चंडीगढ़/नयी दिल्ली : पंजाब और दिल्ली में आम आदमी पार्टी (आप) की सरकारों ने पराली जलाने के मुद्दे से निपटने के लिए पंजाब में लगभग पांच हज़ार एकड़ ज़मीन पर पराली प्रबंधन के मद्देनज़र ‘बायो डीकंपोजर’ का छिड़काव करने के लिए हाथ मिलाया है।

दरअसल, पूसा में विकसित ‘बायो डीकंपोजर’ के छिड़काव से 15 से 20 दिन के अंदर पुआल (फसल के अवशेषों) को मिट्टी में मिलाया जा सकता है। किसानों के पराली जलाने से निकलने वाला धुआं वायु प्रदूषण का मुख्य कारण है।

केंद्र ने पिछले दिनों किसानों को पराली जलाने से रोकने के लिए नकद प्रोत्साहन प्रदान करने के दोनों राज्यों की सरकारों के अनुरोध को खारिज कर दिया जिसके बाद यह कदम उठाया गया है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईएआरआई) की मदद से लागू की जाने वाली एक पायलट परियोजना के तहत पंजाब में पांच हज़ार एकड़ या 2,023 हेक्टेयर जमीन पर ‘बायो डीकंपोजर’ का छिड़काव किया जाएगा।

इस साल पंजाब में धान की खेती का कुल रकबा 29-30 लाख हेक्टेयर आंका गया है। राज्य में सालाना औसतन दो करोड़ टन धान की पराली का उत्पादन होता है।

दिल्ली के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने ट्वीट किया, ‘‘पराली से प्रदूषण के मुद्दे को लेकर पंजाब के कृषि मंत्री कुलदीप धालीवाल जी और आईएआरआई पूसा के अधिकारियों के साथ संयुक्त बैठक की। आईएआरआई की देखरेख में इस साल पायलट परियोजना के तौर पर पंजाब के कुछ इलाकों में ‘बायो डीकंपोजर’ का मुफ्त छिड़काव किया जाएगा।’’

धालीवाल ने बुधवार रात नई दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और राय से मुलाकात के दौरान पराली जलाने के मुद्दे को सुलझाने के तरीकों पर चर्चा की।

जुलाई में, दिल्ली और पंजाब सरकार ने संयुक्त रूप से केंद्र और वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग को एक प्रस्ताव भेजा था कि वह पंजाब में किसानों को पराली न जलाने के लिए नकद प्रोत्साहन देने में मदद करें।

किसानों के मुताबिक, नकद प्रोत्साहन से धान की पराली के प्रबंधन के लिए मशीनों के संचालन में इस्तेमाल होने वाले ईंधन की लागत वहन करने में मदद मिल सकती है।

पंजाब सरकार के अधिकारियों के अनुसार, केंद्र ने इस प्रस्ताव को यह कहते हुए खारिज किया कि वह धान की पराली के प्रबंधन के लिए किसानों को ‘हैप्पी सीडर’, ‘रोटावेटर’ और ‘मल्चर’ आदि मशीनें सब्सीडी पर उपलब्ध करवा रहा है तथा नकद प्रोत्साहन के लिए उसके पास पैसे नहीं हैं।

पंजाब सरकार द्वारा जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार, कृषि मंत्री धालीवाल ने कहा कि राज्य सरकार ने धान की पराली से होने वाले प्रदूषण को रोकने के लिए पर्याप्त तैयारी की है। सब्सिडी पर किसानों को उपकरण उपलब्ध करवाए जा रहे हैं, सभी जिलों में जागरुकता एवं सतर्कता दलों का गठन किया गया है।

पराली जलाने से रोकने के लिए किसानों को नकद प्रोत्साहन देने के प्रस्ताव को ‘‘ठुकराने’’ के लिए केंद्र सरकार पर निशाना साधते हुए, धालीवाल ने कहा कि राज्य सरकार ने धान उत्पादकों को 2,500 रुपये प्रति एकड़ देने का प्रस्ताव दिया था, जिसमें सुझाव दिया गया था कि केंद्र को प्रस्तावित राशि में से 1,500 रुपये वहन करने चाहिए।

उन्होंने बताया कि पंजाब के ग्रामीण इलाकों में बड़े पैमाने पर जागरुकता अभियान चलाया जाएगा, जिसमें ग्रामीण विकास एवं पंचायत विभाग तथा पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी शामिल होंगे ताकि किसानों को पराली के प्रबंधन के लिए तैयार किया जा सके।

दिल्ली सरकार लगातार तीसरे वर्ष राज्य के बाहरी क्षेत्रों में कृषि भूमि पर आईएआरआई द्वारा तैयार किए गए ‘बायो डीकंपोजर’ का उपयोग करेगी।

पिछले साल दिल्ली में 844 किसानों की 4,300 एकड़ जमीन पर पूसा ‘बायो डीकंपोजर’ का छिड़काव किया गया था। 2020 में 1,935 एकड़ जमीन पर 310 किसानों ने इसका इस्तेमाल किया था।

अधिकारियों के मुताबिक, ‘बायो डीकंपोजर’ के छिड़काव में महज 30 रुपये प्रति एकड़ का खर्च आता है।

2021 में, दिल्ली में ‘बायो डीकंपोजर’ के प्रभाव का पता लगाने के मकसद से एक तीसरे पक्ष के ऑडिट में सामने आया कि यह 95 प्रतिशत प्रभावी था, जिसके बाद केजरीवाल ने केंद्र से पड़ोसी राज्यों में इसे मुफ्त में वितरित करने का अनुरोध किया था।

गौरतलब है कि राष्ट्रीय राजधानी में अक्टूबर और नवंबर में वायु प्रदूषण के स्तर में खतरनाक वृद्धि के पीछे पंजाब और हरियाणा में धान की पराली जलाना एक प्रमुख कारण है।