भारतीय पुष्पों में कमल मुख्य है। मानवी सृष्टि का प्रारम्भ ब्रह्माजी से हैं और ब्रह्माजी की उत्पत्ति कमल पुष्प से ही हुई है। लक्ष्मी को कमलासना के नाम से जाना जाता है। प्रथमकाल में भगवान विष्णुजी सागर में शेष नाग पर सोते रहे। उनकी नाभि में कमल और कमल से ब्रह्माजी उत्पन्न हुए। विष्णुजी को इसलिए पद्मनाभ कहा जाता है।

पद्म अर्थात् कमल प्रेम, शांति और आनन्द का प्रतीक माना गया है एवं इसीलिए चतुर्भुज विष्णुजी के एक हाथ में पद्म बताया गया है।

कमल श्वेत, रक्त, पीत और नील कई रंगों का तथा अष्टदल, शतदल और सहस्त्रदल आदि अनेक प्रकार के होते हैं।

तंत्र, मंत्र और योग में भी कमल को महत्व दिया गया है। पुष्प सुगन्धमय होते हैं और उनके अनेक देवी-देवताओं को प्रसन्नता हेतु भिन्न-भिन्न पुष्प समर्पित किए जाते हैं।

कामदेव को पुष्पकन्धा अर्थात् पुष्प शस्त्र धारण करने वाला बताया गया है, जिससे ज्ञात होता है कि कामोत्तेजना में पुष्प का महत्वपूर्ण योग रहता है। पंचशरों में अरविन्द, अशोक, आम्र, नवमल्लिका और नील कमल हैं।

प्राचीन काल से आज तक पुष्पाभूषण धारण करने की प्रथा रही है। अनेक स्वर्ण और रत्नजडित आभूषणों के नाम ही पुष्पों के हैं, जैसे कर्णफूल, हथफूल, शीशफूल आदि।

षोड़श संस्कार और षोड़श शृंगार में पुष्पों का योग रहता है। पुष्पों से अनेक उपयोगी रंग तैयार किए जाते हैं।

अनेक स्वर्गिक पुष्पों के उल्लेख भी मिलते हैं जैसे पारिजात। ये कभी नहीं मुर्झाते। पुष्पों का प्रयोग चिकित्सा में तथा खाने में होता है। लोंग, केशर आदि आयुर्वेद चिकित्सा में विभिन्न फूलों के अनेक प्रयोग हैं और भविष्य में भी अनेकों औषधगत उपयोगिता की सम्भावनाएं पुष्पों में सम्मिलित हैं।

पुष्प उद्यान सौन्दर्य का आधार माना गया है, इसलिए प्राचीनकाल से ही उद्यानों में विविध पुष्प प्रयास पूर्वक लगाए जाते  रहे हैं।

फूल मानव भावनाओं को उत्तेजित करने वाले और परम प्रेरणादायक रहे हैं। यही कारण है कि चित्रकला, साहित्य, संगीत और शिल्प-कला, स्थापत्यादि में विविध पुष्पों का अंकन विविध रूप में विशेष रुचि से किया जाता रहा है।

 

 

महानगरों में भूमि पूजन और ग्रह प्रवेश

जब से फ्लैट संस्कृति प्रचलन में आई है, एक फ्लैट के खरीददार को यह समझ में नहीं आता कि वह क्या पूजा-पाठ करवाये? किस तरह से ग्रह प्रवेश करे? धर्मभीरु हिन्दुओं के सामने यह बड़ी समस्या है कि वे शास्त्र का पालन कैसे करें? भूमि पूजन हुआ या नहीं हुआ, इसका तो उसे पता ही नहीं चला और एक फ्लैट में ग्रह प्रवेश के सारे नियमों का पालन सम्भव नहीं रहा है। कोई न कोई विधि छूट जाती है या अपूर्ण रह जाती है।

एक बिल्डर हजारों वर्गगज जमीन खरीद कर केवल अपने हित के लिए भूमि पूजन करवाता है। परन्तु वह भूमिपूजन केवल उसका ही हित साधन करता है और उसे फ्लैट के खरीददारों के निमित्त भूमि पूजन नहीं माना जा सकता। बाद के वर्षों में जो लोग भी फ्लैट खरीद कर वहाँ रहने आते हैं तो भूमि पूजन की प्रक्रिया से वंचित रह जाते हैं। शास्त्रीय दृष्टिकोण से जिसने फ्लैट खरीदा है, उस फ्लैट के अलग से ही वास्तु पुरुष सृजित हो जाते हैं जैसे कि माता के गर्भ से अलग होते ही बच्चे के अंदर नई आत्मा का सृजन या प्रवेश हो जाता है। वास्तु पुरुष भी आत्मा ही है। फ्लैट के साथ भी ऐसा ही होता है। इसका अर्थ यह हुआ कि हम वास्तु चक्र के सभी देवताओं को फ्लैट में रहने तक प्रसन्न नहीं कर पाए हैं और इसका नुकसान हमें झेलना पड़ेगा। मन में सन्तुष्टि भी नहीं रहती है।

इसका एकमात्र समाधान यही है कि फ्लैट खरीदने के बाद उसमें ग्रह प्रवेश का मुहूत्र्त निकलवाकर वास्तु शान्ति यज्ञ अवश्य करवाया जाये। उस समय वास्तु पुरुष या वास्तु देवता से क्षमा अवश्य माँगनी चाहिए  और यह प्रार्थना करनी चाहिए कि हे वास्तु देवता, हम पर ऐसी कृपा करो कि इस फ्लैट के बाद ऐसा निवास मिले जिसमें हम शास्त्र सम्मत सभी विधानों का पालन करके आपकी कृपा प्राप्त कर सकें।