नयी दिल्ली: पूर्व राजनयिकों एवं सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक एवं रक्षा सहयोग के वृहद पथ को चीन के कारण पैदा हो रही चुनौतियों के मद्देनजर अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन के कार्यकाल में और विस्तार मिल सकता है।

बाइडन द्वारा अमेरिका के विदेश मंत्री नामित किए गए एंटनी ब्लिंकन ने सीनेट द्वारा उनके नाम की पुष्टि किए जाने के दौरान मंगलवार को कहा था कि अमेरिका चीन को लेकर कड़ा रुख अपनाए रखेगा और उन्होंने भारत के साथ संबंधों को द्विपक्षीय सहयोग की सफल कहानी करार दिया था।

अमेरिका में 2015-16 में भारत के दूत रहे पूर्व राजनयिक अरुण सिंह ने कहा कि चीन के कारण भारत जिन चुनौतियों का सामना कर रहा है और इस साम्यवादी देश के आर्थिक, प्रौद्योगिकी एवं सैन्य विकास के कारण अमेरिका के सामने जो खतरा पैदा हो रहा है, उनके कारण दोनों देशों (भारत एवं अमेरिका) के मिलकर काम करने की और अधिक संभावनाएं हैं।

सिंह ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘विभिन्न क्षेत्रों, खासकर हिंद-प्रशांत क्षेत्र में दोनों देशों के साझे हितों के कारण मुझे सहयोग के और मजबूत होने की उम्मीद है।’’

थिंक टैंक ‘गेटवे हाउस’ के प्रतिष्ठित सदस्य राजीव भाटिया ने कहा कि पिछले 20 साल में संबंधों में जो समग्र सुधार हुआ है, उसके आगे भी जारी रहने की उम्मीद है।

पूर्व राजनयिक ने कहा, ‘‘लेकिन हमें यह देखना होगा कि अमेरिका की एशिया नीति और चीन नीति आगामी महीने में कैसे आकार लेती है, क्योंकि खासकर इन दो नीतियों को लेकर काफी अनिश्चितता है और ये भारत एवं अमेरिका के संबंधों को वास्तव में प्रभावित करेंगी, इसलिए देखिए और इंतजार कीजिए।’’

भाटिया ने कहा कि हिंद प्रशांत में दोनों देशों के बीच रणनीतिक सहयोग में विस्तार की उम्मीद है।

उन्होंने कहा, ‘‘यह ऐसा क्षेत्र है, जहां अमेरिका को भारत की आवश्यकता है, क्योंकि अमेरिका चीन को अपना मुख्य प्रतिद्वंद्वी घोषित कर चुका है और भारत को भी एशिया में मौजूदा भूराजनीतिक स्थिति के कारण अमेरिका की आवश्यकता है। मुझे लगता है कि हम (भारत और अमेरिका के बीच) निश्चित ही रक्षा सहयोग में विस्तार की उम्मीद कर सकते हैं।’’

रणनीतिक मामलों के जाने माने विशेषज्ञ जी पार्थसारथी ने कहा कि बाइडन की नीतियां हालिया वर्षों में कई देशों के खिलाफ चीन के व्यवहार को लेकर चिंता व्यक्त करती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘कई एशियाई देश चीन का दबाव झेल रहे हैं। यह शी चिनफिंग के कार्यकाल में एक अजीब तथ्य है... मेरे नजरिए से, सच्चाई यह है कि न तो भारत और न ही अमेरिका, चीन के साथ तनावपूर्ण संबंध चाहता है, लेकिन उन्हें (भारत और अमेरिका को) अपने हितों के अनुरूप काम करना होगा।’’

पूर्व उप सेना प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) सुब्रत साहा ने कहा कि दोनों देशों के बीच रणनीतिक संबंधों की व्यापकता बरकरार रहेगी तथा उनके बीच सहयोग और बढ़ेगा।

यह पूछे जाने पर कि क्या रूस से एस-400 मिसाइल प्रणाली खरीदने के कारण अमेरिका के तहत भारत पर ‘काउंटरिंग अमेरिका एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शंस एक्ट’ (सीएएटीएसए) के तहत प्रतिबंध लगा सकता है, साहा ने कहा कि शीर्ष अमेरिकी अधिकारी इस मामले पर ‘‘व्यावहारिक रुख’’ अपना रहे हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘आप रातों रात इस तथ्य को नहीं पलट सकते कि हमारी रूस पर काफी निर्भरता है। इसलिए, आप सीएएटीएसए लगाएं या न लगाएं, यदि हमें अपनी क्षमताओं को बढ़ाना है, तो हमें सभी माध्यम खुले रखने होंगे। भारत अंतत: अपने रणनीतिक हितों के आधार पर फैसले करेगा।’’

सिंह ने उम्मीद जताई कि भारत और अमेरिका एक सीमित व्यापार समझौता करने का मार्ग तलाशने में सफल होंगे और बाद में इसे आगे बढ़ाएंगे।